The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • bilkis bano gangrape case supr...

बिलकिस के बलात्कारी ने अब ऐसा क्या बताया कि सुप्रीम कोर्ट को विश्वास ही नहीं हुआ!

गैंगरेप केस के 11 दोषियों की समय पूर्व रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुनवाई चल रही है.

Advertisement
Bilkis Bano supreme court
बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में 11 दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया था. (फाइल फोटो)
pic
साकेत आनंद
25 अगस्त 2023 (Updated: 25 अगस्त 2023, 13:04 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

बिलकिस बानो गैंगरेप केस में रिहा हुआ एक दोषी वकालत कर रहा है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताया है कि रेप का दोषी कैसे लॉ प्रैक्टिस कर सकता है. कोर्ट ने कहा कि वकालत को नेक पेशा माना जाता है. सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो गैंगरेप केस के 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुनवाई चल रही है. इन सभी दोषियों को गुजरात सरकार ने सजा की मियाद पूरी होने से पहले ही रिहा कर दिया था. 24 अगस्त को सुनवाई के दौरान बलात्कार के दोषी राधेश्याम शाह का मामला कोर्ट के सामने आया था.

समय से पहले रिहाई का बचाव करते हुए राधेश्याम शाह ने कोर्ट को बताया कि वो 15 साल की सजा काट चुका है और राज्य सरकार ने उसके "अच्छे व्यवहार" को देखते हुए उसे राहत दी. ये मामला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच के सामने था.

बलात्कारी के वकील ने क्या बताया?

समाचार एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, राधेश्याम के वकील ऋषि मल्होत्रा ने कोर्ट में बताया कि लगभग एक साल (रिहाई के बाद) का समय बीत चुका है, उनके खिलाफ एक भी केस नहीं है. वकील ने राधेश्याम के हवाले से बताया, 

"मैं मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्राइब्यूनल में एक वकील था. मैंने दोबारा वकालत शुरू कर दी है."

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा कि सजा के बाद क्या लॉ प्रैक्टिस करने का लाइसेंस दिया जा सकता है. कोर्ट ने बार काउंसिल का जिक्र करते हुए कहा, 

"वकालत को नेक पेशा माना जाता है. बार काउंसिल को बताना होगा कि क्या एक दोषी लॉ प्रैक्टिस कर सकता है. आप एक दोषी हैं, इसमें कोई शक नहीं है. आप जेल से बाहर हैं क्योंकि आपको छूट मिली है. सजा कम हो जाने पर भी दोषसिद्धि बनी रहती है."

इस पर राधेश्याम शाह के वकील ने कोर्ट को बताया कि उन्हें इसके बारे में पता नहीं है.

एडवोकेट्स एक्ट की धारा-24(A) कहती है कि अगर कोई व्यक्ति नैतिक भ्रष्टता से जुड़े अपराध में दोषी पाया जाता है तो वह वकालत नहीं कर सकता है. कानून में ये भी कहा गया है कि रिहा होने या सजा रद्द होने के दो साल बाद तक भी वो व्यक्ति वकालत के लिए अयोग्य ही माना जाएगा.

हालांकि वकील ऋषि मल्होत्रा ने बताया कि गुजरात सरकार ने गोधरा के जेल अधीक्षक और रिमिशन कमिटी से नो-ऑब्जेक्शन नोट मिलने के बाद शाह को रिहा किया था. वकील के मुताबिक, इसके अलावा गुजरात के गृह मंत्रालय और केंद्र सरकार ने भी समय से पूर्व रिहाई की मंजूरी दी थी.

केंद्र सरकार ने रिहाई की मंजूरी दी थी

पिछले साल गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया था कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद बलात्कार के इन दोषियों को छोड़ा गया. जबकि CBI और विशेष अदालत ने उनकी रिहाई का विरोध किया था. डॉक्यूमेंट्स बताते हैं कि अपराधियों को छोड़ने के लिए राज्य सरकार की अनुमति मांगने के दो हफ्ते के भीतर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 जुलाई 2022 को ये मंजूरी दे दी थी.

साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान दाहोद में इन 11 अपराधियों ने बिलकिस बानो का गैंगरेप किया था. ये घटना 3 मार्च 2002 की है. बिलकिस तब 5 महीने की गर्भवती थीं और गोद में 3 साल की एक बेटी भी थी. अपराधियों ने उनकी 3 साल की बेटी को पटक-पटककर मार डाला था. जनवरी 2008 में मुंबई की एक CBI अदालत ने गैंगरेप के आरोप में सभी 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा था. हालांकि गुजरात सरकार ने पुरानी रिमिशन पॉलिसी के तहत सभी दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया.

वीडियो: 'आज बिलकिस बानो तो कल कोई और...'सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को क्या सुना डाला?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement