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आवारा कुत्तों को खूंखार बनाने में डॉग लवर्स ने भी कोई गलती की है?

किन-किन वजहों से कुत्ते और इंसान की सदियों पुरानी दोस्ती दागदार हुई?

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Stray dogs
आवारा कुत्ते हमारी ही गलती से हिंसक हुए हैं! (प्रतीकात्मक फोटो- PTI )
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शिवेंद्र गौरव
2 मई 2023 (Updated: 12 मई 2023, 11:48 IST)
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बीते दिनों बिहार के आरा में एक आवारा कुत्ते ने एक ही दिन में 22 लोगों को काट खाया. ये बस एक मामला है. बीते कुछ समय से लगभग हर रोज देश के किसी न किसी शहर से आवारा कुत्तों के हमले की खबरें आ रही हैं. आम लोगों में उनका खौफ पसर गया है. वहीं जानवरों के एक्सपर्ट ये जानने में लगे हैं कि ऐसा क्या हुआ कि अचानक कुत्ते ज्यादा काटने लगे. उनके हिंसक हो चलने की वजह क्या है? आज इसी पर चर्चा करेंगे.

आबादी, कचरा और कुत्ते

इंसान और कुत्ते हजारों सालों से साथ रहते आए हैं. अर्कियोलॉजिस्ट्स को इस बात के सबूत मिले हैं कि दसियों हजार सालों से कुत्तों और होमो सेपियंस ने मिलकर खाना ढूंढा, साथ पले-बढ़े, युद्ध तक लड़े. इतिहासकार कहते हैं कि इंसानों और कुत्तों ने जिस तरह एक दूसरे को प्रोटेक्ट किया है, आड़े वक़्त काम आने की वैसी मिसाल किन्हीं और दो प्रजातियों में नहीं मिलती. लेकिन बीते कुछ सालों से कुत्तों और इंसानों की दोस्ती दागदार हुई है. ये हालत हुई कैसे?

पहला सवाल ये है कि क्या इंसानों की बढ़ती आबादी और कूड़े-कचरे का कुत्तों के काटने से कोई संबंध है?

भारत में सड़कों पर घूमने वाले आवारा कुत्ते, आम तौर पर देसी भारतीय कुत्ते या साउथ एशियन पाई-डॉग की मिक्स्ड ब्रीड होती है. इसके अलावा कई बार पालतू कुत्तों को भी सड़क पर छोड़ दिया जाता है. किसी जानवर के लिए खाना और रहने की जगह की उपलब्धता कितनी है, इस आधार पर एक शहर की उस क्षमता (यानी कैरिंग कैपेसिटी)  का पता चलता है जिसमें कोई जानवर पलता या पाला जाता है. आवारा कुत्ते स्वभाव से स्केवेंजर्स होते हैं. यानी अपना खाना खुद ढूंढते हैं. इसलिए कुत्ते आम तौर पर कूड़े-कचरे या कूड़े की डंपिंग की जगहों पर इकठ्ठा होते हैं.

अंग्रेजी अख़बार द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सॉलिड वेस्ट यानी ठोस कचरा, देश भर के शहरों में आबादी बढ़ने के समान्तर बढ़ा है. ये कचरा कितना बढ़ा? आंकड़ों में समझें तो भारतीय शहरों में रोज 1 लाख 50 हजार मीट्रिक टन कूड़ा पैदा होता है. बचा हुआ खाना फेंकने के मामले में भी दुनिया भर के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. साल 2021 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने एनवायरनमेंट प्रोग्राम के तहत एक फ़ूड-वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट जारी की थी. इसके मुताबिक, दुनिया भर के घरों, रेस्टोरेंट्स, वेंडर्स और फ़ूड सर्विस देने वाले रिटेलर्स मिलकर करीब 93.1 करोड़ टन खाना बर्बाद करते हैं. ये बर्बादी पूरी दुनिया के टोटल फूड प्रोडक्शन का करीब 17 फीसद है. इसी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति करीब 50 किलोग्राम खाना बर्बाद होता है.

यही बर्बाद होने वाला खाना आवारा कुत्तों का भोजन बनता है. इसके लिए कुत्ते घनी आबादी वाले इलाकों की तरफ बढ़ते हैं. साल 2021 में बेंगलुरु में एक स्टडी की गई थी. इसमें पाया गया कि बेकरी, रेस्टोरेंट और घरों से निकलने वाला कचरा कुत्तों के लिए खाने का प्राइमरी सोर्स था. इस रिपोर्ट में,
सार्वजनिक जगहों पर कचरे का मैनेजमेंट करके और बेकरी वगैरह के आस-पास कुत्तों की फीडिंग पर नियंत्रण करके कैरिंग कैपेसिटी कम करने का सुझाव दिया गया.

2014 की एक स्टडी में ये बात कही गई कि कुत्ते आम तौर पर इंसानों के लिए ख़तरा नहीं पैदा करते. और अगर कचरे का मैनेजमेंट ठीक हो तो कुत्ते, शांति से इंसानों के साथ रह सकते हैं.

शहरों में आवारा कुत्तों की आबादी तेजी से बढ़ी है. साल 2019 की जानवरों की गणना के मुताबिक कुत्तों की आबादी करीब डेढ़ करोड़ थी. हालांकि गैर-सरकारी अनुमानों के मुताबिक ये संख्या 6 करोड़ से भी ज्यादा है. और साल 2012 से लेकर साल 2020 के बीच कुत्तों के काटने के मामले दोगुने हो गए. वहीं रेबीज़ से होने वाली मौतों के मामले में भारत दुनिया में नंबर एक पर है. पूरी दुनिया में रेबीज़ से होने वाली मौतों में से एक तिहाई भारत के हिस्से आती हैं.

कचरा बढ़ने से कुत्तों के हमले बढ़े?

आंकड़ों से समझें तो कहा जा सकता है कि इंसानों की आबादी बढ़ने और कचरे के प्रबंधन में गड़बड़ी के चलते डॉग बाइट के मामले बढ़े हैं. साल 2015 में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु जैसी 10 मेट्रो सिटीज पर एक स्टडी हुई. इसके मुताबिक,

“शहरीकरण और विकास के चलते स्लम एरिया और असमानता को बढ़ावा मिलता है. जैसे-जैसे शहर विकसित हुए, सॉलिड वेस्ट का मैनेजमेंट करना बड़ी चुनौती बन गया. और इसके चलते आवारा कुत्ते भी बढ़े हैं.”

मिसाल के तौर पर साल 2012 में चंडीगढ़ शहर की इंसानी आबादी करीब 15 लाख थी. करीब 360 टन कूड़ा होता था. जबकि इस दौरान शहर में कुत्तों की आबादी करीब 18 हजार थी और उनके काटने के करीब 7 हजार मामले दर्ज हुए. साल 2019 तक कचरा बढ़कर 470 टन हो गया. इस वक्त तक आवारा कुत्तों की आबादी बढ़कर 23 हजार हो गई और कुत्तों के काटने के मामले भी बढ़ गए.

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि शहरीकरण और सॉलिड वेस्ट के प्रोडक्शन के बीच सीधा संबंध है. स्टडी में कहा गया है कि एनिमल बर्थ कण्ट्रोल सिस्टम का सुस्त होना 
और कचरे का ख़राब मैनेजमेंट आवारा जानवरों की तादाद बढ़ने की वजह है. भारत के पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, नगरपालिकाओं के कचरे का केवल 75 से 80 फीसद ही कलेक्ट किया गया और उसमें से भी सिर्फ 22 से 28 फीसद कचरा ही संसाधित यानी प्रोसेस किया गया. बाकी शहरों के आस-पास फेंक दिया गया. ये कचरा ही आवारा जानवरों के लिए भोजन बना.

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट (WRI) खाद्य, पानी, जंगल, ऊर्जा, जलवायु और शहरों की गतिविधियों पर नजर रखने वाली एक अंतरराष्ट्रीय गैरसरकारी संस्था है. इसके मुताबिक शहरों में आवासीय प्रबंधन ठीक ना होने के चलते कूड़े की डंपिंग साइट्स के आसपास स्लम बन जाते हैं और इन इलाकों में बहुत ज्यादा कूड़ा होने के चलते कुत्तों के हमले बढ़े हैं.

पीपुल फॉर एनिमल वेलफेयर सर्विसेज की फाउंडर मेंबर प्रीति श्रीवल्सन ने 2015 में द हिंदू से कहा था कि आवारा कुत्तों के काटने के मामलों से निपटने के लिए कचरे का बंदोबस्त करना पहला काम है. आसान भाषा में कहें तो कुत्तों के हमले बढ़ने का लेना-देना कचरे का सही निपटान न किए जाने से है.

अब जरा ये भी समझ लें कि कुत्तों के हिंसक होने के पीछे उनकी आबादी बढ़ने और कचरे का सही निपटान न होने के अलावा भी कुछ कारण हैं?

कुत्ते ज्यादा क्यों काटने लगे?

कावेरी राणा भारद्वाज एनिमल राइट एक्टिविस्ट हैं. आवारा कुत्तों के रेस्क्यू, इलाज और उनकी नसबंदी कराए जाने जैसे काम बरसों से कर रही हैं. हमने उनसे पूछा कि कुत्ते हिंसक क्यों हो गए हैं? क्या बीते कुछ वक़्त में उनका स्वभाव बदला है? जवाब में कावेरी कहती हैं,

"मेरे हिसाब से कुत्तों का स्वभाव खुद नहीं बदला. मैंने अभी हाल ही में एक कुत्ते को रेस्क्यू किया. उसे एक सोसाइटी के लोगों ने मार-पीट कर नाले में फेंक दिया था. सोसाइटी वालों का दावा था कि कुत्ता आक्रामक हो गया था. गार्ड सोसाइटी के लोगों के दबाव में कुत्ते को मार रहा है. अगर कुत्ता सोसाइटी में लोगों को काट रहा है इसका मतलब है कि वो वहां खतरा महसूस कर रहा है. और ऐसे में कुत्ता हमला करेगा ही. उसकी साइकोलॉजी हमने ही बदली है."

कोविड के दौरान क्या हुआ?

क्या कोविड के दौरान ऐसा कुछ हुआ है जिससे कुत्तों का सोशल बेहेवियर बदल गया और वो आक्रामक हो गए? इस पर कावेरी का कहना है कि कुत्तों के रहन-सहन में ह्यूमन इंटरवेंशन ज्यादा हुआ है.वे कहती हैं,

“लॉकडाउन के दौरान कुत्तों को फ़ीड करने का फैशन आ गया था. कुत्तों को खाना देने वाली भावना के बैकड्रॉप में हमें एक बड़ी साइकोलॉजिकल गलती हुई. लोग आवारा कुत्तों को सहारा देने के नाम पर दोनों वक़्त खाना खिला रहे थे. और जब लॉकडाउन ख़त्म हुआ तो ये प्रैक्टिस भी बंद हो गई. कुत्ते असल में Natural Scavengers होते हैं. वो अपना खाना खुद ढूंढ लेते हैं. कुत्ते कभी भूख से नहीं मरते. बीमारी, एक्सिडेंट से मरते हैं. उन्हें फीड करने में बुराई नहीं है. लेकिन रोजाना सुबह शाम प्लैटर पर खाना देने की भी जरूरत नहीं है. ऐसा करने से उनका व्यवहार पालतू कुत्ते की तरह होने लगता है. और फिर अचानक खाना बंद होने से वो खतरनाक हो सकते हैं.”

कावेरी कहती हैं कि खाना देने से दो तरह की दिक्कत हुई. उदाहरण देकर समझाते हुए उन्होंने बताया,

"मान लीजिए हमने दो कुत्तों को घर के गेट पर दोनों वक़्त खाना देना शुरू किया तो वो रोज खाने के लिए आने लगेंगे. खाना ढूंढने का उनका काम हमने छीन लिया. वो खाली हो गए. अब वो पहले की तरह सांप, चूहे और बाकी खाना ढूंढना बंद कर देंगे. ये ठीक नहीं है. दूसरी गलती ये कि वो उसी पालतू कुत्ते की तरह रिएक्ट करने लगेंगे जैसे एक पालतू कुत्ता घर में करता है. पालतू कुत्ते की प्रवृत्ति अपने मालिक या खाना देने वाले को गार्ड करने की होती है. इसीलिए कुत्तों को सबसे वफादार पालतू जानवर कहा जाता है. गेट पर  रोजाना खाना देकर हमने एक पालतू कुत्ता तैयार कर दिया है. वो भी सड़क पर. वो आपके गेट के बाहर के स्पेस को भी अपनी टेरिटरी समझेगा. और वहां आने वाले दूसरे कुत्तों और इंसानों के प्रति आक्रामक होगा. उसे नहीं पता है कि ये आपका घर है या नहीं. उसे यहां आपके लिए आक्रामकता के स्तर तक वफादार होना है या नहीं."

डॉक्टर अभिषेक डाबर, संभल जिले के वेटरिनरी ऑफिसर हैं. इससे पहले नोएडा में कार्यरत रहे हैं. कावेरी की बात से सहमति जताते हुए अभिषेक कहते हैं,

“मैं जिस कॉलोनी में रहता हूं. वहां पार्क के आस-पास कुछ लोग 10-12 कुत्तों को फीडिंग कराते हैं. अब मैं अपने पिता के लिए डरता हूं. आवारा कुत्ते हमारे लिए गंदगी साफ़ करने के यंत्र की तरह काम करते थे. हमें उन्हें खाना देना नहीं होता था. वो हमारे बचे हुए खाने और कचरे से अपना खाना ढूंढ लेते थे. फिर सो कॉल्ड एनिमल लवर्स आ गए. जिन्होंने कुत्तों को टेरिटरियल एनिमल बना दिया. अब वो कम्युनिटी डॉग नहीं रह गए. पहले उनकी ये टेरिटरी सिर्फ ब्रीडिंग के लिए थी. फीडिंग के लिए नहीं थी. अब उनको खाना देने वाला उनका मालिक है. और वो जहां रह रहे हैं वो उनका इलाका. किसी नए कुत्ते या किसी और इंसान के उनकी टेरिटरी में आने पर वे हमलावर हो जाते हैं.”

मेघना उनियाल, ह्यूमेन फाउंडेशन फॉर पीपल एंड एनिमल्स की डायरेक्टर हैं. उन्होंने भी बीते महीने द हिन्दू से बात करते हुए कहा था,

"कुत्ता एक वफादार जानवर है. और वो सोचता है कि मुझे यहां खिलाया जा रहा है, ये मेरा घर है. स्वाभाविक रूप से कुत्तों के ये झुंड, जिन सार्वजनिक जगहों पर उन्हें खाना मिलता है, वहां के लिए टेरिटरियल होकर आक्रामक हो जाते हैं."

फरवरी 2023 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मौखिक टिप्पणी में कहा था कि अगर कुत्तों को खाना दिया जाए और उनकी देखभाल की जाए तो वो कम आक्रामक हो जाएंगे. लेकिन कोर्ट ने अपनी इस टिप्पणी के पीछे किसी शोध या अध्ययन का हवाला नहीं दिया था. हालांकि इसके उलट नवंबर 2022 में, बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि आवारा जानवरों को फीड करने में रुचि रखने वाले लोगों को पहले उन्हें औपचारिक रूप से अडॉप्ट करना चाहिए और फिर अपने घरों में खाना खिलाना चाहिए. सार्वजनिक जगहों पर कुत्तों को खाना खिलाते पाए जाने पर नगर पालिका को ₹200 का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया गया था.

सोसाइटीज से कुत्तों के हमले की खबरें ज्यादा आती हैं?

अभिषेक एक और गौरतलब बात कहते हैं,

"प्रदूषण, पर्यावरण के बदलाव जिस तरह हमें बदल रहे हैं. उसका कुछ प्रभाव बाकी जानवरों पर भी है. हमारा ख़राब वातावरण हम सबको हिंसक बना रहा है. लेकिन सोसाइटीज़ से ही कुत्तों की आक्रामकता की खबरें क्यों आती हैं? क्योंकि वहां खुले में कूड़ा डालना बंद हुआ है. अब गाड़ियां आती हैं. पैक्ड कचरा लेकर चली जाती हैं. खुले में कूड़ेदान गायब हो गए हैं. कुत्ते खाना खोजने का काम कहां करें? सोसाइटी को साफ रखने के प्रयास कुत्तों पर भारी पड़ रहे हैं. खुले इलाकों में ऐसी समस्या कम है. कुत्तों को एक जगह रेगुलर फ़ीड न कराएं. उनके खाने लायक कचरा रख दीजिए. दूर-दूर रखिए. कोई एक अड्डा न बनाइए. और सोसाइटी के सारे लोग ऐसा करें. कोई एक करेगा तो उसे छोड़ बाकी लोगों के लिए दिक्कत है."

कुत्ते झुंड में हमला क्यों करते हैं?

कावेरी से हमारा सवाल ये भी था कि बीते कुछ दिनों से आवारा कुत्तों के झुंड में हमला करने की खबरें भी आई हैं. ये झुंड में हमला क्यों करते हैं?

इस पर कावेरी कहती हैं,

"कुत्ते बहुत जल्दी नई जनरेशन तैयार करते हैं. एक सामान्य फीमेल औसतन 6 महीने में 6 बच्चे देती है. साल भर में 12. और सिर्फ 1 साल की उम्र में फीमेल बच्चे देने लायक हो जाती है. मल्टीप्लाई करेंगे तो समझेंगे कि कुत्ते कितनी तेजी से बढ़ते हैं. और झुंड में हर जानवर खुद को ताकतवर समझता है. कुत्तों की छोटे जानवरों को चेज़ करने की आदत है. झुंड में ये आदत और बढ़ जाती है. कुत्तों के हर झुंड में एक अल्फ़ा होता है. जो झुंड का लीडर होता है. वो आक्रामक है तो बाकी 'बीटा' भी उसके प्रोवोकेशन पर आक्रामक होंगे. अल्फ़ा आक्रामक क्यों हुआ है ये हम समझ चुके हैं."

क्या किया जाना चाहिए? इस पर कावेरी कहती हैं,

"अल्फ़ा को शेल्टर होम भेज देना एक तरीका है. तीन महीने में वो बिल्कुल बदल जाता है. भूल जाता है कि वो किसी ग्रुप का लीडर भी था. बाकी बचे बीटा आपस में अल्फ़ा बनने का संघर्ष करते रहते हैं. लेकिन कोई भी नया अल्फ़ा नहीं बन पाता. सिर्फ़ 10 फ़ीसद मामलों में ऐसा होता है कि एक नया अल्फ़ा तैयार हो और हमें उसे शेल्टर भेजना पड़े."

कावेरी कहती हैं,

"हमने गलती की है. कुत्तों को पहले खिलाया, फिर मारना शुरू किया. बिना उनकी साइकोलॉजी समझे. अब बड़े पैमाने पर कुत्तों की नसबंदी कराना ही एक मात्र इलाज है."

कावेरी सरकारी प्रयासों को नाकाफ़ी बताती हैं और नसबंदी अभियान की शिथिलता पर नाराजगी जाहिर करती हैं. कहती हैं कि ये पुरानी समस्या है, बात आज हो रही है. कावेरी ने बताया,

“साल 2000 के आसपास कई बड़े शहरों में बड़े पैमाने पर कुत्तों को मारा गया. एनिमल वेलफेयर वालों ने इस पर चिंता जाहिर की. WHO की तरफ से कहा गया था कि कुत्तों को मारना नहीं, उनकी बर्थ कंट्रोल करना ही समाधान है. इसके बाद साल 2001 में भारत सरकार ने Animal Birth Control (Dogs) Rules बनाए. डॉग मॉनिटरिंग कमेटियां बनाई गईं. इनमें सरकारी, गैर सरकारी संगठनों के लोग सभी थे. इनका काम मॉनिटरिंग करना था. 2001 के रूल्स के मुताबिक़ कोई कुत्ता मारा या डिस्लोकेट नहीं किया जा सकता. शेल्टर भेजा जा सकता है. लेकिन इन रूल्स के आने के 20 साल बाद भी कुत्तों की नसबंदी की जरूरत को गंभीरता से नहीं लिया गया. 70 फीसद नगर पालिकाओं ने नसबंदी शुरू नहीं की है. जब कि साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि 2001 के रूल्स के ऊपर कोई रूल नहीं है. WHO भी कहता है कि अगर रेबीज़ को पूरी तरह ख़त्म करना है तो राष्ट्रीय स्तर पर एनिमल बर्थ कंट्रोल करना ही होगा.”

डॉक्टर अभिषेक कहते हैं,

"हम नोएडा में 45 हजार डॉग्स की नसबंदी कर चुके हैं. लेकिन कंट्रोल नहीं हो पा रहा है. क्योंकि आस-पास के इलाकों से कुत्ते आ जाते हैं. गाजियाबाद में पिछले 25 सालों से कुछ नहीं हुआ है. पैन स्टेट ABC प्रोग्राम (Animal Birth Program) चलाने की जरूरत है जैसा केरल में चल रहा है. नसबंदी के लिए कुत्तों को पकड़ेंगे तो साथ ही ARV (Anti Rabies Vaccination) भी किया जा सकता है."

हमारी जिज्ञासा का एक और सवाल, कि क्या कोविड के चलते कुत्तों की शारीरिक, मानसिक स्थिति पर कोई प्रभाव पड़ा है, इससे कावेरी इनकार करती हैं, बल्कि उनका कहना है कि कोविड ने हमें ज्यादा असंयमित किया है. कुत्तों के काटने की खबरें आती हैं तो उन्हें मारने की भी खबरें आती हैं.

कावेरी के मुताबिक अगर आप डॉग लवर हैं तो सड़क पर उन्हें रेगुलर फ़ूड न दें. कुछ कर सकते हैं तो उनकी नसबंदी करा दें, रेबीज़ के टीके लगवा दें. पेट में कीड़े होना कुत्तों के लिए बड़ी दिक्कत है. उसका इलाज करवा दें.

वीडियो: 100 कुत्तों को हाथ-पैर और मुंह बांधकर फेंका गया, 90 की मौत हो गई

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