The Lallantop
X
Advertisement
  • Home
  • News
  • home ministry provide details ...

UAPA लगने पर मिलती है बस 'तारीख पे तारीख', ये आंकड़े आपको हकीकत बताएंगे!

ये कानून जमानत को लगभग नामुमकिन बना देता है.

Advertisement
Home ministry written reply on UAPA
गृह मंत्रालय ने संसद में UAPA के आंकड़े पेश किए हैं. (फोटो: पीटीआई/रॉयटर्स)
pic
धीरज मिश्रा
21 जुलाई 2022 (Updated: 21 जुलाई 2022, 23:30 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

साल 1993 में सनी देओल और मीनाक्षी शेषाद्रि की एक मशहूर फिल्म आई थी- 'दामिनी'. इसका एक डायलॉग बेहद चर्चित है, जब वकील गोविंद अपने मुवक्किल दामिनी की पैरवी करते हुए कोर्ट की कार्यवाही पर नाराजगी जाहिर करता है और जज से कहता है- ‘तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख मिलती रही है, लेकिन इंसाफ नहीं मिला मी लॉर्ड, मिली है तो सिर्फ ये तारीख.’

डायलॉग फिल्मी है, लेकिन हकीकत को बयान करने के काम आता है. भारत की न्यायिक व्यवस्था पर जब भी सवाल उठता है, तब इस डायलॉग को जरूर याद किया जाता है. हालांकि न्याय मिलने में देरी के लिए सिर्फ अदालतें जिम्मेदार नही हैं. तमाम सरकारों ने कुछ कानूनों की संरचना ही इस तरह से तैयार की है कि एक बार कोई आरोप लग जाता है तो फिर जमानत मिलना लगभग नामुमकिन हो जाता है. ऐसा ही एक कानून है UAPA, जिसे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम कानून कहते हैं.

साल 1967 में इसे पारित किया गया था. इसके बाद कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA सरकार ने 2008 और 2012 में इसमें संशोधन किया था. NDA सरकार ने भी साल 2019 में इसमें संशोधन किया था, जो कि काफी विवादों में रहा है.

वैसे तो इस कानून का मुख्य मकसद आतंकियों और आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करना था, लेकिन कई मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, शिक्षाविद, लेखक इत्यादि भी इस कानून के तहत जेल में डाले गए हैं और उन्हें मिल रही है बस 'तारीख पे तारीख'. 

ये कानून जमानत को बेहद मुश्किल बना देता है, नतीजतन अधिकतर आरोपी बिना ट्रायल के ही जेल में बैठे हैं और जब तक उनके मामलों में कोई फैसला होता है, तब तक कई साल गुजर चुके होते हैं. खुद केंद्र सरकार ने भी इस स्थिति को संसद में स्वीकार किया है.

कितने मामले?

पिछले कुछ सालों में विपक्ष के कई सांसदों ने UAPA को लेकर राज्यसभा और लोकसभा में सवाल पूछे हैं, जिनके जवाब का विश्लेषण करने से पता चलता है कि 2016 से 2020 के बीच UAPA कानून के तहत कुल 5027 केस दर्ज किए गए थे. इन मामलों में कुल 7243 लोगों को गिरफ्तार किया गया. लेकिन इस दौरान महज 212 लोगों को ही दोषी करार दिया जा सका और 386 लोग बरी हो गए.

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि पुलिस प्रशासन द्वारा UAPA कानून के तहत जितने मामले दर्ज किए जा रहे हैं, उसकी तुलना में काफी कम मामलों में फैसले आ रहे हैं.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री द्वारा संसद में दिया गया जवाब.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बीते बुधवार, 20 जुलाई को राज्यसभा में बताया कि साल 2020 में 6482 लोग UAPA मामलों में विचाराधीन थे. यानी कि इन केस में कोई फैसला नहीं हुआ है.

पिछले साल (2021) दिसंबर महीने की 14 तारीख को गृह मंत्रालय ने लोकसभा में बताया था कि 2018 से 2020 के बीच UAPA के तहत 4690 लोग गिरफ्तार हुए थे, जिनमें से 10 80 लोगों को ही जमानत मिल पाई थी.

आलम ये है कि 2018 से 2020 के दौरान जितने लोगों को UAPA कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था, उनमें से 2501 लोगों की उम्र 30 साल से कम थी.

वर्षवार आंकड़े

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के मुताबिक साल 2016 में UAPA के तहत 922 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें 999 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इसी तरह 2017 में देश भर में 901 मामले दर्ज किए गए और 1554 लोगों को गिरफ्तार किया गया.

UAPA के तहत दर्ज केस और उसमें गिरफ्तार लोग. (स्रोत: संसद में दिया गया जवाब)

वहीं 2018 में 1182 केस दर्ज हुए और 1421 लोगों को गिरफ्तार किया गया. साल 2019 में UAPA के तहत 1226 केस किए गए और 1948 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इसी तरह साल 2020 में 796 मामले दर्ज किए गए थे और कुल 1321 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

तारीख: भूटान के भविष्य को लेकर किस बात पर अड़ गए थे नेहरू

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement