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फिल्म रिव्यू- भूत: द हॉन्टेड शिप

डराने की कोशिश करने वाली औसत कॉमेडी फिल्म.

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फिल्म 'भूत' के एक सीन में विकी कौशल. इस फिल्म को भानु प्रताप सिंह ने डायरेक्ट किया है.
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श्वेतांक
20 फ़रवरी 2020 (Updated: 21 फ़रवरी 2020, 07:26 IST)
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ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे

इस मंत्रोच्चार से हमने अपनी बात इसलिए शुरू क्योंकि हम हिंदी सिनेमा से भूत भगाना चाहते हैं. यही तो एकमात्र तरीका है भूत भगाने का. हमारी पिक्चरों ने हमें यही सिखाया है. लेकिन हमारा सवाल ये है कि जब संभलता नहीं, तो हॉरर फिल्म बनाने की ज़रूरत क्या है? नहीं-नहीं हम फ्रस्ट्रेट बिलकुल नहीं हैं. बस निराश हैं. क्यों? क्योंकि हमने विकी कौशल स्टारर 'भूत- द हॉन्टेड शिप' देख डाली है. ये हॉरर फिल्म कितनी कारगर है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि इस फिल्म को देखने के दौरान सबसे ज़्यादा डरावना सिनेमा हॉल में पसरा अंधेरा लगता है.
फिल्म 'भूत' के पोस्टर में विकी कौशल. इंट्रेस्टिंग बात ये कि ऐसा कोई सीन फिल्म में है ही नहीं.
फिल्म 'भूत' के पोस्टर में विकी कौशल. इंट्रेस्टिंग बात ये कि ऐसा कोई सीन फिल्म में है ही नहीं.


खैर, फिल्म की बिचिंग से बचकर हम शॉर्ट में उसकी कहानी जान लेते हैं. एक लड़का है पृथ्वी. पेशे से शिपिंग ऑफिसर है. लेकिन बेचारा बड़ी पर्सनल ट्रैजेडी से गुज़र रहा है. उसे कुछ ऐसी भी चीज़ें दिखने लगती हैं, जो दरअसल हैं ही नहीं. मतलब हैलुसिनेट करने लगता है. इसी दौरान मुंबई के जूहू बीच पर एक शिप आकर रुकती है, जिसमें एक भी इंसान नहीं है. पृथ्वी उसकी जांच-पड़ताल करने जाता है. वहां भी उसे कुछ अजीबोगरीब चीज़ें दिखाई और सुनाई देती हैं. लेकिन वो किसी को बता नहीं सकता क्योंकि उसके हैलुसिनेशन का इलाज चल रहा है. एक बार वो शिप पर अपने साथी ऑफिसर और बेस्ट फ्रेंड रियाज़ को लेकर जाता है. वहां दोनों कुछ ऐसा देखते हैं, जिस पर विश्वास करना मुश्किल है. यानी भूत. अब वो भूत कौन है? वो भूत बना कैसे? और वो जाएगा कैसे? इसी बारे में है 'भूत- द हॉन्टेड शिप'. इसमें ढेर सारी बैकस्टोरीज़ हैं, जिन पर यकीन करना उतना ही मुश्किल है, जितना पृथ्वी और रियाज़ का उस प्रणीनुमा दिखने वाले भूत पर.
Bhoot Min
शिप का सर्वे करता ऑफिसर पृथ्वी. पृथ्वी मुंबई में रहता है लेकिन फैमिली के नाम पर सिर्फ उसका बेस्ट फ्रेंड है.


फिल्म में विकी कौशल ने पृथ्वी नाम के शिपिंग ऑफिसर का रोल किया है. एक्चुअली वो फिल्म रूपी चांद के लिए भी पृथ्वी सरीखे ही हैं. क्योंकि फिल्म उन्हीं के चारों ओर चक्कर मारती रहती है. वो आदमी पूरी फिल्म में कंसिस्टेंटली अच्छा काम करता है. लेकिन उनका कैरेक्टर पूरी फिल्म में एक ही ज़ोन में रहता है, जिसमें ज़ाहिर तौर पर उनकी कोई गलती नहीं है. फिल्म में भूमि पेडणेकर का कैमियो है. इन दोनों के अलावा आशुतोष राणा भी फिल्म का हिस्सा हैं. वो प्रोफेसर बने हैं. लेकिन उनका रोल फिल्म में भूमि के कैमियो से भी छोटा है. तिस पर वो जिस सीन में दिखते हैं, उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया.
फिल्म के एक सीन में भूमि पेडणेकर. स्पॉयलर: ये भूतनी नहीं हैं.
फिल्म के एक सीन में भूमि पेडणेकर. स्पॉयलर: ये भूतनी नहीं हैं.


'भूत- हॉन्टेड शिप' को डेब्यूटेंट डायरेक्टर भानु प्रताप सिंह ने डायरेक्ट किया है. पैसे लगाए हैं करण जौहर ने. लेकिन समझ नहीं आता कि करण को इस फिल्म में ऐसा क्या अलग दिख गया, जो फिल्म देखने वालों की नज़र से बच जा रहा है. ये फिल्म देखना मेरे लिए बहुत सरप्राइज़िंग अनुभव रहा. थिएटर में हॉरर फिल्म चल रही है और लोग हंस रहे हैं. किसी औसत कॉमेडी फिल्म जैसे. मैं मेंटली तैयार होकर थिएटर पहुंचा कि आज तो बहुत डरना है. वहां जाकर मैं अपने दिमाग से भिड़ा पड़ा हूं कि मुझे डर क्यों नहीं लग रहा. आम तौर पर हॉरर फिल्में देखकर वॉशरूम में पीछे मुड़ने में भी डर लगता है. फिल्म के ट्रेलर ने धमकाया था कि बहुत डर लगने वाला है. देखते वक्त मैं बार-बार फिल्म से कह रहा था-
इसमें तो कोई कैप्शन मत ढूंढ ब्रो! ऊपर रेफरेंस दिया न?
इसमें तो कोई कैप्शन मत ढूंढ ब्रो! 


फिल्म देखकर बाहर आते वक्त एक साथी ने पूछा फिल्म में सबसे अच्छा क्या लगा. मेरे मुंह से अनायास ही ये फूट पड़ा कि 'ये खत्म हो गई'. अब उस बात पर आते हैं कि हमें ऐसा लगा क्यों? ये फिल्म एक डरावने से सीन से शुरू होती है. आगे चलकर उसमें साइकोलॉजी का तड़का लगता हुआ महसूस होता है. उम्मीद जगती है कि चलो दिमाग का कुछ एक्सरसाइज़ हो जाएगा. लेकिन नहीं. फिल्म गोली की रफ्तार से निकलती है लेकिन इसे पचाने के लिए भी गोली की ही ज़रूरत महसूस हो रही है. फिल्म में एकमात्र चीज़ शानदार लगती है, वो है फिल्म का कैमरावर्क. वो फिल्म की सुंदरता बढ़ाता और कई जगह डर वाले कोशंट को भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है. बैकग्राउंड म्यूज़िक के नाम पर फिल्म सिर्फ चुटकी बजाती रहती है. और ये बात मैं लिटरली कह रहा हूं.
इस भूत को यहां देखकर भले डर लगे, फिल्म देखते वक्त बिलकुल नहीं लगता. विज़ुअल्स से डर नहीं लगता साहब बैकग्राउंड म्यूज़िक से लगता है.
इस भूत को यहां देखकर भले डर लगे, फिल्म देखते वक्त बिलकुल नहीं लगता. विज़ुअल्स से डर नहीं लगता साहब बैकग्राउंड म्यूज़िक से लगता है.


फाइनली वो बात, जहां से हमने शुरू किया था. इतिहास गवाह रहा है कि हमारे यहां बनी हॉरर फिल्मों में भूत भगाने का एकमात्र तरीका है भगवान की शरण में चले जाना. अलग-अलग फिल्मों में भगवान वैरी करते रहते हैं. कहीं क्रिश्चन क्रॉस का इस्तेमाल होता है, तो कहीं भभूत का. यहां इस्तेमाल होते हैं मंत्र. ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे और शिव तांडव. और ये सब कर रहे हैं, आशुतोष राणा. फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद
मैंने सिर्फ ये दुआ की थी कि इस फिल्म में भूत को भगाने के लिए दुआ का इस्तेमाल न किया गया हो. लेकिन जिससे डरते थे, वही बात हो गई. मुझे लगता है कि 'भूत- द हॉन्टेड शिप' को थिएटर्स में सिर्फ भूत ही देखेंगे. क्योंकि उन्हें शांत और अकेले में रहना अच्छा लगता है.


 

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