हमें शर्म आती है कि हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बेटों के साथ ऐसा हो रहा है
जो देश अपने अतीत के हीरोज़ को नहीं संजो सकता, वो नए हीरोज़ को कैसे जन्मेगा?
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29 अगस्त को पूरा देश हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को याद कर झूम रहा था, तो उनके बेटे परेशान थे. परेशान इसलिए थे, क्योंकि रिटायरमेंट के बाद उन्हें पेंशन तक नसीब नहीं हो रही है. बात उनके बेटे बृजमोहन सिंह की हो रही है जो राजस्थान में रिटायर्ड खेल अधिकारी हैं.
क्या है मामला?
ध्यानचंद के सात बेटे हैं. उनमें सबसे बड़े बेटे हैं बृजमोहन सिंह. बृजमोहन राजस्थान में जिला खेल अधिकारी रहे हैं और 18 साल पहले रिटायर हो चुके हैं. उन्होंने हमें फ़ोन पर बताया,
मैं राजस्थान स्पोर्ट्स काउंसिल में जिला खेल अधिकारी होता था. रिटायरमेंट के बाद किसी भी कर्मचारी का सहारा पेंशन होती है. पर अब हमारी पेंशन ही रोक दी गई है. जब स्पोर्ट्स काउंसिल के अधिकारियों से अपनी पेंशन के बारे में पूछते हैं तो फंड का बहाना बनाकर हाथ हिला देते हैं. पिछले दो महीने से हमें पेंशन नहीं दी गई है. इससे पहले भी हमारी पेंशन 5 महीने के लिए रोक दी गई थी. राजस्थान स्पोर्ट्स काउंसिल के कई और रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन भी रुकी हुई है. मैं उन सबसे भी संपर्क साध रहा हूं ताकि हम एकसाथ अपनी आवाज़ उठा सकें. पेंशन की मांग को लेकर मैंने सीएम को भी एप्लीकेशन लिखी थी, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. अधिकारी सिर्फ बातें बनाकर टाल रहे हैं.बृजमोहन सिंह हॉकी के कोच भी रहे हैं और कई राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार किए हैं. उन्होंने भारत के स्टार खिलाड़ी एम.पी. सिंह और अपने छोटे भाई अशोक कुमार को भी हॉकी की कोचिंग दी है. राजस्थान पत्रिका से बात करते हुए राजस्थान स्पोर्ट्स काउंसिल के सचिव नारायण सिंह ने बताया है कि इस समय काउंसिल के पास फंड की कमी है और इसी कारण हम लोग रिटायर्ड कर्मचारियों को पेंशन नहीं दे पा रहे हैं. लोगों की एप्लीकेशन आई हैं. हम समाधान के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं.
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