दरो दीवार पे हसरत से नज़र करते हैंरुख़्सत ऐ अहले वतन, हम तो सफ़र करते हैंयह लाइनें हैं अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह की, जो उन्होंने लखनऊ से विदा होतेवक़्त कहीं थीं. उत्तर भारत में अवध हमेशा से ही हिस्टोरिकली इम्पोर्टेन्ट इलाका रहाहै. कहा जाता है कि अवध को उसका नाम कौशल प्रदेश की राजधानी अयोध्या से मिला था. एकवक़्त तक नवाबों की शान रहा अवध, धीरे-धीरे अंग्रेजों की हड़प नीति का शिकार हो गया.आज 7 फरवरी है. और आज की तारीख़ का संबंध है नवाब वाजिद अली शाह के अवध पर ब्रिटिशसरकार के कब्जे से.अवध (AWADH)16 वीं शताब्दी में अवध पर मुग़लों का कब्ज़ा हो गया था. जिसके बादअवध को मुग़लसाम्राज्य का एक सूबा कहा जाने लगा. इसकी राजधानी फैज़ाबाद बनाई गई थी. इसके बाद जबदेश में अंग्रेजों का दबदबा बढ़ा तो मुग़ल साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा. ऐसे में अवध कोथोड़ी आज़ादी दे दी गई. और मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह ने 1722 में वहां का गवर्नर सादतखान को बना दिया. दरअसल, मुग़लों की सेवा में पर्शिया के कई खुरासानी सैनिक थे.इन्हीं में से एक सादत खान भी था. पहले उसे नाज़िम का दर्ज़ा दिया गया था, जिसे बादमें नवाब में तब्दील कर दिया गया. लेकिन मुग़लों से कुछ हद तक ढिलाई मिलने का मतलबये नहीं था कि नवाब पूरी तरह से अपनी मनमर्जी से शासन कर सकता था. पावर सेंटर अभीभी दिल्ली में ही था. और इधर ईस्ट इंडिया कंपनी भी अवध पर अपनी निगाहें गड़ाए थी.कंपनी के लिए अवध प्रांत में हस्तक्षेप करने के बहाने खोजना बिल्कुल मुश्किल नहींथा.सादत खान की असमय मौत के बाद 1739 में उसके दामाद सफदरजंग को अवध का नवाब बनायागया. लेकिन जल्द ही सफदरजंग की मौत हो गई. और 1754 में नवाब की गद्दी का हक़दार बनाउनका बेटा शुजाउद्दौला. अवध की नवाबी में ईस्ट इंडिया कंपनी नाम का ग्रहण लगना इसीवक़्त से शुरू हो गया. पहले 1757 में कंपनी की सेना प्लासी का युद्ध जीतती है. औरफिर 1764 में मेजर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में बक्सर का युद्ध. बक्सर के युद्ध मेंईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल, अवध और मुग़ल एम्पायर की संयुक्त सेना को बुरी तरह हरादेती है. इसके बाद अवध का नवाब शुजाउद्दौला कंपनी के साथ 1765 में एक संधि करता है.जिसे 'इलाहाबाद की संधि' कहते हैं. इस संधि के मुताबिक़ कंपनी ने 50 लाख रुपए केबदले युद्ध में जीते गए अवध के कुछ हिस्से को नवाब को वापस कर दिया. और यह तय करदिया कि नवाब के खर्चे पर अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी अवध में रखी जाएगी. इस तरहशुरू हुआ यह संधियों का दौर आगे भी चलता रहा. नवाबों ने आने वाले सालों में कंपनीके सामने सरेंडर करते गए. ब्रिटिश सेना की सुरक्षा और युद्ध में मदद के लिए, अवध केनवाब ने पहले चुनार का किला, फिर बनारस, गाजीपुर, और फिर इलाहाबाद के किले को भीछोड़ दिया. साथ ही साथ नवाब द्वारा कंपनी को दी जाने वाली नकद सब्सिडी भी वक़्त केसाथ बढ़ती गई. साल 1801 में एक और संधि हुई. जिसके मुताबिक़ नवाब को अपनी सेना भीछोड़नी पड़ी. इसके अलावा दक्षिणी दोआब यानी कि रोहिलखण्ड को भी ब्रिटिश कंपनी केहवाले कर दिया गया. कुल मिलाकर करीब 30 सालों में अवध का लगभग अपना आधा इलाकाअंग्रेजों के कब्जे में आ गया. लार्ड वेलेज़ली ने 1801 की संधि में एक यह क्लॉज़ भीजोड़ा था. कि नवाब को ऑनरेबल कंपनी के उच्चाधिकारियों की एडवाइस के मुताबिक़ ही शासनकरना होगा. जो राज्य की समृद्धि के लिए अनुकूल होना चाहिए. सुनने में यह क्लॉज़ बेहदआसान लगता है. लेकिन अवध पर कब्जे के खेल का रास्ता इसी क्लॉज़ से निकला.अवध क्षेत्र (फोटो सोर्स - Wikimedia Commons)वाजिद अली शाह1847 में वाजिद अली शाह अवध के नए नवाब बने. वाजिद अली शाह मनमौजी किस्म के शासकथे. नाच-गाने, कविता और मुशायरों के आयोजन में दिलचस्पी रखते थे. कहा जाता है वाजिदअली ने 300 शादियां कीं थीं. और तलाक भी खूब दिए थे. नवाब की सबसे अजीज बेगम सरफ़राज़महल थीं. जिन्हें बाद में वाजिद अली ने तलाक दे दिया था. जिस वक़्त वाजिद अली नवाबबने, अवध बेहद कमजोर हो गया था. अंग्रेजों की नियत और नीतियों ने अवध को एक बीमारूराज्य बना दिया था. लेकिन वाजिद को लगता था कि जब तक वह ईस्ट इंडिया कंपनी औरब्रिटिश सरकार के भरोसेमंद बने रहेंगे, तब तक अवध को कोई दिक्कत नहीं होगी. नवाबबनते ही वाजिद अली शाह ने विज़ारत का जिम्मा पुराने वजीर इमदाद हुसैन अमीनुद्दौलाको सौंप दिया. खजाने और राजस्व विभाग की जिम्मेदारी दी गई राजा बालकृष्ण को. कहाजाता है नवाब वाजिद अली शाह ने अनाज को अवध से बाहर ले जाने पर पाबन्दी लगा दी थी.जिसके चलते राज्य के बाजारों में खाने के लिए अनाज की कोई कमी नहीं थी. अनाज के दामभी पहले की तुलना में कम थे. डॉ. राजनारायण पांडेय अपनी किताब 'वाजिद अली शाह औरपरीख़ाना' में लिखते हैं, 'लेकिन बादशाह वाजिद अली शाह की सुशासन व्यवस्था ईस्ट इंडिया कम्पनी के हुक्मरानोंको फूटी आंखों नहीं सुहा रही थी और वे शीघ्रताशीघ्र अवध को अपनी झोली में डाल लेनाचाहते थे' नवाब वाजिद अली शाह रोज लखनऊ में अपनी सेना की पलटनों की सलामी लेते थे. अंग्रेजोंको ये नवाबी रास नहीं आती थी. अंग्रेज इतिहासकार मेटकॉफ़ के मुताबिक़, अंग्रेजो नेतमाम तरकीबें लगाकर नवाब द्वारा ली जाने वाली परेड की ये सलामी रुकवा दी. लेकिन अवधकी कमजोरी की दो वजहें थीं- एक ये कि वाजिद अली का ध्यान शासन पर कम था, दूसरा किअवध की सैन्य ताकत बेहद कम हो गई थी. 1848 में लार्ड डलहौज़ी गवर्नर जनरल बनकर भारतआया था. डलहौज़ी ने अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने की योजना पर काम शुरू करदिया. सितम्बर 1848 में डलहौज़ी ने एक पत्र में लिखा था,'ये अवध तो वो चेरी है जो पेड़ हिलाते ही मुंह में आ गिरेगी.'लार्ड डलहौज़ी अवध पर कोई भी कार्यवाई करने से पहले वाजिद अली शाह के खिलाफ लिखितमें सुबूत जमा करना चाहता था. ताकि वह कार्यवाई को उचित ठहरा सके. इसके लिए अवध मेंतैनात अंग्रेज रेसिडेंटों को विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का काम दिया गया. अंग्रेजअधिकारी भी डलहौज़ी के मंसूबे समझते थे. और उन्होंने भी ऐसी रिपोर्ट तैयार की जिससेगवर्नर जनरल खुश हो जाए.नवाब वाजिद अली महिलाओं के साथ (फोटो सोर्स -Wikimedia Commons)कर्नल स्लीमैन की रिपोर्टसबसे पहले रिपोर्ट तैयार की अंग्रेज रेजिडेंट कर्नल विलियम हेनरी स्लीमैन ने. जिसे1848 में अवध में रेजिडेंट के बतौर नियुक्त किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया किअवध में चारों तरफ अराजकता है और इसके जिम्मेदार नवाब वाजिद अली शाह हैं. ये भीजोड़ा गया कि इसके बाबत सरकार को कोई ठोस कदम उठाना चाहिए. हालाँकि, स्लीमैन अवध कोब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के पक्ष में नहीं था. स्लीमैन की रिपोर्ट के बादलॉर्ड डलहौज़ी ने कुछ वक़्त तक कोई कार्रवाई नहीं की. वाजिद अली शाह को भी अब तकरिपोर्ट की कोई भनक नहीं थी. हालांकि, लॉर्ड डलहौज़ी ने 1853 में लिखा, 'अवध का राजा बहुत अहंकारी होता जा रहा है, और भारत से जाने के पहले मुझे इसे निगलजाने में ख़ुशी होगी.'कुछ ऐसा ही उसने कंपनी के प्रेजिडेंट चार्ल्स वुड को भेजे खत में भी लिखा था.स्लीमैन की रिपोर्ट से काम नहीं बना तो डलहौजी ने एक और अंग्रेज रेजिडेंट सरजेम्स ओट्रम को रिपोर्ट बनाने का जिम्मा सौंपा.अंग्रेज रेजिडेंट कर्नल विलियम हेनरी स्लीमैन (फोटो सोर्स- Wikimedia Commons)ओट्ररम की रिपोर्टजनरल ओट्ररम ने अपनी नियुक्ति के कुछ ही महीनों बाद 1855 में अवध की शासन व्यवस्थापर अपनी रिपोर्ट लार्ड डलहौज़ी को भेजी. रिपोर्ट में उसने अवध के नवाब और उसकेअधिकारियों पर कुशासन के गंभीर आरोप लगाए थे. लेकिन कब्जे कर लेने लायक स्थितियांहैं ये इस रिपोर्ट में भी नहीं था. लेकिन डलहौज़ी ने रिपोर्ट को बढ़ा-चढ़ाकरअपनेउच्चाधिकारियों को भेज दिया. और कार्यवाई के आदेश मांगे. जवाब में उसे अवध मेंक़ानूनी कार्यवाई करने की अनुमति मिल गई.सबसे पहले लार्ड डलहौज़ी ने 1801 की Treaty को तोड़ने का फैसला किया. जिसके एक क्लॉज़में कहा गया था कि नवाब राज्य का प्रशासन उचित ढंग से करेगा. लेकिन डलहौज़ी ने कहाकि इस क्लॉज़ का पालन पिछले 50 वर्षों में ठीक से नहीं हुआ है. इसलिए इस treaty कोको तोड़कर एक नई treaty बनाई जाए, जिसमें अवध के नवाब अवध का सारा प्रशासनिक काम-काजकंपनी के अधीन कर देंगे. दरअसल, डलहौज़ी इस बहाने यह दिखाना चाहता था कि वह अवध कोअच्छी गवर्नेंस के लिए ब्रिटिश अधीनता में लाना चाहता है. हालांकि, वाजिद अली शाहइस treaty को स्वीकार नहीं करना चाहते थे. लेकिन चाहकर भी कुछ नहीं कर सके. जिसकेबाद 7 फरवरी 1856 यानी आज ही के दिन ब्रिटिश सरकार ने एक डिक्लेरेशन जारी करके अवधको अपने साम्राज्य में मिला लिया. वाजिद अली शाह के बारे में एक किस्सा बहुत मशहूरहै. कहा जाता है 1857 के गदर के वक़्त जब अंग्रेजो ने हमला बोला तब नवाब अपने महलमें थे. और वहां से इसलिए नहीं भाग पाए क्योंकि उनको जूतियां पहनाने के लिए महल मेंकोई सेवादार मौजूद नहीं था. और वाजिद अली शाह पकड़े गए. जिसके बाद उन्हें कलकत्ता केमटियाबुर्ज के कारावास में भेज दिया गया. इधर वाजिद अली शाह के पीछे उनकी एक पत्नी,बेगम हज़रत महल लखनऊ में ही रहीं. 1820 में जन्मी हज़रत महल का बचपन का नाम मोहम्मदख़ानम था. कहा जाता है, आज लखनऊ में जिस इमारत में भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय है.नवाब वाजिद अली शाह के समय उसमें परीखाना हुआ करता था. जहां परियां अर्थात ऐसीमहिलाएं रहती थीं. जो नवाब को पसंद होती थीं. बेगम हज़रत महल भी उन्हीं में से एकथीं. जो नवाब के बेटे की माँ बनी थीं. जब 1857 का विद्रोह हुआ तो हजरत महल नेस्वाधीनता के लिए लड़ने वालों की अगुआई की थी. अंग्रेजी सेना को मौलवी अहमद शाह औरहज़रत महल ने लखनऊ में घुसने से रोका था, लखनऊ के आलमबाग में हाथी पर सवार होकरलड़ाई लड़ी थी. चिनहट और दिलकुशा में भी उन्होंने अंग्रेजो को बुरी तरह हराया था.बेगम ने कभी हार नहीं मानी और आखिरी दिन नेपाल में बिताते हुए 1879 में बेगम हज़रतमहल की मौत हो गई थी.