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मालदीव भारतीय सैनिकों को निकालने पर आमादा क्यों, भारत को क्या नुकसान?

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने कहा है कि भारत उनके देश से अपने सैनिक हटाने के लिए तैयार हो गया है. मालदीव में भारतीय सैनिक क्यों हैं और उनके निकलने से भारत को क्या नुकसान हो सकता है?

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pm modi and maldives president muizzu
पीएम मोदी COP 28 में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू (फोटो-आजतक)
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अभिषेक
5 दिसंबर 2023 (Published: 12:59 IST)
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मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने कहा है कि भारत उनके देश से अपने सैनिक हटाने के लिए तैयार हो गया है. ये बयान दुबई में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात के बाद आया. दोनों नेता दुबई में आयोजित कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP28) के दौरान मिले थे. अक्टूबर 2023 में राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज़्ज़ू की पीएम मोदी से ये पहली मुलाक़ात थी. मुइज़्ज़ू बहुत पहले से भारतीय सैनिकों को मालदीव से हटाने की मुहिम चला रहे हैं. शपथ लेने के बाद उन्होंने कई मौकों पर ये मांग दोहराई है. पीएम मोदी से मीटिंग के बाद उन्होंने औपचारिक ऐलान कर दिया. इस ऐलान पर भारत की प्रतिक्रिया नहीं आई है.

मालदीव में कितने भारतीय सैनिक हैं?

मालदीव नेशनल डिफ़ेंस फ़ोर्स (MNDF) के मुताबिक, उनके यहां फिलहाल 77 भारतीय सैनिक मौजूद हैं. भारत ने मालदीव को 2013 में 02 ध्रुव हेलिकॉप्टर्स लीज पर दिए थे. फिर 2020 में 01 डोर्नियर एयरक्राफ़्ट भेजा. इनका इस्तेमाल हिंद महासागर में निगरानी रखने और मेडिकल ट्रांसपोर्ट में होता है. भारतीय सैनिक इन एयरक्राफ़्ट्स की देख-रेख करते हैं. साथ ही, मालदीव के पायलट्स को ट्रेनिंग भी देते हैं. इनका पूरा खर्च भारत सरकार उठाती है. हालांकि, भारत-मालदीव संबंधों का दायरा यहीं तक सीमित नहीं है.

इतिहास क्या कहता है?

पुरातत्वविदों को मालदीव में इंसानों की पहली बसाहट का निशान 15 सौ ईसापूर्व का मिला है. दावा है कि शुरुआती बाशिंदे भारत से आए थे. उसके बाद श्रीलंका से. वे अपने साथ बौद्ध धर्म लाए. 12वीं सदी में अरब व्यापारियों की दस्तक हुई. उनके साथ इस्लाम आया. तब मालदीव में बौद्ध राजा धोवेमी का शासन था. वो इस्लाम से प्रभावित हुए. उन्होंने अपना धर्म बदल लिया. नाम रखा, मोहम्मद अल-आदिल. देखा-देखी जनता ने भी इस्लाम अपना लिया. इसका प्रभाव आज भी देखने को मिलता है. आज के वक़्त में, मालदीव की आबादी लगभग 05 लाख 22 हज़ार है. इनमें से 98 फीसदी इस्लाम का पालन करते हैं.

औपनिवेशिक काल में मालदीव पर पुर्तगाल, डच और ब्रिटेन ने शासन किया. सबसे आख़िरी शासक ब्रिटेन था. उस दौर में भी मालदीव बेसिक ज़रूरतों के लिए भारत पर निर्भर था.

1965 में मालदीव आज़ाद हो गया. भारत मान्यता देने वाले पहले देशों में से था.
फिर नवंबर 1988 में मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के ख़िलाफ़ विद्रोह हुआ. विद्रोही उनकी हत्या पर उतारू थे. गाढ़े वक़्त में भारत ने अपनी सेना भेजकर गयूम को बचाया था.

2004 की सुनामी में मालदीव सबसे ज़्यादा मार झेलने वाले देशों में से था. वहां भी भारत ने सबसे पहले मदद भेजी थी.

फिर दिसंबर 2014 में मालदीव की राजधानी माले के सबसे बड़े वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में आग लग गई. प्लांट ठप हो गया. इसके चलते पीने के पानी की क़िल्लत हो गई. तब सुषमा स्वराज भारत की विदेश मंत्री हुआ करतीं थीं. आधी रात को उनके पास कॉल आया. अगली सुबह भारतीय वायुसेना 20 टन पीने का पानी लेकर माले में उतर चुकी थी. भारत ने पानी साफ़ करने के लिए दो युद्धपोत भी भेजे. वे तब तक माले में रुके रहे, जब तक कि ट्रीटमेंट प्लांट दोबारा चालू नहीं हो गया.

ये वैसे कुछ मौके थे, जब भारत ने मालदीव की तरफ़ सबसे पहले मदद का हाथ बढ़ाया था. हालांकि, कुछ अन्य क्षेत्रों में भी उनके दोस्ताना संबंध हैं,
- मसलन, भारत, मालदीव का सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर हैं.
- स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, मालदीव के सबसे बड़े बैंकों में से है.
- हर साल हज़ारों भारतीय पर्यटन के सिलसिले में मालदीव जाते हैं. ये वहां की अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े घटकों में से एक है.
- इसी तरह बड़ी संख्या में मालदीव के नागरिक इलाज के लिए भारत आते हैं.
- मई 2023 में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मालदीव गए थे. वहां उन्होंने इकाथा हार्बर का शिलान्यास किया था. इस हार्बर में मालदीव कोस्ट गार्ड के जहाजों की मरम्मत होगी. इसका खर्च भी भारत सरकार उठा रही है.
- 2022 में भारत ने मालदीव के आसपास 10 रडार स्टेशन का एक नेटवर्क तैयार किया था. इनका संचालन मालदीव कोस्ट गार्ड की ओर से किया जाता है. वे इंडियन कोस्टल कमांड से संपर्क में रहते हैं.
- इन सबके अलावा, भारत ने और भी कई इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया है.

जब भारत इतना साथ दे रहा है, फिर मुइज़्ज़ू भारतीय सैनिकों को निकालने पर अड़े क्यों हैं?
इसकी 03 बड़ी वजहें बताई जातीं हैं,
- नंबर एक. प्रो-चाइना पॉलिसी.
मोहम्मद मुइज़्ज़ू को चीन का क़रीबी राजनेता माना जाता है. उन्होंने प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ़ मालदीव्स (PPC) के समर्थन से राष्ट्रपति चुनाव जीता है. PPC के नेता अब्दुल्ला यामीन 2013 से 2018 तक राष्ट्रपति रह चुके हैं. वो फिलहाल जेल की सज़ा काट रहे हैं. अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया. मुइज़्ज़ू ने उनके वरदहस्त से चुनाव लड़ा और जीत गए.
यामीन के कार्यकाल में मालदीव ने चीन के महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड (OBOR) को जॉइन किया. अपना एक द्वीप चीन को लीज पर दिया. चीन से बहुत सारा क़र्ज़ भी लिया.

फिर फ़रवरी 2018 में एक बड़ी घटना घटी. मालदीव के सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया कि राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने संविधान और अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया है.
कोर्ट ने आदेश दिया था कि सरकार पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद समेत सभी विपक्षी नेताओं को रिहा करे. यामीन ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया था. इसकी बजाय उन्होंने देश में आपातकाल लगा दिया था. तब भारत ने इसकी आलोचना की थी. कहा था कि संवैधानिक संस्थाओं को बहाल किया जाना चाहिए. यामीन की विपक्षी पार्टियों ने भारत से सेना भेजने की अपील भी की थी. तब चीन ने चेतावनी दी थी कि कोई भी दूसरा देश मालदीव के मामले में दखल ना दे.

2018 में ही भारत के ध्रुव हेलिकॉप्टर्स की लीज खत्म हो गई थी. यामीन ने भारत को कहा कि इन्हें वापस ले जाएं. लेकिन उसी बरस हुए राष्ट्रपति चुनाव में यामीन हार गए. उनकी जगह इब्राहिम मोहम्मद सोलिह राष्ट्रपति बने. सोलिह की मालदीवन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) को प्रो-इंडिया माना जाता है. उन्होंने लीज बढ़ाने का फ़ैसला किया. उनके शपथग्रहण समारोह में 40 से अधिक देशों के नेताओं ने शिरकत की थी. भारत की तरफ़ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिस्सा लिया था. जबकि मुइज़्ज़ू के शपथग्रहण में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को भेजा गया. जानकार कहते हैं, ये दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव का संकेत है.

- नंबर दो. इंटरनल पोलिटिक्स.
राष्ट्रपति चुनाव से कई बरस पहले से मुइज़्ज़ू ‘इंडिया आउट’ कैंपेन को लीड कर रहे हैं. उन्होंने चुनावी कैंपेन में शपथ ली थी कि वो मालदीव में मौजूद भारत के सभी सैनिकों को बाहर निकालेंगे. इस नारे को आम लोगों का अच्छा-खासा सपोर्ट मिला. राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज़्ज़ू ने पहले 100 दिनों का मेन्डेट जारी किया. इसमें भी उनका ज़ोर भारतीय सैनिकों को निकालने पर था.
मुइज़्ज़ू तर्क देते हैं, भारतीय सैनिकों की जगह चीन या किसी दूसरे देश के सैनिक नहीं लेंगे. मालदीव के लोग अपनी धरती पर विदेशी सैनिकों की मौजूदगी नहीं चाहते. इसलिए, उन्होंने मुझे जिताया है.
मुइज़्ज़ू को अपने वोटर्स से किया वादा निभाना है. भारतीय सैनिकों को निकालने की मांग के पीछे एक वजह ये भी मानी जा रही है.

- नंबर तीन. मुस्लिम उम्माह.
मालदीव की 98 फीसदी आबादी इस्लाम को मानती है. मालदीव की नागरिकता हासिल करने के लिए मुस्लिम होना अनिवार्य है. मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने बहुसंख्यक आबादी को साधने की कोशिश की है. इसका पहला उदाहरण उनके पहले विदेशी दौरे में दिखा. आमतौर पर मालदीव का राष्ट्रपति पहले विदेशी दौरे पर भारत आता है. मुइज़्ज़ू नहीं आए. उन्होंने तुर्किए और यूएई को चुना. कहा जा रहा है कि उन्हें तुर्किए से आर्थिक मदद और निवेश का भरोसा मिला है. मालदीव, तुर्किए में अपना दूतावास खोलने पर भी विचार कर रहा है. तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ख़ुद को मुस्लिम उम्माह का लीडर साबित करने में जुटे हैं. मालदीव को इस नजदीकी का फ़ायदा हो सकता है.

बीबीसी से बात करते हुए ऑब्जर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ORF) में फ़ेलो आदित्य शिवमूर्ति कहते हैं, मुस्लिम देशों के क़रीब जाना उनको दो स्तरों पर लाभ दे सकता है, पहला, घरेलू स्तर पर वो लोगों को इस नीति से ख़ुश कर सकते हैं क्योंकि मालदीव के लोगों को लगता है कि खाड़ी के देश उनके काफ़ी अच्छे दोस्त हैं. वहीं विदेश नीति के स्तर पर वो आर्थिक मदद हासिल कर सकते हैं क्योंकि खाड़ी देशों के पास बेतहाशा पैसा है.

इस नीति से भारत और चीन पर मालदीव की निर्भरता कम हो सकती है.

इन सबसे भारत को क्या नुकसान होगा?

- मालदीव की लोकेशन बेहद अहम है. भारत से सबसे नजदीकी दूरी लगभग 100 किलोमीटर की है. ये इलाका हिंद महासागर में ट्रेड रूट्स की सुरक्षा के लिए भी अहम है.
- मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिक एक्टिव कॉम्बैट में भाग नहीं ले रहे हैं. उनका फ़ोकस एयरक्राफ़्ट्स की देखरेख और मेडिकल इमरजेंसी की सिचुएशन में एयरलिफ़्टिंग पर है. मगर उनका वहां होना सांकेतिक तौर पर भारत को बढ़त दिलाता है. ये भारत की मौजूदगी का अहसास देता है. अगर उन्हें निकालना पड़ा तो चीन को खुला मैदान मिल जाएगा. वो मालदीव का इस्तेमाल अपने हिसाब से कर पाएगा. इस तरह उसकी भारत को घेरने की रणनीति सफल हो सकती है.
- भारतीय सैनिकों की वापसी सिम्बॉलिक है. मुइज़्ज़ू असल में भारत को दूर रखना चाहते हैं. पिछले कुछ बरसों से मालदीव आतंकी संगठनों के लिए रिक्रूटिंग का अड्डा बना है. इनमें से कई गुट पाकिस्तान से ऑपरेट करते हैं. अगर भारत और मालदीव के रिश्ते ख़राब हुए तो वे इसका फ़ायदा उठा सकते हैं. इसका असर भारत पर पड़ सकता है.

अब आगे क्या?

न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, मुइज़्ज़ू ने कहा, ''भारत सरकार से जो हमारी बातचीत हुई है, उसमें वो अपने सैनिकों को मालदीव से हटाने के लिए तैयार हो गई है. डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के लिए दोनों देशों के बीच हाई-लेवल कमिटी बनाने पर भी सहमति बनी है.''

इस पर अभी तक भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. इंडिया टुडे में सूत्रों के हवाले से छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इस विषय पर बातचीत चल रही है. बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है.

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