35 साल तक बेटी के हत्यारों को ढूंढता रहा पिता, 20 करोड़ खर्च कर दिए मगर फिर...
पुलिस ने मर्डर नहीं माना था, पिता ने मनवाने के लिए जान लगा दी.
ये कहानी है ईस्ट अफ्रीकी देश केन्या की. जूली वार्ड नाम की एक ब्रिटिश लड़की. निडर, हिम्मती, दिलेर. दुनियाभर के जंगलों में बेधड़क अकेले चली जाती. महज 28 साल की उम्र में ये वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बड़े-बड़े और खतरनाक जानवरों के फोटो खींच लाती. एक दिन जूली ने तय किया कि अब वो केन्या के जंगलों में जाएंगी और केन्याई शेरों के फोटो खींच कर लाएंगी.
6 सितंबर 1988 की बात है, जूली केन्या के मसाई मारा नेशनल रिजर्व में पहुंचीं, खूब फोटोग्राफ़ी की. लेकिन, वो जंगल से बाहर नहीं आईं. उन्हें इस दिन के बाद किसी ने नहीं देखा. सूचना मिलने पर जूली के पिता जॉन वार्ड इंग्लैंड से केन्या पहुंचे. बेटी को तलाश किया, लेकिन वो नहीं मिली. एक हफ्ते बाद उन्हें जूली की जली हुई और क्षत-विक्षत लाश मिली.
केन्याई अधिकारियों ने इस मामले की कुछ दिन जांच की और कह दिया कि जूली को किसी जंगली जानवर ने निशाना बनाया और मार दिया. लेकिन, अधिकारियों की ये बात जूली के पिता जॉन वार्ड को समझ नहीं आ रही थी. उन्हें एक सवाल का जवाब नहीं मिल रहा था कि आखिर उनकी बेटी की लाश जली कैसे? आखिर कोई जानवर उनकी बेटी को मारकर कैसे जला देगा?
ये सवाल जॉन वार्ड को खाए जा रहा था. केन्याई पुलिस से वो निराश हो गए थे. आखिर उन्होंने खुद ही इस मामले की छानबीन करने का फैसला किया. महीनों तक केन्या के जंगलों में भटकते रहे. जॉन ने कुछ सबूत ढूंढ निकाले. इन सबूतों को पुलिस के सामने पेश किया. इनके आधार पर पुलिस ने जूली की हत्या को लेकर जंगल के दो रेंजर्स को अरेस्ट किया. कई दिन मुकदमा चला. 1992 में कोई सबूत न मिलने की वजह से आरोपी रेंजर्स को छोड़ दिया गया. यानी केस अनसॉल्वड ही रह गया.
जॉन वार्ड ने हिम्मत नहीं हारीजूली के पिता ने इस अदालती आदेश के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और फिर डट गए मर्डर केस की छानबीन में. कुछ और सबूत इकट्ठे किए. और एक दिन अदालत के सामने ये सबूत रख दिए. आखिर कामयाबी मिली और 1997 में केन्याई पुलिस अधिकारियों की एक नई टीम ने जूली वार्ड मर्डर केस जांच शुरू की. नेशनल रिजर्व के एक कर्मचारी को पकड़ा गया. केस चला, लेकिन कोई फायदा नहीं निकला. 1999 में इस आरोपी को भी अपराध से बरी कर दिया गया.
जब जॉन वार्ड ने आधी लड़ाई जीत लीजॉन वार्ड का जज्बा देखिये, उन्होंने इस अदालती आदेश के बाद भी हार नहीं मानी. उन्हें विश्वास था कि उनकी बेटी की हत्या ही हुई है और वो इसे साबित कर देंगे. उनका कहना था कि अगर उनकी बेटी की मौत एक्सीडेंटल होती, तो उन्होंने स्वीकार कर लिया होता, लेकिन उनका दिल और दिमाग नहीं मानता कि ये एक दुर्घटना है. और इसलिए वो जूली की हत्या साबित करने के लिए डटे रहेंगे. आखिरकार 2004 में जॉन वार्ड की कोशिश कामयाब हुई और मामले के जांचकर्ताओं ने माना की जूली वार्ड की हत्या ही की गई थी. और अब इसे मर्डर केस की तरह ही देखा जाएगा.
यानी जॉन वार्ड ने 15 साल में आधी लड़ाई जीत ली थी. और अब उन्हें बेटी के हत्यारे ढूंढने थे. उन्होंने दोबारा छानबीन शुरू की. साल 2023 में उन्हें अपनी बेटी के हत्यारों की तलाश करते-करते करीब 35 साल हो गए, उनके 20 करोड़ रुपए भी इस काम में खर्च हो गए. 100 से ज्यादा बार इंग्लैंड से केन्या गए. लेकिन वो आखिर तक हार मानने को तैयार नहीं थे. जॉन की हाल ही में 89 साल की उम्र में मौत हो गई. इससे एक हफ्ते पहले भी वो बेटी के मर्डर केस पर काम कर रहे थे.
लेकिन, तलाश खत्म नहीं होगीभले जॉन वार्ड की मौत हो गई हो, लेकिन उनकी बेटी के हत्यारों की तलाश रुकेगी नहीं. अब उनके बेटों ने इसका जिम्मा उठा लिया है. बेटे बॉब और टिम वार्ड, दोनों का कहना है कि वो अपने पिता की कोशिश को कामयाब करके ही दम लेंगे.
बीबीसी के मुताबिक बॉब वार्ड ने कहा, ‘मेरे पिता 89 साल की उम्र में भी बहन के हत्यारों को ढूंढ रहे थे… मैं अपने भाई के साथ मिलकर अपने पिता के इस काम को आगे बढ़ाऊंगा. उन्होंने 35 साल जो काम किया, उसे भी हम दुनिया के सामने लाएंगे. उनके काम पर किताब छपवाएंगे और डॉक्यूमेंट्री बनवाएंगे.’
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