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जब 43 साल पहले मच्छू नदी में आई थी तबाही, नरेंद्र मोदी ने चलाया था राहत कार्य, लोग पहचानने लगे थे

मच्छू नदी पर बना दो मील लंबा बांध टूट गया था. कई अनुमानों के मुताबिक, इस त्रासदी में 25 हजार लोगों तक की जान गई थी.

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Machchhu river dam break in 1979
बारिश के चलते 1979 में तबाह हुआ मच्छू नदी पर बना बांध. (फोटो: ट्विटर)
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धीरज मिश्रा
31 अक्तूबर 2022 (Updated: 31 अक्तूबर 2022, 01:00 IST)
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गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बने एक केबल पुल टूटने (Morbi Cable Bridge) की भयावह घटना ने साल 1979 की बुरी यादों को ताजा कर दिया है. करीब 43 साल पहले 11 अगस्त 1979 को गुजरात में लगातार मूसलाधार बारिश होने के चलते मच्छू नदी पर बना 2 मील लंबा बांध टूट गया था. इसके बाद जो हुआ, वो इतिहास की भयावह घटनाओं में से एक था. इसके चलते रातों-रात हजारों की संख्या में लोग मौत के मुंह में समा गए थे.

बांध के टूटने के चलते, इससे निकला पानी खौफनाक बाढ़ में तब्दील हो गया, जिसने मोरबी के औद्योगिक शहर को पूरी तरह तबाह कर दिया था और इसके आस-पास के गांवों को बर्बाद कर दिया था. वैसे तो इस अभूतपूर्व त्रासदी में मारे गए लोगों का सही आंकड़ा कभी इकट्ठा नहीं किया जा सका. हालांकि, न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक विभिन्न स्रोतों द्वारा 1800 से लेकर 25,000 मौतें होने का दावा किया गया है.

इस त्रासदी की भयावहता के चलते इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इसे 'बांध टूटने की सबसे बुरी घटना' करार दिया है. साल 2011 में इस मामले को लेकर प्रकाशित किताब 'No One Had a Tongue to Speak: The Untold Story of One of History's Deadliest Floods' में कहा गया है, 

'वैसे तो इस त्रासदी में मौतों का कोई स्पष्ट आंकड़ा सामने नहीं आ सकता. हालांकि ये अनुमान है कि इस बाढ़ में 25,000 लोगों तक की जान चली गई.'

इस घटना के कई साल बाद 1980 के दशक के अंत में मच्छू बांध को फिर से बनाया गया था.

मच्छू नदी राजकोट जिले में जसदन सरदार और मांडवा की पहाड़ी श्रृंखला और सुरेंद्रनगर जिले के चोटिला से निकलती है और मालिया, मोरबी, वांकानेर, जसदाम और राजकोट तालुकों से होकर गुजरती है.

मोदी की बड़ी भूमिका!

साल 1979 की इस त्रासदी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी संबंध है. वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अजय सिंह ने अपनी किताब 'The Architect of the New BJP: How Narendra Modi Transformed the Party' में बताया है कि उस समय नरेंद्र मोदी ने बतौर RSS स्वयंसेवक पीड़ितों के राहत कार्य में योगदान दिया था.

सिंह ने लिखा है, 

'नरेंद्र दामोदरदास मोदी नामक एक युवा प्रचारक की अगुवाई में RSS स्वयंसेवकों द्वारा किया गया राहत कार्य काफी प्रभावी रहा था. जब बांध टूटा था, तो मोदी उस समय RSS के नानाजी देशमुख के साथ चेन्नई में थे. वो वहां से तुरंत लौटकर गुजरात आए और राहत कार्यों की अगुवाई की.'

किताब के मुताबिक इस एक घटना और इसमें आरएसएस द्वारा त्वरित कार्रवाई के चलते संघ को राज्य में अपना विस्तार करने में काफी मदद मिली थी. उस समय संघ की राजनीतिक इकाई भारतीय जन संघ जनता पार्टी में मिलने के बाद अपनी पहचान खो चुकी थी.

वीडियो: मोरबी पुल हादसे से दो घंटे पहले क्या हो रहा था?

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