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गाज़ा अस्पताल हमले पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में क्या-क्या लिखा गया? किसे ज़िम्मेदार बताया?

गाज़ा स्थित एक हॉस्पिटल पर 17 अक्टूबर को हुआ हमला इस युद्ध में अबतक का सबसे जानलेवा हमला था. एक झटके में सैकड़ों लोग मारे गए. अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस हमले को लेकर क्या कुछ लिखा जा रहा है?

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फिलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि गाजा अस्पताल हमले में 500 लोग मारे गए हैं. (फोटो: AP)
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मानस राज
19 अक्तूबर 2023 (Updated: 19 अक्तूबर 2023, 10:36 IST)
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हमास के लड़ाकों और इज़रायल के बीच छिड़ी जंग (Israel-Hamas War) हर दिन भयानक होती जा रही है. 17 अक्टूबर को गाज़ा स्थित एक हॉस्पिटल पर हुआ हमला इस युद्ध में अबतक का सबसे जानलेवा हमला बताया जा रहा है. एक झटके में सैकड़ों लोग मारे गए. इसे लेकर देश-दुनिया के नेताओं ने प्रतिक्रिया दी. मृतकों को सहानुभूति और हमलावरों पर कार्रवाई की बात कही. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस हमले को लेकर क्या कुछ लिखा जा रहा है? मीडिया संस्थानों के संपादकीय इसे कैसे देख रहे हैं? 

किसी का गुनाहगार इज़रायल, किसी का ईरान

वेसम अहमद फ़िलिस्तीन के एक NGO अल-हक़ में मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. उन्होंने अल-जज़ीरा में एक लेख लिखा है. लेख का शीर्षक है 'The mask is off: Gaza has exposed the hypocrisy of international law'. यानी 'नकाब उतर गया है: गाज़ा ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पाखंड को उजागर कर दिया है'. वेसम अहमद अपने लेख में लिखते हैं, 

वैश्विक व्यवस्था की कथित नींव माने जाने वाले 'अंतर्राष्ट्रीय कानूनों' का मुखौटा उतर गया है. गाज़ा से उठ रही मदद की पुकार का कोई जवाब नहीं है. ये एक डरावनी सच्चाई है, जो अब सामने आ चुकी है. पहली नज़र में ये कानून एक महान धारणा की तरह जान पड़ते हैं. ऐसा लगता है कि इससे राष्ट्रों के बीच शांति रहेगी, दुनिया भर में लोग मानवाधिकारों को अहमियत देंगे, देशों के बीच सहयोग और न्याय को बढ़ावा मिलेगा. हालांकि, परत-दर-परत खरोंचने पर एक अलग ही कहानी सामने आती है, जो अतीत के साम्राज्यवाद के भूतों से उपजी है.

वहीं, इज़रायली अख़बार जेरुसलम पोस्ट के वरिष्ठ संवाददाता और विश्लेषक सेथ जे फ्रंट्जमैन ने लिखा - How Iran used Gaza hospital strike to spread anti-Israel, US propaganda. माने ईरान ने गाज़ा में हुए हमलों के ज़रिए इज़रायल और अमेरिका के विरुद्ध प्रॉपगैंडा फैलाया. वो लिखते हैं, 

ईरान ने अस्पताल पर हुए हमले के बाद ईरानी मीडिया को वहां भेजा और वो इसका इस्तेमाल करके अमेरिका-इज़रायल के लिए ख़तरे बढ़ाने के लिए कर रहा है. ईरान ने इज़रायल के लिए कुछ तीखे शब्दों का भी इस्तेमाल किया है. इज़रायल को 'शैतान' और 'ज़ायोनिस्ट चाइल्ड किलिंग' देश कहा है. गाज़ा अस्पताल ब्लास्ट को ईरान ने 'असली होलोकॉस्ट' कहा है.

होलोकॉस्ट शब्द दूसरे विश्वयुद्ध में हिटलर द्वारा किए गए यहूदियों के सामूहिक नरसंहार के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

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इज़रायल के एक दूसरे प्रमुख अख़बार टाइम्स ऑफ़ इज़रायल में डेविड होरोविट्ज़ ने 'Haters won’t be swayed, but Hamas lies about Gaza hospital blast are being exposed' शीर्षक से कॉलम लिखा है. डेविड लिखते हैं कि अगर ये हमला इज़रायल ने नहीं किया, तो इज़रायली सरकार के पब्लिक डिप्लोमेसी निदेशालय को चुप नहीं रहना चाहिए था. न प्रधानमंत्री नेतन्याहू को और न ही किसी भी सक्षम नेता को 30 सेकंड का समय मिला, कि वो अंग्रेजी में एक बयान रिकॉर्ड कर सकें. दुनिया को आश्वासन दे सकें कि इज़रायल अस्पतालों पर बमबारी नहीं करता और वो पता भी लगाएंगे कि असल में क्या हुआ था. 

इज़रायली अख़बार हारेट्ज़ में छपे संपादकीय में इज़रायल के भीतर के हालात पर रौशनी डाली गई है. उनवान है, Israel's McCarthyite Persecution of Its Own Citizens Has Begun. यानी इज़राइल का अपने ही नागरिकों परमैक्कार्थी उत्पीड़न’ शुरू हो गया है. मैककार्थीवाद असल में शीत युद्ध के दौरान शुरू हुआ एक पॉलिटिकल कैम्पेन था. 1940 से 1950 के वक़्त अमेरिका में वामपंथियों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिए उनका दमन किया जाता था. हारेट्ज़ इसी अंतरकलह की बात करता है:  

इस वक़्त में व्यक्तिगत अधिकारों, सबसे पहले और सबसे ज़्यादा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को जोख़िम है. ऐसे इमरजेंसी ऑर्डर्स की आड़ में स्टेट प्रॉसीक्यूटर अमित ऐसमैन ने पिछले हफ्ते की भयावहता की प्रशंसा या समर्थन व्यक्त करने वाले किसी भी व्यक्ति की जांच करने, हिरासत में लेने और मुकदमा चलाने के लिए समर्थन दिया है. चाहे उसने बस एक बार ही ऐसा क्यों न किया हो.

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अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स में फराह स्टॉकमन ने कॉलम लिखा है - 'Invading Gaza is Now a Mistake'. अर्थात् गाज़ा पर अब हमला करना एक भूल होगी. फराह लिखती हैं कि ये इज़रायल का अधिकार है - और जिम्मेदारी भी - कि वो अपने नागरिकों की रक्षा करे. अपने बंधकों को बचाएं और न्याय करें. इस घटना पर इज़रायल का दुख और गुस्सा दोनों समझ में आता है. इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी कहा है कि शक्तिशाली प्रतिरोध की चाहत, ठोस रणनीतिक सोच का विकल्प नहीं है.

न्यू यॉर्क टाइम्स में ही जेरुसलम के एक इज़रायली पत्रकार गेरशोम गोरेन्बेर्ग ने भी लिखा है. उन्होंने अपने कॉलम में इज़रायली PM नेतन्याहू की आलोचना की है. गोरेन्बेर्ग ने साफ़ लिखा - Netanyahu Led Us To Catastrophe, He must Go. माने 'नेतन्याहू हमें विनाश तक लेकर आएं हैं. उन्हें चले जाना चाहिए'. गोरेन्बेर्ग लिखते हैं- 

वो मंज़र बार-बार मेरे दिमाग में कौंधता रहता है. मैं उस रात उठा, तो सायरन की आवाज़ें आ रहीं थीं. खबरें टूटी-फूटी आती हैं जो किसी के दिमाग में नहीं बैठतीं. हमास छोटे बच्चों को बंधक बना रहा है और परिवारों को नरसंहार कर रहा है. और हमारी सेना, जिसपर हम भरोसा करते थे, अस्त-व्यस्त हो गयी. गाज़ा बॉर्डर पर नियंत्रण हासिल करने के लिए उन्हें तीन दिन लग गए. ये कैसे हो सकता है? ये कैसे हो गया? सामने से जवाब आता है – सब उस ख़ूनी हमास का किया-धरा है. वो न हमारी बस्तियों को मानते हैं, न हमारे अस्तित्व को.

ये सच है.. मगर नाकाफ़ी है. एक इज़रायली के लिए असली सवाल है: ऐसा होने किसने दिया? हमें इस बात का जवाब तलब करना चाहिए कि किसकी वजह से ये आपदा हुई? प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनकी सरकार के भ्रम की वजह से.

ब्रिटिश अखबार द गार्डियन में जॉर्ज मॉनबॉयट लिखते हैं, 

"पिछले 4000 सालों से जंग को लेकर सरकारों का रुख यही रहा है कि जंग लड़ी भी जाएगी, लेकिन नियमों के हिसाब से. अपने हमले के दौरान हमास ने युद्ध के अनेक नियम तोड़े. हमास के रॉकेट्स ने मिलिट्री और आम लोगों में कोई फ़र्क़ नहीं किया. जेनेवा कनवेंशन के प्रोटोकॉल 2, आर्टिकल 13 का उल्लंघन किया. हमास ने हत्या, प्रताड़ना और बलात्कार कर आर्टिकल 3 का भी उल्लंघन किया. इस अटैक के जवाब में इज़रायल ने भी कई नियम तोड़े. उन्होंने पूरे गाज़ा को इसकी सज़ा दी."

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मिडिल ईस्ट आई में फ़िलिस्तीन के पत्रकार और ऐक्टिविस्ट अहमद अबु आरतेमा ने दुनिया से गुहार लगाई: 'Israel is massacring us. Palestinians need people around the world to take a Stand' इज़रायल हमारा नरसंहार कर रहा है, फ़िलिस्तीनियों को दुनिया भर की मदद की ज़रूरत है. अहमद लिखते हैं,

 ये नरसंहार इज़राइल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट की घोषणा का नतीजा है, जो उन्होंने शुरू में कहा था. कि फ़िलिस्तीनी "मानव जानवर" हैं – मतलब उनकी हत्या उचित है.

फिलहाल, जानकारी है कि गाज़ा में मानवीय सहायता भेजने के लिए मिस्र से लगे राफा बॉर्डर को खोला जाने वाला है. गाज़ा के लोग इस समय पानी, बिजली और ईंधन की कमी से जूझ रहे हैं.

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