भोपाल गैस त्रासदी में क्या हवन ने बचा ली थी कुशवाहा परिवार की जान?
35 साल बाद भी इस दर्द से निजात नहीं पा सका भोपाल.
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पूरा भोपाल नींद की आगोश में था. मगर इनमें से हज़ारों को सुबह नसीब न हो सकी. उस मनहूस रात वो ऐसा सोए कि आंख ही नहीं खुली. सोते वक्त ही मौत ने उनको अपनी आगोश में ले लिया. सूरज निकला भी मगर चारों तरफ सिर्फ धुंध ही धुंध थी. और उसके साथ था मौत का कोहराम. एक ऐसा कोहराम जो भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल बाद भी पूरी तरह थमा नहीं है. भोपाल गैस हादसे की 35वीं बरसी पर एक बार फिर भोपाल के जख्म हरे हो गए. हादसे के बारे में जानने के साथ-साथ भोपाल के कुशवाहा परिवार के बारे में भी जानना चाहिए, जो एक हवन करके गैस हादसे से बच गया था.
भोपाल गैस त्रासदी. फाइल फोटो. इंडिया टुडे.
कैसे बचा कुशवाहा परिवार? हादसे पर भोपाल में एक किस्सा मशहूर है. गैस लीक की वजह से जिस वक्त शहर में चारों तरफ मौतों से कोहराम मचा था. ठीक उसी वक्त एक कुशवाहा परिवार ने इससे बचने के लिए ‘अग्निहोत्र यज्ञ’ का सहारा लिया. पेशे से टीचर एसएल कुशवाहा के घर में रोज़ाना ये यज्ञ होता था. उस दिन जैसे ही गैस के गुबार ने शहर को अपनी चपेट में लिया, हर किसी को सांस लेने में तकलीफ होने लगी. बच्चों और बुजुर्गों की हालत बिगड़ने लगी. कुशवाहा परिवार ने घर में हवन शुरू कर दिया. कहते हैं कोई 20 मिनट के भीतर एसएल कुशवाहा के घर से ‘मिथाइल आइसो साइनाइड गैस’ का असर कम होने लगा. कुछ ही देर में कुशवाहा और उनकी पत्नी की सांस संबंधी दिक्कत दूर हो गई. एक तरफ जहां हज़ारों लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे थे, वहीं कुशवाहा परिवार ने हवन करके अपनी जान बचा ली.
क्या ये सच है? अग्निहोत्र यज्ञ वैदिक काल से भारत की परंपरा रहा है. माना जाता है यज्ञ की समिधा में जो पदार्थ डाले जाते हैं, आग के साथ जलने से उसका जो धुआं फैलता है, उससे वातावरण शुद्ध होता है. इस केस में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से रिसी गैस के असर को शायद हवन के धुएं ने अपने प्रभाव से कम कर दिया. वैसे, इस तरह का कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है. मगर उसके बाद पूरे भोपाल में अग्निहोत्र यज्ञ का चलन निकल पड़ा था. अग्निहोत्र जैसे यज्ञ भारत के कई घरों और मंदिरों में रोज होते हैं.
भोपाल गैस पीड़ित.
क्या हुआ उस रात? साल 1984 की 2-3 दिसंबर की रात ये घटना हुई. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री. जिसे अब डाउ केमिकल्स कहते हैं. उसके प्लांट नंबर सी से गैस रिसने लगी. प्लांट ठंडा करने के लिए मिथाइल आइसो साइनाइड को पानी के साथ मिलाया जाता था. उस रात इसके कांबीनेशन में गड़बड़ी हो गई. इसका असर ये हुआ कि प्लांट के 610 नंबर टैंक में प्रेशर बढ़ गया. और उससे गैस लीक हो गई. देखते-देखते हालात बेकाबू हो गए. जहरीली गैस हवा के साथ मिलकर आस-पास के इलाकों में फैल गई. और फिर वो हो गया, जो भोपाल शहर का काला इतिहास बन गया. हजारों लोगों की जान चली गई. पीढ़ियां बर्बाद हो गईं.
क्या है मिथाइल आइसो साइनाइड गैस?
मिथाइल आइसो साइनाइड गैस की वजह से ये हादसा कितना बड़ा था उसका अंदाजा इस गैस की तीव्रता से लगा सकते हैं. अगर ये गैस 21 पीपीएम यानी पार्टस पर मिलियन की दर से हवा में मिले तो एक मिनट में हज़ारों लोगों की जान जा सकती है. और भोपाल में तो करीब 40 टन मिथाइल आइसो साइनाइड गैस लीक हुई थी. इससे हवा में गैस की मौजूदगी और उससे होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है. मिथाइल आइसो साइनाइड से भोपाल के इस प्लांट में कीटनाशक बनता था.
हजारों जानें गईं
गैस लीक होने से प्लांट के आस-पास के इलाके में एक चादर सी फैल गई. लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगी. देखते-देखते 15000 से ज्यादा लोगों की जान चली गई. सरकारी रिकार्ड के मुताबिक हादसे में करीब 3,787 लोग मारे गए थे. इन आंकड़ों को लेकर हमेशा मतभेद रहा है. हादसे में करीब साढ़े पांच लाख सीधे तौर पर प्रभावित हुए थे. उस वक्त भोपाल की आबादी ही साढ़े आठ लाख के आस-पास थी. इससे आप समझ सकते हैं कि असर कितना ज्यादा था.
अस्पताल भर गए
फैक्ट्री के आस-पास गांव थे. इनमें और कारखाने के पास मजदूर वर्ग के लोग ज्यादा रहते थे. कहते हैं रात के वक्त फैक्ट्री का अलार्म काम नहीं किया. इससे और ज्यादा लोगों की जान गई. फैक्ट्री का अलार्म भोर के वक्त बजा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. शहर के अस्पताल मरीजों से भर गए. लोगों का वक्त पर इलाज तक नहीं हो सका. शहर में ज्यादा अस्पताल भी नहीं थे. लोगों को आंख- कान के साथ सांस फूलने और स्किन में जलन आदि की प्राब्लम थी. भोपाल के डॉक्टरों ने इस तरह की समस्या का कभी सामना नहीं किया था. इस वजह से हालात और बिगड़ते चले गए. शहर में दो ही सरकारी अस्पताल थे. पहले दो दिन इन्हीं दोनों अस्पतालों में करीब 50,000 मरीज भर्ती हुए.
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