एशियन गेम्स: क्या आप इन 6 गेम्स के बारे में जानते हैं जिनमें इंडिया मेडल जीत सकता है?
इनके नियम भी मजेदार हैं.
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इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में चल रहे 18वें एशियन गेम्स में भारत को कई मेडल मिल चुके हैं. कई मिलने बाकी हैं. मगर अच्छी बात ये कि इंडियन मेडल टेली में कई ऐसी गेम्स में भी मेडल आए हैं जिनका नाम ज्यादातर लोग जानते भी नहीं. ये या तो हाल ही में एशियन गेम्स का हिस्सा बने हैं या फिर इंडिया में ज्यादा पॉपुलर नहीं रहे हैं. एक लिस्ट ऐसी ही दिलचस्प गेम्स की.
#1. कुराश कुराश उज्बेकिस्तान का 3,500 साल पुराना का मार्शल आर्ट खेल है, जो कुश्ती और जुडो से मिलता-जुलता है. ये दो एथलीटों के बीच खेला जाता है, एक हरा जैकेट पहनता है और दूसरा नीला जैकेट. दोनों एक दूसरे को जमीन पर पटकने की कोशिश करते हैं. जो अपने विरोधी को पीठ के बल फेंक देता है, तो उसे जीता हुआ माना जाता है. पेट के बल पटखने पर कम पॉइंट्स दिए जाते हैं . जिसको ज्यादा पॉइंट्स मिलते हैं, उसे जीता हुआ माना जाता है. कुराश में दिए जाने वाले पॉइंट्स को हलाल, याम्बोश और चाला कहते हैं. हलाल ये है कि अगर एक एथलीट अपने विरोधी को पीठ के बल पटक दे. एक हलाल दो याम्बोश और चार चाला के बराबर है. इसे पहली बार 2007 में एशियन इंडोर गेम्स में शामिल किया गया था. एशियन गेम्स 2018 में पहली बार शामिल किया गया है. इस खेल में भारत के 6 महिला 8 पुरुष खिलाड़ी भाग ले रहे हैं. भारत की महिला खिलाड़ी पिंकी बलहारा सिल्वर और याल्लापा जाधव ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकी हैं. #2. पेनकेक सिलाट पेनकेक सिलाट पारंपरिक इंडोनेशियाई मार्शल आर्ट्स खेल है, जो मलेशिया में भी खेला जाता है. पेनकेक सिलाट में पॉइंट्स पंच, किक और स्वीप के मिलते हैं. खिलाड़ी अपने विरोधी से किक या पंच खाने से बचते हैं. पेनकेक सिलाट इंडोनेशियाई-मलाई द्वीपों का एक कम आक्रामक मार्शल आर्ट खेल माना जाता है. इस खेल को पहली बार एशियन गेम्स 2018 में शामिल किया गया है. इंडोनेशिया का लोकल खेल होने के कारण मेजबान एथलीटों के पास इस बार मेडल जीतने का अच्छा मौका होगा. इस खेल में भारत की 9 महिला और 14 पुरुष खिलाड़ी भाग ले रहे हैं. #3. सांबो सांबो भी एक मार्शल आर्ट खेल है, जो रूस से निकला है. ये खेल कुश्ती, जूडो, जू-जित्सु, मुक्केबाजी और कई अन्य मार्शल आर्ट्स खेलों का मिला-जुला रूप है. "सांबो" SAMozashchita Bez Oruzhiya का छोटा रूप है, जिसका मतलब होता है, हथियारों के बिना आत्मरक्षा. सांबो आधुनिक खेल माना जाता है क्योंकि 1920 के दशक के शुरुआत में सोवियत लाल सेना ने खाली हाथ लड़ने की क्षमताओं में सुधार करने के लिए इसे इज़ात किया था. युद्धों में इस्तेमाल किए जाने के चलते इसे लड़ाकू खेल भी कहा जाता है. सांबो जूडो और जू-जुत्सु के कई तरीकों से समान है, लेकिन कुश्ती और दूसरे मार्शल आर्ट्स खेलों के अंश भी इसमें दिखाई पड़ते हैं. भारत की तरफ से 4 महिला और एक पुरुष खिलाड़ी इसमें भाग ले रहे हैं. #4. सेपक टकरा सेपक टकरा दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का एक पारंपरिक खेल है. इसमें दो टीमें खेलती हैं. प्रत्येक टीम अपने 3 मजबूत खिलाड़ियों को खेलने के लिए मैदान में उतारती है. इसे भारत में किक वॉलीबॉल या पैरों से खेली जाने वाली वॉलीबॉल भी कहते हैं. इसे वॉलीबॉल की तरह ही खेला जाता है लेकिन खेलते वक़्त हाथों का इस्तेमाल नहीं किया जाता. खिलाड़ी प्लास्टिक से बनी एक बॉल को पैर, घुटने, सिर और छाती की मदद से मारकर विरोधी के पाले में पहुंचाते हैं. मैच तीन सेटों का होता है. पहले दो सेट 21 पॉइंट्स के होते हैं. अगर दोनों टीमें एक-एक सेट जीत जाती हैं, तो 15 पॉइंट्स का तीसरा और फाइनल सेट भी खेला जाता है, जिसे 'टाईब्रेक' कहते हैं. सेपक टकरा को 1990 में एशियन गेम्स में शामिल किया गया था. इस खेल में थाइलैंड को सबसे तगड़ी टीम माना जाता है. थाइलैंड अब तक 22 स्वर्ण, पांच रजत और एक कांस्य पदक जीतकर अभी तक मेडल टेली में टॉप पर है. भारत 2006 से इस इवेंट में हिस्सा लेता रहा है और इस बार कांस्य पदक भी जीता है. #5. वुशु वुशु एक पारंपरिक चीनी मार्शल आर्ट खेल है. जिसमें दोनों एथलीट एक दूसरे से भिड़ते हैं. ये गेम ताओलू और सांदा से मिलकर बना है. ताओलू जिमनास्टिक और मार्शल आर्ट्स का मिला-जुला रूप है. सामने वाले को लात मारकर या पटखनी देकर पॉइंट्स लेने होते हैं. खिलाडियों को उनके किक्स, पंच, बैलेंस, पटखने और स्वीप मारने के हिसाब से पॉइंट्स दिए जाते हैं. इस खेल को 1990 में खेले गए 11 वें एशियन गेम्स में शामिल किया गया था. चीन का पारम्परिक खेल होने के कारण चीन ही इसमें सबसे ज्यादा मेडल जीतता है. वुशु में अब तक चीन 53 स्वर्ण, आठ रजत और चार कांस्य के साथ मेडल टेली में नंबर वन बना हुआ है. इस बार भारत के 3 पुरुष और एक महिला खिलाड़ी ने इस खेल में भाग लिया था और चारों ने ब्रॉन्ज मेडल जीता है. #6. जू-जित्सु जू-जित्सु को मार्शल आर्ट्स का सतरंज कहा जाता है, जिसका जन्म 1909 में ब्राज़ील में हुआ था. यह खेल ग्राउंड तकनीक और जूडो के मिलन से बना है, जिसमें दो जने फाइट करते हैं. फाइट ऐसी जिसमें पंच और किक नहीं मारनी होती. आमतौर पर इस खेल में खिलाड़ी एक-दूसरे को जमीन पर पटककर लड़ते हैं. जीतने के लिए हड्डियों के जोड़ों पर लॉक भी लगाते हैं. खेल 5 मिनट तक चलता है, जिसमें सामने वाले को पटकने, नीचे ले जाने और अपने बस में करने के लिए पॉइंट्स मिलते हैं. फाइट शुरू होने के बाद रेफरी जरूरत पड़ने पर ही फाइट रुकवाता है. जू-जित्सु (ने-वाजा) सारा ही शातिर दांव-पेचों का खेल माना जाता है. इस खेल में भारत के 3 पुरुष खिलाड़ी भाग ले रहे हैं.ये भी पढ़ें:
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