भैंसें बेच परिवार ने बनाया था एथलीट, पिता बीमार, फिर भी तेजिंदर ले आए गोल्ड
एशियन गेम्स में सोना जीतने वाले पंजाब के इस खिलाड़ी की कहानी जानने लायक है.
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मई का महीना, साल 2018. पंजाब के मोगा जिले के खोसा पंडो गांव का एक नौजवान एशियन गेम्स की तैयारी में लगा हुआ था. प्रैक्टिस शुरू किए अभी कुछ वक़्त ही हुआ था कि घर से एक फ़ोन आया. पता चला कि उसके पिताजी की कैंसर की तकलीफ बढ़ गई है. नौजवान प्रैक्टिस छोड़ अपने पिताजी को लेकर दिल्ली पहुंच गया. आर्मी हॉस्पिटल में एडमिट करवाया. डॉक्टरों ने बताया कि कैंसर उसके पिता के दिमाग तक पहुंच गया है. उन्हें कमसेकम 15 दिन अस्पताल में भर्ती करना पड़ेगा. नौजवान ने ये बात अपने कोच को बताई. सो उसके कोच भी बोरिया-बिस्तर बांधकर दिल्ली आ गए ताकि उसकी प्रैक्टिस चलती रहे. लेकिन पिता के बीमार होने के कारण नौजवान प्रैक्टिस नहीं कर सका.
खैर किस्मत को कुछ और मंजूर था. पिताजी की हालत सुधरी. नौजवान भी फिर रंग में लौटा. प्रैक्टिस के लिए हिमाचल के धर्मशाला में कैंप लगाया. प्रैक्टिस दोबारा शुरू हुई. तमाम परेशानियां आईं. चोटें लगीं. लेकिन उसने हार नहीं मानी क्योंकि उसे पता था कि उसके पिता के पास अब ज्यादा समय नहीं है. इसीलिए वह जितने हो सके उतने मेडल उनकी झोली में डालना चाहता था. और ऐसा ही हुआ. 25 अगस्त को. हम बात कर रहे हैं तेजिंदरपाल सिंह टूर की, जिन्होंने एशियन गेम्स में शॉट पुट में सोना जीता है.
सो अब बात इसी 25 अगस्त 2018 की करते हैं. इंडोनेशिया की राज़धानी जकार्ता में 18वें एशियन गेम्स चल रहे हैं. भारत ने शॉटपुट में भी दावेदारी पेश की. जिम्मा था 23 साल के तेजिंदर के कंधों पर. बंदे ने पहले ही दांव में ऐसा गोला फेंका कि कोई उसके आसपास नहीं पहुंच सका. ये दूरी थी 19.96 मीटर की. चुनौती देने चीन और कजाकिस्तान के लड़के जरूर आए, मगर पार न पाए. चीन के लियू यांग 19.52 मीटर और कज़ाकिस्तान के इवान इवानोव 19.40 मीटर तक ही गोला फेंक सके. मगर अभी तेजिंदर जीते नहीं थे. असली जीत अभी बाकी थी. किसी भी खिलाड़ी के लिए अंतिम पायदान क्या होता है. गोल्ड. जी हां सोना. तेजिंदर को भी यही चाहिए था. सो उसने फाइनल राउंड में खुद अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया. पिछली बार के 19.96 के मुकाबले अबकी बार 20.75 मीटर दूर गोला फेंका. और गोल्ड अपने नाम कर लिया. भारत के बेड़े में एक और गोल्ड डाल दिया. अपने बीमार पिता को ऐसा तोहफा दे दिया, जिसे वो कभी न भूल पाएंगे. वो भी एशियन गेम्स में शॉटपुट का नया रिकॉर्ड बनाकर. देश-दुनिया में छाकर.
गोला फेंकते हुए तेजिंदर सिंह
कभी बेचनी पड़ी थी भैंसें, अब मां बोली- बेटे ने हमारी उम्र बढ़ा दी
तेजिंदर का जन्म पंजाब के एक किसान परिवार में हुआ है. उनके पिता कर्म सिंह और माता प्रीत कौर दोनों ही किसान हैं. उनकी माता याद करते हुए बताती हैं,"खेती किसानी से ज्यादा बचता नहीं है. जब हमारे बेटा-बेटी बड़े हो रहे थे तो उन्हें कामयाब बनाने के लिए पैसों की जरूरत थी. जैसे-तैसे करके हम पैसे का जुगाड़ कर पा रहे थे. थोड़ी तंगी आई तो हमने अपनी भैंसे बेच दी और पैसे अपने बच्चों पर लगा दिए. मेडल जीतकर तेजिंदर ने हमारी उम्र बढ़ा दी है."उनकी मां ने हमें ये भी बताया कि तेजिंदर बचपन में क्रिकेटर बनना चाहते थे. लंबा-चौड़ा और तगड़ा शरीर देखकर उनके पिताजी ने शॉटपुट में हाथ आजमाने को कहा. तेजिंदर ने उनकी बात मानी और जुट गए प्रैक्टिस में. लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं था. 2015 में उनके पिता को स्किन कैंसर हो गया. कैंसर शुरुआती स्टेज में होने के कारण वो जल्दी ही ठीक हो गए. थोड़े समय बाद फिर उनके पिताजी की तबीयत बिगड़ गई. इस बार फिर से कैंसर निकला. लेकिन इस बार उन्हें बोन कैंसर था. इलाज में खूब पैसे खर्च हो रहे थे. पैसे के लिए कोच के कहने पर उन्होंने नेवी जॉइन कर ली. तेजिंदर ने एक इंटरव्यू में बताया कि इंडियन नेवी ने उनके पिताजी के इलाज़ में मदद के साथ-साथ उनकी खुराक का भी ध्यान रखा. उनका कहना था कि इंडियन नेवी की मदद की वजह से ही वो अपने गेम पर फोकस कर पाए.
एशियन गेम्स के लिए रवाना होने से पहले की तस्वीर.
'शॉटपुट कोई सस्ता गेम नहीं'
एक किसान के लिए अपने बेटे को शॉटपुट जैसा खेल करवाना इतना आसान नहीं होता. एक इंटरव्यू में तेजिंदर का कहना था कि शॉटपुट में जैसे-जैसे आपका लेवल बढ़ता है, उसके साथ ही आपका खर्च भी धीरे-धीरे बढ़ता है. खाने में बेहतर खुराक की जरूरत पड़ती है. बेहतर जिम में जाने से लेकर अच्छी क्वॉलिटी के जूतों की भी जरूरत पड़ती है. एक एथलीट के ज्यादातर पैसे उसकी खुराक और जूतों पर खर्च होते हैं. भारत में मिलने वाले फ़ूड सप्लीमेंट अच्छी क्वॉलिटी के नहीं होते. एथलीटों को विदेशों से फ़ूड सप्लीमेंट मंगवाने पड़ते हैं, जो बहुत महंगे पड़ते हैं. जूते भी शॉटपूट जैसे खेल में ज्यादा लंबा साथ नहीं निभाते. जिस जूते को हम उपयोग करना चाहते हैं वे वास्तव में बहुत महंगे होते हैं. मैं 6,000-7,000 के जूते खरीदता, लेकिन वे दो महीने से अधिक नहीं टिक पाते थे. मुझे 2006 से 2010 तक खुराक और जूतों के पैसों के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. जब से खेल का लेवल बढ़ा है, तब से ही मेरा महीने का खर्च बढ़कर 40,000-50,000 हो गया है. पर अब ये सारी मेहनत और त्याग रंग लाया है. गोल्ड मेडल के रूप में.A proud moment for the nation as @Tajinder_Singh3
A doubly proud moment for me, for having the honor of felicitating the champion :)#KheloIndia
was awarded his Gold medal for Shot Put at #AsianGames2018
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#IndiaAtAsianGames
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— Rajyavardhan Rathore (@Ra_THORe) August 26, 2018
तेजिंदर ने पिछले साल 2017 में भुवनेश्वर में हुई एशियाई चैंपियनशिप में भी सिल्वर मेडल जीता था. हालांकि इस साल 2018 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्हें निराशा हाथ लगी थी. लेकिन एशियन गेम्स में तेजिंदर ने रिकॉर्ड तोड़ वापसी कर इतिहास रच दिया है. तेजिंदर ने यह मेडल अपने पिताजी को समर्पित किया है. एशिया के इस नए चैंपियन को हमारी तरफ से झोला भर बधाई.
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