मणिपुर की सारी जनजातियां मैतेई समुदाय की किस मांग के खिलाफ हैं जिससे बवाल हो रहा है?
मणिपुर में हुई एक घटना ने सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड और शांति के नैरिटिव पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है.
पूर्वोत्तर, मोदी सरकार के लिए एक फोकस एरिया रहा है. कनेक्टिविटी सुधरी है और एक के बाद एक उग्रवादी संगठन हथियार छोड़ बातचीत को तैयार हुए हैं. सरकार का दावा - वो शांति स्थापित कर रही है, ताकि विकास हो सके. और इसी विकास के वादे पर भारतीय जनता पार्टी पूर्वोत्तर में एक के बाद एक चुनाव भी जीत रही है. लेकिन मणिपुर में हुई एक घटना ने सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड और शांति के नैरिटिव पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है. मैतेई बनाम नागा-कुकी को महज़ जनजातिय संघर्ष कहकर खारिज नहीं किया जा सकता. क्योंकि बात इससे कहीं आगे बढ़ गई है. मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में आगज़नी हो जाती है, बलवा ऐसा पनपता है कि रात ही रात में सेना को मैदान में उतरना पड़ता है. तकरीबन 9 हज़ार लोगों को जान बचाकर कैंप्स में आना पड़ा है. शूट एट साइट के ऑर्डर हैं, और केंद्र हवाई रास्ते से अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियां भेज रहा है.
3 मई को मणिपुर के चुराचंदपुर में अचानक ऐसा बवाल कैसे खड़ा हो गया कि सेना को रात में ही एक विशाल बचाव अभियान चलाना पड़ा, ये आपको घटनाओं की टाइमलाइन से समझ नहीं आएगा. आपको संदर्भ समझना होगा, और इसके लिए कहानी थोड़ा पहले से शुरु करनी होगी. आपने अब तक ये तो सुन लिया होगा कि मैतेई समुदाय आरक्षण मांग रहा है. तो हम बता दें, कि ये मांग यकायक सामने नहीं आई है. मैतेई समुदाय को ST स्टेटस यानी अनुसूचित जनजाति की कैटेगरी में शामिल किए जाने की मांग काफी लंबे समय से हो रही है. मैतेई जनजाति संघ ने इस मांग को लेकर एक याचिका मणिपुर हाई कोर्ट में दायर की थी. क्या था इस याचिका में? याचिका में कहा गया कि 1949 में भारत में विलय से पहले मैतेई समुदाय को एक जनजाति के रूप में मान्यता मिली हुई थी. लेकिन विलय के बाद ये खत्म हो गई. मैतेई की जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाने की जरूरत को देखते हुए इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है. इसीलिए, मणिपुर सरकार, केंद्र सरकार से मैतेई को ST दर्जा दिलाने की सिफारिश करे. 14 अप्रैल 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट का फैसला आया. कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश प्राप्ति के 4 हफ्तों के भीतर सिफारिश करने का निर्देश दिया.
हाईकोर्ट के इस फैसले ने मणिपुर का माहौल गर्म कर दिया. राज्य के आदिवासी समूह जिसमें खासतौर पर नागा और कूकी जनजाति समेत 34 जनजाति के लोग शामिल हैं, इसके विरोध में उतर गए. मैतेई समुदाय की ST स्टेटस के मांग का विरोध बाकी जनजाति के लोग शुरू से ही करते आ रहे हैं. और यही ताज़ा बवाल की वजह भी बना.
अब यहां पर आगे बढ़ने से पहले एक बार मणिपुर के सामाजिक तानेबाने को समझ लेते हैं. और इसे समझने के लिए पहले मणिपुर का भूगोल समझना होगा. मणिपुर की आबादी का करीब 65 फीसद हिस्सा इम्फाल शहर और इसके आसपास के इलाकों में बसा है. जिसे सेंट्रल वैली या इम्फाल वैली के नाम से जाना जाता है. सेंट्रल वैली, मणिपुर के कुल भूभाग का केवल 10 फीसद ही है. जिसमें मुख्य रूप से हिंदू धर्म को मानने वाले मैतेई समुदाय की आबादी है. मैतेई समुदाय, मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय है. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक मैतेई राज्य की आबादी का लगभग 64.6 प्रतिशत हैं. जो 10 फीसद भूभाग पर बसा है.
और बाकी जो 90 फीसद हिस्सा है वो पहाड़ी है. जो इस वैली को चारों तरफ से घेरती है. इस 90 फीसद पहाड़ी हिस्से में राज्य की बाकी 35 फीसद आबादी की बसावट है. इसमें नागा जनजातियों के साथ, कुकी समेत 34 मान्यता प्राप्त जनजातियां शामिल हैं मणिपुर की जनजातियों में अधिकतर क्रिश्चियन धर्म को मानने वाले लोग हैं. एक लाइन में इसे ऐसे समझिए कि करीब 35 फीसद आबादी के पास 90 फीसद जमीन है. और करीब 65 फीसद आबादी के पास 10 फीसद भूभाग.
ये आंकड़े याद रखिएगा क्योंकि सारी लड़ाई इसी पर है. मैतेई समुदाय के ST स्टेटस की मांग का लंबे समय से राज्य के आदिवासी समूह विरोध करते आए हैं. इस विरोध की सबसे बड़ी वजह बताई जाती है राज्य की आबादी और राजनीति - दोनों में मैतेई का प्रभुत्व. क्योंकि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीटें सेंट्रल वैली में हैं.
मैतेई समुदाय को ST स्टेटस की मांग के विरोध में जो तर्क दिया जा रहा है वो सबसे पहला तो यही है कि मैतेई, मणिपुर में एक प्रभावी समुदाय है जो राज्य के सिस्टम को कंट्रोल करता है. उन्हें किसी से कोई खतरा नहीं है. मैतेई की भाषा मणिपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है. मैतेई समुदाय, जो मुख्य रूप से हिंदू है, उसे OBC और SC कैटेगरी में सब कैटेगराइज भी किया गया है और इसके तहत आने वाले लोगों को कैटेगरी के हिसाब से रिजर्वेशन भी मिलता है. दूसरा बड़ा तर्क है राज्य के पहाड़ी इलाकों में मैतेई समुदाय के घुसपैठ की कोशिश. मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है तो जमीन की जरूरत भी बढ़ रही है. लेकिन वे राज्य के बाकी हिस्से में जमीन ले नहीं सकते क्योंकि पहाड़ी एरिया संरक्षित है. मैतेई समुदाय के ST स्टेटस की मांग के पीछे क्या ये एक बड़ी वजह है.
और जमीन का मसला केवल इतना ही नहीं है. लैंड सर्वे का कड़ा विरोध कुकी जनजाति से जुड़े संगठनों की ओर से किया जा रहा है. राज्य सरकार ने पिछले साल अगस्त में लैंड सर्वे की शुरुआत की थी. ये सर्वे चुराचांदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र के लिए किया गया था. जो लगभग 490 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है और तीन जिलों चुराचंदपुर, बिष्णुपुर और नोनी में फैला हुआ है. फिर इस साल फरवरी में चुराचंदपुर जिले के हेंगलेप सब डिवीजन के एक गांव में रहने वाले लोगों को गांव से बेदखल कर दिया गया था. सरकार ने इसके पीछे वजह अवैध अतिक्रमण बताया. और कहा कि ये गांव प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट एरिया के अंतर्गत आता है. जबकि ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि प्रशासन की ओर से बिना किसी पूर्व सूचना के बेदखली की गई.
कुकी संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया. राज्य में बीजेपी की सहयोगी कुकी पीपल्स एलायंस KPA ने इसकी निंदा की और इसे अमानवीय बताया. KPA ने कहा कि ये फैसला बिना 'हिल एरिया कमेटी' से बात किए बिना लिया गया है. जबकि हिल एरिया कमेटी, पहाड़ी इलाकों के कानून और प्रशासन की निगरानी के लिए बनाई गई एक ऑटोनॉमस बॉडी है.
ग्रामीणों की बेदखली के विरोध में मार्च में एक रैली भी हुई थी. जो कांगपोकपी जिले में हिंसक हो गई थी. बाद में, बीरेन सरकार ने आरोप लगाया था कि विरोध प्रदर्शन "असंवैधानिक" उद्देश्यों के लिए आयोजित किए गए थे. साथ ही बीरेन सिंह ने ये भी कहा था कि संरक्षित जमीन पर अतिक्रमण करने वाले लोग इस जमीन पर नशीली दवाओं का उत्पादन और कारोबार कर रहे थे.
यहां तक आते आते आप संदर्भ जान गए हैं. अब आते हैं ताज़ा घटनाओं की टाइमलाइन पर.
हिंसा की पहली घटना रिपोर्ट हुई, बीते गुरूवार, 27 अप्रैल की रात. दरअसल, 28 अप्रैल को चुराचंदपुर ज़िले के न्यू लमका में सूबे के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह एक कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे. एक ओपन जिम का उद्घाटन करने वाले थे और उसके बाद सद्भावना मंडप में एक पब्लिक रैली करने वाले थे. मणिपुर के लोकल संगठन स्वदेशी जनजातीय नेता मंच (ITLF) ने सरकारी भूमि सर्वे के विरोध में इसी दीन 8 घंटे के बंद की अपील की थी. सीएम का कार्यक्रम भी इसी दिन और बंद की अपील भी. बंद की अपील के बाद ज़िले के अडिशनल डिप्टी कमिशनर एस थिएनलालजॉय गंगटे ने कमिशनर (होम) को पहले ही सूचित किया था कि सोशल मीडिया के ज़रिए भीड़ जुटाई जा रही है और इससे ज़िले में अराजकता की आशंका है. हुआ भी ऐसा ही. 27 अप्रैल की रात भीड़ ने कार्यक्रम स्थल पर तोड़फोड़ की और उस वेन्यू को आग लगा दी. स्थानीय पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की. भीड़ को तितर-बितर कर दिया, लेकिन तब तक भीड़ ने अच्छा-ख़ासा डैमेज कर दिया था.
हिंसा के बाद ज़िले में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं. 28 अप्रैल की सुबह सभी दुकानों और प्रतिष्ठानों के शटर गिराकर बाज़ार बंद कर दिए गए. पुलिस ने ये भी बताया कि प्रदर्शनकारियों को सुबह सड़क जाम करते और टायर जलाते देखा गया. उन्होंने न्यू लमका शहर के प्रवेश द्वार पर मलबा भी जमा कर दिया था, लेकिन बाद में पुलिस टीमों ने इसे साफ कर दिया. शहर के सभी प्रमुख चौराहों और बड़े इलाक़ों में भारी पुलिस बल तैनात किया गया.
विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के बाद ज़िले में फैले तनाव को देखते हुए आयोजकों ने मुख्यमंत्री का दौरा स्थगित कर दिया. CM ने कृषि विभाग के एक समारोह के मौक़े पर रिपोर्टर्स से बात की. कहा कि चुराचांदपुर निर्वाचन क्षेत्र के विधायक एलएम खौटे ने उनसे अभी न आने का अनुरोध किया और बताया है कि ओपन जिम की मरम्मत जल्द करवा दी जाएगी. इसी बातचीत में CM बीरेन सिंह ने इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) की "स्वदेशीता" पर भी सवाल उठाए? कहा, "क्या स्वदेशी लोग! हम भी स्वदेशी लोग हैं! नागा स्वदेशी लोग हैं! कुकी स्वदेशी लोग हैं!"
इसके बाद 28 अप्रैल की रात में ख़बर आई कि पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प हो गई है. पुलिस ने आंसू गैस, रबर बुलेट्स और लाठियों से भीड़ को क़ाबू करने की कोशिश की. स्थानीय लोगों ने ये भी दावा किया कि इन झड़पों में मौतें भी हुई हैं, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक पुष्टी नहीं हुई है.
इतना सब बस बीते शुक्रवार भर में हुआ. शहर में पुलिस बल की भारी मुस्तैदी के साथ नाइट कर्फ़्यू भी लगा दिया गया. लेकिन अगले दिन, यानी 29 अप्रैल को भी चुराचंदपुर की स्थिति वैसी ही रही. अज्ञात भीड़ ने एक सरकारी इमारत में लगा दी. पुलिस के अनुसार, आधी रात को कुछ लोगों ने तुइबोंग क्षेत्र में रेंज वन अधिकारी के कार्यालय भवन में आग लगा दी. लाखों की सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हो गई और सरकारी दस्तावेज़ आग की ज़द में आ गए. पुलिस ने शहर के सभी इलाक़ों में सुरक्षा बढ़ा दी. 30 अप्रैल, यानी रविवार. दो दिन की भयानक हिंसा के बाद नौर्मेलसी वापस लौटी. तनाव-ग्रस्त इलाक़ों में पुलिस लगी हुई थी और धारा-144 को अगले आदेश तक लागू कर दिया गया.
इसके बाद, तनाव शिफ़्ट हुआ. छात्र संगठन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ मणिपुर (ATSUM) ने 3 मई को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' का आह्वान किया. ये मार्च मैतेई समुदाय की ST कैटगरी में शामिल होने की मांग के ख़िलाफ़ थी. छात्र संघ ने कहा कि मैतेई समुदाय की मांग ज़ोर पकड़ रही है और घाटी के विधायक खुले तौर पर इसका समर्थन कर रहे हैं. इसलिए, जनजातीय हितों की रक्षा के लिए कुछ करना होगा.
मांग का विरोध करने के लिए राज्य के सभी दस पहाड़ी ज़िलों में हज़ारों लोग 'आदिवासी एकजुटता मार्च' में शामिल हुए. पहाड़ी के सुदूर इलाकों से भी लोग आए. बसों और खुले ट्रकों में लद कर. नागा-बहुल सेनापति क़स्बे में लोकल बॉडीज़ ने सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक बाज़ारों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को पूरी तरह से बंद कर दिया. ताकि मार्च में ज़्यादा से ज़्यादा लोग आ सकें. पुलिस ने बताया कि जुलूस में हज़ारों लोग शामिल हुए. तख्तियां लहराईं और मैतेई समुदाय के विरोध में नारे लगाए. इसी तरह की रैलियां टेंग्नौपाल, चंदेल, कांगपोकपी, नोनी, उखरुल में भी निकाली गईं.
चुराचंदपुर ज़िले में लोगों ने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया और मैदान में इकट्ठा हुए. ATSUM को अपना समर्थन दिखाने के लिए तुइबोंग शांति मैदान तक एक रैली निकाली. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए मणिपुर के अन्य हिस्सों से अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजी गई.
मार्च के दौरान तोरबंग इलाक़े में आदिवासियों और ग़ैर-आदिवासियों के बीच हिंसा भड़क गई. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने कई राउंड आंसू गैस के गोले दागे. हिंसा के बाद मणिपुर के आठ ज़िलों में कर्फ़्यू लगा दिया गया और पूरे प्रदेश में इंटरनेट बंद कर दिया गया. इसमें ग़ैर-आदिवासी इलाक़े भी हैं. मसलन: इंफाल पश्चिम, काकचिंग, थौबल, जिरीबाम और बिष्णुपुर. और आदिवासी बहुल इलाक़ों में भी -- चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल.
बीते रोज़, 4 मई को हालात को नियंत्रित करने के लिए सेना और असम राइफल्स को तैनात किया गया था. सुरक्षाबलों ने अब तक हिंसा प्रभावित क्षेत्रों से 9,000 लोगों को बचाया और शरण दी है.