The Lallantop
Advertisement

कब होगी मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी?

भारत के सैनिक किन-किन देशों में तैनात हैं?

Advertisement
The Indian Army's strength is expected to be between 10-10.5 lakh after 10-15 years (Photo: PTI | Representative)
भारत के सैनिक और किन मुल्कों में तैनात हैं?
pic
अभिषेक
16 जनवरी 2024 (Published: 23:55 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

मालदीव ने अपने यहां से भारतीय सैनिकों की वापसी की डेडलाइन तय कर दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, भारत ने भी इसपर अपनी सहमति दे दी है. मालदीव में मौजूद सभी भारतीय सैनिक 15 मार्च 2024 तक वतन वापस लौट आएंगे. ये फ़ैसला भारत और मालदीव के अधिकारियों की मीटिंग में लिया गया. बाद में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्जू के प्रेस सेक्रेटरी अब्दुल्ला नाज़िम इब्राहिम ने कहा,

'राष्ट्रपति ने आधिकारिक तौर पर भारतीय सैनिक को निकलने के लिए कहा है. वे मालदीव में नहीं रह सकते. ये उनकी सरकार की पॉलिसी है.’

मालदीव सरकार के मुताबिक, उनके यहां मौजूद भारतीय सैनिकों की संख्या 88 है. वे सर्च एंड रेस्क्यू ऑपरेशंस में हिस्सा लेते हैं और मालदीव के पायलट्स को ट्रेनिंग देते हैं. मुइज़्ज़ू 2020 से ही उन्हें निकालने की मुहिम चला रहे हैं - इंडिया आउट कैंपेन के तहत. फिर नवंबर 2023 में वो राष्ट्रपति बन गए. तब से कई बार यही मांग दोहरा चुके हैं. जनवरी 2024 की शुरुआत में लक्षद्वीप को लेकर भारत-मालदीव के बीच विवाद हुआ. भारत में मालदीव को बायकॉट करने की मुहिम चली. इसी बीच मुइज़्ज़ू चीन चले गए. हफ़्ते भर के दौरे में चीन के साथ रिश्ते मज़बूत करने पर ज़ोर दिया. लौटे तो बोले, किसी देश को हमें धौंस दिखाने का अधिकार नहीं है. उन्होंने नाम तो नहीं लिया था, लेकिन इशारा भारत की ही तरफ़ था. 14 जनवरी को उन्होंने औपचारिक तौर पर भारतीय सैनिकों को वापस जाने के लिए कह दिया.

मालदीव में भारतीय सैनिक क्यों हैं?

भारत ने मालदीव को 2013 में 2 ध्रुव हेलिकॉप्टर्स लीज पर दिए थे. फिर 2020 में 01 डॉर्नियर एयरक्राफ़्ट भेजा. इनका इस्तेमाल हिंद महासागर में निगरानी रखने और मेडिकल ट्रांसपोर्ट में होता है. भारतीय सैनिक इन एयरक्राफ़्ट्स की देख-रेख करते हैं. साथ ही, मालदीव के पायलट्स को ट्रेनिंग भी देते हैं. इनका पूरा खर्च भारत सरकार उठाती है. 

इस मिशन से पहले भी भारत ने कई बार मालदीव की मदद की है. पॉइंट्स में समझ लीजिए,

- 1965 में मालदीव की आज़ादी के बाद भारत मान्यता देने वाले पहले देशों में से था.

- नवंबर 1988 में मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के ख़िलाफ़ विद्रोह हुआ. विद्रोही उनकी हत्या पर उतारू थे. गाढ़े वक़्त में भारत ने अपनी सेना भेजकर गयूम को बचाया था.

- 2004 की सुनामी में मालदीव सबसे ज़्यादा मार झेलने वाले देशों में से था. वहां भी भारत ने सबसे पहले मदद भेजी थी.

- भारत, मालदीव का सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर है.

- स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, मालदीव के सबसे बड़े बैंकों में से है.

- हर साल हज़ारों भारतीय पर्यटन के सिलसिले में मालदीव जाते हैं. ये वहां की अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े घटकों में से एक है.

- इसी तरह बड़ी संख्या में मालदीव के नागरिक इलाज के लिए भारत आते हैं.

- मई 2023 में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मालदीव गए थे. वहां उन्होंने इकाथा हार्बर का शिलान्यास किया था. इस हार्बर में मालदीव कोस्ट गार्ड के जहाजों की मरम्मत होगी. इसका खर्च भी भारत सरकार उठा रही है.

- 2022 में भारत ने मालदीव के आसपास 10 रडार स्टेशन का एक नेटवर्क तैयार किया था. इनका संचालन मालदीव कोस्ट गार्ड की ओर से किया जाता है. वे इंडियन कोस्टल कमांड से संपर्क में रहते हैं.

- इन सबके अलावा, भारत ने और भी कई इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में पैसा लगाया है.

ये तो रही भारत की मदद की बात, वापस लौटते हैं सैनिकों की वतन वापसी पर. इसे लेकर प्लान क्या है?

जैसा हमने पहले बताया, मालदीव की मोहम्मद मुइज़्ज़ू सरकार ने भारतीय सैनिकों से 15 मार्च तक देश छोड़ने के लिए कहा है. मालदीव के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि दोनों देश भारतीय सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू करने को लेकर तैयार हो गए हैं. हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में भारतीय सेना की वापसी को लेकर दी डेडलाइन का ज़िक्र नहीं किया गया है.

भारत मालदीव में मौजूदगी क्यों चाहता है?

- मालदीव की लोकेशन बेहद अहम है. ये इलाका हिंद महासागर में ट्रेड रूट्स की सुरक्षा के लिए भी अहम है.

- मालदीव में मौजूद भारतीय सैनिक एक्टिव कॉम्बैट में भाग नहीं ले रहे हैं. उनका फ़ोकस एयरक्राफ़्ट्स की देखरेख और मेडिकल इमरजेंसी की सिचुएशन में एयरलिफ़्ट पर है. मगर उनका वहां होना सांकेतिक तौर पर भारत को बढ़त दिलाता है. ये भारत की मौजूदगी का अहसास देता है. अगर उन्हें निकालना पड़ा तो इसे मालदीव से भारत की वापसी की तरह ही देखा जाएगा. खासकर इसलिये कि सैनिकों को भारत ने वापिस नहीं बुलाया, मालदीव उन्हें अपने यहां से जाने को कह रहा है. यही क्रम रहा तो चीन को खुला मैदान मिल जाएगा. वो मालदीव का इस्तेमाल अपने हिसाब से कर पाएगा. इस तरह उसकी भारत को घेरने की रणनीति सफल हो सकती है.

- भारतीय सैनिकों की वापसी सिम्बॉलिक है. मुइज़्ज़ू असल में भारत को थोड़ा दूर रखना चाहते हैं. पिछले कुछ बरसों से मालदीव आतंकी संगठनों के लिए रिक्रूटिंग का अड्डा बना है. इनमें से कई गुट पाकिस्तान से ऑपरेट करते हैं. अगर भारत और मालदीव के रिश्ते ख़राब हुए तो वे इसका फ़ायदा उठा सकते हैं. इसका असर भारत पर पड़ सकता है. और किन देशों में भारतीय सैनिक हैं? एक-एक करके जान लेते हैं.

ताजिकिस्तान

भारत ने आज तक सिर्फ एक जगह ओवरसीज़ मिलिट्री बेस (देश से बाहर सैनिक अड्डा) होने की बात स्वीकार की है - ताजिकिस्तान. फिलहाल भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान और वायुसैनिक ताजिकिस्तान के आइनी एयर फोर्स बेस पर तैनात हैं. इस बेस को भारतीय वायुसेना और ताजीक वायुसेना मिलकर ऑपरेट करती हैं. ताजिकिस्तान के फार्खोर में भी भारत का सैनिक अड्डा रहा है. 

भूटान  

भारतीय सेना भूटान में ट्रेनिंग मिशन चलाती है. इसे इंडियन मिलटरी ट्रेनिंग टीम के नाम से जाना जाता है. इस मिशन के तहत भारतीय सेना, भूटान की सेना को ट्रेनिंग देती है. इस वक्त कितने भारतीय सैनिक भूटान में मौजूद हैं, इसकी जानकारी हमें मिली नहीं. भूटान के साथ भारत की संधि भी है. यदि भूटान पर हमला हो, तो उसका जवाब देना भारत की ज़िम्मेदारी है.

इन दो देशों में भारत के सैनिक तैनात रहते हैं. इनसे इतर संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में भी भारतीय सैनिक शामिल होते हैं. लेकिन वहां ये सैनिक भारतीय विदेश नीति की जगह UN पॉलिसी के अनुरूप काम करते हैं. एक वक्त भारत पीसकीपिंग मिशन्स में सबसे ज़्यादा सैनिक भेजता था. अब इन मिशन्स में भारतीय सैनिकों की तैनाती कुछ कम हुई है. UN मिशन्स में भारतीय सैनिकों की तैनाती का आंकड़ा लोकसभा में रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने एक लिखित जवाब के रूप में दिया था. 11 अगस्त 2023 को जारी आंकड़ों के मुताबिक  

DR कांगो में 1,826;
साउथ सूडान में 2,403;
लेबनान में 895;
सीरिया में 202;
अबई में 589 भारतीय सैनिक मौजूद हैं.

नेपाल का मामला इन सबसे उलटा है. भारतीय सैनिक नेपाल में तैनात तो नहीं हैं. लेकिन अग्निपथ योजना आने से पहले तक भारतीय सेना में भी बड़ी संख्या में नेपाली गोरखा भर्ती होते रहे.    

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement