पश्चिम बंगाल में रैगिंग के कारण छात्र की मौत, रैगिंग के खिलाफ अबतक कोई कानून क्यों नहीं बना?
रैगिंग केवल क्रिमिनल केस नहीं है. ये बुद्धी, तर्क और जिज्ञासा का सीधा-सीधा दमन है.
ये देश की एक नामी यूनिवर्सिटी के हॉस्टल की घटना है. रात के 9 बज रहे थे. हॉस्टल का दूसरा फ्लोर. कमरा नंबर 70. कमरे में कथित तौर पर कुछ सीनियर्स का जमावड़ा है. हो हल्ला चल रहा है. फिर कमरा नंबर 68 से एक लड़के को बुलाया जाता है. ये लड़का फर्स्ट इयर का छात्र है. जिसे यूनिवर्सिटी की भाषा में फ्रेशर कहा जाता है. ये लड़का अपने कमरे से निकलकर रूम नंबर 70 में पहुंचता है. और फिर जो हुआ वो बता पाना भी मुश्किल है. कथित सीनियर्स का आदेश आता है. फ्रेशर से कहा जाता है कि कॉरिडोर में जाओ. जब वो जा रहा था तब जबरन उसके कपड़े उतार दिए गए. उस लड़के के लिए कुछ भी समझ पाना मुश्किल है. वो इधर-उधर भागता है. पहले कमरा नंबर 65 में जाकर खुद को अंदर बंद करने की कोशिश करता है. लेकिन नहीं कर पाता. इस कमरे से उस कमरे. उससे अगले कमरे. नग्न अवस्था में खुद को बचाने की कोशिश में वो 17 साल का लड़का इधर उधर भाग रहा है. और कथित तौर पर खुद को सीनियर बताने वाले भेड़िए उसे दौड़ा रहे थे. रात 11 बजे तक ये घिनौना खेल चलता रहा जिसे हम-आप रैगिंग कहते हैं. एक घंटा भी नहीं बीता था. 11.45 बजकर पर वो फर्स्ट ईयर का वो लड़का हॉस्टल की बालकनी से गिरता है और कुछ देर बाद उसकी मौत हो जाती है. 9 अगस्त की रात ये सब हो रहा था पश्चिम बंगाल के कोलकाता में जादवपुर यूनिवर्सिटी के मेन हॉस्टल में.
जावधपुर यूनिवर्सिटी में रैगिंग पीड़ित लड़के की मौत गिरकर हुई. या वो उस रात के ट्रॉमा को बर्दाश्त नहीं कर पाया और खुद को खत्म करने के लिए उसने छलांग लगा दी. या फिर उसे धकेला गया और उसकी हत्या कर दी गई. इन सारे सवालों की गुत्थियां पुलिस सुलझाएगी और अदालत सजा देगी. पर सवाल ये है जब रैगिंग के ऐसे संगीन मामले आ रहे हैं तो देश में रैगिंग के खिलाफ अलग से कोई कानून क्यों नहीं है.
9 अगस्त के बाद से जादवपुर विश्वविद्यालय में सबकुछ पहले जैसा सामान्य नहीं है. और नादिया ज़िले के उस परिवार में भी नहीं जिसने बांग्ला भाषा में ऑनर्स करने के लिए अपना बेटा यूनिवर्सिटी भेजा था. लेकिन वो जीवित नहीं लौटा. 9 अगस्त की रात पुलिस को सूचना मिली की एक छात्र हॉस्टल की बालकनी से गिर गया है. तब रात के पौने 12 बजे थे. घायल छात्र को पास के निजी अस्पताल ले जाया गया. जहां कुछ देर बाद वो दम तोड़ देता है. सुबह उसकी मां के पास फोन जाता है कि उनका बेटा हॉस्टल की बालकनी से गिर गया है.
मृतक छात्र के परिवार के एक सदस्य ने इंडियन एक्सप्रेस से बताया कि 9 अगस्त की शाम पीड़ित ने अपनी मां को फोन कर कहा था कि- 'उसे ठीक नहीं लग रहा है. वो बहुत डरा हुआ है.' उसने अपनी मां से ये भी कहा था कि उसे बहुत कुछ बताना है. परिवार ने सुसाइड की सभी संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा है कि ये एक रैगिंग का केस है. वो मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ था तो ऐसा कदम क्यों उठाएगा.
पुलिस ने इस मामले में अब तक यूनिवर्सिटी के 13 छात्रों को गिरफ्तार किया है. मैथमैटिक्स डिपार्टमेंट का सौरभ चौधरी इस मामले का मुख्य आरोपी है. इसके अलावा 6 यूनिवर्सिटी के मौजूदा छात्र हैं जबकि 6 पूर्व छात्र हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक इन सभी पर मर्डर का केस दर्ज किया गया है. इनमें से एक पर पुलिस के काम में बाधा पहुंचाने का भी आरोप है. अंग्रेजी अखबार टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस को बर्गलाने के लिए एक छात्र ने एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाया था. पुलिस के मुताबिक ऐसा इसलिए किया गया ताकि पुलिस को रैगिंग के बारे में पता ही न लगे.
यहां सवाल ये भी उठता है कि यूनिवर्सिटी के 6 पूर्व छात्र जो इस मामले में आरोपी हैं उन्हें हॉस्टल में रहने की इजाजत किसने दी. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यूनिवर्सिटी के छात्रों का दावा है कि हॉस्टल में पूर्व छात्र रहते हैं. अगर ये बात सही है तो क्या ये सब यूनिवर्सिटी प्रशासन की जानकारी में हो रहा है. या फिर प्रशासन को पता ही नहीं है कि हॉस्टल में हो क्या रहा है.
इस केस में एक और पहलू है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हॉस्टल के छात्रों ने पुलिस को बताया है कि मृतक छात्र ने एक बार कहा था कि वो गे नहीं है. पुलिस का कहना है कि इस एंगल से भी जांच की जा रही है कि क्या उसे लैंगिकता पर भी परेशान किया जा रहा था.
ये तो एक केस है. लेकिन क्या ये पहला है? नहीं. क्या ये अंतिम केस है? दुर्भाग्य से और अचेतन से, नहीं.
हम आपको एक आंकड़ा दिखाते हैं. RTI ऐक्टिविस्ट चन्द्रशेखर गौड़ ने RTI दायर की थी, जिसके जवाब में UGC ने बताया कि पिछले साढ़े पांच सालों में कम से कम 25 छात्रों ने रैगिंग की वजह से आत्महत्या की है.
महाराष्ट्र और तमिल नाडु से चार-चार,
ओडिशी से तीन.
आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में दो-दो.
छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और पंजाब से एक-एक मौत रिपोर्ट की गई हैं.
द हिंदू के मैत्री पोरेचा की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, UGC के अध्यक्ष ममीडाला जगदेश कुमार ने बताया कि छात्रों के लिए एक समर्पित 24x7 एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन है. इग्ज़ैक्ट संख्या बताने से परहेज़ किया, लेकिन UGC अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें देश भर से बड़ी संख्या में कॉल आते हैं. यूजीसी मामलों को दोनों तरीक़ों से संज्ञान में लेता है - या तो मीडिया रिपोर्ट्स से या जब उन्हें सीधे शिकायत मिलती है.
UGC अध्यक्ष ने तो संख्या नहीं बताई. मगर एंटी-रैगिंग सेल के मुताबिक़, 2023 में देशभर में रैगिंग के 511 मामले सामने आए. इसके बरक्स, बीते साल - 2022 में - 810 केस रिपोर्ट किए गए थे. हालांकि, यहां ये बात ध्यान देने वाली है कि आधिकारिक तौर पर दर्ज की गई संख्या, असल घटनाओं से बहुत बहुत कम होती है. इसी में ये बात भी है कि हाल के सालों में रैगिंग को लेकर जागरुकता बढ़ी है. यूनिवर्सिटियों ने ध्यान देना बढ़ाया है.
पर यहां एक सवाल ये उठता है कि आखिर कॉलेज का पहला साल पास कर लेने के बाद 18-19 या 20 साल के इन लड़कों के दिमाग में ऐसा कौन सा दंभ भर जाता है जो वो जूनियर छात्रों को ह्यूमन बींग समझना बंद कर देते हैं. इसके पीछे मानसिकता क्या होती है. इस बारे में हमने बात की रैगिंग के खिलाफ मुहिम चलाने वाले राजेंद्र काचरू से. वो 14 साल से रैगिंग के खिलाफ अकेले आंदोलन चला रहे हैं.
और जब इतना सब हो रहा है तब सवाल ये कि रैगिंग के खिलाफ देश में कानून क्या कहा है? 90 के दशक में रैगिंग के मामले बढ़ने के बाद विश्व जागृति मिशन ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दायर की गई थी. तब पहली बार सुप्रीम कोर्ट रैगिंग की परिभाषा बताई.
सुप्रिम कोर्ट ने कहा-
लिखित या मौखिक... कोई भी ऐसा आचरण, जिसमें चिढ़ाना या बुरा व्यवहार करना शामिल हो. जिससे किसी तरह का मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता हो. या जूनियर छात्र के मन में डर या आशंका की भावना पनपती हो. या कोई ऐसा काम जो सिलेबस में शामिल न हो लेकिन जूनियर छात्र से करवाया जाए. जिससे जूनियर छात्र के मन में शर्मिंदगी की भावना आए. ये सब रैगिंग में गिना जाएगा. इसके अलावा सीनियर छात्र अगर अपनी धौंस दिखाकर, डरा धमकाकर सेडेस्टिक प्लेजर लेते हैं. यानी जूनियर को परेशान देखकर खुश होते हैं तो रैगिंग में गिना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग के खिलाफ गाइडलाइन्स जारी की. कोर्ट ने आदेश दिया कि देश के शैक्षणिक संस्थानों में प्रॉक्टोरल कमेटी बनाई जाए. ताकि रैगिंग को रोका जा सके. और इस तरह के मामले को आंतरिक कमेटी ही अड्रेस कर सके. लेकिन कोर्ट ने यहां से कानूनी रास्ता खोल दिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर रैगिंग इस हद तक की जाए जिसे छात्र हैंडल न कर सके या फिर वो संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता हो, तो इसकी शिकायत पुलिस में की जाए. पर कोर्ट की टिप्पणियों और आदेशों का असर उतना नहीं दिखा जितना होना चाहिए था.
लेकिन 2009 में अमन सत्य काचरू नाम के छात्र की हत्या ने देश को एक बार फिर झकझोर दिया. हिमाचल के राजेंद्र प्रसाद गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में अमन को सीनियर्स ने पीट-पीटकर मार डाला. और इस मौत को ऐसे दिखाने की कोशिश की गई कि ये तो सुसाइड था. लेकिन मामला पोस्टमॉर्टम में खुल गया. रिपोर्ट में अमन के शरीर पर चोट के निशान मिल गए और तब रैगिंग का खुलासा हुआ.
2009 सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व CBI डायरेक्टर आरके राघवन की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया. राघवन कमेटी ने रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें पेश कीं. इन सभी सिफारिशों को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (UGC) ने लागू किया. क्या था इन सिफारिशों में.
पहले तो रैगिंग में क्या-क्या आएगा कमिशन ने ये बताया. इसमें 9 चीज़े गिनवाईं गईं.
किसी साथी छात्र को चिढ़ाना, उसके साथ अशिष्ट व्यवहार करना. शारीरिक या मनोवैज्ञानिक चोट पहुंचाना; शर्म की भावना पैदा करना. किसी फ्रेशर से अपना काम करवाना. जैसे सीनियर छात्र कई बार जूनियर्स से अपना असाइनमेंट करवाते हैं. पैसे वसूलना या ज़बरदस्ती खर्चा करवाना. समलैंगिक हमले, कपड़े उतारना, जबरदस्ती अश्लील और भद्दी हरकतें करना, इशारे करना, शारीरिक नुकसान पहुंचाना.
ये सबकुछ रैगिंग हैं. कमिशन ने अब बताया कि इसे रोकने के लिए क्या जाना चाहिए. गाइडलाइन्स के मुताबिक
- सबसे पहला काम ये हो कि एडमिशन के दौरान ही छात्रों से अंडरटेकिंग साइन कराई जाए कि भविष्य में किसी तरह की रैगिंग एक्टिवी में शामिल नहीं होंगे. किसी छात्र की रैगिंग नहीं लेंगे.
- सभी शैक्षणिक में एक कमेटी हो. जिसमें टीचर हों, स्टूडेंट एडवाइजर हों, हॉस्टल के वॉर्डन हों, और सीनियर छात्र भी हों. इस कमेटी का काम हो जूनियर और सीनियर छात्रों के बीच एक पारस्परिक संबंध स्थापित करना और संवाद स्थापित करना.
- एंटी रैगिंग कमेटी बने. और अगर ये कमेटी पाती है कि रैगिंग की घटना हुई है तो 24 घंटे के भीतर FIR कराई जाए.
पर सौ बात की बात ये कि देश में आज भी रैगिंग के खिलाफ कोई स्पेसिफिक कानून नहीं है. रैगिंग की घटना के बाद मुकदमा इस आधार पर बनता है कि किस तरह का अपराध किया गया है.
बीते दो सालों में वापस रैगिंग के मामाले बढ़ रहे हैं. और इसका सीधा कारण है, सरकार और प्रशासन की नाकामी. उन्होंने हमें बताया कि कोरोना के बाद से UGC ने ऐंटी-रैगिंग प्रोग्राम का हाथ छोड़ दिया. ब्यूरोक्रैट्स की उपेक्षा की वजह से रैगिंग के मामले वापस बढ़ रहे हैं. अधिकारी रैगिंग को ख़ारिज करते हुए कहते हैं कि यह इस तरह के शोर-शराबे के लायक़ नहीं है. कई मेडिकल कॉलेजों तक में कहा जाता है, कि टफ़ बनो. आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास, सहानुभूति और बौद्धिक विकास को कुचलने के लिए थर्ड-डिग्री टॉर्चर तक किया जाता है. और जवाब मिलता है, टफ़ बनो.
आप यूनिवर्सिटी में जिज्ञासा लिए जाते हैं. रैगिंग केवल क्रिमिनल केस नहीं है. ये बुद्धी, तर्क और जिज्ञासा का सीधा-सीधा दमन है. और इसको रोकने में जितना रोल सरकार या प्रशासन का है, उतना ही इस समाज का. हमारा और आपका.