11 अस्पतालों में लगी आग में खाक हुईं 107 जिंदगियां, एक केस छोड़ सब में आरोपियों को बेल: रिपोर्ट
इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले पांच सालों में अस्पतालों में आग लगने की 11 बड़ी घटनाओं की पड़ताल की है. इन घटनाओं में 107 लोगों की जानें गई थीं. इनमें से एक केस को छोड़कर सभी मामलों में आरोपियों को जमानत दे दी गई.
बीते महीने 15 नवंबर को यूपी के झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 10 नवजात बच्चों की मौत हो गई थी. शुरुआती जांच में पाया गया था कि अस्पताल में आग बुझाने के इंतजाम की कमी थी. बच्चों के वॉर्ड में उपलब्ध अग्निशमन यंत्र (fire extinguishers) तक काम नहीं कर रहे थे. अब अंग्रेजी अखबार 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने बीते सालों में अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं की पड़ताल की है. इसमें सामने आया है कि ज्यादातर मामलों में आरोपियों को जमानत दे दी जाती है. अस्पतालों में आग बुझाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपकरण नहीं होने और नियमों का पालन नहीं करने के कारण ऐसी घटनाएं बड़ी बन जाती हैं.
इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले पांच सालों में अस्पतालों में आग लगने की 11 बड़ी घटनाओं की पड़ताल की है. इन घटनाओं में 107 लोगों की जानें गई थीं. इनमें से एक केस को छोड़कर सभी मामलों में आरोपियों को जमानत दे दी गई. कम से कम 7 मामले अब भी कोर्ट में पेंडिंग हैं. इस रिपोर्ट में उन घटनाओं की जांच की गई, जिनमें पांच या उससे ज्यादा लोगों की मौत हुई. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो जनवरी 2020 से अक्टूबर 2024 के बीच अस्पतालों या क्लीनिक में आग लगने की कम से कम 105 घटनाएं रिपोर्ट की गईं.
11 घटनाओं की पड़ताल में और क्या सामने आया?एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक,
> सात मामलों में पता चला कि आग लगने की घटना के बाद जिन डॉक्टर्स या मालिक के खिलाफ केस दर्ज हुआ, वे कहीं और प्रैक्टिस करने लगे या हॉस्पिटल प्रबंधन का हिस्सा बन गए.
> 6 नवंबर 2021 को महाराष्ट्र के अहमदनगर सिविल अस्पताल में आग लगने के कारण 14 लोगों की मौत हुई थी. इस मामले में आरोपी सरकारी कर्मचारी थे. उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से मिलने वाली मंजूरी 2022 से पेंडिंग है. अस्पताल के पास पानी छिड़कने की मशीनें और स्मोक अलार्म नहीं थे. स्टाफ भी अग्निशमन यंत्र का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे.
> इन 11 बड़ी घटनाओं में कम से कम 8 हादसे शॉर्ट सर्किट्स, इलेक्ट्रिकल लाइन्स की मेंटेनेंस नहीं होने के कारण हुए. कई अस्पतालों में सुरक्षा के कई पहलुओं को दरकिनार किया गया था. जैसे, अग्निशमन यंत्र का ना होना, पानी छिड़कने के यंत्र का नहीं होना, प्रशिक्षित स्टाफ की कमी, एक्सपायर्ड फायर सर्टिफिकेट को लेकर सरकारी एजेंसियों की विफलता, निर्माण से जुड़े नियमों का उल्लंघन जैसे मसले शामिल हैं.
> एक मई 2021 को गुजरात के पटेल वेलफेयर हॉस्पिटल में आग लगने के कारण 18 लोगों की मौत हुई थी. ये आग कथित रूप से वेंटिलेटर की ढीली वायर के कारण लगी थी. इस घटना की जांच के लिए जस्टिस डीए मेहता की अध्यक्षता में एक जांच आयोग गठित हुई. पाया गया कि अस्पताल प्रबंधन ने झूठी जानकारी दी कि अग्निशमन यंत्र और सिस्टम वहां लगे थे जबकि असल में ऐसा नहीं था.
> 23 अप्रैल 2021 को महाराष्ट्र के विजय वल्लभ अस्पताल में आग लगने से 15 लोगों की जानें गई थीं. रिपोर्ट के मुताबिक, एक एक्सपर्ट कमिटी ने पाया कि अस्पताल के फायर फाइटिंग सिस्टम में कई खामियां थीं. जांच से जुड़े सूत्रों ने अखबार को बताया कि अस्पताल के पास पानी छिड़कने वाली मशीन खराब थी. अस्पताल के पास फायर डिपार्टमेंट का NOC नहीं था.
> 9 जनवरी 2021 को भंडारा जिला अस्पताल में आग लगने के कारण 10 लोगों की मौत हुई थी. इस मामले की जांच नागपुर कमिश्नर संजीव कुमार की अध्यक्षता में हुई. पाया गया कि शॉर्ट सर्किट के कारण अस्पताल में आग लगी थी. ऐसा वोल्टेज ऊपर-नीचे होने के कारण हुआ था. इस मामले में अभी तक आपराधिक कार्रवाई शुरू नहीं हुई है.
ये भी पढ़ें- असम सरकार ने गोमांस बेचने पर लगाया बैन, फैसले का विरोध शुरू
> 26 मार्च 2021 को मुंबई के सनराइज अस्पताल में आग लगने से 11 लोगों की मौत हुई थी. इस अस्पताल को कई सालों तक मंजूरी नहीं मिली थी. लेकिन कोविड महामारी के दौरान एक मॉल से अस्थायी रूप से चलाने की अनुमति मिली थी. जांच रिपोर्ट में पाया गया कि अस्पताल में आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे.
> 9 अगस्त 2020 को आंध्र प्रदेश के होटल स्वर्णा पैलेस में आग लगी थी. इसमें 10 जानें चली गईं. महामारी के दौरान इसे कोविड केयर सेंटर बनाया गया था. सरकार की कमिटी ने जांच में पाया कि वहां फायर अलार्म और दूसरे फायर फाइटिंग उपकरण नहीं थे. इलेक्ट्रिकल सिस्टम आउटडेटेड थे, जो वहां चलाए जा रहे एसी की क्षमता के लिए पर्याप्त नहीं थे.
> 1 अगस्त 2022 को मध्य प्रदेश के न्यू लाइफ अस्पताल में आग लगने से 8 लोगों की मौत हुई थी. जांच में पता चला कि अस्पताल में वैकल्पिक एग्जिट गेट नहीं थे. वेंटिलेशन की कमी थी. साथ में पर्याप्त अग्निशमन यंत्र भी नहीं थे. आग लगने का कारण इलेक्ट्रिक जेनरेटर का बहुत ज्यादा गर्म हो जाना बताया गया.
> कई मामलों की जांच में ये भी पता चला कि अस्पतालों ने बिल्डिंग कोड का भी उल्लंघन किया. इसके अलावा, अवैध निर्माण और सरकारी विभागों की लापरवाही भी आग लगने की घटना के लिए जिम्मेदार थे.
वीडियो: झांसी अग्निकांड: अस्पताल के बाहर जमा लोगों का बुरा हाल, महिला ने आंखों देखी क्या बताई?