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IIT बॉम्बे में SC/ST छात्रों से जातिगत भेदभाव का ये सच डरा देगा, सर्वे में मेंटल हेल्थ का डेटा सामने आया

26 फीसदी छात्रों ने बताया कि उनकी जाति जानने के लिए उनसे सरनेम पूछा गया.

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IIT Bombay caste discrimination
सांकेतिक तस्वीर (आज तक)
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साकेत आनंद
13 मार्च 2023 (Updated: 13 मार्च 2023, 14:16 IST)
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एक नए सर्वे में पता चला है कि IIT बॉम्बे में पढ़ने वाले दलित और आदिवासी समुदायों के छात्रों के एक बड़े हिस्से को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है. पिछले महीने ही इस संस्थान में फर्स्ट ईयर के एक दलित छात्र दर्शन सोलंकी ने आत्महत्या कर ली थी. इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई पर अंतरिम जांच रिपोर्ट में जातिगत भेदभाव के आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया गया था.

लेकिन IIT बॉम्बे ही नहीं देश के कई शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव के आरोप लगते रहे हैं.  अब IIT बॉम्बे के अनुसूचित जाति/जनजाति स्टूडेंट सेल के एक सर्वे की रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि SC/ST वर्ग के छात्रों कई तरह की मानसिक बीमारियों का सामना कर रहे हैं. ये सर्वे जून 2022 में किया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक सर्वे में पता चला कि कैंपस में आरक्षित कैटगरी से आने वाले छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का बड़ा कारण "जातिगत भेदभाव" है.

सर्वे में पाया गया कि करीब एक चौथाई SC/ST छात्र मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं. करीब 7.5 फीसदी छात्र गंभीर रूप से मानसिक बीमारियों की चपेट में हैं.  रिपोर्ट के मुताबिक ज्यादातर SC/ST छात्र आरक्षण के 'टैग' से बचने के लिए अपनी पहचान को छिपाने की कोशिश करते हैं. इस सर्वे में 134 छात्रों ने हिस्सा लिया था.

SC/ST स्टूडेंट्स सेल में IIT बॉम्बे के छात्र सदस्य हैं और फैकल्टी यानी अध्यापक इसके कन्वीनर होते हैं. इस सेल ने पिछले साल दो सर्वे करवाए थे. पहला सर्वे फरवरी में किया गया था जिसमें कैंपस के SC/ST छात्रों की जीवनशैली को समझने की कोशिश की गई थी. इस सर्वे में 388 छात्रों ने हिस्सा लिया था. मानसिक स्वास्थ्य को लेकर दूसरा सर्वे जून में किया गया था. सर्वे के सवाल कैंपस के सभी SC/ST छात्रों (करीब 2000) को भेजे गए थे. हालांकि संस्थान ने अभी इस सर्वे की रिपोर्ट को जारी नहीं किया है.

मेंटल हेल्थ सर्वे के मुताबिक नौ फीसदी छात्रों ने मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जाति को बड़ा कारण बताया. चार छात्रों ने प्रोफेसर्स के जातिगत और भेदभावकारी व्यवहार को भी कारण बताया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे में हिस्सा लेने वाले करीब 23 फीसदी छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए संस्थान को विशेष ध्यान देने की जरूरत है.

"जाति जानने के लिए पूछा गया सरनेम"

सर्वे में करीब 37 फीसदी SC/ST छात्रों ने बताया कि उनकी जातिगत पहचान जानने के लिए उनके एंट्रेंस एग्जाम रैंक के बारे में पूछा जाता है. वहीं 26 फीसदी छात्रों ने महसूस किया कि उनकी जाति जानने के लिए लोगों ने उनसे सरनेम तक पूछा. कुल 388 में से करीब एक तिहाई छात्रों ने बताया कि वे कैंपस में अपनी जातिगत पहचान के बारे में बात करने में वो असहज महसूस करते हैं.

संस्थान में जातिगत भेदभाव को देखते हुए पिछले साल IIT बॉम्बे ने एक कोर्स शुरू करने की घोषणा की थी जिसका मकसद जाति के प्रति जागरूकता पैदा करना बताया गया था. ये घोषणा SC/ST स्टूडेंट्स सेल द्वारा की गई पहल के बाद की गई थी. सेल का कहना था कि इससे जातीय भेदभाव को खत्म करने में मदद मिलेगी. इसी तरह साल 2021 में IIT बॉम्बे ने स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए एक अनिवार्य कोर्स भी शुरू किया था.

वीडियो: मास्टर क्लास: जातिगत जनगणना कैसे होती है?बिहार में क्यों हो रही?

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