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'मस्जिद में जय श्री राम के नारे से नहीं पहुंचती धार्मिक भावनाओं को ठेस', कर्नाटक हाई कोर्ट ने और क्या कहा?

Karnataka News: साउथ कन्नड़ जिले के दो लोगों ने एक मस्जिद में जाकर 'जय श्री राम' के नारे लगाए. Karnataka High Court ने उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है.

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कोर्ट ने दोनों आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया. (सांकेतिक तस्वीर: इंडिया टुडे)
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रवि सुमन
16 अक्तूबर 2024 (Published: 09:25 IST)
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कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने एक धार्मिक मामले में दो लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया. दोनों ने एक मस्जिद में घुसकर ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए थे. कोर्ट ने कहा कि उनके ऐसा करने से किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंची. कोर्ट का ये आदेश पिछले महीने का है. लेकिन अदालत की वेबसाइट पर इसे 15 अक्टूबर की रात को अपलोड किया गया.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, मामला साउथ कन्नड़ जिले का है. यहां के दो निवासी पिछले साल सितंबर में एक रात स्थानीय मस्जिद में घुसे और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए. इसके बाद स्थानीय पुलिस ने उन दोनों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया. इनमें धारा 295A (धार्मिक विश्वास को ठेस पहुंचाना), 447 (आपराधिक उल्लंघन) और 506 (आपराधिक धमकी) शामिल हैं.

वकील ने क्या तर्क दिया?

आरोपी हाई कोर्ट पहुंचे और आरोपों को खारिज करने की मांग की. उनके वकील ने तर्क दिया कि मस्जिद एक सार्वजनिक स्थान है. और इसलिए आपराधिक अतिक्रमण का कोई मामला नहीं बनता. वकील ने ये भी तर्क दिया कि 'जय श्री राम' का नारा लगाना IPC की धारा 295A के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता. बार एंड बेंच ने अदालत के हवाले से लिखा,

"धारा 295A जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों से संबंधित है. इसका उद्देश्य किसी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है. ये समझा जा सकता है कि अगर कोई 'जय श्रीराम' का नारा लगाता है तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचेगी. जब शिकायतकर्ता खुद कहता है कि इलाके में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के साथ रह रहे हैं, तो इस घटना का किसी भी तरह से कोई नतीजा नहीं निकल सकता."

कर्नाटक सरकार ने याचिकाकर्ताओं की याचिका का विरोध किया. और उनकी हिरासत की मांग करते हुए कहा कि मामले में आगे की जांच की आवश्यकता है. हालांकि, अदालत ने माना कि इस अपराध का सार्वजनिक व्यवस्था पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा. अदालत ने कहा,

“सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​है कि कोई भी कार्य IPC की धारा 295A के तहत अपराध नहीं बनेगा. जिन कार्यों से शांति स्थापित करने या सार्वजनिक व्यवस्था को नष्ट करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, उन्हें IPC की धारा 295A के तहत अपराध नहीं माना जाएगा. इन कथित अपराधों में से किसी भी अपराध के कोई तत्व न पाए जाने पर, इनके खिलाफ आगे की कार्यवाही की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.”

जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने कीर्तन कुमार और सचिन कुमार के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया.

वीडियो: पड़ताल: क्या कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने गणेश उत्सव पर बैन लगाया?

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