देखो दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं. एक वो, जिन्हें चिप्स का बड़ा सा पैकेटदेखकर लगता है कि उसमें ज़्यादा चिप्स होंगे. दूसरे वो, जिन्हें पता होता कि सभीपैकट में आधे से ज़्यादा हवा होती है, तो वो दो-चार पैकेट एक साथ खरीदते हैं. पर येतो तय है कि दोनों ही लोग हवा का पैसा दे रहे होते हैं.पर एक छोटा सा सवाल है. चिप्स या किसी भी स्नैक्स के इन पैकेट में कौन सी हवा/गैसभरी होती है?इसे मीम कहते हैं.छोटा सा जवाब है- नाइट्रोजन.अगर आप अभी तक ये मानकर चल रहे थे कि स्नैक्स के पैकेट में ऑक्सीजन या नॉमर्ल हवाभरी होती है, तो आप गलत हैं. इन पैकेट में नाइट्रोजन भरी जाती है. पर क्यों भरीजाती है, इसकी तीन थ्योरी हैं. आइए जानते हैं.थ्योरी #1.चिप्स या किसी भी तरह के स्नैक्स पॉलीथीन में आते हैं. तो एक थ्योरी कहती है किचिप्स को टूटने से बचाने के लिए पैकेट में हवा भर दी जाती है. आलू या किसी भी चीज़के चिप्स नाज़ुक होते हैं. अगर पैकेट में हवा नहीं होगी, तो चिप्स हाथ लगने से याआपस में टकराने से टूट जाएंगे. अब ज़ाहिर सी बात है कि आप पैसे चिप्स के लिए देतेहैं, उसके पाउडर के लिए तो आप पैसे देंगे नहीं.चिप्स बेचने वाली कंपनी Pringles के बारे में ये कहा जाता है कि टूटने वालीप्रॉब्लम की वजह से ही उन्होंने पैकेट के बजाय कैन में चिप्स बेचने शुरू कर दिए.पैकेट के मुकाबले कैन में चिप्स कम टूटते हैं.Pringles के चिप्सथ्योरी #2.दूसरी थ्योरी साइंटिफिक है, जिससे आप ज़्यादा सहमत हो सकते हैं. ऑक्सीजन बहुत हीरिऐक्टिव गैस होती है. ये किसी भी चीज़ के मॉलिक्यूल यानी कणों के साथ बहुत जल्दीघुल जाती है. फिर वो चाहे खाने की चीज़ें हों या धातु की कोई चीज़. ऑक्सीजन कीरिऐक्टिव होने की वजह से ही बैक्टीरिया वगैरह इसमें पनप पाते हैं और यही कारण है किअगर खाने की कोई चीज़ ज़्यादा वक्त तक खुले में रखी रहे, तो वो खराब हो जाती है.खुले में रखी रहने पर खाने की चीज़ों का ये हाल होता हैइसीलिए स्नैक्ट के पैकेट में ऑक्सीज़न के बजाय नाइट्रोजन भरी जाती है. नाइट्रोजन कमरिऐक्टिव गैस है, जो बैक्टीरिया और दूसरे कीटाणुओं को बढ़ने से रोकती है. साइंस कीभाषा में कहें, तो चिप्स को ऑक्सीडाइज़िंग से बचाने के लिए पैकेट में नाइट्रोजन भरीजाती है. इससे चिप्स सीलते नहीं हैं. 1994 की एक स्टडीये दावा भी करती है कि नाइट्रोजन स्नैक्स को लंबे समय तक क्रिस्पी बनाए रखती है.जैसा आप चाहते हैं.खाने की चीज़ों को ऐसा धाकड़ दिखाने के लिए भी नाइट्रोजन का इस्तेमाल होता है.थ्योरी #3.ये मार्केटिंग वाली थ्योरी है, जो सीधे-सीधे हम इंसानों की प्रवृत्ति से जुड़ी है.इतने सालों से हमारे दिमाग में ये इमेज तो बन ही चुकी है कि जब हम हवा से भरास्नैक्स का पैकेट खरीदते हैं, तो चिप्स एकदम क्रंची निकलते हैं. यानी पैकेट में हवाहमारे लिए चिप्स के एयरटाइट होने की गारंटी है. आप खुद याद कीजिए आपने आखिरी बारचिप्स का पिचका हुआ पैकेट कब खरीदा था.खरीदते तो आप वही पैकेट हैं, जिसमें ज़्यादा हवा होती हैदूसरा ये कि नाइट्रोजन भरे होने की वजह से पैकेट का साइज़ बड़ा हो जाता है. इंसानका दिमाग पहली बार में यही सोचता है कि पैकेट बड़ा है, तो चिप्स ज़्यादा निकलेंगे.हवा से कस्टमर के दिमाग में ये भ्रम पैदा करने की कोशिश की जाती है कि वो जितनापैसा दे रहा है, उससे ज़्यादा की चीज़ पा रहा है.दूर से देखा तो अंडे उबल रहे थे, पास से देखा तो गंजे उछल रहे थे.आप जिस हवा में सांस लेते हैं, उसमें भी नाइट्रोजन हैयाद कीजिए बचपन में साइंस में पढ़ाया जाता था कि वायुमंडल में जितनी गैसें हैं,उनमें से 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीज़न, 0.03% कार्बनडाई ऑक्साइड और बाकी बची हुईगैसें हैं. यानी जिस हवा में हम सांस ले रहे हैं, उनमें सिर्फ 21% ऑक्सीजन है, जबकिएक बड़ा हिस्सा नाइट्रोजन का है. इसे निष्क्रिय या अनरिऐक्टिव गैस की कैटेगरी मेंरखा जाता है.इंग्लैंड की चिप्स कंपनी 'वाकर्स' का किस्सा मज़ेदार हैइंग्लैंड में वाकर्स कंपनी के स्नैक्स खूब बिकते हैं. 2012 की बात है. लोग वाकर्सके चिप्स खरीद रहे थे, लेकिन कई पैकेट ऐसे निकल गए, जिनमें सिर्फ 5-6 चिप्स ही थे.लोग गुस्सा हो गए. तो वाकर्स ने ग्राहकों के अधिकार पर बने BBC के एक शो में कहा किप्रॉडक्ट बनाने और एक से दूसरे जगह ले जाने के लिए हवा ज़रूरी है. नाइट्रोजन सेचिप्स को न सिर्फ कुशनिंग मिलती है, बल्कि उनका स्वाद भी बना रहता है.वाकर्स के चिप्स प्रॉडक्टपर फूड आर्टिस्ट हेनरी हारग्रीव्स ने इस दावे की धज्जियां उड़ा दींब्रुकलिन में रहने वाले फोटोग्रॉफर और फूड आर्टिस्ट हेनरी हारग्रीव्स ने जब वाकर्सके ये तर्क सुने, तो उन्होंने एक एक्सपेरिमेंट किया. हेनरी बताते हैं कि पहलेउन्हें लगता था कि स्नैक्स के किसी भी पैकेट में 50% हवा होती होगी और बाकीप्रॉडक्ट होता होगा. पर जब उन्होंने कई फेमस कंपनियों के पैकेट चेक किया, तो पताचला कि डॉरीटो जैसे कंपनी के पैकेट में भी सिर्फ 14% नाचोज़ थे. बाकी 86% हवा थी.हेनरी हारग्रीव्सहेनरी के एक्सपेरिमेंट का रिज़ल्ट उल्टा आया. वो बताते हैं, 'मुझे लगा हवा होने सेचिप्स टूटते नहीं होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. जिन पैकेट में सबसे ज़्यादा हवा थी,उनमें सबसे ज़्यादा टूटे चिप्स थे. मेरे हिसाब से चिप्स को टूटने से बचाने के लिएवैक्यूम सीलिंग ज़्यादा अच्छा उपाय है.' देखिए हेनरी के इस एक्सपेरिमेंट का वीडियो.हेनरी की अगली बात डरावनी हैहेनरी कहते हैं कि पैकेट में इतनी हवा होने की वजह से ट्रांसपोर्ट पर असर पड़ता है,जो पर्यावरण के लिए बुरा है. आप डॉरीटो का उदाहरण लीजिए, जिसके पैकेट में 86% हवाहोती है. यानी अगर ये कंपनी 100 ट्रकों से अपने चिप्स एक से दूसरी जगह भेजती है, तोउनमें से 86 ऐसे होते हैं, जिन्हें सड़क पर होना ही नहीं चाहिए. पर वो चल रहे हैंऔर कार्बन छोड़ रहे हैं. हेनरी के मुताबिक पैसों का सबसे सही इस्तेमाल प्रिंगल्सखरीदने से होगा, लेकिन उसमें भी काफी हवा होती है. इसके कैन भी ऊपर तक चिप्स सेनहीं भरे होते हैं.ये तो हाल हैइंडिया के किस प्रॉडक्ट में कितनी हवा होती हैeattreat नाम की एक वेबसाइट ने एक एक्सपेरिमेंट किया इंडिया में 25 रुपए से कम मेंबिकने वाले स्नैक्स के पैकेट पर. उन्होंने पाया...- Lay’s के एक पैकेट में 85% नाइट्रोजन होती है. - अंकल चिप्स के एक पैकेट में 75%नाइट्रोजन होती है. - बिंगो मैड एंगल्स के एक पैकेट में 75% नाइट्रोजन होती है. -हल्दीराम टकाटक के एक पैकेट में 30% नाइट्रोजन होती है. - लहर कुरकुरे के एक पैकेटमें 25% नाइट्रोजन होती है.कानून नाम की भी कोई चीज़ होती हैअमेरिका में 1966 में फेयर पैकेजिंग ऐंड लेबलिंग नाम का एक ऐक्ट पास हुआ था, जिसमेंप्रॉडक्ट बनाने वालों को आदेश दिया गया था कि वो पैकेट पर एकदम सही-सही छापें कि वोकितना प्रॉडक्ट दे रहे हैं. हालांकि, किसी भी देश में खाने की चीज़ों पर कानून काकितना पालन किया जाता है, ये तो सभी जानते हैं.--------------------------------------------------------------------------------ये भी देखें: