पाकिस्तान आज़ादी 14 अगस्त को क्यों मनाता है?
जब जिन्ना की ठुड्डी हिली और पाकिस्तान बन गया!
डॉमिनिक लैपियर और लैरी कॉलिंस अपनी किताब, फ़्रीडम एट मिडनाइट में एक क़िस्से का ज़िक्र करते हैं. लुई माउंटबेटन आख़िरी वाइसरॉय बनकर भारत आए. माउंटबेटन ने आते ही भारत के सभी बड़े नेताओं से बात की. नेहरू और गांधी से मिलने के बाद उन्हें लगा, उन्हें जो ज़िम्मेदारी मिली है, वो उतनी भी मुश्किल नहीं है. अंत में माउंटबेटन की मुलाक़ात मुहम्मद अली जिन्ना से हुई. मुलाक़ात के बाद उन्होंने अपने प्रेस सचिव से कहा, ‘हे भगवान, आदमी था कि बर्फ़ की चट्टान.’ बर्फ़ की चट्टान कितनी सख़्त थी, ये वाइसरॉय को आगे के महीनों में पता लगना था. लेकिन उस रोज़ एक और दिलचस्प चीज़ हुई. पहली मुलाक़ात में माउंटबेटन दम्पति और जिन्ना की तस्वीर ली गई. जिन्ना को अंदाज़ा था कि ऐसा होगा. इसलिए वो इस ख़ास मौक़े के लिए एक कविता या जिसे वन लाइनर कहते हैं, याद करके लाए थे. लेकिन ये वन लाइनर एक ही स्थिति में फ़िट बैठ सकता था. तब जबकि जिन्ना और माउंटबेटन अग़ल बग़ल खड़े हों और बीच में एडविना खड़ी हों. हुआ ये दोनों पति पत्नी ने जिन्ना को अपने बीच में खड़ा कर लिया. जिन्ना एक ही चीज़ सोच के आए थे, सो उन्होंने वही दोहरा दी. बोले, 'अ रोज़ बिट्वीन टू थॉर्न्स' यानी 'दो कांटों के बीच एक गुलाब'.
14 अगस्त को पाकिस्तान अपनी आज़ादी मनाता है. पाकिस्तान के गठन में जिस शख़्स का सबसे बड़ा हाथ था, या कहें ज़िद थी, वो थे मुहम्मद अली जिन्ना. जिन्ना ही वो शख़्स से जिनसे मिलने के बाद माउंटबेटन ने कहा था, “जब तक मैं मुहम्मद अली जिन्ना ने नहीं मिला था , तब तक मुझे अंदाज़ा ही नहीं था कि जो ज़िम्मेदारी मुझे दी गई है, वो कितनी असम्भव है.”
जिन्ना की जिद"मिस्टर जिन्ना. अगर आपने सर नहीं हिलाया, फिर मैं आपके लिए कुछ नहीं कर पाउंगा. ये धमकी नहीं है. आपका पाकिस्तान आपसे छिन जाएगा. और जहां तक मेरा सवाल है, आप भाड़ में जाएं. मुझे कोई परवाह नहीं है"
2 जून 1947 की रात. भारत के आख़िरी वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन के घर की बत्तियां जली हुई थीं. भूरे रंग की मेज़ की एक तरफ़ भारत के आख़िरी वाइसरॉय बैठे थे. और दूसरी तरफ़ 90 डिग्री से कुछ ज़्यादा के एंगल में कुर्सी पर टंगे से बैठे हुए मुहम्मद अली जिन्ना. द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की फ़ौज को झुका देने वाले माउंट बेटन के लिए ये चढ़ाई काफ़ी मुश्किल साबित हो रही थी. ट्रान्स्फ़र ऑफ़ पावर के तमाम प्लान फेल होने के बाद माउंटबेटन खुद लंदन जाकर एक नए मसौदे पर दस्तख़त करवाकर लाए थे. नेहरू तैयार थे, कांग्रेस तैयार थी. गांधी इस योजना में अड़ंगा अड़ा सकते थे, लेकिन माउंटबेटन की ख़ुशक़िस्मती से ये सोमवार का दिन था. और इस दिन गांधी मौन व्रत रखते थे. इसलिए कुछ नहीं बोल सकते थे. सबको राज़ी करने के बाद माउंबेटन ने रात की आख़िरी मुलाक़ात के लिए जिन्ना को बुलावा भेजा. जिन्ना को उनका प्यार पाकिस्तान मिल रहा था. सो माउंटबेटन को यक़ीन था कि बर्फ़ की ये मूरत आज पिघल जाएगी.
माउंटबेटन ने जिन्ना से पूछा, 'मिस्टर जिन्ना, तो मैं आपकी हां समझूं'. दूल्हे के फूफा बने जिन्ना ने कहा, "मुझे मुस्लिम लीग से बात करनी होगी". माउंटबेटन को पता था, जिन्ना ही मुस्लिम लीग हैं. उन्होंने कई तरीके से जिन्ना की हां निकलवाने की कोशिश की. लेकिन जिन्ना के शब्दकोश में जैसे 'हां' शब्द था ही नहीं. माउंटबेटन का संयम अब जवाब दे चुका था. उन्होंने लगभग चेतावनी देते हुए जिन्ना से कहा,
"कल मीटिंग में मैं सबके सामने ऐलान करुंगा कि मिस्टर जिन्ना ने सहमति दे दी है. इसके बाद मैं आपकी तरफ़ देखूंगा. अगर आपने उस वक्त हां नहीं कहा, तो समझो पाकिस्तान गया आपके हाथ से".
मीटिंग इस बात पर ख़त्म हुई. अगले दिन गोलमेज़ पर एक बार फिर सभी नेता मौजूद थे. वादे के अनुसार माउंटबेटन ने सबके सामने ऐलान कर दिया कि जिन्ना राज़ी हो चुके हैं. इसके बाद उन्होंने जिन्ना की ओर देखा. इस क्षण के बारे में माउंटबेटन ने बाद में कहा था, "ये मेरी ज़िंदगी का सबसे रोमांचक क्षण था". जिन्ना और माउंटबेटन की नज़रें टकराई. जिन्ना के मुंह से कुछ नहीं निकला. माउंटबेटन ने प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली को वादा किया था कि वो 24 घंटों में पार्टिशन प्लान की घोषणा कर सकेंगे. उनके पास कोई ऑप्शन नहीं था. उन्होंने जिन्ना की ओर नज़रें गढ़ाई रखीं. लगभग अनंत इंतज़ार के बाद एक गर्दन झुकी. माथे पर बल पड़े. और जिन्ना ने ठुड्डी के झटके से पाकिस्तान के गठन पर मुहर लगा दी.
जिन्ना का सबसे बड़ा सीक्रेटमाउंटबेटन की जान में जान आई. हालांकि अगर उनकी ख़ुफ़िया सीक्रेट पुलिस, (जो डींगे हांकती थी कि उसने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन के क्रांतिकारियों को ज़मीन के अंदर से ढूंढ निकाला था), में थोड़ा दम होता तो माउंटबेटन की राह में जिन्ना इतना बड़ा कांटा बन ही नहीं पाते. जिन्ना के सीने में एक बहुत बड़ा राज था. जिसकी फ़ोटो एक बेनाम लिफ़ाफ़े में बंद मुम्बई के एक डॉक्टर की तिजोरी में रखी हुई थी.
एक काले रंग की फ़िल्म में दो बड़े बड़े सफ़ेद धब्बे. और उनके इर्द गिर्द और बहुत से धब्बे. ये चित्रकारी थी जिन्ना के फेफड़ों की. जिन्ना को TB का रोग था. जो बहुत आगे बढ चुका था. थोड़ा सा बोलने के बाद भी वो घंटों हांफ़ते रहते थे. जून 1946 में जिन्ना को शिमला में ब्रानकाइटिस का दौरा पड़ा. उनकी बहन फ़ातिमा जिन्ना, उन्हें फ़ौरन मुम्बई लेकर आई. तुरंत मुम्बई के एक बड़े डॉक्टर को बुलाया गया. जिन्ना ट्रेन से आ रहे थे. उनके आने से पहले डॉक्टर उनके ट्रेन में घुसे. और चेकअप के बाद चेतावनी देते हुआ कहा, अगर उन्होंने प्लैटफ़ॉर्म में उनके स्वागत के लिए जमा भीड़ के बीच से गुज़रने की कोशिश की तो वो बीच में ही ढेर हो जाएंगे. इसलिए बम्बई स्टेशन से पहले एक छोटे से स्टेशन पर उतारकर उन्हें सीधे अस्पताल में भर्ती कराया गया. जिन्ना मामूली आदमी होते तो उन्हें अपने आगे के दिन उसी हॉस्पिटल में काटने पड़ते. लेकिन जिन्ना के लिए विशेष व्यवस्था हुई. सबसे छुपाकर उन्हें डॉक्टर ने अपने घर में रखा.
डॉक्टर ने उन्हें हिदायत दी कि उन्हें अपना काम कम करना पड़ेगा. लेकिन जिन्ना हरगिज़ तैयार नहीं थे. एक पूरा देश जो अभी सिर्फ़ उनकी कल्पना में था, हक़ीक़त बनने के लिए उनका इंतज़ार कर रहा था. इसलिए जब बंटवारे की बात तय हुई, उन्होंने सीधा ऐलान करते हुए कहा कि वो पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बनेंगे. माउंटबेटन ने उन्हें समझाया, असली ताक़त प्रधानमंत्री के हाथ में होगी. लेकिन जिन्ना का सोचना अलग था. उन्होंने पहले के ब्रिटिश गवर्नर जनरल्स की शान-ओ शौक़त देखी थी. इसलिए उन्होंने माउंटबेटन से दो टूक कहा, “पाकिस्तान का गवर्नर जनरल मैं बनूंगा. और प्रधानमंत्री वही करेगा जो मैं कहूंगा.”
पार्टिशन की पूरी क़वायद के दौरान माउंटबेटन को भनक तक नहीं लगी थी कि जिन्ना साल दो साल के मेहमान है. हालांकि उनके पहले के वाइसरॉय लॉर्ड वेवल को जिन्ना की बीमारी का पता था. और ये रिपोर्ट माउंटबेटन तक नहीं पहुंची थी. बंटवारे के 25 साल बाद माउंटबेटन ने एक इंटरव्यू में कहा था, अगर मुझे इस बात का पता होता तो मैं निश्चित दूसरे तरीक़े से काम करता.
पाकिस्तान की आजादी 14 अगस्त को क्यों?माउंटबेटन ने भारत की आज़ादी का दिन 15 अगस्त तय किया था. आज़ादी की घोषणा के वक्त उन्हें दोनों जगह रहना था. इसलिए तय हुआ कि पाकिस्तान में आज़ादी का फ़ंक्शन 14 अगस्त को मनाया जाएगा. नए देश की कमान संभालने के लिए जिन्ना जब भारत से पाकिस्तान के लिए रवाना हुए, उन्होंने हमेशा की तरह लिनेन का सूट नहीं पहना था. धार्मिक पहचान के आधार पर बने देश का सबसे बड़ा नेता अब कपड़ों की पहचान का मोहताज था. जिन्ना ने उस रोज़ एक ऐसा लिबास पहना जो उन्होंने 50 साल से नहीं पहना था. एक लम्बी शेरवानी और चुस्त चूड़ीदार पायज़ामा. हांफ़ते हुए विमान की सीढ़ी चढ़ने के बाद जिन्ना एक सीट पर जाकर बैठ गए. भारत से जाते हुए उनके आख़िरी शब्द थे, 'किस्सा ख़त्म हुआ'.
14 अगस्त को कराची में पाकिस्तान की आज़ादी का जश्न मनाया गया था. जिन्ना ने माउंटबेटन दम्पति के लिए दोपहर के भोज का आयोजन किया था. लेकिन जब उन्हें पता चला कि ये रमज़ान के पवित्र महीने का आख़िरी जुम्मा है. लंच को डिनर में चेंज कर दिया गया. अब जाते जाते इस सवाल का जवाब कि पाकिस्तान 14 अगस्त को आज़ाद क्यों हुआ और भारत 15 को क्यों?
असलियत ये है कि पाकिस्तान और भारत दोनों एक ही दिन आज़ाद हुए. ब्रिटिश संसद में इंडिया इंडीपेंडेंस बिल पास हुआ. उसमें लिखा था, 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को भारत का बंटवारा होगा, जिससे भारत और पाकिस्तान, दो नए देश वजूद में आ जाएंगे. खुद जिन्ना ने 15 अगस्त 1947 के रोज़ पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग सर्विस से देश के नाम संदेश में कहा था, "15 अगस्त आज़ाद पाकिस्तान का जन्मदिन है. इस बात की आप सब को बधाई देता हूं." इसके अलावा पाकिस्तान ने जब अपना पहला डाक टिकट जारी किया, उसमें भी आज़ादी की तारीख़ 15 अगस्त ही था.
फिर सवाल ये कि फिर पाकिस्तान 14 अगस्त को आज़ादी क्यों मनाता है? दो कारण थे. पहला कारण तो थोड़ी देर पहले बताया कि 15 अगस्त को माउंटबेटन एक साथ दो जगह उपस्थित नहीं हो सकते थे. दूसरा कारण अनुमानों के आधार पर बताया जाता है, कि दोनों देशों के बीच तनाव और जुदा दिखने की फ़ितरत के चलते पाकिस्तान ने तय किया कि 14 अगस्त को आज़ादी का दिन मनाया जाएगा.
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