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बांग्लादेश में SC ने आरक्षण खत्म किया, एक क्लिक में जानिए पड़ोसी मुल्क में मचे बवाल की पूरी कहानी!

Bangladesh के Supreme Court ने कहा कि 93% सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों के लिए खुली रहेंगी. इससे पहले, बांग्लादेशी प्रधानमंत्री Sheikh Hasina के 14 जुलाई के एक बयान के बाद युवाओं में आक्रोश और बढ़ा था.

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Supreme Court scraps most job quotas
आदेश के मुताबिक़, 93% सरकारी नौकरियां बिना आरक्षण के योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों के लिए खुली रहेंगी. (फाइल फोटो- PTI)
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हरीश
21 जुलाई 2024 (Updated: 6 अगस्त 2024, 10:07 IST)
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बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट (Bangladesh's Supreme Court) ने सरकारी नौकरियों के लिए कोटा प्रणाली को वापस ले लिया है. कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश पर स्टे लगा दिया, जिसमें आरक्षण को बहाल कर दिया गया था. दरअसल, आरक्षण को लेकर निचले अदालत के फ़ैसले से पड़ोसी देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पों से अब तक कम से कम 114 लोगों की मौत हो चुकी है.

अब कोर्ट का कहना है कि 93% सरकारी नौकरियां बिना आरक्षण के, योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों के लिए खुली रहेंगी. बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल AM अमीन-उद्दीन ने बताया 5 प्रतिशत नौकरियां आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वालों के बच्चों के लिए और 2 प्रतिशत अन्य श्रेणियों के लिए आरक्षित रहेंगी.

दरअसल, बांग्लादेशी प्रधान मंत्री शेख हसीना ने 14 जुलाई को कह दिया था कि अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को कोटे का फ़ायदा ना मिले, तो क्या 'रजाकारों' के पोते-पोतियों को मिलना चाहिए? इस बयान के बाद युवाओं में आक्रोश फैल गया. कोटा सिस्टम हटाने की युवाओं की मांग ने और ज़ोर पकड़ लिया.

'रजाकार' शब्द को बांग्लादेश में अपमानजनक माना जाता है. ये बांग्लादेश के आज़ादी की लड़ाई के दौरान किए गए अत्याचारों से जुड़ा है. दरअसल, स्वंतत्रता की लड़ाई के समय पाकिस्तानी सेना ने स्वतंत्रता सेनानियों को निशाना बनाने के लिए तीन मुख्य मिलिशिया बनाईं- रजाकार, अल-बद्र और अल-शम्स. इन मिलिशिया समूहों ने पाकिस्तान सशस्त्र बलों की मदद से बंगालियों पर हर तरह के अत्याचार किए.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के मद्देनज़र 19 मई देर रात से ही देशभर में कर्फ्यू लगाया गया था. बाद में इसे 21 जुलाई की दोपहर 3 बजे तक के लिए बढ़ा दिया गया था. स्थानीय मीडिया ने दिन में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच छिटपुट झड़पों की ख़बरें दी थीं. राजधानी ढाका की सड़कों पर सैनिक गश्त कर रहे थे, जो प्रदर्शनों का गढ़ बना गया था. विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट के गेट के बाहर सैन्य टैंक तैनात किया गया था. हालांकि, ताज़ा खबरों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद थोड़ा ठहराव आया है. 

इंडियन एक्सप्रेस ने अधिकारियों के हवाले से बताया है कि बीते हफ़्ते से ही यूनिवर्सिटी बंद हैं और इंटरनेट की नाकाबंदी से बांग्लादेश बाहरी दुनिया से कटा हुआ है. पेट्रापोल बंदरगाह ऑनलाइन सिस्टम का इस्तेमाल करता है. लेकिन इंटरनेट ना होने की वजह से 600 से ज़्यादा ट्रक भारतीय सीमा में फंसे हुए हैं. जबकि औसतन, इस लैंड पोर्ट के ज़रिए हर दिन 450 से 500 ट्रक माल लेकर भारत से बांग्लादेश जाते हैं. साथ ही, बांग्लादेश से लगभग 150 से 200 ट्रक भारत आते हैं. पिछले कुछ दिनों में इस बंदरगाह के माध्यम से भारत और बांग्लादेश के बीच यात्री आवाजाही में 30 से 40 प्रतिशत की गिरावट आई है.

ये भी पढ़ें - बांग्लादेश हिंसा: जेल में घुसे प्रदर्शनकारी सैकड़ों कैदियों को छुड़ा ले गए!

पूरा मामला क्या है?

इस पूरे प्रदर्शन का केंद्र रहा- बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वालों के बच्चों को मिलने वाला आरक्षण. सरकारी नौकरी में इन्हें 30 फ़ीसदी आरक्षण मिलता है. बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद से ही देश में आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई. सबसे पहले 5 सितंबर, 1972 को आरक्षण के लिए आदेश जारी किया गया. इस आदेश के मुताबिक़, नौकरियों में नियुक्ति के मामले में 20 फ़ीसदी मेरिट के आधार पर और बाक़ी 80 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई.

इसी 80 फ़ीसदी में 30 फ़ीसदी आरक्षण आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वालों के बच्चों को और 10 फ़ीसदी आरक्षण युद्ध से प्रभावित महिलाओं को देने का फैसला किया गया. इसके बाद अलग-अलग सालों में आरक्षण की व्यवस्था में कई बदलाव किये गये. हालांकि ये 30 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था हमेशा जारी रही. इसके बाद आया 2018 का साल. सरकार ने तब कोटा प्रणाली को ख़त्म कर दिया. लेकिन 5 जून, 2024 को हाई कोर्ट ने सरकार के फ़ैसले को अवैध बता दिया और कुल कोटा 56% तय कर दिया. इसके बाद से ही प्रदर्शन जारी था.

ममता बनर्जी का बयान

बांग्लादेश में मचे बवाल पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और TMC प्रमुख ममता बनर्जी की भी प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने बांग्लादेश के लोगों के प्रति सहानुभूति जताई है. ममता ने कहा कि अगर पड़ोसी देश के असहाय लोग राज्य में शरण मांगते हैं, तो पश्चिम बंगाल सरकार उन्हें आश्रय देगी. ममता ने कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस की शहीद दिवस रैली में बोलते हुए कहा,

“मैं बांग्लादेश पर कमेंट नहीं करूंगी. वो एक अलग देश है. जो भी कहना है, भारत सरकार कहेगी. लेकिन अगर असहाय लोग बंगाल के दरवाजे पर दस्तक देते हैं, तो हम उन्हें आश्रय देंगे. संयुक्त राष्ट्र का एक प्रस्ताव है कि अगर कोई मुसीबत में है, तो पड़ोसी क्षेत्र मदद कर सकते हैं. इससे पहले, जब कुछ लोगों को असम में समस्याओं का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने बंगाल में शरण ली थी.”

बताते चलें, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बांग्लादेश में पुलिस अभी भी कड़ी निगरानी कर रही है.

वीडियो: दुनियादारी: शेख़ हसीना की चेतावनी के बाद बांग्लादेश में क्या हुआ?

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