एक मैदान. उसमें खड़े हजारों लोग. जिनमें औरतें और बच्चे भी हैं. उस मैदान में आताहै एक हैवान और देता है आदेश गोली चलाने का. चीख-पुकार मच जाती है. खून की नदियोंके बीच एक बच्चा दिखाई देता है. जो अपनी मरी हुई मां के सीने से दूध पीने की कोशिशकर रहा है. ये नजारा सुनकर आपकी आखों के आगे एक मंजर घूम गया होगा. कानों में सुनाई दे रहाहोगा बस एक ही नाम- जालियांवाला बाग़. बर्तानिया हुकूमत के हाथों पर जलियांवाला केखून के धब्बे सौ साल बाद भी उस जुल्म की गवाही देते हैं. जलियांवाला की मिट्टी सेपैदा हुआ उधमसिंह -जिसने ब्रिटेन जाकर डायर का इन्साफ किया. पैदा हुआ एक भगत सिंह,जिसने जलियांवाला की मिट्टी हाथों में भरकर अहद उठाया कि अंग्रेज़ों को इस सरजमीं सेउखाड़कर फेंक देगा. ये कहानियां हैं पंजाब के अमृतसर के जलियावालां बाग़ की. लेकिनजलियांवाला एक ही नहीं था है. अमृतसर से कई मील दूर. गुजरात राजस्थान के बॉर्डर परएक और जलियांवाला को अंजाम दिया गया था. जिसमें मारे गए थे हजारों भील. चूंकि वोकबीलाई लोग थे, उनका लिखित इतिहास नहीं था. इसलिए इस नरसंहार की बात किसी ने लिखी,ना किसी ने पढ़ी. लेकिन फिर भी वो इतिहास जिन्दा रहा. इन कबीलों के बुजर्गों कीआंखों में. उनकी कहानियों में. इसी कहानी को आज के एपिसोड में आपके साथ शेयरकरेंगे.