"आज बाजू वाले मोहल्ले में काम करते वक़्त, घर के मालिक अचानक बगल में आ कर खड़े होकर देखते रहे. उनका देखना ज़रा भी अच्छा नहीं लगा. क्या करती? दूसरी ओर देख कर कामकरने लगी तो जरा पास आ कर देख कर चले गए. सच पूछो तो एकदम डर गयी मैं. किसी भी तरहजल्दी जल्दी काम कर के दूसरे घर चली गयी." "ऑफिस पहुंचते ही मेरे डेस्क पर झुककर सर ने कहा कि मैं उनका ख़्याल नहीं रख रही.अगर ऐसा ही चलता रहा तो नौकरी के आस में बैठे लोगों की कमी नहीं है. वे मुझे निकालदेंगे.""जब ज़मींदार साहब से आज की कमाई लेने गयी, पैसे थमाते वक़्त उन्होंने मेरा हाथ बड़ेजोर से पकड़ लिया. मैंने हाथ झटक दिया तो कहने लगे, रोज़ के 60 रुपये फ़ोकट का नहींमिलता तुम्हें. संभल कर रहो वरना वो कुछ भी कर सकते हैं."ऊपर जो कुछ आपने पढ़ा वो सब सेक्सुअल हरासमेंट ऐट वर्क प्लेस यानी काम की जगह परहोने वाले यौन शोषण के दायरे में आता है. आज हम इसी पर बात करेंगे.आप जहां पर भी काम करते हैं. चाहे वो कोई दफ्तर हो, स्कूल हो, अस्पताल हो,कंस्ट्रक्शन साइट हो, कोई मंडी हो. अगर उस जगह पर कोई व्यक्ति आपका यौन शोषण करताहै, आपको गलत तरीके से छूता है, गलत बातें करता है, आपकी सहमति के बिना आपको अश्लीलमैसेज या तस्वीरें भेजता है तो ये हरकतें हैरेसमेंट ऐट वर्कप्लेस के दायरे मेंआएंगी.सांकेतिक तस्वीर (इंडिया टुडे)थोड़ा और डिटेल में समझते हैं. यौन शोषण कई तरीकों से होता है-# फिजिकलः छूना, दबोचना, जबरदस्ती हाथ या शरीर का कोई हिस्सा पकड़ लेना, चिमटीकाटना, गलत तरीके से थपथपाना.# वर्बल- ऐसी बातें कहना जिनका इशारा यौन संबंधों की तरफ हो, असहज करने वाले शब्दोंका इस्तेमाल. सेक्शुअल जोक्स मारना, पर्सनल कमेंट्स.# नॉन वर्बल: गलत इशारे करना. किसिंग के इशारे, आंख मारना.# विज़ुअल- कुछ ऐसा दिखाना जिससे सामने वाला असहज महसूस करे.# सेक्शुअल फेवर मांगना, किसी और काम के बदले.कौन सुनता है इस तरह की शिकायत?काम की जगह पर होने वाले यौन शोषण को रोकने के लिए साल 2013 में एक कानून बना.सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ वुमन एट वर्कप्लेस एक्ट, 2013. ये कानून हर उस दफ्तर मेंलागू होता है जहां दस या उससे ज्यादा लोग काम करते हैं. कानून के तहत ऐसे हर ऑफिसमें एक इंटरनल कम्प्लेन्ट्स कमेटी (ICC) होती है, जिसकी प्रेसिडेंट एक महिला हीहोती है.नियम के मुताबिक, इस कमिटी में जितने लोग होंगे उनमें औरतों का 50 प्रतिशत होनाज़रूरी है. साथ ही इसमें एक मेम्बर ऐसी भी होनी चाहिए जो सेक्शुअल हरैस्मेंट केकेसेज़ पर काम करने वाली किसी NGO की भी मेम्बर हो.कोई भी महिला एम्प्लॉयी यौन शोषण की शिकायत इस कमिटी के सामने कर सकती है. इस कमिटीके किसी भी फैसले को ऑफिस में काम करने वाले सभी लोगों को मानना ही होता है.क्यों ज़रूरत पड़ी इस तरह के कानून की?राजस्थान में जयपुर के पास भतेरी गांव में रहने वाली एक सोशल वर्कर थीं. वे महिलाविकास कार्यक्रम के तहत काम करती थीं. 1992 में एक चाइल्ड मैरिज को रोकने की कोशिशके दौरान गांव के अगड़ी जाति के कुछ लोगों से उनकी बहस हुई. वो लोग उसके काम सेनाखुश थे क्योंकि वो उनके रिवाजों पर सवाल उठा रही थीं. इसके बाद अगड़ी जाति के हीकुछ लोगों ने उनका गैंग रेप कर दिया. महिला ने इन लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखाईलेकिन सेशन कोर्ट ने सारे आरोपियों को बरी कर दिया क्योंकि गांव पंचायत से लेकरपुलिस, डॉक्टर सभी ने भंवरी देवी की बात मानने से इनकार कर दिया.इसके बाद कई महिला संगठनों और NGO ने मिलकर साल 1997 में 'विशाखा' नाम से सुप्रीमकोर्ट में एक पेटीशन फ़ाइल की. जिसे 'विशाखा एंड अदर्स बनाम गोवरंमेंट ऑफ़ राजस्थानएंड यूनियन टेरिटरी ऑफ़ इंडिया' कहा गया. इस पेटीशन में पीड़िता के लिए न्याय औरवर्कप्लेस में औरतों के साथ हो रहे हैरेसमेंट के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग कीगई. और फाइनली, 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने वर्कप्लेस पर किये जाने वाले हैरेसमेंटके खिलाफ कुछ निर्देश जारी किए और इन्हीं को 'विशाखा गाइडलाइन्स' कहा गया.इसके बाद साल 2013 में विशाखा गाइडलाइंस की जगह आया प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हरासमेंटऐट वर्कप्लेस एक्ट (POSH) आया. इसमें कार्यक्षेत्र के दायरे को बढ़ाया गया. जैस अगरकोई महिला काम के सिलसिले में किसी होटल में रुकी है या टूर पर है, ट्रैवल कर रहीहै तो होटल या फिर उसका मोड ऑफ ट्रांसपोर्ट को भी वर्क प्लेस माना जाएगा.पर अभी हम इस पर बात क्यों कर रहे हैं?दरअसल कुछ वक्त पहले एक फैसला आया था. केस था साहित्य अकादमी बनाम GNCTD एंड अदर्सका. दरअसल, साहित्य अकादमी में काम कर रही एक महिला ने अकादमी के सेक्रेटरी के ऊपरहैरेसमेंट के आरोप लगाए थे. महिला ने नस्लभेदी कमेंट्स के आरोप भी लगाए. इसे लेकरमहिला ने ICC में शिकायत दर्ज की. सुनवाई के दौरान महिला ने ये भी बताया कि ICC नेउन पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया था. ICC ने आरोपी के खिलाफ कोई एक्शन नहींलिया. महिला ने स्थानीय कमिटी में इस मामले की शिकायत की. स्थानीय कमिटी ने मामलेकी जांच की और आरोपी को तीन महीने की पेड लीव पर भेजा गया. हालांकि, महिला केप्रोबेशन पीरियड में होने और मेरिट नहीं होने का हवाला देते हुए उन्हें अकादमी सेनिकाल दिया गया.Delhi High Court reinstates woman editor who was fired after accusing employerof sexual harassmentreport by @prashantjha996Read story: https://t.co/1C5g609Tmlpic.twitter.com/Lvwf77vnBk— Bar & Bench (@barandbench) October 26, 2021इसके बाद महिला पहुंची दिल्ली हाईकोर्ट. उनकी तरफ से केस लड़ रहे थे वकील रितिनराय. वहीं साहित्य अकादमी का केस लड़ रही थीं गीता लूथरा, जिन्होंने #MeToo मामलेमें एमजे अकबर का केस लड़ा था. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना कि महिलाहरासमेंट का शिकार हुई है. साथ ही हाईकोर्ट ने अकादमी को ऑर्डर दिया कि उन महिला कोजल्द से जल्द अकादमी में वापस लिया जाए, बिना सैलरी काटे.वॉट एल्स?रीसर्च के दौरान मैंने कई सारे केसेज़ पढ़े. एक केस विदेश का दिखा. एक बहुत हीरिनाउंड फिज़िसिस्ट, लेक्चरर और राइटर हैं लॉरेंस क्रॉस. 2018 में उनके ख़िलाफ़ कईसारी शिकायतें आयीं. ग्रोपिंग से ले कर भद्दे कमेंट्स और साथ काम कर रही महिलाओं सेसेक्शुअल फ़ेवर मांगने तक. दो तीन यूनिवर्सिटी से बैन हो जाने के बाद भी, उन्होंनेये स्टेटमेंट दिया के वो अपने पब्लिक लाइफ को उतने ही शान से जीयेंगे जितना के जीतेआये थे और उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.ऐसा लगता है मानो उन सारी औरतों की आवाज़ हवा में कहीं गूंज तो ज़रूर रही है, लेकिनउसे सुनने वाला कोई नहीं है. समझने की कोशिश कर रही हूं कि जब एक पढ़ी लिखी नौकरीपेशा औरत अपने साथ हुए हैरेसमेंट की बात किसी पब्लिक स्पेस में ले कर आती है, उसेयकीन करना जब लोगों के लिए इतना मुश्किल होता है, फिर कभी सोचा है उन औरतों के बारेमें, जिनकी पहुंच कानून तक तो क्या, स्कूल तक भी नहीं है.हमारे संविधान पर ये आरोप लगता रहा है की भारतीय संविधान केवल दो तरह की औरतों केलिए है. एक वो जो पढ़ी लिखी हैं, दूसरी घरेलू महिलाएं. जिनके ऊपर कम से कम छत है. उनमहिलाओं का क्या जिनका कोई ठौर नहीं, जिनकी कोई सुनवाई नहीं.