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डियर केजरीवाल जी, पराली को खाद में बदलने वाला घोल कहां है?

अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अगर पंजाब में उनकी सरकार बनती है तो पराली को खाद में बदलने वाले घोल का छिड़काव किया जाएगा.

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Punjab stubble burning
बाएं से दाएं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और जलाई जा रही पराली. (फोटो: PTI)
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धीरज मिश्रा
3 नवंबर 2022 (Updated: 3 नवंबर 2022, 21:42 IST)
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देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) में बढ़ते प्रदूषण को लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) और केंद्र सरकार में जुबानी जंग चल रही है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि केंद्र सरकार के चलते दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है.

वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि जब AAP पंजाब की सत्ता में नहीं थी, तो वो राज्य को जिम्मेदार ठहराती थी और अब पंजाब में उनकी सरकार है तो वो केंद्र पर निशाना साध रही है. दोनों में से कौन सही बोल रहा है, ये अभी बता पाना मुश्किल है. हालांकि, ये बात सही है कि पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने ये दावा किया था कि अगर राज्य में उनकी सरकार बनती है, तो वो पराली की समस्या का समाधान कर देंगे.

इसके लिए केजरीवाल ने कई रास्ते सुझाए थे. उन्होंने दावा किया था कि दिल्ली सरकार ने एक घोल बनाया है, जिसे छिड़कने पर पूरी पराली गलकर खाद बन जाती है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने साल 2020 में ये बायो-डिकम्पोजर बनाया था. इसी को लेकर केजरीवाल ने कहा था,

‘किसान को मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है और सबसे ज्यादा धुआं वो और उसका परिवार ही झेलता है. दिल्ली में हमने एक घोल (बायो-डिकम्पोजर) बनाया है, जिसे छिड़कने पर पूरी पराली गल जाती है और 10-15 दिन के अंदर वो खाद बन जाती है. ये घोल दिल्ली सरकार अपने पैसे से बनवाती है और सभी किसानों के खेतों में फ्री में छिड़काव करती है. ये काम हम पंजाब में भी करेंगे. आपको पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. आपके खेतों में हम फ्री में घोल का छिड़काव करेंगे.'

इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल ने ये भी कहा था कि अगर उनकी सरकार बनती है, तो वे पंजाब में ऐसी फैक्ट्रियां लगाएंगे जो पराली का इस्तेमाल कर कोयला, बिजली और गत्ता बनाएंगीं. उन्होंने कहा था इससे किसानों को प्रति एकड़ के हिसाब से हजार रुपये मिलेंगे. हालांकि, अब पंजाब की सत्ता पर काबिज होने के बाद AAP सरकार इस बायो-डिकम्पोजर का इस्तेमाल करीब-करीब न के बराबर कर रही है.

पंजाब में पायलट प्रोजेक्ट

पंजाब में अभी इस घोल को एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह ही इस्तेमाल किया जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली के साथ मिलकर राज्य सरकार ने इस सीजन में सिर्फ 5,000 एकड़ भूमि पर इस घोल के छिड़काव की घोषणा की थी. जबकि इस सीजन में पंजाब में करीब 30 लाख हेक्टेयर में धान की बुवाई हुई है.

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने भी इस सीजन की कटाई से पहले ही कह दिया था कि पंजाब में इस घोल का इस्तेमाल सिर्फ पायलट प्रोजेक्ट के रूप में होगा. उन्होंने 15 सितंबर को ट्वीट कर कहा था,

'पराली से होने वाले प्रदूषण को लेकर पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह जी एवं IARI पूसा के अधिकारीयों के साथ संयुक्त बैठक. IARI पूसा की निगरानी में इस वर्ष पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पंजाब के कुछ क्षेत्रों में बायो डी-कंपोजर का निःशुल्क छिड़काव किया जाएगा.'

न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में हर साल करीब 2 करोड़ टन पराली इकट्ठा होती है. 

एक एकड़ में बायो-डिकम्पोजर को छिड़कने का खर्चा सिर्फ 30 रुपये है. AAP सरकार ने दिल्ली में पाराली को खत्म करने के लिए इसका छिड़काव कराया था. पिछले साल (2021) दिल्ली में 844 किसानों के 4,300 एकड़ खेत में इसका छिड़काव कराया गया था. वहीं साल 2020 में दिल्ली के 310 किसानों के 1,935 एकड़ खेत में इसका छिड़काव हुआ था.

वहीं, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने दावा किया है कि अरविंद केजरीवाल ने बायो-डिकम्पोजर का इस्तेमाल करने से मना कर दिया था. PTI की रिपोर्ट के अनुसार, यादव ने 3 नवंबर को कहा,

'दिल्ली के मुख्यमंत्री ने केंद्र को पत्र लिखकर कहा था कि पूसा बायो-डिकम्पोजर दिल्ली में सफल रहा है. लेकिन उन्होंने खुद पंजाब में इसका इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया था.'

रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने कहा है कि पंजाब में सिर्फ पायलट आधार पर ही 5000 एकड़ भूमि में इस घोल का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्योंकि राज्य सरकार ने कह दिया है कि ये 'प्रभावी' नहीं है.

इसे लेकर अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि पराली की समस्या का समाधान करने के लिए उन्होंने केंद्र से मांग की थी कि किसानों को नकद राशि दी जानी चाहिए, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से सीधे इनकार कर दिया था.

इधर इस सीजन में पंजाब में अब तक पराली जलाने के कुल 24,146 मामले सामने आए हैं. वहीं पिछले साल 15 सितंबर से लेकर 30 नवंबर के बीच राज्य में पराली जलाने के 71,304 मामले रिपोर्ट हुए थी. इसी तरह 2020 में 76,590 और 2019 में 55,210 मामले सामने आए थे.

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