सॉरी बॉस, आप नौकरी करते मेरे जैसे Gen-Z को बिल्कुल नहीं समझते!
मेरे चारों तरफ ऐसे लोग नज़र आने लगे हैं जो रोज एक ही टाइम पर ऑफिस आते हैं. एक ही टाइम पर ऑफिस से निकलते हैं. यहां तक कि अपने काम से बोर भी नहीं होते, शायद इनको अपना काम Monotonous भी नहीं लगता है.
मैं एक Gen-Z हूं.
Gen-Z वो लोग होते हैं जो 2000 के बाद इस दुनिया में आए हैं. हमने पैदा होते TV देखा है. स्मार्टफोन हमारे पहले फोन हैं. कीपैड क्या होता है ब्रो? हमने गली में क्रिकेट से ज्यादा GTA Vice City खेला है. हमारा मैकबुक ही हमारा नोटबुक है. हमें रिश्तेदारों से नहीं इंस्टाग्राम फॉलोवर्स से लेना-देना है. हमारा वास्ता Y2K, मिलेनियम, ईमो से नहीं नो कैप, पिक मी गर्ल, फोमो जैसे शब्दों से पड़ता है. हमारी टीशर्ट बिना ग्राफ़िक्स के कूल नहीं दिखती. हमें कोई बोरिंग टास्क पसंद नहीं आता. हमेशा हमें चाहिए कुछ नया, कुछ अलग. नमूने के तौर पर ऊपरवाले को भी हम 'इतनी शक्ति हमें देना दाता' की जगह Thankewww God गाकर सुनाते हैं, सेम उसी टाइम ‘हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता’ पर भी वाइब करते हैं. क्योंकि पुरानी पीढ़ी से थोड़ा अलग हैं हम. थोड़े नए हैं हम और हो सकता है आपकी नज़र और नज़रिए में गॉन केस हों हम.
कुल मिलाकर हम टोटल Vibe हैं. अलग लुक, अलग स्टाइल है हमारा मोटो. अब Vibe भी आपको समझ नहीं आया. तो आप हमारे शब्दों में काफी ओल्ड स्कूल हैं. जैसे आपके लिए आपके पहले वाले बूमर थे.
मैं एक Gen-Z कॉर्पोरेट मजदूर हूं. अभी-अभी कॉलेज से निकली हूं, पढ़ाई वाले जीवन और नौकरी वाले जीवन में जो अंतर देखा, बस वही अनुभव बता रही हूं तो मैं एक Gen-Z कॉर्पोरेट मजदूर हूं. औरों के शब्दों में इसे प्रोफेशनल्स कहा जाता है और यकीन मानिए हमारे लिए मजदूरी कोई छोटा काम नहीं है. मजदूर छोटा व्यक्ति नहीं. वो हमारे लिए दुनिया की सबसे रिलेटेबल शै है. जिस रोज़ से नौकरी लगी, दुनिया में वर्गीकरण मुझे साफ़ नज़र आने लगा. दुनिया में बस दो ही तरह के लोग हैं. एक वो जो काम नहीं करते, दूसरे जो कॉर्पोरेट मजदूर हैं. इसका सैलरी या काम की जगह के माहौल से, या अच्छे-बुरे से लेना-देना नहीं है. हैं तो बस हैं. मुझे नहीं समझ आता, लोग इसको नौकरी भी क्यों बोलते हैं? हमारे लिए ये एक मजदूरी है. (Gen-Z मुझे अपने बीच की बातें दुनिया को बताने के लिए माफ़ करे!)
ये एक ऐसी मज़दूरी है, जिसमें लेबर डे की छुट्टी नहीं मिलती. मैं दफ्तर के लिए निकलती हूं तो चारों तरफ ऐसे लोग दिखते हैं जो रोज़ एक ही टाइम पर ऑफिस आते हैं. एक ही टाइम पर ऑफिस से निकलते हैं. अपनी शिफ्ट से एक मिनट लेट भी नहीं होते. उल्टा पहले जा पहुंचते हैं. सुबह 6 बजे की शिफ्ट में भी टिफिन लेकर जाते हैं. लंच के बाद टहलने जाते हैं. दाल-चावल हाथ से खाते हैं. चमकीले रंग के कपड़े पहनते हैं. जूते भी इनके लाल रंग के होते हैं. कलर थ्योरी और कलर ऑफ़ दी इयर शायद कॉर्पोरेट वाले लोग नहीं जानते. ये सभी रोबोट बन चुके हैं. ऐसे रोबोट जो कभी बोर नहीं होते. आप कहेंगे हम ओवर रिएक्ट कर रहे हैं, नौकरी ऐसी ही होती है, लोग ऐसे ही होते हैं ये आम है. ठीक उसी जगह पर खड़े होकर हम कहना चाह रहे हैं कि ये आम नहीं होना चाहिए.
मैंने पाया कि नौकरी करने वाले लोग रोज़ एक जैसा काम करते हैं. बिना किसी बोरियत के. बिना किसी Monotonous Feel के. शायद इनका मन मेरी तरह चंचल नहीं, अति रैंडम नहीं है. शायद इनके मन में मेरी तरह हर दूसरे दिन ये सवाल नहीं आता कि ‘अंजली मन नहीं लग रहा, कुछ और करते हैं;'
शायद इसलिए ये सभी रोज एक जैसे कपड़े पहनते हैं, कलर कॉम्बिनेशन की हत्या करके उसे आउटफिट का नाम देते हैं. वही पुराने 90 के दशक के लैपटॉप से मोहब्बत करते हैं और बिना किसी शिकायत के जीवन से प्यार करते हैं. लेकिन मैं एक Gen-Z, इनसे थोड़ी अलग हूं. मुझे हर दिन कुछ नया चाहिए. जीवन में मौज चाहिए. अपार पैसा चाहिए. स्किनकेयर प्रोडक्ट्स भरपूर चाहिए. काम में चिल चाहिए. आउटफिट के रंग बेसिक चाहिए. फूड कोर्मेंट में मेंटल पीस चाहिए. इन टोटल कंप्रोमाइज नहीं चाहिए.
लेकिन एक सवाल जहां मेरा जीवन अटक गया है. उम्मीद है मेरी तरह के बाकी ज़ेन्ज़ियों का सवाल भी मिलता-जुलता होगा. आप लोग बोर नहीं होते? मुझे तो 4 दिन बाद अपना काम बोरिंग लगने लगा था.
(आपने घबराना नहीं है, ये आर्टिकल मेरे ही मैनेजर ने एडिट किया है. ~ अंजली)
(हां, अंजली सही लिख रही हैं. ~मैनेजर)
हां तो मुझे 4 दिन बाद अपना काम बोरिंग लगने लगा था. बस सबको लगना चाहिए कि मैं इंडिपेंडेंट हूं. सिर्फ इस मजबूरी में काम कर रही हूं. क्योंकि दुनिया का नाम ही दिखावा है. इस मुद्दे पर चर्चा कभी और, मैनेजर की भावनाओं की कद्र भी तो करनी है. लेकिन सवाल वही है लोग बोर नहीं होते? रोज़ एक ही ऑफिस में जाते हैं, उन्हीं लोगों को रोज देखते हैं. उसी लैपटॉप पर रोज काम करते हैं. वर्क लाइफ बैलेंस के नाम पर वर्क फ्रॉम होम भी नहीं है. ये उम्मीद भी नहीं कर सकते कि काम करने के लिए कंपनी वर्केशन पर भेज दे. ये सब आपको फर्स्ट वर्ल्ड प्रॉब्लम लग सकती है. पर ये बताओ, बॉस को लोग बॉस क्यों कहते हैं? मतलब क्या आपको नहीं पता कि वो बॉस हैं? उनको नहीं पता कि वो बॉस हैं फिर बॉस को बॉस क्यों कहना. एक रोज़ दफ्तर आते हुए मेट्रो में एक बंदे का फोन बजा और स्क्रीन पर कॉन्टैक्ट तक में बॉस लिख रखा था. और यकीन मानो ये फोन उसकी बीवी ने नहीं किया था. बॉस विशेषण वाले उस जीव के घरवाले ने इतना सोच-समझकर करके एक नाम रखा है. उसे उस नाम से क्यों नहीं बुलाते लोग?
एस्थेटिक वाइब्स. ये 2 शब्द तो यहां एग्झिस्ट नहीं करते हैं.
मेरी, मेरी रूममेट और आसपास के खौराए कई Gen-Z कॉर्पोरेट मजदूरों के ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन के बाद मैं कुछ निष्कर्षों पर पहुंची हूं. दफ्तर के Gen-Z के आसपास वो लोग होने चाहिए, जिन्हें ज्ञान देने की चुल्ल ना हो. मदद करने की मंशा हो तो बहुत बढ़िया. हमें ऐसे लोग चाहिए जो बिना मतलब घटिया जोक न मारें. और हमारे सामने तो बिलकुल न मारें. उस काम के लिए हम काफी हैं. और अगर ग़लती से उनके जोक हमें समझ न आएं तो हमें जज न करें. अरे नहीं पता हमें कि म्यूजिक की मालगाड़ी में बिलाल खर्चीला ने थै-थै गाया या नैनी अजमाइल उल ने तेन एहे गाया या वारदे उन उलूह अहवा गाना है या सिंगर. रक्खो अपना सात सौ चौरासी बी ब्लॉक अपने पास वापस वर्ना हम भी सबसे जरूरी काम के मौके पर घोस्ट मोड में डालेंगे और बाबा बंगाली भी आपको बचा न पाएंगे.
इन्हें समझना होगा कि लिंट रिमूवर को ट्रिमर बताना और बैगी जीन्स को झोला बोलना उतना ही फनी है, जितना ओन्नोन्नोन्नोन्नोन्नोन्नो वाला साउंड इफेक्ट लगाने पर कोई वीडियो हो जाता है.
अगर आप इन सब के बाद भी, हमें ग़लत समझ रहे हैं तो आप ग़लत हैं. हमें पता है मिलेनियल्स या उनसे प्राचीन पीढ़ी भलमानस है, वो सबकुछ ठीक कर सकते हैं. हर समस्या से लड़ सकते हैं. मगर प्लीज़, हमारी समस्या को आप हल करने की कोशिश ना करें. क्योंकि मेरी प्रॉब्लम ही ये असंगठित दुनिया है. ना चाहते हुए भी आसपास के लोगों को जज करना होता है. मैं नहीं हूं टेलर स्विफ्ट कि मैं बोलूं 'i m the problem its me'
पिकनिक, एस्थेटिक कैफे, पिंटरेस्टी फोटोज. ये सब हमारे लिए आम है. हमारी इंस्टाग्राम स्टोरी देख दफ्तर वाले अमीर बोल कर रोस्ट ना करें. ऐसी बातें पूछ कर ये साबित न करें कि आपकी जनरेशन को पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ का फर्क समझ नहीं आता. क्योंकि आप सभी की वजह से हमने इंस्टाग्राम पर स्टोरीज लगानी कम कर दी. ऐसा ही चला तो धीरे-धीरे हम भी आप सभी की तरह बोरिंग हो जाएंगे.
माना कि आप सभी Gen-Z नहीं बन सकते लेकिन उम्मीद करती हूं जब हेडफोन लगाकर हम किसी को इग्नोर करें तो वो इग्नोर हो लिया करे. क्योंकि शॉपिंग करना और हेडफ़ोन लगा कर Vibe करना हमारा पसंदीदा काम है.
धन्यवाद!
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