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एक प्रोडक्ट के तीन मॉडल निकाल कंपनियां लगा रहीं चूना, पूरा गणित दिमाग खोल देगा!

कंपनियां अक्सर अपने प्रोडक्ट के तीन मॉडल बनाती हैं. कैसे तीन की बीन बजाकर हमें यानी कस्टमर को घुमाया जाता है. हालांकि इसको बेवकूफ बनाना नहीं कहेंगे क्योंकि अपने प्रोडक्ट के लिए स्ट्रेटजी बनाना कहीं से गलत नहीं. हां इससे जरिए हमें भरमाया जरूर जाता है.

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Why do Apple and others make three models of their products? Decoy Effect
कंपनियों की तीन की तिकड़म.
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सूर्यकांत मिश्रा
20 मई 2024 (Published: 18:17 IST)
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एक बड़ी आम कहावत है. तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा. मतलब तीन का मेल काम खराब करता है. लेकिन अगर कंपनियों के हिसाब से देखें तों मामला इसके एकदम उलट है. तकरीबन हर प्रोडक्ट के तीन मॉडल हैं. क्या पॉपकॉर्न, क्या स्मार्टफोन, क्या स्मार्टटीवी और क्या कार. एक बेसिक मॉडल फिर मिडिल और फिर टॉप. आपने शायद कभी गौर नहीं किया होगा लेकिन इतना पढ़कर अब आप जरूर कहेंगे- अमा यार, बात तो तुम सही कर रिये हो. सारी कंपनियां तीन का बीन बजा रही हैं. अब कंपनियां ऐसा कर रही हैं तो इसके पीछे कुछ तो वजह होगी.

आज इसी वजह की बात करेंगे. कैसे तीन की बीन बजाकर हमें यानी कस्टमर को घुमाया जाता है. हालांकि, इसको बेवकूफ बनाना नहीं कहेंगे क्योंकि अपने प्रोडक्ट के लिए स्ट्रैटजी बनाना कहीं से गलत नहीं. हां, इससे जरिए हमें भरमाया जरूर जाता है.

बड़ा वाकई में बेहतर 

कल्पना कीजिए कि सिनेमा हॉल में मिलने वाले एक पॉपकॉर्न के छोटे पैकेट का दाम 200 रुपये है और बड़े पैकेट या टब का दाम 500 रुपये है तो आप कौन सा खरीदेंगे. जाहिर सी बात है कि छोटा पैकेट क्योंकि बड़े पैकेट का दाम तो दुगने से भी ज्यादा है. अब कल्पना कीजिए कि छोटे पैकेट का दाम 200 रुपये और फिर उससे बड़े वाले का 375 रुपये और फिर सबसे बड़े का दाम 500 रुपये है तो आप कौन सा खरीदेंगे?

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पूरी संभावना है कि सबसे बड़ा वाला ही खरीदें, भले आपको जरूरत नहीं हो. गुणा-गणित लगाकर आपको लगेगा कि बड़े वाले पैकेट में सामान भी ज्यादा मिलेगा और पैसे भी तो सिर्फ 125 रुपये ज्यादा लग रहे. मतलब, बहुत महीन तरीके से आपके दिमाग को ये बता दिया गया कि अब आपके दोगुने नहीं बल्कि कुछ रुपये ज्यादा लग रहे हैं.

अगर आपको लगे कि जो हमने बताया वो कोई गप है या कवि की कल्पना मात्र है तो जनाब ऐसा नहीं है. National Geographic ने एक सिनेमा हॉल में इस इफेक्ट पर कई लोगों के बीच में एक्सपेरीमेंट किया. पहले स्मॉल पॉपकॉर्न 3 डॉलर (250 रुपये) का और लार्ज 7 (600 रुपये लगभग) डॉलर का था. हर किसी ने छोटा पैकेट ही लिया. फिर इनके बीच में साइज और रख दिया गया.

लोगों के दिमाग पर इसका सीधा असर हुआ. बड़े पैकेट की बिक्री बहुत बढ़ गई. वैसे बिजनेस की भाषा में इसे Decoy Effect कहते हैं. इतना ही नहीं, इस इकोनॉमिक्स का भी एक नाम है. Behavioral Economics मतलब ग्राहक के बर्ताव को समझना.

तीन मॉडल वाला सिस्टम आपको हर जगह नजर आएगा. कॉफी शॉप से लेकर कोल्ड ड्रिंक की बोतल और कारों तक. आपके लिए हमने ये जानकारी इसलिए जुटाई ताकि आप इस फंडे के फंदे में नहीं फंसे. स्मॉल, मिडिल और टॉप को कीमत देखकर नहीं बल्कि अपनी जरूरत के हिसाब से खरीदें.

हो सकता है प्रो और प्रो मैक्स की जगह बेस मॉडल से सारे काम बन जाएं.      

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