The Lallantop
Advertisement

शाहरुख के दुआ पढ़कर फूंकने को "थूक" बताने वाले लोग कौन हैं?

कई लोग लता जी को संघी और फासिस्ट साबित करने में भी लगे हैं.

Advertisement
गायिका लता मंगेशकर के लिए दुआ पढ़ते ऐक्टर शाहरुख खान (फोटो ट्विटर))
गायिका लता मंगेशकर के लिए दुआ पढ़ते ऐक्टर शाहरुख खान (फोटो: ट्विटर)
pic
सुरेश
7 फ़रवरी 2022 (Updated: 8 फ़रवरी 2022, 12:07 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
देश की गायिका लता मंगेश्कर का रविवार सुबह देहांत हुआ. फिर दोपहर बाद मुंबई के शिवाजी पार्क में उनका अंतिम संस्कार हुआ. अंतिम संस्कार से पहले श्रद्धांजलि देने के लिए देशभर से हस्तियां पहुंची थीं. पीएम नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे भी गए थे. और इस फेहरिस्त में अभिनेता शाहरुख ख़ान भी थे. पार्थिव शरीर पर फूल माला चढ़ाने वाले अपनी बारी का इंतजार लार रहे थे. सचिन तेंडुलकर अपनी पत्नी अंजलि के साथ श्रद्धांजलि देने आगे बढ़ते हैं. और उनके बाद आता है शाहरुख का नंबर. उनके साथ एक महिला भी जाती हैं. इन महिला के बारे में कई जगह लिखा जा रहा है कि शाहरुख की पत्नी गौरी ख़ान हैं. शायद मास्क की वजह से लोग पहचान नहीं पाए. असल में ये गौरी नहीं, शाहरुख की मैनेजर पूजा डडलाणी हैं. तो ये दोनों वेदि पर चढ़ते हैं जहां पार्थिव शरीर रखा था. शाहरुख पुष्प अर्पित करते हैं. और फिर वीडियो में जो दिखता है, उसी पर इतना विवाद खड़ा किया जा रहा है. वीडियो में हमें दिख रहा है कि शाहरुख हाथ जोड़ने के बजाय हाथों को आपस में जोड़ते हैं. दुआं मांगने के अंदाज़ में. जबकि पूजा डडलाणी हाथ जोड़कर नमन कर रही हैं. लगभग 5 सेकेंड बाद पूजा झुक जाती हैं. वीडियो के क्लोज अप फ्रेम से वो बाहर हो जाती हैं. शायद पार्थिव शरीर के चरण छूने के लिए झुकी होंगी. शाहरुख अब भी दुआ में हैं. दुआ खत्म होते ही शाहरुख चेहरे से मास्क थोड़ा नीचे करते हैं, और फिर फूंक मारने की मुद्रा में दिखते हैं. इसके बाद वो झुककर पार्थिव शरीर को छू कर, हाथ जोड़कर नमन करते हैं. फिर शाहरुख और पूजा दोनों हाथ जोड़कर पार्थिव शरीर की परिक्रमा करते हैं. और आखिर में फिर झुक कर, हाथ जोड़कर नमन करते हैं. और वेदि से उतर आते हैं. पूरा वीडियो 38 सेकेंड का है. हमें इसमें कहीं कुछ ग़लत जैसा नहीं लगा. लेकिन जिन्हें नफ़रत फैलानी थी, उन्होंने वीडियो में सिर्फ एक सेकेंड की फ्रेम देखी. जिसमें शाहरुख ने मास्क हटाकर दुआ फूंकी थी. उन लोगों को वो फ्रेम ही नफरत फैलाने का कच्चा माल जैसा दिखा. और शुरू हो गए सोशल मीडिया पर. लिखा गया कि शाहरुख ख़ान थूक रहे थे. कुछ टीवी चैनलों ने भी इस लानत-मलानत करना शुरू कर दी. बीजेपी के कुछ नेताओं ने भी थूंकने वाली एंगल से पोस्ट की. एक तो हरियाणा के बीजेपी नेता हैं अरुण यादव. इन्होंने लिखा कि
"क्या इसने थूका है?''.
हालांकि बाद में लोगों ने इनको निशाने पर लिया तो ये मासूम बनने लगे. कहा कि मैं तो सिर्फ सवाल पूछ रहा था. कुछ और भी किया. पहले इनकी ट्विटर प्रोफाइल में इनकी पीएम मोदी के साथ फोटो थी. वो भी बदल ली इन्होंने. नेता जी, जब आपने कुछ गलत लिखा ही नहीं तो पीएम मोदी वाली तस्वीर क्यों हटा दी. इतना क्या घबराना. वैसे किसी भी पार्टी में इतना लोकतंत्र भी नहीं होना चाहिए कि कोई कुछ भी लिख दे. कई और लोगों ने भी अरुण यादव जैसे ही पोस्ट किए. अब जिन्हें दुआ को फूंकने के बारे में नहीं जानकारी, वो मूर्ख ही फूंकने की बात लिख रहे थे. जिन्हें भारत देश की कल्चरल और रिलिजियस डाइवर्सिटी का ना पता है, ना नाज है, वो कुछ भी लिख सकते हैं. तो उनके लिए बता देते हैं फातिहा क्या होता है, दुआ मांगना क्या होता है, और दुआ मांगने के बाद फूंका क्यों जाता है. मौलाना सूफियान, देवबंद ने बताया कि
यह इस्लामी तरीका होता है कि जब कोई बीमार होता है या जब किसी के अंतिम संस्कार में हम जाते हैं तो उसकी मगफिरत के लिए दुआ पढ़कर दम (फूंका) जाता है, ताकि उस पढ़ी हुई दुआ का असर उस शख्स तक पहुंच जाए.
लेकिन किसी के समझाने से भी सब समझ ही जाएं, ऐसा भी तो नहीं है. कल जब कई लोगों ने लिखा कि वो थूक नहीं रहे थे, फूंक रहे थे. उसके बाद भी कपिल मिश्रा जैसे बीजेपी के नेता आहत होते दिखे. कपिल मिश्रा ने ट्विटर पर लिखा - हिंदुओं के अंतिम संस्कार में फातिहा पढ़ना, फूंक मारना बदतमीजी है, घटिया हकरत है. क्या मुसलमानों के अंतिम संस्कार में हिंदू जाकर गंगा जल छिड़कते हैं क्या? महामृत्युंजय का जाप करते हैं क्या." अब ऐसी बातों का क्या ही जवाब दें. इन्हें नहीं पता भारत क्या. भारत को कई सारे फूलों का गुलदस्ता क्यों कहा जाता है. भारत का होना दुनिया के लिए क्यों अचम्भा है. अंग्रेज़ों को क्यों लगता था कि भारत एक देश रह ही नहीं पाएगा. तीन नस्ल - आर्य, द्राविड और मंगोल. कई धर्म - संस्कृति और सैकड़ों भाषाओं वाला देश है. हर संस्कृति में अपने आराध्यों से संवाद करने का तरीका अलग अलग है. सबकी अपनी आस्था है. इसी देश में हिंदुओं में भी इतनी विभिन्नताएं हैं. मसलन यूपी का कोई ब्राह्मण मांस भक्षण को देखने भर से आहत हो सकता है, तो कश्मीर के ब्राह्मण महाशिवरात्री पर भी मांस खा लेते हैं. दोनो में से भी कोई भी कम हिंदू या ज़्यादा हिंदू नहीं है. हिंदुओं के नाम पर ये नफ़रत फैलाना और दूसरों को नीचा दिखाना बंद करिए ना. किसी के दुआ पढ़ने भर से आप कैसे आहत हो सकते हैं. जब कोई किसी हिंदू के मरने पर Rest In Peace लिखता तब वो भी तो किसी और भाषा, किसी और संस्कृति की परंपरा है. हिंदू धर्म के किस ग्रंथ में ऐसा लिखा है. लेकिन इस पर कोई आहत नहीं होता, सब सहजता से स्वीकार लेते हैं. वैसे ही दुआ में क्या दिक्कत है. वैसे इन ट्रोल्स की एक और जमात है. वो लता जी को संघी और फासिस्ट साबित करने में लगे हैं. एक अनवैरिफाइड ट्विटर हैंडल से लिखा गया कि –
''सावरकर की प्रशंसक की मौत पर दुखी होने की कोई जरूरत नहीं है. यह एक विरोधाभास है कि भारत के गैर-दक्षिणपंथी लोग कहते हैं कि सावरकर और गोडसे पर मीम बनाना तो नैतिक है, लेकिन उनकी फैनगर्ल के लिए ऐसा करना अनैतिक है.”
ऐसे और भी ट्विटर हैं. फर्क बस इतना है इस तरफ किसी पार्टी के नेता नहीं दिखे. बाकी कूड़ा तो इस खेमे में भी कम नहीं था. कितना हिसाब करेंगे हम, छोड़िए.

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement