दलित होने की वजह से मल्लिकार्जुन खरगे को PM उम्मीदवारी देने की बात हुई या खेल कुछ और है?
INDIA गठबंधन की बैठक से पहले अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के बीच बैठक हुई थी. अगले दिन गठबंधन की बैठक में ममता ने अचानक खरगे का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित कर दिया. केजरीवाल ने लगे हाथ समर्थन भी कर दिया.
तो क्या 2024 का लोकसभा चुनाव ‘नरेंद्र मोदी बनाम मल्लिकार्जुन खरगे’ होने वाला है? 19 दिसंबर को 'INDIA' गठबंधन की बैठक के बाद से इस सवाल पर चर्चा ज़ोर पकड़ चुकी है. इस चौथी बैठक में शामिल ममता बनर्जी ने कथित तौर पर एकाएक प्रस्ताव रख दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर देना चाहिए. ममता को साथ मिला अरविंद केजरीवाल का.
ये खबर जितनी बड़ी थी, उससे ज्यादा दिलचस्प ये बात थी कि ममता बनर्जी या अरविंद केजरीवाल ने गठबंधन के किसी भी दल से मल्लिकार्जुन खरगे के नाम को लेकर कोई चर्चा नहीं की थी. इसलिए बैठक में जब ममता का ये प्रस्ताव आया तो कई नेता अचंभित रह गए. हालांकि, खरगे ने खुद ही इस बात को दबा दिया. बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेस हुई. जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा,
"गठबंधन को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने की जरूरत नहीं है. अगर हमारे पास पर्याप्त सांसदों की संख्या नहीं होगी तो प्रधानमंत्री पद को लेकर बात करने का क्या फायदा? इसलिए हम साथ मिलकर लड़ेंगे और बहुमत हासिल करेंगे."
सूत्रों के हवाले से आई खबरें कहती हैं कि दूसरे दल इस बात पर अपनी राय रखते, इससे पहले ही खरगे ने बात खत्म कर दी. इसके बाद बैठक में इस विषय पर चर्चा नहीं हुई.
इधर, इस बात की चर्चा भी है कि ममता और केजरीवाल ने इस बारे में किसी दूसरे दल से चर्चा क्यों नहीं की? इंडिया टुडे के कन्सल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई का कहना है कि
'INDIA' की बैठक से एक दिन पहले ममता बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. तब उन्होंने ममता से पूछा कि क्या खरगे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए. ममता ने जवाब दिया कि PM उम्मीदवार की घोषणा चुनाव के बाद ही होगी.
यहां ये जानकारी गौरतलब है कि बैठक से एक दिन पहले 18 दिसंबर को दिल्ली में केजरीवाल और ममता बनर्जी के बीच वन-टू-वन मीटिंग हुई थी. अगले दिन गठबंधन की बैठक हुई और ममता और केजरीवाल ने खरगे का नाम प्रपोज़ कर दिया.
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क्या खरगे पीएम उम्मीदवार हो सकते हैं?सवाल है कि क्या खरगे को गठबंधन का नेता घोषित किया जाएगा. इसकी पहली वजह ये कि खरगे ने खुद ही इसकी संभावना को पहलेपहल नकार सा दिया है. मसला ये भी है कि INDIA गठबंधन के कुछ प्रमुख नेता खुद को पीएम उम्मीदवार मानते होंगे, भले सामने साफ-साफ ना कहें. ऐसे में चुनाव के पहले पीएम उम्मीदवारी को लेकर कोई आम सहमति बनना जरूरी है, जो फिलहाल मुश्किल लग रही है.
इसे लेकर हमने बात की वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी से. उनका कहना है खरगे हों या कोई और नेता, फिलहाल गठबंधन में किसी को भी प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया जाएगा. उनके मुताबिक,
“इस एक शिगूफे की तरफ देखा जाना चाहिए. खरगे दलित हैं. और दलित प्रधानमंत्री का एक मैसेज दिया गया है. ये मैसेज काम करता भी दिख रहा है. इस बात की चर्चा हो रही है. ये गठबंधन के लिए एक सकारात्मक पहलू है. खरगे को उम्मीदवार भले न बनाया जाए. इस चर्चा का फायदा जरूर मिल सकता है.”
देश में अब तक एक भी दलित प्रधानमंत्री नहीं बना है. बाबू जगजीवन राम प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते-पहुंचते रह गए थे. वो अपने समय में कांग्रेस के सबसे कद्दावर रहे. लेकिन पीएम नहीं बन सके.
वहीं बीजेपी की बात की जाए तो पिछले 20 सालों से पार्टी गैर-यादव OBC और गैर-जाटव दलित जातियों को साधने की कोशिश करती रही है. इसका फायदा चुनाव में देखने को मिला भी है. 'INDIA' गठबंधन में इससे आगे बढ़कर बात की गई है. दलित नेता को ही प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना की बात.
इस पर CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार का कहना है,
“इसके पीछे राहुल गांधी को साइड करने की कोशिश है. गठबंधन की कोई भी पार्टी राहुल गांधी के नाम पर सहमत होती नजर नहीं आती. लेकिन खरगे ऐसा नाम है जिस पर को किसी पार्टी को कोई ऐतराज नहीं होगा. खरगे दलित समुदाय से आते हैं. उनके नाम पर दलितों को एकजुट करने की कोशिश की जाएगी. दलितों में मैसेज जाएगा.”
संजय कुमार ने साथ में ये भी कहा,
“बीजेपी उत्तर भारत में मजबूत है. दक्षिण में नहीं. खरगे दक्षिण भारत से ही आते हैं. ऐसे में दक्षिण भारत में ज्यादा सीटें जुटाने में मदद मिल सकती है.”
हाल में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के बाद उत्तर भारत में बीजेपी का दबदबा साफ दिखा है. कुछेक राज्यों को छोड़ दिया जाए तो उत्तर के लगभग सभी राज्यों में बीजेपी की सरकार है. लेकिन दक्षिण भारत के किसी भी राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं है. कर्नाटक में इसी साल हुए चुनाव में बीजेपी हार गई जो दक्षिण में बीजेपी का एकमात्र गढ़ था. खरगे उसी कर्नाटक से आते हैं.
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क्या ये सब बातें उन्हें पीएम उम्मीदवारी दिलाने के लिए काफी हैं. इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक कौशिक डेका से हमने बात की. उन्होंने एक और पहलू जोड़ा. डेका कहते हैं,
"ममता और केजरीवाल ने एक तीर से कई शिकार किए हैं. पहली बात तो ये कि खरगे के नाम पर कांग्रेस न तो इनकार कर सकती न ही हां कर सकती है. यानी कांग्रेस को फंसाने जैसी स्थिति है. खरगे का नाम आगे आने से राहुल गांधी पिक्चर से बाहर हो जाएंगे. जिस पर बाकी दलों की भी सहमति रहेगी. दूसरी बात, ममता और केजरीवाल दोनों ही खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं. खरगे का नाम आने पर नीतीश कुमार भी साइड हो जाते हैं."
'INDIA' गठबंधन को रूप देने में नीतीश कुमार का अहम रोल रहा है. उन्हीं के बुलावे पर पटना में गठबंधन की पहली बैठक हुई थी. ममता 2011 से बंगाल की मुख्यमंत्री हैं. बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. वहीं केजरीवाल तीन बार दिल्ली जीत चुके हैं. पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार है. अब तो AAP को राष्ट्रीय दल का दर्जा भी मिल चुका है. राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार के बाद केजरीवाल की पार्टी उत्तर भारत में खुद को सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी घोषित कर चुकी है. ऐसे में इन सभी नेताओं की नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं होगी, ये कम से कम कोई राजनीतिक जानकार तो नहीं मानेगा.
इस पर कांग्रेस की राजनीति के जानकार और एमएसजे कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अरविंद कहते हैं कि गठबंधन के नेता खरगे के नाम पर एकमत होंगे. उन्होंने कहा-
खरगे के नाम पर कांग्रेस भी राज़ी होगी और गठबंधन के सभी दल भी एकमत होंगे. जाहिर तौर पर इसकी एक वजह उनका दलित समुदाय से आना भी है. पिछले चुनावों में हमने देखा हैं कि दलित कांग्रेस को वोट दे रहे हैं. ऐसे में खरगे को गठबंधन का पीएम उम्मीदवार बनाने के बेहतर नतीज़े देखने को मिल सकते हैं.
फिलहाल तो गठबंधन और खुद खरगे प्रधानमंत्री के उम्मीदवार की घोषणा से कतराते नज़र आ रहे हैं. लेकिन प्रधानमंत्री पद पर चर्चा से पहले गठबंधन का सबसे बड़ा सिरदर्द सीटों का बंटवारा है. उसी के आधार पर ये तय होगा कि गठबंधन रहेगा भी या नहीं.
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