दी लल्लनटॉप आपके लिए लेकर आया है पॉलिटिकल किस्सों की ख़ास सीरीज़- मुख्यमंत्री. इसकड़ी में बात राजस्थान के उस नेता की, जिन्हें प्रदेश के लोग बाबोसा कहते थे. जिसनेसिनेमाघर में मारपीट के चलते पुलिस की नौकरी गंवा दी. जो नौकरी गंवाने के बाद गांवमें खेती करने लगा. जिसके बड़े भाई को चुनाव लड़ने का ऑफर आया और बड़े भाई ने छोटेभाई को टिकट दिला दिया. जो चुनाव लड़ने के लिए बीवी से 10 रुपये का नोट लेकर घर सेनिकल गया और जीत गया. 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनने की बारी आई तो ये नेताराजस्थान का मुख्यमंत्री बन गया. नाम था भैरो सिंह शेखावत.अंक 1 : 18 जून, 1977 जयपुरआपातकाल के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी और कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई थी.दिग्गज समाजवादी नेता मधु लिमये शहर में थे. क्योंकि चुनाव थे. दो बड़े चुनाव होचुके थे. पहला लोकसभा का. जिसमें इंदिरा हारीं. विपक्षी पार्टियों का नया संयुक्तपरिवार अर्थात जनता पार्टी जीती. और मोरार जी देसाई पीएम बने. फिर देसाई के एक कदमके चलते दूसरे चुनाव हुए. मोरार जी ने कहा, कांग्रेस की राज्य सरकारें भी शासन कानैतिक अधिकार खो चुकी हैं. नौ राज्यों में इसके चलते जून 1977 में मध्यावधि चुनावहुए. सबमें कांग्रेस खेत रही. राजस्थान समेत ज्यादातर राज्यों में जनता पार्टीजीती. अब बारी आई तीसरे चुनाव की. विधायक दल के नेता का चुनाव. राजस्थान में कुलविधायकी सीटें थीं, 200. इसमें जनता पार्टी के विधायक थे 152 और इन्हें ही चुनना थाअपना नेता. जो होता सूबे का सीएम. इसके लिए दावेदार थे दो. पर पार्टी में धड़े थेतीन. पहले तीन धड़ों के सिरों से मिलिए.मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने के बाद कई राज्यों में कांग्रेस सरकारेंबर्खास्त कर दी गई थीं.1 सीकर के भैरो सिंह शेखावत. जनता पार्टी के जनसंघ गुट के नेता. सीएम के दावेदार.2 भरतपुर के मास्टर आदित्येंद्र. जनता पार्टी के कांग्रेस ओ (संगठन) धड़े के नेता.ये भी सीएम के दावेदार.अब दावेदार थे, तो जरा इनके बारे में भी जान लीजिए. आजादी के आंदोलन में कई बार जेलगए थे मास्टर जी. 1953-54 में कंग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे. फिर इंदिरा औरसिंडीकेट के झगड़े में ये बुजुर्ग बुर्जुगों के साथ गया. यानी कांग्रेस ओ का नेताहो गया. मास्टर का सीएम दावा तीन पहलुओं से मजबूत था. पहला, वह जनता पार्टी विधायकदल के सबसे बुजुर्ग, सबसे अनुभवी विधायक थे. दूसरा, भैरो सिंह तो राज्यसभा सांसदथे. विधायकी लड़े ही नहीं थे. फिर वह कैसे नेता हो सकते थे. तीसरा, जनसंघधड़ा, अपने दम पर बहुमत नहीं जुटा सकता था. और इसी तीसरे बिंदु पर तीसरे धड़े कीएंट्री होती है.मधु लिमये का आशीर्वाद मिला और भैरो सिंह राजस्थान के नए मुख्यमंत्री बन गए.चुरु के सांसद महोदय, दौलत राम सारण. लोकदल ( चौधऱी चरण सिंह वाला गुट) धड़े केनेता. सारण ने बड़े चौधरी से सलाह की और मास्टर को न कह दी. मगर मास्टर आदित्येंद्रचुनाव पर अड़े रहे. हुई फिर वोटिंग. गिने गए 152 वोट. मास्टर को मिले सिर्फ 42.बाकी 110 बाबोसा के पाले में. मधु लिमय नतीजों के बाद भी नहीं मुस्कुरा रहे थे.उन्हें नहीं पता था कि मास्टर अपनी हार को कैसे लेंगे. उधर दिल्ली में बैठेप्रधानमंत्री, गृह मंत्री समेत सरकार और चंद्रशेखर समेत जनता पार्टी जयपुर पर नजरेंगड़ाए थी. तभी मधु की नजर भैरो की तरफ जाती है. जो अपनी जीत के ऐलान के बादसमर्थकों को छोड़ मास्टर की तरफ लपके. और फिर उनके पैर छू लिए. मास्टर ने भी हाथउठा दिया. संकट टल गया. मधु मुस्कुराए. दिल्ली भी. शेखावत शातिर थे. जानते थेमास्टर बाहर रहे तो ज्यादा दिक करेंगे. सो उन्हें अपनी सरकार में वित्त मंत्री बनादिया. कहने को बड़ा पद, मगर राजनीतिक रूप से सिर्फ धप्पा.भैरो सिंह शेखावत राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए. मास्टर को अपना वित्त मंत्रीबनाया.अब आप एक सवाल पूछ सकते हैं. बड़े चौधरी ने बाबोसा के पक्ष में वोटिंग के लिए क्योंकहा. दरअसल विधानसभा चुनाव के दौरान जनता दल के लोकदल धड़े और जनसंघ धड़े के बीचगुप्त समझौता हो गया था. इसके हिसाब से चुनाव जीतने की स्थिति में उत्तरप्रदेश, बिहार और हरियाणा में जनसंघ धड़ा लोकदल धड़े के मुख्यमंत्री उम्मीदवार कासमर्थन करेगा. बदले में राजस्थान, मध्यप्रदेश और हिमाचल में लोकदल धड़ा जनसंघ धड़े कामुख्यमंत्री चुनने में मदद करेगा. और ऐसा ही हुआ भी. यूपी में रामनरेश यादव, बिहारमें कर्पूरी ठाकुर, हरियाणा में चौधरी देवीलाल सीएम बने. वहीं जनसंघ कोटे से हिमाचलमें शांता कुमार, मध्य प्रदेश में कैलाश जोशी और राजस्थान में भैरो सिंह का नंबरलगा.भैरो सिंह शेखावत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. और हर बार ऐसी परिस्थितिमें बने कि उनकी पार्टी बहुमत से दूर रही, लेकिन उनका पॉलिटिकल मैनेजमेंट कारगरसाबित हुआ.ये भैरो सिंह की शीर्ष पर शुरुआत थी. मुख्यमंत्री वह तीन बार बने. तीनों बार उनकीअपनी पार्टी या गुट बहुमत से कम था. मगर तीनों ही बार उनका पॉलिटिकल मैनेजमेंटलासानी सिद्ध हुआ. मगर शुरुआत ऐसी नहीं थी. हालात का मिसमैनजमेंट और गुस्से कामिसकैलकुलेशन भैरो सिंह को अड़ंगी मार चुका था. पर ये 77 से तीस बरस पीछे लौटने परपता चल पाता.अंक 2 पुरोहित की नाराजगी और नौकरी से इस्तीफ़ा "आप पुलिस की नौकरी मेंथे, पॉलिटिक्स में क्यों आ गए? कहते हैं कि कोई इंक्वायरी थी जिसकी वजह से आपकोपुलिस की नौकरी छोड़नी पड़ी." ये सवाल था. राजीव शुक्ल का. उस समय टीवी पत्रकार.सामने बैठे थे राजस्थान के तीसरी बार सीएम बनकर अपनी आधी पारी खुल चुके भैरो सिंह.जिक्र था भैरो सिंह के पुलिस की नौकरी से इस्तीफे का. उस समय के हिसाब से 50 सालपुरानी बात इस पर पहले भैरो सिंह का जवाब सुनिए. यह बात पूरी तरह से झूठ है. मेरेखिलाफ कोई इंक्वायरी नहीं थी. सिर्फ परिवार के हालात ऐसे थे कि नौकरी छोड़कर खेती कीतरफ मुड़ना पड़ा. और अब हमारी सुनिए. जो सुनाई भैरो सिंह के बेहद खास आदमी ने. लेकिनपहचान उजागह न करने की शर्त पर.सियासत में आने से पहले भैरो सिंह शेखावत पुलिस में थे.बात 1947 की है. भारत आजाद हो चुका था, मगर सब रियासतें अभी यूनियन का हिस्सा नहींबनी थीं. सीकर रियासत का भी ऐसा ही हाल था. यहां अब भी रावराजा कल्याण सिंह का राजचला करता था. शहर में एक हरदयाल टॉकीज थी. इसके मालिक थे रियासत के पुरोहित जी. एकरोज सीकर पुलिस के चार-पांच अफसर यहां सिनेमा देखने पहुंचे. इनमें अहम चारथे, भवानी सिंह खुड़ी, फतेह सिंह शेखावत, बलवंतदान कविया और भैरो सिंह शेखावत.अफसरों का सिनेमा हॉल के मैनेजर से झगड़ा हो गया. एक पुलिस वाले ने मैनेजर को झापड़रसीद कर दिया. शिकायत पुरोहित के मार्फत रावराजा कल्याण सिंह तक पहुंची.रावराजा कल्याण सिंह के सिनेमा हाल में झगड़े के बाद भैरो सिंह शेखावत को पुलिस कीनौकरी से इस्तीफा देना पड़ा था.उस दौर में रावराजा के बाद रियासत के पुरोहित प्रोटोकॉल के हिसाब से दूसरे सबसे बड़ेअधिकारी हुआ करते थे. इसलिए जब उनकी शिकायत आई तो रावराजा ने सीकर एसपी जय सिंह कोतलब कर लिया. फिर एसपी ने इन पांचों को तलब किया. अब विकल्प थे दो. या तो नौकरीछोड़ो, वर्ना दफा 323 का मुकदमा भुगतो. भैरो सिंह समेत पांचों ने इस्तीफा लिख दिया.बाकी चार की अपनी कहानी. हम आगे बढ़ते हैं भैरो की चली डगर पर. जहां 10 रुपये केधनबल से शुरू की नेतागीरी और विधायकी हमारा इंतजार कर रही है.अंक 3 पहला चुनाव, पहली जीतपुलिस की नौकरी छूटी तो भैरो सिंह खेती करने लगे. घर में दस और भाई-बहन थे. इसमेंसे एक थे बिशन सिंह. छोटे भ्राता. जो सीकर में पढ़ाई पूरी कर रहे थे. कल्याण हाईस्कूल से. यहीं बिशन संघ से जुड़े. फिर 1951 में स्कूल टीचर हो गए. तभी एक रोज एकपुराना परिचित उनके घर आया. उसका नाम था- लाल कृष्ण आडवाणी.आडवाणी (बाएं) ने भैरो सिंह के भाई बिशन सिंह को चुनाव लड़ने को कहा. बिशन सिंह नेमना कर दिया और फिर जीत के साथ सियासत में एंट्री हुई भैरो सिंह शेखावत की.कराची के आडवाणी बंटवारे के बाद राजस्थान में जनसंघ का काम देख रहे थे. बतौरसहमंत्री तब वह जयपुर के चौड़ा रास्ता वाले दफ्तर में रहते थे. पचास का दशक शुरूहोने पर काम बहुत बढ़ गया. 1952 में पूरे देश में चुनाव होने थे. राजस्थान मेंजनसंघ खुद को मजबूत पा रहा था. क्योंकि जागीरदार यहां कांग्रेस का विरोध कर रहे थे.मगर विरोध और समर्थन के बीच कैंडिडेट भी तलाशने थे. और सीकर के लिए यही तलाश लालजीको बिशन की देहरी पर ले गई थी. जनसंघ उन्हें सीकर जिले की दाता-रामगढ़ सीट ले लड़ानाचाहता था. पर बिशन सिंह नहीं माने. बोले. मेरी नई नई नौकरी है. मेरे भाई को लड़ादो. अपने गांव खाचरियावास में खेत में अड़ी जमाए भाई भैरो सिंह को खबर कर दी गई.भैरो सिंह पत्नी से 10 रुपये का नोट लेकर निकले और चुनाव जीतकर लौटे.अब वह सीकर जाने को थे. मगर सौदा करने नहीं जा रहे थे. चुनाव लड़ना था. पर खलीतेमें तो कुछ नहीं था. पहुंचे पत्नी सूरज कंवर के पास. भैरो को पता था. लुगाई गाढ़ेबखत के लिए जोड़कर रखती थी कुछ. सूरज कुंवर ने भैरो को निराश नहीं किया. एक मुड़ातुड़ा दस का नोट पकड़ा दिया. और जनता ने उन्हें अपना वोट पकड़ा दिया. मगर तब आज कीतरह एक ही दिन सब वोट नहीं गिर जाते थे. आजाद भारत का पहला चुनाव था. इसमें हर दिनमतदान पार्टी नए गांवों में जाती और लोगों को बताती. ऐसे वोट डालो. वोट एक महीने तकपड़ते. जाहिर है चुनाव के साथ साथ प्रचार भी चलता रहता. भैरो सिंह को उन दिनोंपार्टी की तरफ से किराए की एक स्टेशन वैगन मिली थी. मगर वैगन चलाने के लिए सड़केंभी चाहिए, जो ज्यादातर जगह नहीं थी. ऐसे में शेखावत का ज्यादातर प्रचार ऊंट परबैठकर हुआ.फिर ऊंट के एक करवट बैठने का वक्त आया. दाता रामगढ़ में त्रिकोणीय मुकाबला था.नतीजा आया तो तीसरे पर रहे कृषिकार लोक परिषद के रघुनाथ, मिले 5,334 वोट. दूसरे पररहे कांग्रेस के विद्याधर, मिले 7,139 वोट. और विधायक बने जनसंघ के भैरो सिंह.उन्हें मिले 9,9972 वोट. हारे तो बैक टु बैक हारे, बैरी के घर जाकर हारे1952 में पहली विधानसभा में चुने जाने के बाद भैरो सिंह शेखावत की जीत का सिलसिलाअगले तीन चुनावों में बदस्तूर जारी रहा. इस दौरान खास बात यह रही कि वो हर चुनावमें अपनी सीट बदल लेते थे. 1957 में वो सीकर की श्रीमाधवपुर सीट से चुनकरआए. 1962 और 1967 में उन्हें जयपुर की किशनपोल सीट से विधायक चुना गया.1972 में वहजयपुर की गांधी नगर सीट से मैदान में थे.1971 में पाकिस्तान को हराने के बाद इंदिरा गांधी की लोकप्रियता अपने चरम पर थी.पर ये साल दूसरा था. इंदिरा पाकिस्तान को हराकर लोकप्रियता के चरम पर थीं. इसी वक्तराजस्थान में चुनाव हुए. गांधीनगर की सीट पर कांग्रेस कैंडिडेट थे जनार्दन सिंहगहलोत. उन दिनों का एक वाकया पढ़िए. सब समझ जाएंगे कि आगे क्या हुआ. भैरो सिंहप्रचार कर रहे थे. कुछ ही महीने पहले भी वह प्रचार कर रहे थे. तब किशनपोल के विधायकथे, मगर प्रचार कर रहे थे बाड़मेर में. खुद अपने लिए. लोकसभा के लिए. पर हार गए.किससे. कांग्रेस के अमृत नाहटा से. ये नाम कुछ सुना लग रहा है क्या. किस्सा कुर्सीका. बतौर प्रॉड्यूसर नाहटा की फिल्म थी. जिसमें संजय-इंदिरा का घुमाकर मजाक उड़ाथा. फिर संजय के चेलों ने फिल्म के प्रिंट ही उड़ा दिए. सरकार बदली तो मुकदमा चला.और संजय एक महीने तिहाड़ में रहे किस्सा कुर्सी का फिल्म के प्रिंट जलवाने केइल्जाम में.इस फिल्म के प्रिंट जलवाने के आरोप में संजय एक महीने तक जेल में रहे.विषयांतर से वापस विषय पर, शेखावत पर लौटते हैं. 71 के लोकसभा चुनाव के बाद बाद सेहालात ज्यादा बदले नहीं थे. भैरो की हालत नई विधानसभा में भी पतली थी. इन्हीं सबकेबीच वह एक शाम वोट मांगते हुए अपने विरोधी जनार्दन के घर पहुंच गए. चाय पीने, हंसीठठ्ठा करने. और वोट मांगने. भैरो ने जनार्दन के माता पिता के पैर छुए. बैठे. तब तकजनार्दन भी खबर पाकर आ गए. आधेक घंटे बाद भैरो उठे. चलने को. फिर हंसे. पलटे. औरजनार्दन से बोले. ''घबड़ाओ मत थें. चुनाव थेईं जीत स्यो.''मुख्यमंत्री बनने के दौरान भैरो सिंह शेखावत विधायक भी नहीं थे. वो राज्यसभा केसांसद थे.और ऐसी ही हुआ. जनार्दन ने भैरो को 5,167 वोट से पटखनी दी. फिर पटखनी दी इंदिरा ने.लोकतंत्र को. तीन बरस बाद. 1975 में. इमरजेंसी लगाकर. बाकी विपक्षी नेताओं की तरहभैरो सिंह भी जेल गए. पौन दो साल बाद छूटे. और मुख्यमंत्री बने, जिसके बारे मेंहमने शुरुआत में बताया. दो हार और इस जीत के बीच एक और कड़ी थी. राज्यसभा की जीत.मध्य प्रदेश से जनसंघ ने उन्हें 1974 में ही राज्यसभा भेज दिया था. और इसीलिए भैरोसिंह 1977 के राज्य चुनाव में विधायकी के लिए नहीं लड़े थे. बाद में कोटा की छबड़ासीट से उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे ये मुख्यमंत्री महोदय. अगले ऐपिसोड में बातकरेंगे भैरो के भैरंट दांव की. जिसमें पहले तो उन्होंने शातिर खिलाड़ी हरदेव जोशीको चित्त किया. वीपी और राजीव देखते ही रह गए टेलिफोन लाइन के उस पार. और फिर कथितरूप से सूटकेस के सहारे सरकार बनवाने उतरे हरियाणा के उस वक्त के सीएम भजन लाल कोतिड़ी बिड़ी किया. # कहानी की शुरुआत में आपने सीकर एसपी जय सिंह का जिक्र सुना.बाद में जय सिंह संघी हो गए. अपना घर आरएसएस को दे दिया. आज भी आप सीकर जाएंगे तोसंघ दफ्तर को इसी घर में पाएंगे.--------------------------------------------------------------------------------विडियो: कांस्टेबल से राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने वाले भैरो सिंह शेखावत की कहानी