नवरात्रि शुरू हो चुकी है. देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से नवरात्रिमनाई जाती है. कई इलाकों में पंडाल लगते हैं, कई इलाकों में घरों में ही घट पूजाकरके ये त्योहार मनाया जाता है. सबसे ज्यादा ध्यान खींचती हैं मध्य भारत में दुर्गापंडालों के साथ सजने वाली झांकियां, पश्चिम बंगाल की काली पूजा और गुजरात का गरबा. वैसे अब गरबा देश के दूसरे राज्यों में भी होने लगा है, पर गरबे का असली रंग तोगुजरात में ही दिखता है. रंग-बिरंगी चनिया चोली, एक लय में गरबा करतेसैकड़ों-हज़ारों लोग. नाचने वाले को भी मज़ा आता है और देखने वाले को भी. पर येगरबा शुरू कब और कैसे हुआ?क्यों करते हैं गुजरात में गरबाये तो सबको पता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा होती है. उन्हें प्रसन्नकरने की कोशिश होती है ताकि जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहे. गर्बो या गरबा शब्द कीउत्पत्ति हुई है संस्कृत शब्द गर्भदीप से. ये एक स्त्री के गर्भ का प्रतीक मानाजाता है. गोलाकार छेद वाले मटके को गर्बो के नाम से जाना जाता है. इसकी स्थापनाहोती है और देवी को खुश करने के लिए गर्बो के चारों तरफ घूम-घूमकर नृत्य किया जाताहै. और इसी नृत्य को गरबा कहा जाता है. बीच में रखा गर्बो जीवन का प्रतीक है.बड़े-बुजुर्ग इसके पीछे एक पौराणिक कहानी भी बताते हैं. वो बताते हैं कि एक समय ऐसाथा जब महिषासुर नाम के राक्षस ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी थी. उसे वरदान मिलाथा कि कोई महिला उसे मार नहीं पाएगी और देवता भी उसे हरा नहीं पा रहे थे. तब देवतामदद के लिए विष्णु के पास गए. बहुत चर्चा हुई, और फिर ब्रह्मा, विष्णु और महेश नेअपनी शक्तियों को मिलाया, जिससे शक्ति यानी दुर्गा का अवतार हुआ. महिषासुर सेलगातार नौ दिन लड़ने के बाद दुर्गा ने उसका वध कर दिया. इससे महिषासुर केअत्याचारों का अंत हुआ. गुजरात का गरबा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. यहां का गरबा देखने विदेशों से लोगपहुंचते हैं. इस साल लल्लनटॉप की टीम भी गुजरात जाएगी, बने रहिएगा हमारे साथ.