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'अग्निपथ योजना हमें बर्बाद कर देगी', अब परमवीर चक्र से सम्मानित बाना सिंह ने स्कीम पर सवाल उठाए

सियाचिन की लड़ाई में हैरतअंगेज बहादुरी दिखाकर परमवीर चक्र पाने वाले बाना सिंह पहले भी अग्निपथ योजना की आलोचना कर चुके हैं.

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Bana Singh
परमवीर चक्र से सम्मानित बाना सिंह. (तस्वीर- आजतक)
21 जून 2022 (Updated: 21 जून 2022, 01:09 IST)
Updated: 21 जून 2022 01:09 IST
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भारतीय सेना के एक और दिग्गज ने अग्निपथ योजना पर गंभीर सवाल उठाए हैं. सेना के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित हो चुके पूर्व सैनिक कैप्टन बाना सिंह ने अग्निपथ योजना पर चिंता जताई है. मंगलवार 21 जून को उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से इस योजना पर राय जाहिर की. इसमें उन्होंने कहा कि ये योजना देश का बड़ा नुकसान करेगी. ट्वीट में कैप्टन बाना सिंह ने कहा,

"देश को बचाओ, अग्निपथ योजना हमें बुरी तरह नुकसान पहुंचाएगी. भारत संकट के दौर से गुजर रहा है. युवा हमारे देश का भविष्य हैं."

इससे पहले भी बाना सिंह अग्निपथ योजना पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. हाल में आजतक से हुई बातचीत में उन्होंने कहा था कि इस योजना को लागू करने से पहले लोगों से बात की जानी चाहिए थी. बाना सिंह नाराजगी के साथ कहा था,

“ये (योजना) गलत है. आपको ऐसा प्रोग्राम करने से पहले लोगों से बात करनी चाहिए थी. ऐसा नहीं होता कि घर बनने के बाद देखा जाए कि वो कैसा बना है. अंग्रेजों ने भी ऐसा तोहफा नहीं दिया था भारत को, जो हमारे देश के उच्चाधिकारियों, हमारे प्रधानमंत्री ने किया है. ये सरासर गलत है. ये नहीं होना चाहिए. युवाओं में जबर्दस्त रोष आ जाएगा.”

बाना सिंह ने आगे कहा,

"कर कुछ रहे हैं, हो कुछ रहा है. तानाशाही सी है कि ये तो लागू करके ही छोड़ेंगे. अगर ऐसी ही हालत रही तो देश का कहीं पलटा ही ना हो जाए... फौज को खिलौना बना दिया है."

आजतक से बातचीत में बाना सिंह ने तीनों सेनाओं के शीर्ष अधिकारियों के लिए कहा कि उन्होंने तो सरकार की हां में हां मिलाई है. कहा कि सेना के अधिकारी कभी भी सरकार के विरोध में नहीं बोल सकते. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का नाम लेकर बाना सिंह ने ये भी कहा कि उन्हें क्या पता कि देश की रक्षा कैसे करनी है, ये तो जवानों का काम है. नेता दिल्ली में बैठकर रणनीति बना लेते हैं और उसे लागू कर देते हैं.

कौन हैं बाना सिंह?

भारतीय सेना के सूरमाओं में शामिल बाना सिंह का जन्म 6 जनवरी, 1949 को जम्मू-कश्मीर के एक पंजाबी सिख परिवार में हुआ. सियाचिन की लड़ाई में उनकी बहादुरी के बारे में जानकर हर कोई हैरान रह जाता है. जून 1987 की घटना है. उस साल जून में 8वीं जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फैंट्री को सियाचिन में तैनात किया गया था. तब पाकिस्तानी सैनिक बड़ी संख्या में घुसपैठ के जरिये सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करके बैठ गए थे. उन्हें वहां से खदेड़ना जरूरी था, लेकिन काम बहुत कठिन था. ऐसे में एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाई गई. बाना सिंह तब सेना में नायब सूबेदार के पद पर थे और इस टास्क फोर्स में शामिल थे.

पाकिस्तानी सैनिकों ने सियाचिन ग्लेशियर की सबसे ऊंची चोटियों पर कब्जा जमा रखा था. ऊंचाई पर होने के चलते वे बहुत एडवांटेज पोजिशन में थे, क्योंकि वहां से वे भारत के सैन्य ठिकानों पर आसानी से निशाना बना सकते थे, जबकि उनको निशाना बनाना हमारी सेना के लिए बहुत मुश्किल था. उन्हें वहां से खदेड़ने की जिम्मेदारी सेकंड लेफ्टिनेंट राजीव पांडेय को सौंपी गई थी. उनके नाम पर ही इस ऑपरेशन को 'ऑपरेशन राजीव' नाम दिया गया था.

इस मिशन में बाना सिंह ने बड़ी भूमिका निभाई. ग्लेशियर की चोटी पर बनी कायद चौकी तक जाने वाला रास्ता खतरों से भरा था. लेकिन बाना सिंह के नेतृत्व में चार सैनिकों की टीम वहां तक पहुंची. वे जिस हिम्मत के साथ अपने साथियों संग बर्फ की दीवार पर चढ़े, उसकी मिसाल नहीं मिलती. बाना सिंह और टीम के बाकी साथी रेंगकर ऊपर तक पहुंचे थे. वे एक-एक इंच आगे बढ़ रहे थे. उस समय वहां भारी बर्फबारी भी हो रही थी. कुछ भी ठीक से नहीं दिख रहा था. फिर भी कई घंटों की मशक्कत के बाद टीम के चारों साथी ऊपर पहुंचे.

हजारों फीट की ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों ने कल्पना भी नहीं की थी कि कोई वहां आकर उनको निशाना बना सकता है. लेकिन बाना सिंह ने ऐसा कर दिखाया था. पाकिस्तानी सैनिक जब अपने बंकर में आराम से बैठे थे, तब अचानक वहां ग्रेनेड आकर गिरा. वे कुछ समझ पाते, उससे पहले ही धमाके में पाकिस्तानी सैनिक ढेर हो गए. फिर बाना सिंह ने बंकर के बाहर मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों को बायोनेट से मार गिराया. अचानक हुए इस हमले से घबराकर कुछ पाकिस्तानी सैनिक वहां से निकल भागे.

26 जून, 1987 को आखिरकार भारत का कायद पोस्ट पर फिर कब्जा हो गया. नायब सूबेदार बाना सिंह के नेतृत्व में राइफलमैन चुन्नी लाल, लक्ष्मण दास, ओम राज और कश्मीर चंद ने वो कर दिखाया था, जो नामुमकिन लग रहा था. बाद में बाना सिंह के सम्मान में उस चौकी का नाम 'बाना टॉप' कर दिया गया. इस हैरतअंगेज बहादुरी भरे कारनामे के लिए बाना सिंह को युद्धकाल का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया था.

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