The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • history of al aqsa masjid wher...

क्या है अल-अक्सा मस्जिद की कहानी और इतिहास जहां इजरायली पुलिस ने बम फेंक दिए?

5 अप्रैल को इज़रायली फोर्सेज़ अल-अक्सा मस्ज़िद के परिसर में घुस गई थी.

Advertisement
Israeli police threw a grenade at Al-Oxa mosque
11 दिनों तक चली इस लड़ाई में कुल 269 लोगों की मौत होती है. (फोटो: आजतक)
pic
साजिद खान
7 अप्रैल 2023 (Updated: 7 अप्रैल 2023, 16:18 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

9 मई 2021 की बात है. इज़रायली फोर्सेज़ अल-अक्सा मस्जिद परिसर में घुसती हैं. और लोगों पर स्टन ग्रेनेड फेंकती है. जवाब में हमास इज़रायल के लिए अल्टीमेटम ज़ारी करता है. शाम होते-होते हमास इज़रायली शहरों पर रॉकेट दागना शुरू कर देता है. इज़रायल की तरफ से भी गाज़ा पट्टी पर हवाई बमबारी शुरू हो जाती हैं. नतीजा ये कि दोनों देशों के बीच भयानक लड़ाई छिड़ जाती है. 11 दिनों तक चली इस लड़ाई में कुल 269 लोगों की मौत होती है. इनमें से 67 बच्चे थे.

आज हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं क्योंकि एक बार फिर ऐसा ही होने की आशंका जताई जा रही है. 5 अप्रैल को इज़रायली फोर्सेज़ अल-अक्सा मस्ज़िद के परिसर में घुस गई थी. इज़रायली फोर्सेज़ ने मस्जिद के अंदर तोड़-फोड़ की. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कुछ वीडियो में दिख रहा है कि इज़रायली पुलिस के जवान फ़लस्तीनियों को पीट रहे हैं. पुलिस की इस हरकत के बाद गाज़ा पट्टी से इज़रायल की तरफ राकेट दागे गए हैं. इज़रायल ने भी इस हमले का जवाब दिया है. उसने हमास के अड्डों पर हवाई हमले किए हैं. दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण माहौल है.

तो आज हम आपको बताएंगें
जेरुसलम और अल-अक्सा मस्जिद का इतिहास क्या है?
उस परिसर की वजह से दो देश लड़ते क्यों हैं?
और हालिया घटना रुकेगी या फिर एक अनहोनी होने वाली है.

आज बात अल-अक्सा मस्जिद में हुइ हिंसा की. लेकिन शुरुआत इतिहास से, जेरुसलम के इतिहास को समझने के लिए हम दो अलग-अलग टाइमलाइन में जा सकते हैं. एक तो कुछ सौ साल पहले की. दूसरी टाइमलाइन है सदियों पहले की. ईसा से भी पहले की. पहले पुरानी वाली टाइमलाइन में दाखिल होते हैं.

ईसा मसीह के करीब 1 हज़ार साल पहले. किंग सोलोमन ने एक भव्य मंदिर बनवाया. यहूदी इसे फर्स्ट टेम्पल कहकर पुकारते थे. किंग सोलोमन को इस्लाम और इसाइयत दोनों में पैगंबर का दर्जा मिला हुआ है. सोलोमन के बनाए फर्स्ट टेम्पल को बाद में बेबिलोनियन लोगों ने तोड़ दिया. फिर करीब 5 सौ साल बाद 516 ईसापूर्व में यहूदियों ने दोबारा इसी जगह पर एक और मंदिर बनाया. वो मंदिर कहलाया- सेकेंड टेम्पल. यहां यहूदी नियमित पूजा करने आया करते. ये मंदिर 600 साल सही सलामत रहा. फिर सन् 70 में यहां रोमन्स ने हमला बोला. हमले में मंदिर को तोड़ने की कोशिश भी हुई. मंदिर टूटा भी. लेकिन पश्चिम की तरफ एक दीवार का एक हिस्सा बच गया. मंदिर की ये दीवार आज भी मौजूद है. यहूदी इसे वेस्टर्न वॉल या वेलिंग वॉल कहते हैं. वो इसे अपनी आखिरी धार्मिक निशानी मानते हैं. इंटरनेट पर आपने वेस्टर्न वॉल की तस्वीरें देखी होगी, यहां यहूदी आज भी पूजा करने आते हैं. इस दीवार की दरारों में लोग मन्नत वाली चिट्ठियां रख देते हैं. वो दीवार से लिपटकर रोते भी हैं, इसीलिए वेलिंग वॉल नाम आया.

इस पवित्र जगह के भीतर ही ‘द होली ऑफ़ द होलीज़’ है. इसे यूहूदियों का सबसे पवित्र स्थान कहा जाता था. यहूदियों का विश्वास है कि यही वो जगह है जहां से दुनिया बनी थी. और यहीं पर पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे इश्हाक की बलि देने की तैयारी की थी.

मुसलमान भी इस जगह को लेकर अकीदा रखते हैं. वो मानते हैं कि सन् 621 में इसी जगह से इस्लाम के आखिरी पैगंबर मोहम्मद ने जन्नत तक का सफ़र किया था, इसे इस्लाम में ‘मेराज’ नाम से जाना गया. इसी मस्ज़िद में पैगंबर मोहम्मद ने खुद से पहले आए सभी पैगम्बरों के साथ नमाज़ अदा की थी. मुसलमानों की इस मस्ज़िद से एक और मान्यता जुडी हुई है, दरअसल पहले मुसलमान इसी मस्ज़िद की तरफ रुख करके नमाज़ अदा किया करते थे. बाद में वो मक्का स्थित मस्ज़िद-ए-हरम की ओर रुख कर नमाज़ अदा करने लगे. मत है कि ये अल्लाह के आदेश के बाद हुआ.

पैगंबर मोहम्मद के देहांत के 4 साल बाद मुसलामानों ने जेरुसलम पर हमला कर दिया. तब यहां बाइजेन्टाइन एम्पायर का राज था. तब पवित्र कंपाउड दोबारा मुसलमानों के पास आया. आज अल-अक्सा मस्ज़िद के सामने की तरफ़ है, एक सुनहरे गुंबद वाली इस्लामिक इमारत. इसे कहते हैं- डॉम ऑफ़ दी रॉक.

यहूदियों की वेस्टर्न वाल, मुसलामानों की अल-अक्सा मस्जिद और डॉम ऑफ़ दी रॉक. ये सभी ईमारतें 2 एकड़ के कंपाउंड के अंदर हैं. इस कंपाउंड में ईसाईयों का भी एक पवित्र चर्च मौजूद है. वो मान्यता रखते हैं कि ईसा मसीह को क्रूसीफाई किया गया फिर जिस जगह उनका पुनर्जन्म हुआ था, वो यही जगह है. इसी जगह में ईसाईयों का ये चर्च बनाया गया है. आपको जानकार हैरानी होगी कि ईसाईयों के बहुत से गुट चर्च की चाबी रखने के लिए लड़ पड़े थे. जिसके बाद चर्च की चाबी एक मुसलमान परिवार के पास रखवाई गई. 8 सौ साल बीत गए. लेकिन चाबी उसी मुस्लिम परिवार के पास रखी जाती है.

2 ऐकड़ की ज़मीन में दुनिया के 3 बड़े धर्मों की आस्था से जुड़ी ईमारते हैं. इस समानता की वजह है धर्मों का रूट एक होना. तीनों धर्मों के तार समय में पीछे जाकर एक साथ जुड़ते हैं, ये सभी पैगंबर इब्राहीम के मानने वाले हैं. इसलिए इन्हें ऐब्राहमिक रिलीजन कहा जाता है. पैगंबर इब्राहीम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले ये तीनों ही धर्म जेरुसलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं. यही वजह है कि सदियों से मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के दिल में इस शहर का नाम बसता रहा है.

तो ये रही जेरुसलम से जुड़ी मान्यताएं और उसका पुराना इतिहास. जिसे हमने पहली टाइमलाइन से जाना, अब थोड़ा आगे आते हैं और दूसरी टाइमलाइन में प्रवेश करते हैं, और जानते हैं हालिया इतिहास,
पहले विश्व युद्ध से पहले इस इलाके पर ओटोमन्स राज किया करते थे. जेरुसलम, फिलिस्तीन की राजधानी थी. साल 1917 में पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर कब्ज़ा कर लिया. जर्मनी में यहूदियों पर ज़ुल्म जारी था, तो वो  अपने लिए नए घर की तालाश में थे. वे इज़रायल को अपने पुरखों की ज़मीन मानते थे. उन्होंने अपने लिए उसी जगह एक अलग देश की मांग कर दी. ब्रिटेन ने भी उनकी मांगों को उठाया. फ़िर बैलफर डिक्लेरेशन हुआ. धीरे-धीरे यहूदी फिलिस्तीन में बसने लगे.1947 में जिस साल हमें आज़ादी मिली, उसी साल UN ने फिलिस्तीन की ज़मीन को दो हिस्सों बांट दिया. एक हिस्सा यहूदियों को मिला और एक मुसलामानों को.

और इस तरह साल 1948 में गठन हुआ, इज़रायल का. लेकिन इज़रायल इतने में खुश नहीं हुआ, वो जेरुसलम को अपनी राजधानी बनाना चाहता था. क्योंकि टेम्पल माउंट वहीं मौजूद था. अब अरब मुल्कों ने इसका विरोध किया. एक तो ऐसे ही फिलिस्तीन की ज़मीन इज़रायल को दे दी गई, और अब जेरुसलम भी वहीं चला जाता तो अरब मुल्क इज़रायल पर उसी वक्त हमला कर सकते थे. फिर संयुक्त राष्ट्र ने एक तिकड़म आजमाई. उसने दुनिया के बड़े देशों के साथ मिलकर एक मसौदा बनाया. इसे कहते हैं, पार्टिशन रेजॉल्यूशन. इसके मुताबिक, जेरुसलम पर इंटरनैशनल कंट्रोल की बात कही गई. और इस कंट्रोल का पहरेदार UN ने ख़ुद को बनाया.

इज़रायल इस मसौदे पर भी राज़ी था. लेकिन अरब मुल्कों ने इसे खारिज़ किया. दोनों पक्षों के बीच संघर्ष हुआ. इसी संघर्ष का एक अध्याय था, 1967 का सिक्स डे वॉर. इस युद्ध में इज़रायल की जीत हुई. और इसके साथ ही टेम्पल माउंट उसके कंट्रोल में आया. इज़रायल ने इलाके को जीता, पर उसने कंपाउंड के कंट्रोल में बदलाव नहीं किया. उस समय इज़रायल के रक्षामंत्री मोशे डायन हुआ करते थे. उन्होंने टेम्पल माउंट के सिलसिले में मुसलमान नेताओं से बात-चीत की. दोनों पक्षों के बीच एक समझौता हुआ. और टेम्पल माउंट के प्रबंधन का अधिकार जॉर्डन को दे दिया गया. वो इसका कस्टोडियन बना गया. इस समझौते में एक बड़ा बदलाव ये हुआ कि अब यहूदियों को भी इस परिसर में प्रवेश की अनुमति मिल गई. लेकिन केवल पर्यटक के तौर पर. वो कंपाउंड में आ तो सकते थे, मगर यहां उनको पूजा-पाठ की इजाज़त नहीं थी.

फिर साल 1982 में ऐलन गुडमैन नाम का एक इज़रायली सैनिक डॉम ऑफ़ दी रॉक में घुस गया. उसने मशीनगन से फायरिंग शुरू कर दी. इस वारदात में दो लोग मारे गए. इस घटना के बाद यहूदियों और मुस्लिमों के बीच भी तनाव बढ़ा. लेकिन मामला फिर शांत हो गया, हालांकि समय-समय पर दोनों के बीच तना-तनी चलती रही. फिर आया साल 2000. इस साल इज़रायल के पूर्व प्रधानमंत्री एरियल शेरन टेम्पल माउंट पहुंचे. मकसद था, इज़रायल का अधिकार स्थापित करना. इस प्रकरण के चलते ख़ूब फ़साद हुआ. जेरुसलम में दंगा हुआ.

साल 2007 में फिलिस्तीन में एक टेम्पररी सरकार बनी, 2014 में हमास और इजराइल में जंग शुरू हो गयी. वेस्ट बैंक पर इजराइल का कब्ज़ा है. गाजा में फिलिस्तीनी रहते हैं. पर इजराइल की मिलिट्री ने वहां डेरा डाल रखा है.2014 में इजराइल और हमास में भयानक भिड़ंत हुई. 8 जुलाई से 26 अगस्त तक चली इस लड़ाई में दो हज़ार से अधिक फिलिस्तीनी और 73 इज़राइली मारे गए.

फरवरी 2017 में इज़रायल की ससंद में एक कानून पारित हुआ, जिससे वेस्ट बैंक के कुछ इलाकों में, जहां फिलिस्तीन का कब्ज़ा था वहां नई यहूदी बस्ती बसाई जा सके. इसी साल अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जेरुसलम को इज़रायल की राजधानी मान लिया. और अमेरिका अपना दूतावास भी जेरूसलम लेकर चला गया.  इसका कुछ देशों ने समर्थन किया तो कई देशों ने इसपर ऐतराज जताया. उसके बाद से अब तक कई बार छोटी और बड़ी हिंसक झड़पें दोनों देशों के बीच होती रही है.

ये तो रहा जेरुसलम का इतिहास, अब हालिया घटना पर आते हैं,
5 अप्रैल की शाम को इज़रायली पुलिस अल-अक्सा मस्जिद के अंदर घुस गई. पुलिस ने मस्जिद के अंदर तोड़-फोड़ की और लोगों पर स्टन गन और रबर की गोलियों से हमला किया. इसमें करीब 40 लोग घायल हो गए हैं. इस बात का ज़िक्र कई मीडिया रिपोर्ट्स में है. और कई वीडियो भी सामने आए हैं.

बक्र ओवेस उस समय मस्जिद में ही थे, उन्होंने अल जज़ीरा को बताया,

‘इज़रायली फ़ोर्स मस्ज़िद के अंदर घुसी और ऊपरी खिड़कियां तोड़ दीं. उन्होंने हम पर स्टन ग्रेनेड फेंके. हमें ज़मीन पर लिटा दिया और एक-एक करके हथकड़ी पहनाई.फिर हम सभी को मस्जिद से बाहर निकाल दिया. इस दौरान वे हमें गालियां देते रहे.’

समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए एक महिला ने बताया,  

‘मैं कुर्सी में बैठकर शाम के वक्त कुरान पढ़ रही थी. तभी पुलिस फ़ोर्स अंदर घुस गई. उन्होंने स्टन ग्रेनेड फेंके, उनमें से एक मेरी छाती पर लगा.’

प्रत्यक्षदर्शियों के बयान और मीडिया रिपोर्ट्स ये तो बता रहे हैं कि इज़राइली पुलिस वाकई मस्जिद में दाखिल हुई. इज़रायल का इसपर क्या कहना है, ये भी जान लीजिए. 
इज़रायली पुलिस ने इसे छापा बताया है. एक बयान में उन्होंने कहा है,

‘कुछ उपद्रवी लोग मास्क लगाकर मस्जिद में छिपे हुए थे. उनके पास लाठियां, पटाखे और पत्थर थे. इसलिए हमें मजबूरन परिसर में घुसना पड़ा. जब पुलिस अंदर गई तो उन पर पत्थर फेंके गए. उपद्रवियों ने मस्जिद के अंदर पटाखे भी चलाए.’ 

खबर मिली है कि करीब 450 लोगों को हिरासत में लिया गया था, जिनमें से तकरीबन 400 को रिहा भी कर दिया गया है. बवाल के बीच इज़रायल के पीएम नेतन्याहू ने कहा है कि वो स्थिति को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं.  चूंकि जॉर्डन इस पूरे कंपाउंड की देख रेख करता है, तो उसकी ओर से भी प्रतिक्रिया आई. जॉर्डन के विदेश मंत्रालय ने हिंसा के लिए इजरायली सेना को जिम्मेदार ठहराया है.

- हमले के कुछ देर बाद गाजा पट्टी से इजरायल में 9 रॉकेट दागे गए. इजराइली आर्मी के मुताबिक उन्होंने 5 रॉकेट को मार गिराया, जबकि बाकी खुले मैदान में गिरे. किसी भी ग्रुप ने अभी इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन माना जा रहा है कि अटैक हमास की तरफ से किया गया था. इजरायली सेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए गाजा में कई लड़ाकू विमानों से हमला किया. इसमें ट्रेनिंग कैंप्स को निशाना बनाया गया.

अल जज़ीरा की ख़बर के मुताबिक इजरायली पुलिस ने अल-अक्सा मस्जिद में फिलिस्तीनी पुरुषों के प्रवेश पर रोक लगा दी है. प्रत्यक्षदर्शियों ने अल जज़ीरा को बताया कि 40 साल से कम के फिलिस्तीनी पुरुषों को पुलिस अब मस्जिद में जाने नहीं दे रही.

जो इतिहास हमने अभी बताया, वो इसी तरफ इशारा करता है कि जब जब अल अक्सा में हिंसा हुई है, इज़रायल और फिलिस्तीनी गुटों के बीच लंबा हिंसक संघर्ष हुआ है. इसीलिए सभी को अनहोनी का डर है.

वीडियो: दुनियादारी: इजरायल-फिलिस्तीन झगड़े में अल-अक्सा मस्जिद पर हमले का सच क्या?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement