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देवीलाल ने वीपी सिंह को PM बनवाया, वारिस सीट तक नहीं बचा पा रहे, चौटाला परिवार का भविष्य क्या है?

Haryana Election Results 2024: चौधरी देवी लाल चौटाला. हरियाणा और देश की सियासत का एक बड़ा नाम. उनके परिवार का पिछले कई दशकों से हरियाणा की राजनीति में वर्चस्व रहा है. लेकिन इस बार के नतीजे उनके परिवार के लिए बहुत उत्साहजनक नहीं रहे हैं. उनके परिवार के नौ लोग चुनावी मैदान में थें. जिनमें दो ही जीत पाए हैं.

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दुष्यंत चौटाला (बाएं) और अभय चौटाला (दाएं) दोनों अपनी सीट हार गए हैं. ( इंडिया टुडे)
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आनंद कुमार
11 अक्तूबर 2024 (Published: 18:42 IST)
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1 दिसंबर, 1989. संसद का सेंट्रल हॉल. जनता दल की बैठक चल रही थी. मधु दंडवते संसदीय दल के नेता का चुनाव करवा रहे थे. जिसे आगे चल कर प्रधानमंत्री बनना था. बैठक में प्रधानमंत्री पद के दावेदार विश्वनाथ प्रताप सिंह ने देवी लाल के नाम का प्रस्तावित किया. प्रधानमंत्री पद के दूसरे दावेदार चंद्रशेखर ने फौरन इसका समर्थन कर दिया. दंडवते ने देवी लाल को संसदीय दल का नेता घोषित कर दिया. पूरा सेंट्रल हॉल भौचक्का कर देने वाले सन्नाटे में डूब गया. बाहर कोहराम मच गया. समाचार एजेंसियों ने समाचार फ्लैश किया. देवी लाल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के अगले सदर(प्रधानमंत्री) होंगे.

लेकिन ठीक चार मिनट बाद खेल पलट गया. समाचार एजेंसियों ने एक और मैसेज फ्लैश किया. 'किल, किल, किल, अर्लियर स्टोरी'.  

बैठक अपनी छह फीट की भारी भरकम काया लेकर देवी लाल खड़े हुए और बोले- ‘हरियाणा में जहां लोग मुझे ताऊ कह कर पुकारते हैं, मैं वहां ताऊ बन कर ही रहना चाहता हूं. मैं अपना नाम वापस लेता हूं. और माननीय वीपी सिंह का नाम तजवीज करता हूं. क्योंकि देश वीपी सिंह को चाहता है.’ 

देवी लाल प्रधानमंत्री भले न बन पाए हों लेकिन इस घटनाक्रम से उनके राजनीतिक कद का अंदाजा लगता है. देवी लाल 1989 से 1991 तक भारत के उप प्रधानमंत्री रहे. वे 1977-1979 और 1987-1989 की अवधि में हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे. देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं. उनके परिवार का हरियाणा की सियासत में खासा दखल रहा है. लंबे समय तक इनके परिवार ने राज्य की सियासत को दशा और दिशा तय किया है. लेकिन पिछले कुछ चुनावों से देवीलाल के कुनबे की सियासत ढलान की ओर जाती दिख रही है.  इस चुनाव में देवी लाल परिवार की तीन पीढ़ियों के 9 सदस्य अलग-अलग सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे थे. उनका हिसाब किताब आगे समझेंगे. पहले देवीलाल की विरासत कैसे ओमप्रकाश चौटाला को मिली. और फिर कैसे इनेलो की हरियाणा की सत्ता से विदाई हो गई, ये किस्सा जान लेते हैं. 

ओमप्रकाश चौटाला ने संभाली देवी लाल की विरासत

देवीलाल की 5 संतानों में चार बेटे ओमप्रकाश चौटाला, प्रताप चौटाला, रणजीत सिंह चौटाला और जगदीश चौटाला हुए. जब 1989 में देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने उस समय तक वे हरियाणा के सीएम थे. वो केंद्र की सत्ता में गए तो उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सियासी विरासत के लिए चुना. उस वक्त देवीलाल के तीसरे नंबर के बेटे रंजीत चौटाला देवी लाल का काम संभालते थे. लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच पकड़ की वजह से देवीलाल ने ओम प्रकाश चौटाला को कुर्सी सौंपी. कहा जाता है कि ओमप्रकाश चौटाला की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं शुरू से ही दिखने लगी थीं. इस कारण उनके और रणजीत सिंह के बीच सबकुछ सामान्य नहीं था.

बहुचर्चित महम कांड जिसके चलते चौटाला की कुर्सी गई

2 दिसंबर 1989 को ओमप्रकाश चौटाला सीएम बन गए. लेकिन उस वक्त वो हरियाणा विधानसभा में विधायक नहीं थे. देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने तो उनकी पारंपरिक सीट महम भी खाली हो गई. यहां उपचुनाव होने थे. महम की सीट देवीलाल और लोकदल का गढ़ मानी जाती थी. यहां से देवी लाल जीत की हैट्रिक बना चुके थे.

ऐसे में ओमप्रकाश चौटाला को महम से चुनाव लड़वाना सही समझा गया. 27 फरवारी 1990 में महम में उप-चुनाव हुए. इस उप-चुनाव में खूब गुंडागर्दी के आरोप लगे. बूथ कैप्चरिंग के साथ-साथ भयंकर मारपीट हुई. हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं की वजह से उपचुनाव कैंसिल हुआ. 21 मई को फिर से उपचुनाव की घोषणा हुई. लेकिन इससे पहले निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या हो गई. थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा के लेखक राम वर्मा ने लिखा कि उस वक्त के सत्ता के गलियारे में चर्चा थी कि ओम प्रकाश चौटाला ने खुद ही अमीर सिंह को खड़ा किया था.

जब माहौल ज्यादा खराब होने लगा तो वीपी सिंह सरकार पर जांच कराने का दबाव बढ़ा. ओमप्रकाश चौटाला से इस्तीफा ले लिया गया. उसके बाद 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया. महम सीट पर 1991 में तीसरी बार उपचुनाव हुए. ये उप-चुनाव महम कांड के नाम से जाना जाता है.

15 महीनों के भीतर तीन बार सीएम बने ओमप्रकाश चौटाला

इस घटना के कुछ दिन बाद ओम प्रकाश चौटाला दड़बा सीट से उपचुनाव जीत गए. बनारसी दास को 51 दिन बाद ही पद से हटाकर चौटाला दोबारा सीएम बनें. लेकिन वीपी सिंह को ये रास नहीं आया. क्योंकि महम कांड का शोर अब तक थमा नहीं था. मजबूरन 5 दिन बाद ही चौटाला को फिर से पद छोड़ना पड़ा. 7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह की सरकार गिर गई. और चंद्रशेखर कांग्रेस की मदद से पीएम बने. चंद्रशेखर ने भी देवी लाल को डिप्टी पीएम बनाया. मार्च 1991 में देवी लाल ने एक बार फिर से ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनवा दिया. इस फैसले से कई विधायक नाराज हो गए. नतीजन 15 दिनों में ही सरकार गिर गई. 15 महीनों के भीतर तीसरी बार ओमप्रकाश चौटाला के हाथों से सीएम की कुर्सी फिसल गई.

1999 में सत्ता में वापस लौटे ओमप्रकाश चौटाला 

इसके बाद 1999 तक ओमप्रकाश चौटाला सत्ता से दूर रहें. इस बीच 1996 में उनके पिता देवी लाल ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) बनाया. 1999 में ओमप्रकाश चौटाला के पास एक बार फिर से राज्य की सत्ता पर काबिज होने का अवसर आया. क्योंकि सीएम बंसी लाल की सरकार से बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया. और कांग्रेस से उनकी बात बन नहीं पाई. बंसी लाल की सरकार गिरते ही ओमप्रकाश चौटाला एक्टिव हुए. और बंसीलाल के पार्टी के कुछ विधायकों को तोड़कर सरकार बना ली. 24 जुलाई को चौटाला चौथी बार सीएम बनें. साल 2000 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए. चौटाला ने भाजपा के साथ गठबंधन किया. उन्होंने चुनाव में मुफ्त बिजली और कर्ज माफी का वादा किया. इसके बूते अकेले ही इनेलो सत्ता में आ गई. और ओमप्रकाश चौटाला पांचवी बार सीएम बनें.

कंडेला कांड जिसने हमेशा के लिए इनेलो की सत्ता से विदाई करा दी

साल 2000 में मुफ्त बिजली का वादा कर चौटाला की सत्ता में वापसी हुई. लेकिन यह वादा उनके गले की फांस बन गया. दरअसल उन्होंने सत्ता संभालने के बाद गांव-गांव बिजली भी पहुंचाई. लेकिन नया मीटर लगने से बिजली बिल अचानक बढ़ गया. बिजली बिल बढ़ने से किसान ठगा महसूस करने लगे. उन्होंने यह कहते हुए बिजली बिल भरने से इनकार कर दिया कि सरकार ने मुफ्त बिजली का वादा किया था. इधर सरकार ने कई गांवों की बिजली काट दी. नतीजन किसान सड़कों पर आ गए. और सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट करने लगे. जींद हाइवे जाम कर दिया. उसी दौरान जींद के एक गांव कंडेला में किसानों की उग्र भीड़ पर पुलिस ने गोलियां चला दीं. इस गोलीबारी में 9 किसानों की मौत हो गई. कंडेला कांड की गूंज पूरे हरियाणा में सुनाई पड़ी. इसकी धमक तीन साल बाद हुए हरियाणा चुनाव में भी दिखी. चौटाला की पार्टी महज 9 सीटों पर सिमट गई. चौटाला दो सीटों से चुनाव लड़े थे. एक सीट पर हार गए. उनके 10 मंत्री चुनाव हारे. और तब से इनेलो वापस कभी राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर पाई.

टीचर घोटाला में जेल गए ओमप्रकाश चौटाला

1999-2000 में हरियाणा के 18 जिलों में टीचर भर्ती घोटाला सामने आया. यहां मनमाने तरीके से 3,206 जूनियर बेसिक ट्रेनिंग टीचरों की भर्ती हुई थी. उस समय के प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार ने इसे उजागर किया. उन्होंने घोटाले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. कोर्ट के आदेश पर 2003 में CBI ने घोटाले की जांच शुरु की. जांच आगे बढ़ी तो घोटाले की परतें खुलती चली गईं.

जनवरी 2004 में सीबीआई ने सीएम ओमप्रकाश चौटाला, उनके विधायक बेटे अजय चौटाला, सीएम के ओएसडी विद्याधर, सीएम के राजनीतिक सलाहकार शेर सिंह बड़शामी समेत 62 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया. जनवरी 2013 में दिल्ली में CBI की स्पेशल कोर्ट ने चौटाला और उनके बेटे अजय सिंह चौटाला को दस साल की सजा सुनाई. चौटाला इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए. लेकिन कोर्ट ने उनकी सजा बरकरार रखी.

अब दो खेमों में बंटा परिवार 

फिलहाल चौटाला परिवार दो खेमों में बंट चुका है. मौजूदा दौर में देवीलाल के कई नाती और पोते अलग-अलग दलों में एक्टिव हैं. ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला ने इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) से अलग होकर जननायक जनता पार्टी बना ली. जबकि इनेलो की कमान ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अभय चौटाला के हाथों में है. अजय चौटाला की विरासत उनके बेटे दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला संभाल रहे हैं. इनेलो और जेजेपी दोनों पार्टियां अपना वजूद बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं. 

2018 में हुआ था INLD में विभाजन

दि प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, INLD में पारिवारिक लड़ाई की शुरुआत 2016 में हो गई थी. पार्टी के कार्यकर्ता अभय सिंह चौटाला को पसंद नहीं करते थे. और उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही थी. जिसके चलते दुष्यंत को धीरे-धीरे पार्टी के पोस्टर्स से हटाया जाने लगा. दिग्विजय जो मंच का संचालन करते थे. उनको भी साइडलाइन किया जाने लगा. फाइनली साल 2018 के आखिर में अभय चौटाला ने दोनों भाइयों को INLD से बाहर कर दिया. इसके एक महीने के भीतर दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी का गठन कर लिया.

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क्रेडिट - इंडिया टुडे
देवी लाल के परिवार से कौन-कौन मैदान में था?

देश के पूर्व प्रधानमंत्री ताऊ देवी लाल के कुनबे के 9 सदस्य पांच अलग-अलग सीटों से इस बार के हरियाणा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे थे.  इन सीटों में डबवाली, उचाना कलां, ऐलनाबाद, रानिया और फतेहाबाद शामिल है. इनमें डबवाली और रानिया सीट पर परिवार के लोगों को सफलता मिली. इन दोनों सीटों पर परिवार के लोग ही आमने-सामने थे. दोनों विजेता कैंडिडेट INLD के टिकट पर चुनाव जीते.

डबवाली में आदित्य देवी लाल को मिली जीत

सिरसा जिले की डबवाली सीट पर देवी लाल के परिवार के तीन सदस्य आमने-सामने थे. कांग्रेस से अमित सिहाग, INLD से आदित्य देवी लाल और JJP से दिग्विजय चौटाला. इस सीट पर आदित्य देवीलाल को जीत मिली. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अमित सिहाग को मात दी. दुष्यंत चौटाला के भाई दिग्विजय चौटाला तीसरे स्थान पर रहें. आदित्य देवीलाल देवीलाल के चौथे बेटे जगदीश चंद्र के बेटे हैं. वहीं कांग्रेस उम्मीदवार अमित सिहाग देवी लाल के चचेरे भाई गणपत राम के पोते हैं.

रानियां सीट पर दादा - पोते की जंग

सिरसा जिले की एक और सीट है रानियां. यहां भी देवी लाल के कुनबे के दो लोग ताल ठोक रहे थे. देवी लाल के पड़पोते. INLD के सीनियर नेता अभय सिंह चौटाला के बेटे और ओमप्रकाश चौटाला के पोते अर्जुन चौटाला. इनके सामने थे देवी लाल के तीसरे बेटे रणजीत चौटाला. यानी दादा-पोते की लड़ाई. जिसमें जीत पोते अर्जुन चौटाला के हिस्से आई. इस सीट पर अर्जुन चौटाला को जीत मिली. उन्होंने कांग्रेस के सर्व मित्र को 4,191 वोटों से हराया. निर्दलीय ताल ठोक रहे रणजीत चौटाला तीसरे स्थान पर रहें. 2019 के विधानसभा चुनाव में रणजीत चौटाला ने निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर जीत दर्ज की थी. फिर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस्तीफा देकर बीजेपी में आए. चुनाव भी लड़ें. लेकिन हार गए. इस विधानसभा में रानियां सीट से टिकट की हसरत थी. बीजेपी ने निराश किया तो इस्तीफा दे दिया. और निर्दलीय मैदान में आ गए.

अभय चौटाला को ऐलनाबाद में मिली शिकस्त

देवी लाल के पोते और INLD के वरिष्ठ नेता अभय सिंह चौटाला भी अपनी सीट नहीं बचा सके. चार बार के विधायक अभय सिंह चौटाला को कांग्रेस के भरत सिंह बेनीवाल ने 15 हजार वोटों से हराया. इस सीट पर पिछले डेढ़ दशक से अभय सिंह चौटाला का दबदबा था. उन्होंने साल 2010 के विधानसभा उपचुनाव में यहां से जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2014 और 2019 में अपने जीत के सिलसिले को बरकरार रखा. इस सीट से उनके पिता और राज्य के मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला पहली बार विधायक बने थे.

दुष्यंत चौटाला की करारी शिकस्त 

उचानां कलां से देवी लाल के एक और पड़पोते मैदान में थे. दुष्यंत चौटाला. राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री. ओमप्रकाश चौटाला के बेटे अजय चौटाला के सुपुत्र. दुष्यंत ने 2018 में INLD से अलग पार्टी बनाई थी. जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) जिसे पिछले चुनाव में दस सीटें मिली थी. और पार्टी किंगमेकर बन कर उभरी थी. लेकिन इस बार जेजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई. खुद दुष्यंत चौटाला को करारी शिकस्त मिली. वे पांचवे स्थान पर रहे. इस सीट से बीजेपी के देवेंद्र अत्री ने कांग्रेस के बृजेन्द्र सिंह को सिर्फ 32 वोटों से हराया. इस सीट पर दुष्यंत चौटाला निर्दलीय उम्मीदवारों से भी पीछे रह गए. उन्हें सिर्फ 7950 वोट मिले.

फतेहाबाद और टोहाना सीट पर भी मिली हार 

फतेहाबाद सीट से INLD के टिकट पर सुनैना चौटाला चुनाव लड़ रही थीं. सुनैना देवीलाल के पोते रवि चौटाला की पत्नी हैं. रवि चौटाला देवी लाल के बटे प्रताप सिंह चौटाला के बेटे हैं. इस सीट पर कांग्रेस के बलवान सिंह दौलतपुरिया को जीत मिली. उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार दुड़ा राम को हराया. सुनैना चौटाला तीसरे स्थान पर रहीं.

टोहाना विधानसभा सीट से ओमप्रकाश चौटाला की बेटी अंजलि सिंह के बेटे कुणाल करण सिंह मैदान में थे. इस सीट पर कांग्रेस के परमवीर सिंह को जीत मिली. दूसरे नंबर पर बीजेपी के देवेंद्र सिंह बबली रहे. कुणाल करण सिंह इस सीट से तीसरे स्थान पर रहें.

जेजेपी और INLD की हालत पस्त 

देवी लाल परिवार की विरासत से निकली दोनों पार्टियों INLD और जेजेपी का प्रदर्शन इस चुनाव में कुछ खास नहीं रहा. दोनों पार्टियों के प्रमुख नेताओं दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला को अपने गढ़ में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. हरियाणा तक से जुड़े राहुल यादव बताते हैं, 

दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला की हार बहुत बड़ा सेटबैक है. लेकिन हम ये नहीं कह सकते कि इनके परिवार की सियासत खत्म हो गई. इनके परिवार के दो विधायक जीते हैं. हालांकि पिछली बार इनके परिवार से पांच विधायक थे. INLD का मतलब ही अभय सिंह चौटाला था. अभय सिंह अपना चुनाव हार गए. ये एक बड़ा झटका है परिवार के लिए. दूसरा बड़ा झटका है दुष्यंत चौटाला का जमानत जब्त होना. उनको ये तो पता था कि वो लड़ाई से बाहर हैं लेकिन इसका इल्म शायद ही होगा कि जमानत जब्त हो जाएगी.

बीजेपी का साथ जेजेपी को भारी पड़ा?

जेजेपी को 2019 के चुनाव में 10 सीटें मिली थी. दुष्यंत चौटाला साढ़े चार साल बीजेपी गठबंधन में मुख्यमंत्री रहे. फिर 2024 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने उनसे रास्ते अलग कर लिए. लोकसभा चुनाव में जेजेपी का खाता नहीं खुला. और अब एक बार फिर से विधानसभा चुनाव में जेजेपी शून्य सीट पर सिमट गई. 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी का वोट शेयर करीब 15 प्रतिशत था. जो इस बार घटकर सिर्फ 0.90 प्रतिशत रह गया. जेजेपी ने चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से गठबंधन किया था. लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ. जेजेपी की खराब प्रदर्शन के लिए बीजेपी के साथ उनके गठबंधन को जिम्मेदार बताया जा रहा है. इंडिया टुडे से जुड़ी प्रीति चौधरी बताती हैं, 

जेजेपी ने 2019 का विधानसभा चुनाव एंटी बीजेपी कैंपेन के साथ लड़ा था. और फिर जा कर बीजेपी के साथ मिल गए. आप देखें तो वहीं हाल जो कश्मीर में पीडीपी का हुआ है. हरियाणा में जेजेपी का हुआ. कह सकते हैं कि उससे भी बदतर हुआ. दुष्यंत चौटाला ने किसान आंदोलन के दौरान भी कुछ नहीं बोला. जबकि उनकी पार्टी का बेस जाट और किसान वोटर्स थे. दुष्यंत चौटाला के एक के बाद एक गलत फैसले के चलते उनके वोटर्स उनसे छिटकते चले गए.

INLD के प्रदर्शन में सुधार हुआ है

INLD को पिछले विधानसभा चुनाव में 1 सीट मिली थी. इस बार सीटों का आंकड़ा बढ़कर दो सीट हो गया.  INLD ने बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया था. INLD का वोट शेयर पिछली बार 2.44 प्रतिशत था. इस बार यह बढ़कर 4.15 प्रतिशत हो गया. यानी वोट शेयर में थोड़ी बढ़ोतरी जरूर हुई है. लेकिन सीटों के मामले में कोई खास सफलता नहीं मिली. हरियाणा तक से जुड़े राहुल यादव बताते हैं, 

INLD के अभय सिंह चौटाला भले हार गए. लेकिन उनके वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है. कई जगहों पर INLD ने अच्छी फाइट दी है. अभय सिंह की हार को जरा किनारे कर दें तो INLD के लिए बहुत खराब स्थिति नहीं रही है. 

अब आगे क्या ऑप्शन है?

हरियाणा विधानसभा का चुनाव इस बार बाइपोलर रहा. कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला था. बाकी पार्टियां लड़ाई से बाहर थीं. और जाट वोटर्स की पहली पसंद कांग्रेस और भूपेंद्र सिंह हुड्डा थे. इसलिए भी जाट वोटों की सियासत से जुड़ी जेजेपी और INLD को नुकसान उठाना पड़ा. हरियाणा तक से जुड़े राहुल यादव बताते हैं, 

 इन चुनावों के बाद हो सकता है कि जाट मतदाता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस से छिटकेंगे. और कांग्रेस अपने पॉलिटिक्स की लाइन भी चेंज कर सकती है. जो नुकसान हुआ उसको देखकर. तो फिर जाट वोटर्स विकल्प के तौर पर चौटाला परिवार को ही चुनेंगे. या तो INLD या JJP या फिर ये एक हो जाएंगे तो एक परिवार के पीछे जाएंगे. जाट पॉलिटिक्स आगे किस दिशा में जाएगी इस पर चौटाला परिवार का भविष्य निर्भर करेगा. 

अब आगे हरियाणा में जेजेपी और INLD की सियासत का भविष्य क्या है इस सवाल पर इंडिया टुडे से जुड़ीं प्रीति चौधरी ने बताया, 

मुझे लगता है कि अब INLD और जेजेपी के लिए सरवाइवल की बात हो गई है. INLD ने तो लगभग 4 प्रतिशत के आसपास वोट हासिल किया. लेकिन जेजेपी का वोट शेयर चंद्रशेखर की पार्टी के साथ गठबंधन के बावजूद 1 प्रतिशत से भी नीचे चला गया. कोई और ऑप्शन नहीं बचा है अभी. अब जेजेपी और INLD को एक साथ आना पड़ेगा. जेजेपी का सरवाइवल अब INLD के साथ ही हैं. अब अकेले जेजेपी के लिए सरवाइव कर पाना मुश्किल है. जेजेपी को INLD में फिर से मर्ज हो जाना होगा.

राजनीति के लिए एक बड़ी मशहूर कहावत है किसी भी जिंदा राजनेता का मर्सिया पढ़े जाने से बचना चाहिए, जब तक वह एक्टिव है. ऐसा ही कुछ राजनीतिक पार्टियोेें के लिए भी कहा जा सकता है. चौटाला परिवार का वंश वृक्ष लगभग हरियाणा की सभी पार्टियों में फैला हुआ है. उनकी सियासत के खात्मे की भविष्यवाणी अभी जल्दीबाजी हो सकती. लेकिन एक बात तो तय है कि उनके परिवार की राजनीतिक धमक फिलहाल तो कहीं नहीं नज़र आ रही. और देवी लाल की विरासत से निकली दोनों पार्टियों के पास अस्तित्व बचाने का संकट खड़ा हुआ है. 

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