इजरायल पर लग रहे 'युद्ध अपराध' के आरोप, क्या कहते हैं जेनेवा कन्वेंशन के नियम?
क्या आम नागरिकों पर भी लागू होता है जेनेवा कन्वेंशंस?
इजरायल-हमास के बीच युद्ध हर दिन के साथ बड़ा होता जा रहा है. जमीन पर लगातार आसमान से बम गिराए जा रहे हैं. हमास के खिलाफ इजरायल के हमलों से गाजा में हर तरफ तबाही मच गई है. सैकड़ों लोग मारे गए हैं, हजारों घायल हैं और हजारों लोग घर छोड़ने पर मजबूर हैं. हमास के हमले में भी इजरायल के सैकड़ों लोगों की जानें गई. कइयों को घर में ही बंदूकों से छलनी कर दिया तो किसी को सड़क पर बेरहमी से मार डाला गया.
इजरायली डिफेंस फोर्स (IDF) ने बताया है कि इजरायल के 120 से अधिक नागरिक अभी भी हमास के कब्जे में हैं. इन सबके बीच, युद्ध से जुड़े नियम-कानूनों पर भी चर्चा चल रही है. कहा जा रहा है कि जंग में सब कुछ जायज नहीं है. बंधक बनाए गए लोगों के भी कुछ अधिकार होते हैं. जेनेवा कन्वेंशन की बात उठाई जा रही है.
क्या है जेनेवा कन्वेंशन?
स्विट्ज़रलैंड में एक शहर है, जेनेवा. यहीं हुई थी जेनेवा की संधि. युद्ध के दौरान मानवीय मूल्यों बनाए रखने के लिए कुछ नियम तय किए गए. इस तरह के कुल 4 समझौते हुए. इनमें कुछ नियम हैं. मसलन, घायल सैनिक की मदद करना, हिरासत में लिए गए दुश्मन सैनिक के साथ मानवीय बर्ताव और घायल सैनिक की देखभाल. चार समझौतों की पूरी सीरीज़ का नाम है जेनेवा कन्वेंशन.
कैसे हुई थी शुरुआत?
दुनियाभर में जहां भी युद्ध होता है, वहां एक संस्था का नाम ज़रूर सामने आता है- रेड क्रॉस. ये संस्था युद्धग्रस्त क्षेत्रों में मानवीय सहायता पहुंचाने का काम करती है. रेड क्रॉस को बनाने वाले शख्स थे हेनरी ड्यूनंट. वो जेनेवा में रहते थे, व्यापारी थे. 24 जून 1859 को हेनरी इटली के सोल्फेरिनो पहुंचे. उस वक्त वहां जंग चल रही थी, जिसमें करीब 4 हज़ार लोग मारे गए थे और 36 हजार से ज़्यादा लोग घायल हुए. हेनरी घायल लोगों और सैनिकों से मिले. ये सब हेनरी के लिए परेशान करने वाला था. वहां से लौटकर उन्होंने एक किताब लिखी जिसका नाम था- 'ए मेमोरी ऑफ सोल्फेरिनो'. इस किताब का असर ऐसा था जिससे 'इंटरनेशनल कमिटी ऑफ द रेड क्रॉस' बनने की राह खुली.
जेनेवा के 4 समझौते
जेनेवा में पहला समझौता हुआ अक्टूबर 1863 में. हेनरी के अनुरोध पर इसमें 16 देश आए. 12 देशों ने एक समझौते पर दस्तखत किए. इसमें युद्ध में घायल हुए सैनिकों से जुड़े नियम बने. यानी युद्ध के नियमों की कड़ी इस कन्वेंशन के साथ शुरू हो गई. साल 1864 में इसे लागू कर दिया गया.
फिर साल 1906 में स्विट्जरलैंड की सरकार ने 35 देशों को अपने यहां आमंत्रित किया. ये दूसरी बैठक थी. इसमें ज़मीन के अलावा समुद्री लड़ाई से जुड़े नियमों पर भी सहमति बनी. तीसरा कन्वेंशन हुआ पहले विश्वयुद्ध के बाद.
पहले विश्व युद्ध में ये साफ हो गया था कि जेनेवा कन्वेंशन के नियमों का पालन नहीं हो रहा है. सैनिकों के साथ अमानवीय व्यवहार की कई घटनाएं सामने आईं. इसलिए इस कन्वेंशन में युद्धबंदियों यानी दुश्मन देश द्वारा पकड़े गए सैनिकों के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिये, उनके अधिकार क्या हैं, इस पर नियम बने.
फिर चौथा जेनेवा कन्वेंशन हुआ 1949 में. पूरी दुनिया ने विश्व युद्ध के दौरान की गई बर्बरता देखी थी. इस बार 194 देशों ने साथ मिलकर युद्धबंदियों के नियम तय किए. इसी कन्वेंशन में युद्ध के दौरान आम नागरिकों के क्या हक होंगे, उसपर भी सहमति बनी.
ये थे जेनेवा कन्वेंशंस. अब जानते हैं कि इन चारों कन्वेंशन से निकल कर क्या आया. इसमें कुछ नियम बने थे जिन्हें सभी को मानना होता है. मसलन
- किसी सैनिक के पकड़े जाने के बाद ये संधि लागू होती है
- घायल युद्धबंदी का इलाज होना चाहिए, उसके साथ कोई हिंसा नहीं कर सकते
- युद्धबंदियों को लड़ाई में ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते
- रेड क्रॉस कभी भी युद्धबंदियों से मिल सकती है
- उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए
- युद्ध के बाद युद्धबंदियों को वापस लौटाना होता है
क्या आम नागरिकों पर लागू होता है जेनेवा कन्वेंशंस ?
इजरायल और हमास के बीच जंग चल रही है. हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या आम नागरिकों पर भी जेनेवा कन्वेंशन लागू होता है. जेनेवा कन्वेंशन्स चार हैं. इसके अलावा इसमें 3 प्रोटोकॉल भी हैं. इसमें कौन आम नागरिक है, कौन सैनिक इसकी भी परिभाषा दी गई है. प्रोटोकॉल 2, साल 1977 में लाया गया. इसमें लड़ाई या संघर्ष के दौरान आम नागरिकों के साथ कैसा सलूक किया जाए, उस बारे में है. यानी मानवीय आधार पर आम नागरिकों के साथ भी बुरा सलूक नहीं किया जाना चाहिए.