दूध के नाम पर 70 प्रतिशत लोग क्या पी रहे हैं, जान लेंगे तो उल्टी हो जाएगी
अगर ये मिलावट तुरंत नहीं रोकी जाती, तो 2025 तक भारत के तकरीबन 87 फीसदी लोग कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां झेल रहे होंगे.
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100 में से 69. यानी, तीन चौथाई से कुछ ही कम. देश में बिकने वाले कुल दूध और दूध से बने सामानों का इतना हिस्सा मिलावटी है. मिलावट के लिए आमतौर पर जो चीजें सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती हैं, वो हैं- डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा (कपड़े धोने के साबुन में डलने वाली एक चीज), ग्लूकोज़, सफेद पेंट और रिफाइन्ड तेल. अगर ये मिलावट तुरंत नहीं रोकी जाती, तो आने वाले सात-आठ सालों में भारत के तकरीबन 87 फीसद लोग कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां झेल रहे होंगे.
दूध के उत्पादन से करीब चार गुना ज्यादा है इसकी खपत 31 मार्च, 2018 तक भारत में हर दिन 14.68 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन हो रहा था. जबकि दूध की खपत 480 ग्राम प्रति व्यक्ति है. भारत की कुल आबादी फिलहाल 135 करोड़ है. इस लिहाज से देश में दूध की रोजाना खपत 64 करोड़ लीटर से भी ज्यादा है. यानी दूध की खपत उसके उत्पादन के मुकाबले चार गुना से भी ज्यादा है. जाहिर है, उत्पादन और खपत के इस गैप को भरने के लिए मिलावट का इस्तेमाल किया जा रहा है. आमतौर पर लोग सोचते हैं कि दूध में पानी की मिलावट सबसे ज्यादा होती है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इसमें डिटर्जेंट और सफेद पेंट जैसी जहरीली चीजों की मिलावट का ट्रेंड ज्यादा है.
इससे पहले 2012 में भी FSSAI ने दूध की जांच की थी. ज्यादातर सैंपल्स में या तो पानी मिला हुआ मिला या फिर उनमें रासायनिक खाद, यूरिया, ब्लीच और डिटर्जेंट जैसी चीजों की मिलावट पाई गई. उस जांच में गोवा और पुदुच्चेरी ऐसी जगहें थीं, जहां दूध में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं मिली थी.
FSSAI के स्टैंडर्ड से मैच नहीं करता ऐनिमल वेलफेयर बोर्ड के एक सदस्य मोहन सिंह आहलूवालिया ने ये डेटा दिया है. उनका कहना है कि भारत में बिक रहे कुल दूध का तकरीबन 67.8 फीसद हिस्सा फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) द्वारा तय किए गए स्टैंडर्ड के मुताबिक नहीं. खाने-पीने की चीजें सही हैं या नहीं, क्वॉलिटी के लिहाज से उन्हें कैसा होना चाहिए, ये देखने और तय करने का काम FSSAI का है. विज्ञान और तकनीक मंत्रालय की एक रिपोर्ट का हवाले देते हुए आहलूवालिया ने कहा-
देश में दूध और दूध से बनी चीजों में मिलावट का हाल ये है कि बाजार में बिक रही 68.7 फीसद ऐसी चीजें FSSAI द्वारा तय किए गए स्टैंडर्ड से मेल नहीं खातीं.जान-बूझकर जहरीली चीजें मिलाई जाती हैं मिलावट के लिहाज से उत्तर भारत की हालत ज्यादा बुरी है. यहां के मुकाबले दक्षिण भारत में ये चलन कम है. नैशनल सर्वे ऑफ मिल्क अडल्ट्रेशन (अडल्ट्रेशन यानी मिलावट) ने कुछ साल पहले एक सर्वेक्षण किया था. उसमें मालूम चला कि साफ-सफाई की कमी की वजह से अक्सर पैकेजिंग के वक्त दूध और इससे बने सामानों में डिटर्जेंट जैसी चीजें मिल जाती हैं. जैसे मान लीजिए कि दूध रखने के लिए इस्तेमाल होने वाले बर्तन धुलते वक्त डिटर्जेंट का इस्तेमाल किया. मगर बर्तन को ठीक से नहीं धुला. फिर जब उसमें दूध रखा, तो बर्तन में लगा डिटर्जेंट उसी दूध में मिल गया. ये तो ऐसी मिलावट हुई, जो लापरवाही के कारण हुई. जान-बूझकर नहीं की गई. मगर फिर जान-बूझकर की गई मिलावट भी होती है. जब दूध को गाढ़ा दिखाने के लिए या लंबे समय तक उसे फटने या खराब होने से बचाने के लिए उसमें मिलावट की जाती है. ऐसी मिलावटों के लिए भी डिटर्जेंट, यूरिया, स्टार्च, ग्लूकोज़ और फॉर्मेलिन जैसी जहरीली चीजों का इस्तेमाल किया जाता है.
ऐसा नहीं कि बस दूध पीकर सेहत को नुकसान हो रहा हो. गेहूं और चावल जैसे स्टेपल भी जहरीले हो चुके हैं. दशकों से हो रहे रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से मिट्टी जहरीली हो चुकी है. उसपर हर फसल पर इनका और भी ज्यादा इस्तेमाल . वो सारा जहर अनाज के रास्ते हमारे शरीर में घुस रहा है.
दूध तो दूध, गेहूं भी जहरीला हो गया है ऐसा नहीं कि हमें बस दूध और इससे बने प्रॉडक्ट्स से ही डरने की जरूरत है. डराने के लिए और भी चीजें हैं. मसलन गेहूं और चावल. आहलूवालिया ने कहा कि जिस हिसाब से कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है, उसकी वजह से उत्तर भारत के इलाकों में गेहूं तक जहरीला हो गया है. दूध के बिना तो इंसान फिर भी गुजारा कर ले, अनाज के बिना कैसे रहेगा.
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