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असम सरकार ने मुस्लिमों की शादी-तलाक वाला एक्ट ही खत्म कर दिया, अब कैसे काम चलेगा?

Assam के कैबिनेट मंत्री जयंत मल्लबरुआ (Jayanta Malla Baruah) ने बताया कि अब से मुस्लिमों की शादी और तलाक से जुड़े मामलों पर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत काम किया जाएगा.

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असम कैबिनेट ने लिया बड़ा फैसला (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)
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ज्योति जोशी
24 फ़रवरी 2024 (Updated: 24 फ़रवरी 2024, 10:24 IST)
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असम की कैबिनेट (Assam Cabinet) ने 23 फरवरी को बड़ा फैसला लेते हुए असम मुस्लिम मैरिज और डिवोर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट 1935 (Muslim Marriage Divorce Act) को हटा दिया है. कहा गया है कि इसे हटाने का मकसद यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) की तरफ बढ़ना है. जिस बैठक में ये फैसला लिया गया उसकी अध्यक्षता CM हिमंत बिस्वा सरमा कर रहे थे. इसके अलावा असम की जनजातीय भाषा से जुड़े फैसले भी लिए गए हैं.

इंडिया टुडे NE की रिपोर्ट के मुताबिक, मुस्लिम मैरिज एक्ट हटाने वाले फैसले पर कैबिनेट मंत्री जयंत मल्लबरुआ ने मीडिया से बात की. उन्होंने बताया कि अब से मुस्लिमों की शादी और तलाक से जुड़े मामलों पर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत काम किया जाएगा.

जयंत मल्लबरुआ ने कहा,

मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा था कि हम समान नागरिक संहिता (UCC) की ओर बढ़ रहे हैं. इसी कड़ी में एक बहुत महत्वपूर्ण फैसला लिया गया है. असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 निरस्त कर दिया गया है. अब इस एक्ट के तहत कोई भी मुस्लिम शादी या तलाक रजिस्टर नहीं होगा. हमारे पास स्पेशल मैरिज एक्ट है, अब उसके तहत ही मामले सुलझाएंगे.

जयंत मल्लबरुआ ने आगे कहा,

एक्ट के तहत हमने कई कम उम्र में विवाह भी देखे हैं. इस फैसले के जरिए हम राज्य में बाल विवाह के खिलाफ भी कदम उठा रहे हैं.

कैबिनेट मंत्री ने बताया कि एक्ट के तहत जो 94 मुस्लिम रजिस्ट्रार काम कर रहे थे, उन्हें दो-दो लाख रुपये का मुआवजा देकर निकाल दिया जाएगा. खबर है कि अब मुस्लिम विवाह और तलाक के रजिस्ट्रेशन का अधिकार जिला आयुक्त और जिला रजिस्ट्रार के पास होगा.

CM हिमंत सरमा ने एक पोस्ट में लिखा, 

23 फरवरी को असम कैबिनेट ने सदियों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने का एक महत्वपूर्ण फैसला लिया. इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे, भले ही दूल्हा और दुल्हन 18 और 21 साल की उम्र तक नहीं पहुंचे हों, जैसा कि कानून में जरूरी है. ये कदम असम में बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है.

ये भी पढ़ें- तलाक के बाद मुस्लिम महिला भी मांग सकती है गुजारा भत्ता? कोर्ट ने शाहबानो केस पर अब क्या कह दिया?

और क्या फैसले लिए गए?

असम कैबिनेट ने आदिवासी भाषाओं मिसिंग, राभा, कार्बी, तिवा, देवरी और दिमासा को स्कूली शिक्षा के मौलिक या प्राथमिक चरण में शिक्षा के माध्यम के रूप में शामिल करने का भी बड़ा फैसला लिया.

इसके अलावा कैबिनेट ने बालीपारा आदिवासी ब्लॉक में अहोम, कोच राजबोंगशी और गोरखा समुदायों को संरक्षित वर्ग का दर्जा देने का भी फैसला किया. इससे वो जमीन की खरीद और बिक्री के मामले में विशेषाधिकार प्राप्त कर सकेंगे. मणिपुरी भाषा को चार जिलों कछार, करीमगंज, हैलाकांडी और होजाई में एक सहयोगी आधिकारिक भाषा घोषित किया गया है. 

असम कृषि विश्वविद्यालय को विभाजित करने का भी फैसला लिया गया है. इससे एक नया असम पशु चिकित्सा और मत्स्य पालन विश्वविद्यालय बनाया जाएगा.

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