मराठा आरक्षण: बात इतनी कैसे बिगड़ी कि शिंदे-फडणवीस से इस्तीफा मांगा जा रहा है?
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर एक बार फिर बवाल मचा है. अब तक क्या-क्या हुआ, यहां जानिए.
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण (Maratha reservation) का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है. कई इलाकों में बवाल हो गया है. बीते कुछ दिनों से रैली, नारेबाजी, बाज़ार बंद और रास्ता रोककर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं. इन सबकी शुरुआत तब हुई, जब मराठवाड़ा क्षेत्र के जालना में आरक्षण की मांग पर चल रही हड़ताल के दौरान हिंसा हो गई. जगह-जगह पुलिस कार्रवाई के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए. विपक्ष राज्य सरकार पर हमलावर हो गया. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का इस्तीफा मांगा जाने लगा. राज्य सरकार एक्शन में आई, जालना में हुई हिंसा की जांच बैठाने के साथ 4 सितंबर को एक हाई लेवल मीटिंग की गई. महाराष्ट्र के CM शिंदे ने प्रदर्शनकारियों से धैर्य रखने की अपील की है.
जालना में हुआ क्या था?इंडिया टुडे के ऋत्विक भालेकर की रिपोर्ट के मुताबिक जालना के अंतरवाली सारथई गांव में 29 अगस्त से हड़ताल चल रही थी. मांग थी, मराठा आरक्षण की. इस हड़ताल का नेतृत्व कर रहे मनोज जरांगे पाटिल भूख हड़ताल पर थे. पुलिस के मुताबिक समस्या तब हुई, जब डॉक्टरों की सलाह पर पुलिस ने जरांगे को हॉस्पिटल में भर्ती कराने की कोशिश की. प्रदर्शन कर रहे लोगों ने पुलिस को ऐसा करने से रोका, तो स्थिति बिगड़ गई. हिंसा शुरू हो गई. पत्थरबाजी हुई, बसों में आग लगा दी गई. इस पर काबू करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया. आंसू गैस के गोले दागे. ये सब हुआ 1 सितंबर, 2023 को.
आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच हुई इस भीषण झड़प में कई पुलिस वाले और आंदोलनकारी घायल हुए. 360 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई हैं. वहीं प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के लाठीचार्ज के विरोध में प्रदर्शन शुरू हो गया. ठाणे, नासिक, लातूर, बारामती, नवी मुंबई, सोलापुर और कल्याण में प्रदर्शन किए गए. कई इलाकों में रैली निकाली गई, नारेबाजी की गई और बाजार बंद रहे.
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार का गढ़ माने जाने वाले बारामती में मराठा समाज के लोगों ने मार्च निकाला. व्यापारियों ने दुकानें बंद कर समर्थन दिया. कल्याण में मराठा समुदाय के लोग सड़कों पर उतर गए. गाड़ियों को चलने से रोका गया. दुकानें जबरन बंद कराई गईं.
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विपक्ष बोली- 'इस्तीफा दें शिंदे-फडणवीस'शिवसेना (UBT), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और कांग्रेस ने महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार को घेरना शुरू किया. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग होने लगी. प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के लाठीचार्ज को लेकर निशाना साधा गया. उद्धव ठाकरे ने PM मोदी से अपील की कि संसद के विशेष सत्र में मराठाओं को आरक्षण दिया जाए.
इस पूरी घटना पर महाराष्ट्र सरकार ने 4 सितंबर को एक हाई लेवल मीटिंग की. मुंबई के सह्याद्री गेस्ट हाउस में कैबिनेट सब-कमिटी की मीटिंग हुई. इस मीटिंग में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस भी शामिल हुए.
इंडिया टुडे के पंकज खेलकर की रिपोर्ट के मुताबिक मीटिंग के बाद CM शिंदे ने कहा,
"मीटिंग में मराठा समुदाय को आरक्षण देने पर चर्चा हुई. सरकार इस दिशा में गंभीरता से काम कर रही है. मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना चाहिए, यही सरकार का मानना है. "
उन्होंने कहा कि विपक्ष को उनका और डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस का इस्तीफा मांगने का नैतिक अधिकार नहीं है. CM शिंदे बोले,
"जब वे ( विपक्ष) सत्ता में थे, तब उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की. सरकार मराठा आरक्षण देने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है. मैं अपील करता हूं कि किसी को भी इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए."
CM शिंदे ने बताया कि अडिशनल रेवेन्यू ऑफिसर, मराठाओं के आरक्षण के लिए कुनबी सर्टिफिकेट पर काम कर रहे हैं. कुनबी मराठाओं को 2001 में OBC में शामिल किया गया था.
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मनोज जरांगे बोले- 'अनशन जारी रखूंगा'CM एकनाथ शिंदे ने मनोज जरांगे से भी मुलाकात की. CM शिंदे बोले,
"हमें उनके स्वास्थ्य की चिंता है क्योंकि वह लंबे समय से उपवास कर रहे हैं. हम इस बात से आहत हैं कि जालना में ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी."
वहीं मनोज जरांगे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा“मैं मराठा समुदाय के आरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का स्वागत करता हूं... सरकार मराठा आरक्षण यानी मराठा समुदाय को OBC का दर्जा देने के लिए प्रस्ताव लाने की दिशा में काम कर रही है, लेकिन जब तक सरकार प्रस्ताव नहीं भेजती कि मराठा समुदाय को कुनबी का दर्जा दिया गया है...OBC का दर्जा दिया गया है, मैं अपना आमरण अनशन जारी रखूंगा.”
यूं तो महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग बहुत पुरानी है. साल 2014 में महाराष्ट्र में जब कांग्रेस-NCP की सरकार थी, तब तत्कालीन CM पृथ्वीराज चव्हाण ने एक आर्डिनेंस निकालकर मराठा समुदाय को 16 और मुसलमानों को 5 फीसदी आरक्षण दे दिया था. इस ऑर्डिनेंस के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिकाएं लग गईं और हाई कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया. सरकार से कहा कि संवैधानिक प्रक्रिया का पालन कीजिए, तभी जाकर आरक्षण टिकेगा. सरकारी शिक्षा क्षेत्र में मुसलमानों को मिले 5% आरक्षण पर रोक नहीं लगाई गई थी.
इसके बाद महाराष्ट्र बैकवर्ड क्लास कमीशन को ये ज़िम्मेदारी दी गई कि वो राज्य में जातियों के पिछड़ेपन पर एक रिपोर्ट तैयार करे. रिटायर्ड जस्टिस गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले इस कमीशन ने महाराष्ट्र के हर जिले में जनसुनवाई शुरू की. लेकिन जब तक इस कमीशन की रिपोर्ट आती, महाराष्ट्र में चव्हाण सरकार चली गई और देवेंद्र फडणवीस की सरकार आ गई.
कुल 25 मानकों पर मराठों के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आधार पर पिछड़ा होने की जांच की गई. इस दौरान किए गए सर्वे में 43 हजार मराठा परिवारों की स्थिति जानी गई. इसके अलावा जन सुनवाइयों में मिले करीब 2 करोड़ ज्ञापनों का भी अध्ययन किया गया. इनके आधार पर कमीशन ने 2017 में मराठा समुदाय को सोशल एंड इकनॉमिक बैकवर्ड कैटेगरी (SEBC) के तहत अलग से आरक्षण देने की सिफारिश की.
आरक्षण का बिल, जिसे SC ने रद्द किया था2018 में महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने विधानसभा में मराठाओं के आरक्षण का बिल पास किया. इसके तहत राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में मराठाओं के लिए 16 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया.
इस बिल के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरक्षण को बरकरार रखते हुए कहा कि इसे 16% की बजाए शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% किया जाना चाहिए. आरक्षण जारी रखते हुए 17 जून, 2019 को कोर्ट ने कहा था कि अपवाद के तौर पर 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मराठा समुदाय को आरक्षण के लिए सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित करने का कोई आधार नहीं है. 2018 में लाया गया मराठा रिजर्वेशन का कानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में दिए समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है.
बता दें कि मराठा आरक्षण महाराष्ट्र की राजनीति के लिए भी एक अहम मुद्दा है. वजह ये है कि महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है. वोट बैंक के मद्देनज़र कोई भी पार्टी इस मांग का विरोध नहीं करती.
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वीडियो: सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए क्या कहा?