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चंद्रबाबू नायडू और एमके स्टालिन ज्यादा बच्चे पैदा करने को क्यों कह रहे? क्या ये खतरा दूसरों राज्यों को भी है?

दक्षिण भारत के साथ-साथ उत्तर भारत के Total Fertility Rate में भी लगातार गिरावट आई है. हालांकि, दक्षिण भारतीय राज्यों में ये शुरू से ही कम रहा है.

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Chandrababu Naidu and MK Stalin
चंद्रबाबू नायडू और एमके स्टालिन. (फाइल फोटो: PTI)
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रवि सुमन
22 अक्तूबर 2024 (Updated: 22 अक्तूबर 2024, 17:00 IST)
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पिछले कुछ दिनों में दक्षिण भारत के दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जनसंख्या बढ़ाने की बात की है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) और तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन (MK Stalin) का ये बयान केंद्र की जनसंख्या नियंत्रण नीति से बिल्कुल उलट है. भारत ऐसे भी दुनिया के अधिकतम जनसंख्या वाले देशों में से एक है. ऐसे में, दक्षिण भारतीय राज्यों में जनसंख्या बढ़ाने की बात क्यों हो रही है?

चंद्रबाबू नायडू ने कहा है कि उनकी सरकार अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने वाले कानून बनाने पर विचार कर रही है. ऐसे में देश की दशकों पुरानी जनसंख्या नीति पर सवाल उठने लगे हैं. उन्होंने कहा कि बुजुर्गों की जनसंख्या में वृद्धि से इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ सकता है. जैसा कि जापान, चीन और यूरोप के कुछ हिस्सों में देखा जा रहा है कि वहां वृद्ध लोगों की संख्या युवा लोगों से अधिक है.

हालांकि, एमके स्टालिन ने इसे राजनीतिक रूप से परिभाषित किया. उन्होंने कहा कि उनके क्षेत्र की आबादी कम हो रही है जिसका असर लोकसभा सीटों पर भी पड़ेगा, इसलिए क्यों ना लोग 16-16 बच्चे पैदा करें. उन्होंने जनसंख्या वृद्धि दर कम होने के कारण संसदीय सीटों में दक्षिण भारत की हिस्सेदारी में संभावित कमी की आशंका जताई.

ये भी पढ़ें: जनसंख्या नियंत्रण पर बोले सीएम योगी, 'एक ही वर्ग की आबादी बढ़ने से अराजकता जन्म लेती है'

किसी देश या राज्य में प्रति महिला औसतन कितने बच्चों का जन्म हो रहा है? इसका अंदाजा हमें कुल प्रजनन दर (TFR- Total Fertility Rate) से लगता है. TFR से जुड़े डेटा के आधार पर दक्षिण भारत और कुछ उत्तर भारत के राज्यों के TFR पर गौर करेंगे. लेकिन उससे पहले देश के TFR को देखते हैं. साल 1981 से लेकर अब तक लगातार राष्ट्रीय प्रजनन दर में गिरावट दर्ज की गई है.

1981 में देश का TFR 4.5, 1991 में 3.6, 2001 में 2.5 और 2011 में 2.2 था. 2011 के बाद जनगणना हुई नहीं. तो आगे के आंकड़ें नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे (NFHS) से मिलता है. NFHS के अनुसार, साल 2019 से 2021 तक देश का कुल प्रजनन दर 2.0 रहा है.

National Fraternity Rate
राष्ट्रीय प्रजनन दर.

NFHS के डेटा के मुताबिक, दक्षिण भारत के साथ-साथ उत्तर भारत के TFR में भी लगातार गिरावट आई है. हालांकि, दक्षिण भारतीय राज्यों में ये शुरू से ही कम रहा है. मसलन, 1992-93, 2005-06 और 2019-21 का डेटा देखें तो, इन सालों में पांचों दक्षिण भारतीय राज्यों का TFR बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान से कम ही रहा है.

NFHS TFR
दक्षिण भारतीय राज्यों और उत्तर भारत के कुछ राज्यों का TFR.

हालांकि, कई राज्य ऐसे भी हैं जिनका TFR तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से भी कम है. इनमें असम (1.9), गुजरात (1.9), हरियाणा (1.9), ओडिशा (1.8), महाराष्ट्र (1.7), पश्चिम बंगाल (1.6) और सिक्किम (1.1) शामिल है.

TFR कितना होना चाहिए?

ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपेंट (OECD) के अनुसार, स्थिर जनसंख्या के लिए प्रति महिला 2.1 बच्चों के कुल प्रजनन दर की जरूरत होती है. इस संख्या को तय करते समय ये माना गया है कि देश में कोई प्रवास ना हुआ हो.

इस मानक के मुताबिक, देश के सिर्फ तीन राज्य ही ऐसे हैं जिनका TFR भविष्य में स्थिर जनसंख्या को सुनिश्चित करता है. इसमें बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड का नाम शामिल है.

ये भी पढ़ें: भारत ने चीन को जनसंख्या में पिछाड़ा, UN के दावे में कितने ज्यादा लोग हैं देश में?

अगर किसी देश की कुल प्रजनन दर प्रति महिला 2.1 बच्चों से कम है, तो भविष्य में जनसंख्या में कमी आ सकती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वो पीढ़ी मौजूदा जनसंख्या की तुलना में पर्याप्त बच्चे पैदा नहीं कर रही. इसके कई और नुकसान भी हैं. जैसे-जैसे आबादी बढ़ती है, देश में बुजुर्गों की संख्या युवाओं से ज्यादा हो जाती है. ऐसे में कामकाजी वर्ग की संख्या में गिरावट आती है. इससे देश की इकोनॉमी पर भी बुरा असर पड़ता है.

PM Modi के साथ हुई थी बैठक

जुलाई महीने में दिल्ली में नीति आयोग की 9वीं बैठक हुई थी. इसका नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इस मीटिंग में चंद्रबाबू नायडू ने इस मामले पर बात की थी. उन्होंने राज्यों की ओर से अपना डेमोग्राफिक मैनेजमेंट पॉलिसी बनाने की जरूरत बताई थी. इस बैठक के आधिकारिक प्रेस रिलीज के मुताबिक, PM ने अपने समापन भाषण में राज्यों को जनसंख्या के समाधान के लिए अपनी योजनाएं बनाने का सुझाव दिया.

14 दिनों के बाद नायडू सरकार ने पहले के कानून को रद्द कर दिया. इसके अनुसार, दो से ज्यादा बच्चे वाले लोग स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ सकते थे. कई अन्य राज्यों में भी इसी तरह से ‘दो बच्चों’ का मानदंड रखा गया है. स्थानीय निकाय चुनाव के साथ-साथ ऐसे राज्यों में दो से अधिक बच्चे वाले सरकारी नौकरियों के लिए अयोग्य होते हैं. इन राज्यों में असम, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और ओडिशा शामिल हैं.

वीडियो: भारत ने चीन को जनसंख्या में पिछाड़ा, अब देश में कितने लोग हैं?

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