एक कोरा (Quora) यूजर हैं, अकंद सितरा. UPSC दिए, क्लियर नहीं हुआ. फिर से दिए, फिरनहीं हुआ. लेकिन रोए नहीं कतई. कोरा पर एक सवाल आया. कि IAS अफसर बनने का सफ़र कितनाखुशनुमा होता है? उसका जवाब दिया अकंद ने. लेकिन IAS बनने नहीं, न बनने के बारेमें. ये एक खुला ख़त है, उन सभी के लिए जो UPSC के लिए पूरी मेहनत करते हैं. बार-बारट्राय कर भी फेल हो जाते हैं. बल्कि सिर्फ उनके लिए ही नहीं, उन सभी के लिए जो किसीन किसी एग्जाम में फेल हुए हैं. अकंद ने ये पोस्ट कोरा पर अंग्रेजी में लिखी थी.--------------------------------------------------------------------------------मुझे अपना छोटा सा इतिहास देने की इजाजत दें. सिविल सर्विसेज 2013- इंटरव्यू फेलसिविल सर्विसेज 2015- मेन्स फेल सिविल सर्विसेज 2015- प्रीलिम्स फेल RBI मैनेजरपोस्ट 2015- इंटरव्यू फेल SSC CGL 2015- टायर 2 फेल हर साल, मैं किसी न किसी एग्जामके फाइनल राउंड तक पहुंचता हूं और फिर बाहर हो जाता हूं. फाइनल लिस्ट में हमेशा कुछनंबरों से रह गया, हर बार. इतना करीब. फिर भी इतना दूर. तीन साल की पढ़ाई. क्यामैंने अपना समय बर्बाद किया? कैसा रहा ये सफ़र? क्या मैं खुश हूं? मेरी एक सिंपल सीजिंदगी में ऐसे बहुत से सवाल हैं. ख़ुशी असल में होती क्या है? अलग-अलग समय पर इसकीपरिभाषाएं बदलती रहती हैं. हर साल, 10 लाख लोग सिविल सर्विस एग्जाम के लिए अप्लाईकरते हैं. उनमें से कितने लोग असल में खुश हैं? हर साल 5 लाख से ज्यादा लोगप्रीलिम्स नहीं दे पाते हैं. या तो वो भूल जाते हैं. या काम और परिवार की वजह सेएग्जाम देने नहीं जा पाते हैं. उन्होंने अप्लाई किया है, तो क्वालीफाई करने की चाहततो होगी ही न. और ये बात कि वो एग्जाम दे ही नहीं पाए हैं, उन्हें उदास तो करती हीहोगी. 4 लाख 85 हजार से ज्यादा लोग प्रीलिम्स क्लियर नहीं कर पाते. कुछ पढ़कर पेपरदेते हैं. कुछ टाइम पास के लिए. लेकिन न सेलेक्ट होने पर खुश तो नहीं ही होते हैंन. जो 15 हजार लोग प्री क्लियर कर मेन्स का एग्जाम देते हैं, उसमें से 12 हजार बाहरहो जाते हैं. 5 दिन लगाकर 9 कठिन पेपर देते हैं, साल भर मेहनत से पढ़ाई करने के बाद.मेन्स न क्लियर कर पाने के बाद वो तो बहुत दुखी होते हैं. जो 3 हजार इंटरव्यू देतेहैं, उनमें से 2 हजार शॉर्टलिस्ट नहीं होते. वो बिखर जाते हैं. कुछ नंबरों से रहजाते हैं. और उनका करियर एक साल रिवर्स हो जाता है. आखिरी हजार लोगों में से 900खुश नहीं होते. क्योंकि अपने मन की पोस्ट नहीं मिलती. ITS, IIS, IRTS में मेरे कईदोस्त हैं, जिनका मोहभंग हो चुका है. क्योंकि वो जिन पोस्ट्स पर हैं, उनका चार्मनहीं है. चार्म तो बस IAS, IPS और IFS का है. बाकी सब तो नॉर्मल सरकारी नौकरी होतीहैं. तो, क्या वो खुश हैं? अगर उन्हें एक नंबर और मिल जाता, वो IAS बन सकते थे. येबात उनकी आत्मा को कांटे की तरह चुभती रहेगी, हमेशा. इतना पास, फिर भी इतना दूर.टॉप 100 में से, आखिरी के 30 लोग नाखुश होते हैं. क्योंकि उनको अपनी चॉइस के कैडरनहीं मिलते. जिसे मुंबई चाहिए, उसे नागालैंड मिल जाता है. ऐसी जगह भेज दिया जाता हैजहां की बोली, भाषा, कल्चर, कुछ भी उन्हें समझ नहीं आता. अगर एक नंबर ज्यादा आयाहोता तो वो अपने स्टेट में होते. या अपने शहर में. सिर्फ एक नंबर. इतना पास, फिर भीइतना दूर. तो 10 लाख लोगों में 9 हजार, 99 लाख, 950 लोग नाखुश हैं. अलग, अलग कारणोंसे. क्या हमें हमारी मानसिक स्थिति उन चीजों के हिसाब से तय करनी चाहिए, जो हमारेवश में नहीं हैं? क्या हमारी ख़ुशी मात्र किसी एग्जाम में पास होने पर निर्भर रहतीहै? क्या हमें उन चीजों के बारे में दुखी होना चाहिए, जो बदल नहीं सकतीं? मैं नहींजानता. ये आप तय करें.मैं बताता हूं, मुझे कैसा लगता है.बिना किसी इनकम के, मम्मी-पापा के पैसों पर एक उदास कमरे में रहते हुए, खुद को 3साल घिसने के बावजूद कुछ भी न कर पाने के बाद भी मुझे संतोष है. हां, मुझे खुद सेसंतोष है. क्योंकि इस सफ़र में मैं बहुत बदल गया हूं. मेरे अनुभवों ने मुझे बदल दियाहै, मेरी बेहतरी के लिए. 2013 में जब मैं कॉलेज में था, एक बेवकूफ, इम्मैच्योर लड़काथा. क्लास का जोकर था. मुझसे लोग चिढ़ जाते थे और कभी सीरियसली नहीं लेते थे. पूरेकॉलेज में ,मेरा मजाक उड़ता था. और उसके बाद, मैंने एग्जाम की तैयारी शुरू की. सिविलसर्विस के लिए मुझे बहुत कुछ पढ़ना पड़ा: देश-दुनिया की हिस्ट्री, जॉग्रफी, पॉलिटी,इकोनॉमिक्स, एनवायरनमेंट, एथिक्स, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, सोशियोलॉजी, करेंटअफेयर्स, साइंस और इस आसमान के नीचे की हर चीज. इन तीन सालों में, आप कह सकते हैं,मैंने इन सभी सब्जेक्ट्स में MA कर लिया था. 10 अलग-अलग सब्जेक्ट्स में MA. SSC केलिए मैंने मैथ्स, इंग्लिश, रीजनिंग और लॉजिक पढ़ा. वो भी हाई लेवल का. 3 BA तो कर हीलिए होंगे. RBI के लिए बैंकिंग, फाइनेंस, इंश्योरंस, और पैसों के बारे में पढ़ा. सभीRBI रिपोर्ट्स को गहराई से पढ़ा. 3 साल के बाद में एक जोकर, बेवकूफ लड़के से एकमैच्योर, समझदार आदमी बन गया था. जब दोस्तों से मिलता, वो शॉक हो जाते कि कोई इतनाकैसे बदल सकता है. किसी भी टॉपिक पर कितनी भी देर बात कर सकता था. डिबेट करता,चीजों पर अपनी राय रखता. जब बात करता, मैं स्मार्ट लगता. अब वो मेरी जेन्युइन*रेस्पेक्ट* करते थे. मुझे और क्या चाहिए था? इतने सारे एक्साम्स को शुक्रिया, किमैंने एक एग्जाम पास कर लिया. होम मिनिस्ट्री में अब मेरी एक अच्छी नौकरी है. इससफ़र के अंत में, मेरे पास एक 60 हजार रुपए प्रति महीने की नौकरी है. इस सफ़र के अंतमें, मुझे मेरा प्यार मिल गया है, जिसने मेरे सबसे बुरे समय में मेरा साथ दिया. इससफ़र के अंत में, मुझे इज्जत मिली है. दोस्तों, मम्मी-पापा, परिवार, रिश्तेदार, औरकोरा पर. इस सफ़र के अंत में, मैं ज्यादा समझदार, ज्ञानी और जानकार हूं. इस सफ़र केअंत में, मैंने सीख लिया है कि जिंदगी अच्छी या बुरी नहीं, बस जिंदगी है. जब-जब मैंकोई एग्जाम पास नहीं कर पाया, मुझे लगता था मैं गिर गया हूं. दुख और डिप्रेशन सेघिर जाता था. कुंठित हो गया था. फिर से फेल हुआ. फिर बार-बार फेल हुआ. और ये समझगया कि गिरना कुछ नहीं होता. जो चीजें मेरे वश में नहीं है, उन पर फ्रस्ट्रेट होनेका कोई तुक नहीं है. किस्मत को कोसने का कोई फायदा नहीं है. मैंने सीखा है कि जोमैं हूं, मुझे उसके बारे में खुश रहना चाहिए. और ये समझने के बाद मैं सुकून मेंहूं, पहले से कहीं बेहतर कर रहा हूं.क्या मैं इन सब एग्जाम्स में फेल हुआ हूं? हां.क्या मैं जिंदगी में फेल हुआ हूं? नहीं, बिलकुल नहीं.मैं अपने जीवन से प्यार करता हूं. सफल नहीं हुआ तो क्या, मैं खुश हूं. मेरे पास वोसब नहीं, जो मैं चाहता था. पर वो सब है, जिसकी मुझे जरूरत थी. और मुझे क्या चाहिए?तो हां, ये एक खुशनुमा सफ़र था. एक अच्छा अनुभव. लेकिन क्या ये अंत है? नहीं, मैंनेअभी बस शुरुआत की है.