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'जितनी आबादी, उतना हक' कहने वाले राहुल गांधी कर्नाटक की जाति जनगणना पर क्यों घिर गए?

कर्नाटक में विपक्ष के साथ-साथ कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी सरकार के सामने जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी करने की मांग उठा दी.

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karnataka caste census
कर्नाटक के नेताओं ने कांग्रेस सरकार पर बनाया दबाव (फोटो-PTI)
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साकेत आनंद
3 अक्तूबर 2023 (Published: 20:39 IST)
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कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पिछले कुछ समय से लगातार जातिगत जनगणना के आंकड़े को जारी करने की मांग रहे हैं. चाहे वो चुनावी रैली हो या कोई और जगह. कर्नाटक चुनाव के दौरान भी उन्होंने इस मांग को उठाते हुए "जितनी आबादी, उतना हक़" का नारा लगाया. बिहार में जाति सर्वे का आंकड़ा जारी होने के बाद भी अब उन्होंने ये मांग कर दी. अब दूसरे राजनीतिक दल कांग्रेस पर कर्नाटक के जाति सर्वे के आंकड़ों को प्रकाशित करने का दबाव बना रहे हैं. आठ साल पहले हुए इस सर्वे की रिपोर्ट अब तक जारी नहीं की गई है.

कांग्रेस नेताओं ने भी उठाए सवाल

कर्नाटक में विपक्ष के साथ-साथ कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी सरकार के सामने ये मांग उठा दी. कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने बिहार की जाति जनगणना पर रिपोर्ट को ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कन्नड़ा भाषा में X (पहले ट्विटर) पर लिखा, 

"हमारे नेता राहुल गांधी ने जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी नहीं करने को लेकर और पिछड़े वर्ग के साथ हो रहे अन्याय के लिए आवाज उठाई है. बिहार सरकार की तरह, कर्नाटक सरकार को जाति गणना की रिपोर्ट जारी करने की हिम्मत दिखानी चाहिए."

इसी तरह कर्नाटक के पूर्व सीएम और कांग्रेस के सीनियर नेता वीरप्पा मोइली ने भी कर्नाटक सरकार से जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी करने की मांग की.

वहीं बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने इसे कांग्रेस का 'दोहरापन' बताया. सूर्या ने मीडिया के सामने कर्नाटक सरकार की इस रिपोर्ट पर कहा कि हिपोक्रेसी कांग्रेस का दूसरा नाम है और देश के लोग ये आजादी के पहले से भी जानते हैं. उन्होंने कांग्रेस से कहा कि वे जो कहते हैं उसे पूरा करें.

दरअसल, बिहार की जाति जनगणना के आंकड़े जारी होने के बाद राहुल गांधी ने लिखा था, 

"बिहार की जातिगत जनगणना से पता चला है कि वहां OBC + SC + ST 84% हैं. केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ़ 3 OBC हैं, जो भारत का मात्र 5% बजट संभालते हैं! इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है. जितनी आबादी, उतना हक़ - ये हमारा प्रण है."

इससे पहले भी वे कई मौकों पर ये मांग दोहरा चुके हैं. हाल में, 30 सितंबर को मध्य प्रदेश में एक चुनावी रैली के दौरान भी उन्होंने कह दिया था कि केंद्र की सत्ता में आने के बाद सबसे पहला काम जाति जनगणना के आंकड़े को जारी करेंगे. इसलिए अब कांग्रेस के साथ दूसरे  दलों के नेताओं ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया.

कर्नाटक की जातिगत जनगणना

साल 2014 में कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी. तब मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ही थे. कांग्रेस सरकार ने राज्य में जाति जनगणना के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एच कांताराज की अध्यक्षता में कमिटी बनाई. इसे 'सोशियो-इकनॉमिक एंड एजुकेशनल सर्वे' नाम दिया गया था. साल 2016 में आयोग ने रिपोर्ट तैयार कर दी. लेकिन आज तक रिपोर्ट जारी नहीं हो पाई. इस जाति जनगणना के लिए करीब 160 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, उस सर्वे में करीब 1 करोड़ 35 लाख परिवारों को कवर किया गया था. 55 सवाल पूछे गए थे. इनमें उनकी जाति के अलावा आरक्षण की स्थिति, सरकार से मिलने वाले लाभ और दूसरी सामाजिक और आर्थिक स्थिति से जुडे़ सवाल थे. खुद सिद्दारमैया की सरकार में इस रिपोर्ट को जारी करने को लेकर विरोध हो रहे थे. इसलिए 2015 से 2018 के बीच रिपोर्ट जारी नहीं हो पाई. सिद्दारमैया ने बाद में जेडीएस-कांग्रेस की सरकार के दौरान भी रिपोर्ट जारी करने का वादा किया, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.

बाद में इस रिपोर्ट से कुछ डेटा लीक भी हो गए. पता चला कि राज्य में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय की जितनी आबादी बताई जाती है, उससे कम है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, लीक हुए आंकड़ों के अनुसार लिंगायतों की आबादी 14 फीसदी और वोक्कालिगा समुदाय की आबादी 11 फीसदी है. जबकि दोनों समुदाय इससे कहीं अधिक आबादी 19 और 16 परसेंट होने का दावा करते हैं. इस गणना के खिलाफ दोनों समुदाय के लोग हाई कोर्ट भी पहुंच गए. दलील दी कि राज्य सरकार को जाति सर्वे कराने का अधिकार नहीं है. वहीं, कुछ OBC कार्यकर्ताओं ने कोर्ट से सरकार को निर्देश देने को कहा कि वो रिपोर्ट जारी करे. मामला कोर्ट में पेंडिंग है.

2023 के विधानसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस ने वादा किया था कि जाति सर्वे की रिपोर्ट जारी की जाएगी और उसके आधार पर कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया जाएगा. चुनाव के बाद सीएम सिद्दारमैया ने फिर बताया कि उनकी सरकार इस रिपोर्ट को स्वीकार करेगी. और आंकड़ों के आधार पर सही फैसले लेगी.

सिद्दारमैया के जून में किये गए इस वादे के बाद चार महीने बीत चुके हैं. लेकिन इसको लेकर कोई एक्शन नहीं लिया गया है. लेकिन बिहार में आंकड़े जारी होने के बाद अब कर्नाटक में भी सुगबुगाहट फिर से तेज हो गई है.

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