रोक के बाद भी दिल्ली वालों ने पटाखे फोड़े, साथ में दिल्ली की हवा भी फोड़ डाली!
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि लोगों को सांस लेने दो, पटाखों की जगह मिठाई पर खर्चा करो.
हर साल दिवाली के अगले दिन दिल्ली-एनसीआर और देश के दूसरे महानगरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी Air Quality Index (AQI) बड़ी खबर बनता है. वो इसलिए, क्योंकि लोगों को कित्ता समझा लो वे पटाखे फोड़ने की ढिठाई नहीं छोड़ते. बीते कुछ सालों से दिल्ली में दिवाली पर पटाखे छुड़ाने पर बैन लग रहा है. इस साल भी लगा. सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी पटाखा व्यापारियों से कहा कि लोगों को सांस लेने दो, पटाखों की जगह मिठाई पर खर्चा करो. लेकिन लोग तो खुद ही साफ हवा में सांस लेने को तैयार नहीं हैं. सो उन्होंने दिवाली की रात जमकर धुआं उड़ाया. प्रमाण देखना है तो सोशल मीडिया देखकर आएं, उदाहरण भरे पड़े हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि राजधानी में AQI "बेहद खराब" (Very Poor AQI) श्रेणी में आ गया है.
दिवाली के बाद बढ़ा वायु प्रदूषणवायु गुणवत्ता पर नजर रखने वाले अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स के मुताबिक दिवाली के ठीक बाद दिल्ली के कई इलाकों में AQI 300 से 370 के बीच दर्ज किया गया है. भारत सरकार के एयर क्वालिटी सिस्टम SAFAR-India के मुताबिक दिवाली की देर रात 12 बजे पूरी दिल्ली में AQI 323 था. दिल्ली विश्वविद्यालय के आसपास तो ये 365 तक पहुंच गया था. एनसीआर की बात करें तो नोएडा में AQI 342 दर्ज किया गया था. वहीं रात नौ बजे के आसपास आनंद विहार ISBT में ये 377 तक पहुंच गया था. मंगलवार, 25 अक्टूबर को सुबह 7 बजे तक दिल्ली में AQI की स्थिति लगभग यही थी.
इससे पहले दिवाली की सुबह खबरें आई थीं कि दिल्ली में AQI 300 के नीचे दर्ज किया गया है. राजधानी के अलग-अलग इलाकों में PM2.5 के तहत AQI 276 से 298 तक रिकॉर्ड हुआ था जो 'खराब' श्रेणी में आता है. बताया गया कि पिछले 7 सालों में दिवाली के दिन दिल्ली में दर्ज किया गया ये सबसे अच्छा AQI था. मतलब दिल्ली में प्रदूषण का स्तर ये है कि खराब को भी "अच्छा" मानना पड़ रहा है. लेकिन रात में छुड़ाए गए पटाखों की मेहरबानी से AQI का प्रमोशन हो गया और ये खराब से बहुत खराब वाली कैटेगरी में पहुंच गया.
ये तो था दिवाली की अगली सुबह का "गुड मॉर्निंग". अब जानिए कि ये AQI और PM2.5 का खेल क्या है.
क्या है PM2.5 और कैसे तय होता है AQI?PM2.5 में जो PM है, उसका फुल फॉर्म है “पार्टिकुलैट मैटर”. वैसे तो PM1.0 और PM10 भी होता है, लेकिन PM2.5 सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है. ये हवा में मौजूद बेहद छोटे कण होते हैं. इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर या इससे भी कम होता है. मतलब इतने छोटे कि ना तो हमारी आंखें इन्हें देख पाती हैं, ना हमारी नाक की छन्नी इन्हें शरीर के अंदर जाने से रोक पाती है. हवा के साथ तैरते ये पार्टिकुलैट मैटर ठोस और तरल कणों का योग होते हैं. इनकी बनावट अलग-अलग होती है और कई तरह के हानिकारक पदार्थ इनमें मिले होते हैं. नाक के जरिये ये हमारे शरीर में घुसते हैं. श्वास नली, फेफड़ों, यहां तक कि खून में मिलकर हमें गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं.
AQI हवा में PM2.5 की मौजूदगी को समझाने का एक तरीका है. प्रदूषण फैलने वाले स्रोतों के चलते जैसे-जैसे हवा में PM2.5 की मात्रा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे एयर क्वालिटी गिरती जाती है. सामान्यतः इसकी 5-6 कैटेगरी हैं,
- Good+Satisfactory
- Moderate
- Poor
- Very Poor
- Severe.
शून्य से 50 (Good) और 50 से 100 (Satisfactory) के बीच AQI होने का मतलब है कि हवा में PM2.5 की मौजूदगी ना के बराबर या बेहद कम है. यानी आप अच्छी हवा में सांस ले रहे हैं जो अब भारतीय महानगरों, खासकर दिल्ली के लोगों के लिए कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं है. 100 से 200 AQI का मतलब PM2.5 ठीकठाक (Moderate) है. इस लेवल तक चिंता की बात नहीं होती. टेंशन बढ़ती है जब AQI 200 से 300 के बीच यानी खराब (Poor) श्रेणी में आ जाता है. अब हवा में PM2.5 की मौजूदगी काफी ज्यादा है.
लेकिन दिल्ली और देश के दूसरे शहर कई बार इस कैटेगरी को पार कर चुके हैं. यहां अब AQI का 300 से 400 के बीच यानी बहुत खराब (Very Poor) होना आम बात है. हालात इतने भी बिगड़े हैं कि कभी-कभी AQI 400 से 500 के बीच भी रहा है जिसे गंभीर (Severe) कैटेगरी माना जाता है. जब ऐसा होता है तो सरकार को स्कूलों की छुट्टी और वर्क फ्रॉम होम जैसी घोषणाएं करनी पड़ती हैं.
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