The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • aimim asaduddin owaisi and vhp...

'मेरा जमीर कहता है कि...', समलैंगिक विवाह पर SC के फैसले के बाद क्या बोले ओवैसी?

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि ये काम संसद का है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का AIMIM और विश्व हिंदू परिषद ने स्वागत किया है.

Advertisement
Asaduddin Owaisi on Same Sex Marriage
असदुद्दीन ओवैसी ने सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले के बारे में ट्वीट किया है. (फाइल फोटो: PTI)
pic
सुरभि गुप्ता
17 अक्तूबर 2023 (Updated: 17 अक्तूबर 2023, 20:09 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया है. ओवैसी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से 'संसद सबसे ऊंची है', इस सिद्धांत को बरकरार रखा है. वहीं विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने भी Same Sex Marriage पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. VHP की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि समलैंगिकों की शादी और उन्हें किसी बच्चे को गोद लेने का अधिकार नहीं देना अच्छा कदम है. पहले जान लीजिए AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या कहा है.

यहां पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने से इनकार किया, बोला- संसद का काम है कानून बनाना

ओवैसी बोले- ‘मेरा जमीर कहता है कि...’

सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असदुद्दीन ओवैसी ने X पर लिखा,

"1.  सुप्रीम कोर्ट ने संसदीय सर्वोच्चता के सिद्धांत को बरकरार रखा है. ये तय करना अदालतों पर निर्भर नहीं है कि कौन किस कानून के तहत शादी करेगा.
 

2. मेरा ईमान और मेरा जमीर कहता है कि शादी केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच होती है. ये (IPC की धारा) 377 के मामले की तरह नहीं है. यह विवाह की मान्यता के बारे में है. यह सही है कि राज्य इसे किसी एक और सभी पर लागू नहीं कर सकता.".

लेकिन आगे असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट बेंच की उस टिप्पणी पर चिंता जाहिर की है, जिसमें ट्रांसजेंडर लोगों की शादी के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ का हवाला दिया गया है. ओवैसी ने लिखा,

"3. मैं बेंच की उस टिप्पणी से चिंतित हूं कि ट्रांसजेंडर लोग स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA) और पर्सनल लॉ के तहत शादी कर सकते हैं. जहां तक इस्लाम का सवाल है तो यह सही व्याख्या नहीं है, क्योंकि इस्लाम दो बायोलॉजिकल पुरुषों या दो बायोलॉजिकल महिलाओं के बीच विवाह को मान्यता नहीं देता है.
 

4. मैं जस्टिस (एस. रवींद्र) भट्ट से सहमत हूं कि 'स्पेशल मैरिज एक्ट की जेंडर-न्यूट्रल व्याख्या कभी-कभी न्यायसंगत नहीं हो सकती है और इससे महिलाओं के हित प्रभावित होंगे. ऐसी स्थितियां निर्मित होंगी, जो उन्हें कमजोर करेंगी."

यहां ये जान लीजिए कि कोर्ट ने ट्रांसजेंडर लोगों की शादी पर असल में क्या कहा है. कोर्ट ने कहा है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति हेट्रोसेक्शुअल तरीके से शादी कर सकते हैं. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ( CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि अगर एक ट्रांसजेडर व्यक्ति हेट्रोसेक्शुअल व्यक्ति से शादी करता है, तो ऐसी शादी को एक व्यक्ति को पुरुष और दूसरे को महिला मानकर मान्यता दी जाएगी. ट्रांसजेंडर पुरुष को एक महिला के साथ शादी का अधिकार है, उसी तरह ट्रांसजेंडर महिला को एक पुरुष के साथ शादी का अधिकार है. ट्रांसजेंडर पुरुष और ट्रांसजेंडर महिला भी शादी कर सकते हैं और अगर इसकी अनुमति नहीं दी गई तो ये ट्रांसजेंडर एक्ट का उल्लंघन होगा.

विश्व हिंदू परिषद ने क्या कहा है?

समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद VHP ने बयान दिया,

“समलैंगिक विवाह और उनके द्वारा गोद लिए जाने को कानूनी मान्यता नहीं दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्व हिंदू परिषद ने स्वागत किया है. विहिप के केंद्रीय कार्याध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट श्री आलोक कुमार ने आज कहा है कि हमें संतोष है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू, मुस्लिम और ईसाई मतावलंबियों सहित सभी संबंधित पक्षों को सुनने के बाद यह निर्णय दिया है कि दो समलैंगिकों के बीच संबंध विवाह के रूप में रजिस्ट्रेशन योग्य नहीं है. यह उनका मौलिक अधिकार भी नहीं है. समलैंगिकों को किसी बच्चे को गोद लेने का अधिकार भी ना दिया जाना भी एक अच्छा कदम है.”

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया है. साथ ही, कोर्ट ने कहा कि वो स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म नहीं कर सकता है. उसने कहा कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने का काम संसद का है. अदालत कानून नहीं बना सकती.

इससे पहले 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स रिलेशनशिप को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला फैसला दिया था. उससे पहले IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था.

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement