डेढ़ महीने में ही खराब हो जाता है कुट्टू का आटा, कैसे पहचानें जो तबीयत ना खराब हो?
कुट्टू की फसल कुछ खास जगहों पर ही उगाई जा सकती है.
हाल-फिलहाल में ऐसी कई खबरें आईं कि कुट्टु के आटे से बने पकवान खाने की वजह से कई लोग बीमार हो गए. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सोनीपत में 350 लोगों को कुट्टू का आटा खाने के बाद दस्त और उल्टी की शिकायत सामने आई. मेरठ से 12 लोगों के बीमार होने की खबर आई, गाजियाबाद से 70 लोगों के लोगों के और मध्य प्रदेश से भी करीब दर्जन भर लोगों को कुट्टू का आटा खाने की वजह से फूड पॉइजनिंग हुई. ऐसे में सवाल उठा कि क्या कुट्टू के आटे में मिलावट हो रही है? और अगर हो रही है तो इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है?
क्या है कुट्टू?टाऊ, ओगला, ब्रेश, फाफड़, पदयात या अंग्रेजी में कह लें बक व्हीट. विज्ञान की भाषा में बोले तो 'फैगोपाइरम एस्कुलेंटा'. इसे ही कुट्टु के नाम से जाना जाता है. अंग्रेजी के इसके नाम में व्हीट है, लेकिन अनाज से इसका कोई लेना देना नहीं होता है. क्योंकि कुट्टू की गिनती फलों में की जाती है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसकी उत्पत्ति का मूल स्थान उत्तरी चीन और साइबेरिया है. हालांकि, इसकी जंगली प्रजाति यूनान में भी पाई जाती है.
कुट्टू का पौधा ज्यादा बड़ा नहीं होता है. औसतन इसकी लंबाई दो से चार फीट ही होती है. कुट्टु के पौधे में फूल और फल गुच्छों में उगते हैं. इसकी पत्तियों का आकार तिकोना और रंग हरा होता है. कुट्टू के पौधे में उगने वाले फूल सफेद रंग के होते हैं. सहूलियत के लिए फोटो लगा दी है, देख लीजिए. और इसके फल भूरे रंग के होते हैं. देखने में ये काफी हद तक सूखे चने जैसे लगते हैं.
कैसे बनता है कुट्टू का आटा?कुट्टू की खेती ज्यादातर पर्वतीय इलाकों में होती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसकी खेती के लिए समुद्र तल से 1800 मीटर ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाके ज्यादा फायदेमंद होते हैं. इसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दक्षिण भारत के नीलगिरि और उत्तर पूर्वी राज्यों के कई हिस्सों में उगाया जाता है. रबी का मौसम इसकी बुआई के लिए सही समय होता है. कुट्टू की फसल एक साथ नहीं पकती है, इसलिए इसे 70-80 फीसदी पकने पर ही काट लिया जाता है. कुट्टू की फसल कटने के बाद इसे सुखाया जाता है और सूखने के बाद इसके बीजों को छांटा जाता है. बाद में इन्हीं बीजों को पीस कर कुट्टू का आटा तैयार होता है.
क्यों इतना प्रचलन है?जैसा कि रिवाज है, लोग नवरात्रि में व्रत रखते हैं. 22 मार्च को चैत्र मास की नवरात्रि का पहला दिन था. व्रत रखने वाले लोग, अन्न और तामसिक भोजन को त्याग देते हैं. व्रत के दौरान फलाहार किया जाता है. फलाहार में लोग फल, सब्जी (प्याज और लहसुन छोड़कर), दूध के उत्पाद, साबूदाना, शामक चावल, और कुट्टु से बने पकवान खाते हैं. जैसा कि खबर है, कुट्टू का आटा खाकर लोग बीमार पड़ रहे हैं और उत्तर भारत में व्रत के दौरान इसका काफी चलन है. लोग कुट्टू के आटे से बनी रोटी, हलवा, पूड़ी, कचौड़ी और भी तरह-तरह के पकवान बनाकर खाते हैं.
क्या-क्या फायदे हैं?मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 100 ग्राम कुट्टू के आटे में 65 से 75 ग्राम कार्बोहाइड्रेट और 12 से 13 ग्राम प्रोटीन होता है. विटामिन्स और फाइबर की भी अच्छी खासी मात्रा होती है. 7 मिलीग्राम विटामिट B-3, 282 मिलीग्राम फास्फोरस, 231 मिलीग्राम मैग्नीशियम, 114 मिलीग्राम मैग्नीशियम और 13.2 मिलीग्राम आयरन होता है. कुट्टू पथरी के मरीजों को लिए काफी फायदेमंद होता है. साथ ही अगर कोई वजन घटा रहा है तो इसमें भी कुट्टू का आटा काफी फायदेमंद है.
कुट्टू के आटे से कैसे बीमार पड़ते हैं लोग?फायदों के साथ कुट्टू के नुकसान भी हैं. इसके ज्यादा सेवन की वजह से स्किन एलर्जी हो सकती है. कई रिपोर्ट्स ये भी कहती हैं कि इसे खाने से शरीर पर दाने और सूजन जैसी समस्या भी देखने को मिलती है. कुट्टू का आटा जल्दी खराब हो जाता है. अमूमन एक से डेढ़ महीने में ये खराब हो जाता है. जिसके बाद इसे खाने से फूड पॉइजनिंग होती है. अब सवाल है कि इसको पहचाना कैसे जाए?
दरअसल, कुट्टू के आटे का रंग गहरा भूरा होता है. मगर मिलावट या खराब होने पर इसका रंग बदल जाता है. खराब होने पर इसका रंग हल्का स्लेटी या हरे रंग का हो जाता है. खराब या मिलावटी आटा गूंथते वक्त बिखर जाता है. आटा खरीदते वक्त ध्यान दें कि अगर वो खुरदरा लग रहा है और बीच बीच में काले दाने नजर आ रहे हैं, तो सावधान हो जाएं. इसका मतलब है कि आटा खराब है.
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