23 दिसंबर की भोर की बात है. आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे. वो रास्ता, जो आगरा को लखनऊ सेकनेक्ट करता है. इसी सड़क पर खंदौली जिले के पास एक कंटेनर खड़ा था. तेजी से आ रहीकार इस कंटेनर से भिड़ गई. भिड़ंत होते ही तेज धमाका हुआ. कार ने आग पकड़ ली. पांचलोग थे कार में. सभी ज़िंदा जल गए. मौके पर ही मौत हो गई. गांव वालों में से जिसनेभी ये हादसा देखा, सिहर गया. अमर उजाला की ख़बर के मुताबिक, हादसे के बाद एंबुलेंसया फायर ब्रिगेड पहुंचने में करीब-करीब 45 मिनट से घंटे भर तक का समय लग गया. येहैरत वाली बात रही कि एक्सप्रेसवे पर भी मदद पहुंचने में इतनी देर हुई. क्योंकिएक्सप्रेसवे को देश के सबसे ज़्यादा टोल वसूलने वाले रास्तों में गिना जाता है.यहां लगातार पेट्रोलिंग किए जाने के दावे किए जाते हैं.Agra: Five people travelling in a car were burnt alive when the vehicle caughtfire after hitting a truck on Agra-Lucknow expressway in Khandauli early morningtoday. "We are trying to reach out to next of the kin of the victims. Truckdriver is missing," says DM Prabhu N Singh. pic.twitter.com/0RMOVj6NaG— ANI UP (@ANINewsUP) December 22, 2020इस ख़बर से ज़ेहन में ये सवाल आया कि टोल टैक्स और रोड सुविधाओं में क्या वास्ताहै? हम टोल टैक्स देते क्यों हैं? और टोल टैक्स देने से क्या उस रोड पर हम कुछअतिरिक्त सुविधाएं पाने के अधिकारी हो जाते हैं? टोल से जुड़े ऐसे ही हर सवाल काजवाब आइए जानते हैं.क्या है टोल टैक्स?हम जिस रोड पर चलते हैं, उसे कौन बनाता है? सरकार. जब बात हाइवे या एक्सप्रेसवे कीहोती है तो रोड बनाने की ये लागत भी लंबी-चौड़ी बैठती है. इन सड़कों की लागत औरमेंटिनेंस निकालने के लिए सरकार मदद लेती है जनता से. कैसे? टोल टैक्स केज़रिये. सरकार कई सड़कों को बनाने का ठेका प्राइवेट कंपनियों को दे देती है. बदलेमें उन्हें तय समय के लिए टोल वसूलने का अधिकार दिया जाता है. जो नए बने हुए हाइवेया एक्सप्रेसवे होते हैं, उन पर टोल टैक्स ज़्यादा होता है. जब रोड की लागत निकलजाती है, तो सरकार टोल टैक्स कम कर सकती है या खत्म कर सकती है.किस आधार पर तय होता है टोल टैक्सकिसी रोड पर टोल टैक्स तय करने के कई पैरामीटर होते हैं. 1. दूरी. अमूमन दो टोलप्लाज़ा के बीच में 60 किमी की दूरी होती है. यानी एक टोल प्लाज़ा पर आप 60 किमी याउससे ज़्यादा दूरी के लिए पैसा देते हैं.2. अगर आपके रास्ते में ब्रिज, टनल या बाईपास पड़ रहे हैं तो टोल थोड़ा ज़्यादा होसकता है. चूंकि इनको तैयार करने में लागत भी ज़्यादा आती है.3. ज़्यादा लेन वाली रोड पर अमूमन टोल टैक्स बढ़ जाता है, जैसे कि एक्सप्रेसवे पर.4. हालांकि टोल इस पर डिपेंड नहीं करता कि आप जिस रोड पर जा रहे हैं, वो कहां तकजाती है. माने कितनी लंबी है. जीटी रोड, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे से लंबी है लेकिनएक्सप्रेसवे पर टोल, जीटी रोड से ज़्यादा होगा.5. दोपहिया, चार पहिया, ट्रक के लिए अलग-अलग टोल टैक्स होता है. प्राइवेट गाड़ी,कमर्शियल गाड़ी के लिए भी अलग-अलग.किस तरह दिया जाता है टोलदो तरह से. 1. टोल प्लाजा पर कैश पेमेंट. इस तरीके को अब सरकार कम कर रही है. तोकौन सा तरीका आ रहा है?2. जवाब है- फास्टैग. गाड़ी पर एक फास्टैग स्टिकर लगाइए. इसे अपने ई-पेमेंट वॉलेटसे कनेक्ट करिए. टोल प्लाज़ा पर लगा रीडर इस स्टिकर को रीड करके आपके अकाउंट सेअपने आप पैसा काट लेगा. फास्टैग के बारे में और जानना हो तो यहांपढ़ सकते हैं. हालांकि NHAI ने कहा है कि 1 जनवरी से सिर्फ उन्हीं वाहनों को टोलपार करने दिया जाएगा, जिन पर फास्टैग लगा होगा.टोल टैक्स की दुनिया में नई क्रांति है फास्टैग. (फाइल फोटो- PTI)टोल देने से मुझे क्या फायदे होते हैं?टोल टैक्स देने से रोड अपनी नहीं हो जाती. लेकिन हम जो टोल दे रहे हैं, उससे उस रोडपर कुछ ज़रूरी सुविधाएं ज़रूर सुनिश्चित की जाती हैं. जैसे कि – 1. टोल रोड परपुलिस पेट्रोलिंग सुनिश्चित की जाती है. नियमित अंतराल पर गश्त लगती रहे. हरनिश्चित दूरी पर अलग-अलग टीम गश्त के लिए मौजूद रहती है ताकि अगर कहीं भी कुछ हादसाहो, तो पुलिस जल्द से जल्द पहुंच सके.2. इसी तरह टोल रोड पर एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड, टो-अवे क्रेन की व्यवस्था भीसुनिश्चित की जाती है.3. कायदा ये भी कहता है कि जिन रोड्स पर टोल टैक्स वसूला जा रहा है, उन पर पब्लिकटॉयलेट्स, बस के रुकने की जगह, पीने के पानी की व्यवस्था.. ये सब थोड़ी-थोड़ी दूरीपर मौजूद हों. साथ ही टोल प्लाज़ा पर पुलिस, एंबुलेंस, टो-अवे क्रेन वगैरह कीडिटेल्स चस्पा हों.4. कई सड़कों पर टोल रोड्स पर मैकेनिक की सुविधा भी मुहैया कराई जाती है. अगर आपकभी यमुना एक्सप्रेसवे जैसे रास्तों से जाएंगे तो आपको कम-बेसी में तमाम ऐसीसुविधाएं मिलेंगी, जिनसे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हमारा टोल टैक्स कहां जाताहै. आठ लेन की सड़क. गड्ढामुक्त. जगह-जगह स्पीडोमीटर. हर गाड़ी की लेन अलग. डिवाइडरपर पेड़ वगैरह ताकि रात के समय दूसरे लेन से आने वाली गाड़ी की हेडलाइट आंखों में नचुभे. ये सब चीजें टोल टैक्स के पैसे से ही मेंटेन रहती हैं. ये नागरिक के वोअधिकार हैं, जो उसके टोल टैक्स से उसे मिलते हैं.इसीलिए जब 23 दिसंबर के हादसे में समय पर मदद नहीं पहुंची और कार में बैठे लोगों कीजलकर मौत हो गई, तो सवाल उठ रहे हैं कि एक्सप्रेसवे पर ये हाल है तो बाकी रोड्स परकैसे समय पर मदद मिलेगी?