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वो किस्सा, जब पहली बार देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पर बेहद करीब से गोलियां चलाई गई थीं

नहीं, ये इंदिरा गांधी के समय की बात नहीं है.

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1986 में राजघाट पर राजीव गांधी पर जानलेवा हमला हुआ था.
1986 में राजघाट पर राजीव गांधी पर जानलेवा हमला हुआ था. उनके साथ तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भी थे.
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अभय शर्मा
10 दिसंबर 2020 (Updated: 10 दिसंबर 2020, 05:52 IST)
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क्या हो यदि किसी संसदीय लोकतंत्र को मानने वाले देश के राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष (मोटामाटी कहें तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री) पर एकसाथ जानलेवा हमला हो जाए. तब उस देश की शासन व्यवस्था का क्या होगा? इसकी कल्पना मात्र से ही सिहरन पैदा होने लगती है. लेकिन ऐसा एक प्रयास अपने देश में भी हुआ है.

आप सोच रहे होंगे कि हम 31 अक्टूबर 1984 की घटना का जिक्र करने जा रहे हैं, जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके सुरक्षाकर्मियों ने ही गोली मार दी थी. लेकिन हम इसके 2 साल बाद की एक घटना के बारे में बताएंगे, जिसमें देश के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर बेहद करीब से गोलियां चलाई गई थीं.
राजघाट पर राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर बेहद करीब से गोलियां चलाई गई थी.
राजघाट पर राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर बेहद करीब से गोलियां चली थीं.

तारीख थी 2 अक्टूबर 1986. उस दिन महात्मा गांधी की 117वीं जयंती मनाई जा रही थी. परंपरा के मुताबिक़ उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पहुंचे. उनके साथ पत्नी सोनिया गांधी भी थीं. दोनों राजघाट परिसर में दाखिल हुए. समाधि स्थल की ओर बढ़ने लगे. साथ में सुरक्षा एजेंसियों और इंटेलिजेंस का पूरा अमला था. घड़ी की सुईयां तकरीबन सुबह के 6 बजकर 55 मिनट का समय दिखा रही थीं. तभी अचानक एक आवाज गूंजती है. किसी ने समझा कि फायर की आवाज है, तो किसी को लगा कि किसी स्कूटर या दूसरे व्हीकल का इंजन बर्स्ट हुआ है. सुरक्षा अधिकारी और जवान मुस्तैद हो जाते हैं. राजीव गांधी अपनी नॉर्मल चाल से समाधि की ओर बढ़ते हैं. इसी दरम्यान राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भी राजघाट परिसर में दाखिल होते हैं. चूंकि वो राजीव के ठीक बाद पहुंचे थे, इसलिए थोड़ा पीछे चल रहे थे. दोनों (राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री) समाधि स्थल पर प्रार्थना सभा में भाग लेते हैं. एक तरफ प्रार्थना सभा चल रही होती है. दूसरी तरफ सुरक्षा एजेंसियां फायर की तफ्तीश में लग जाती हैं.

आपने देखा होगा कि महापुरुषों की जन्मतिथि और पुण्यतिथि के मौकों पर उनकी समाधि और उसके आसपास के स्थान को करीने से फूलों से सजाया जाता है. लेकिन इस सजावट में भी सुरक्षा एजेंसियां ये ध्यान रखती हैं कि वहां आने वाले VVIPs की सुरक्षा को किसी प्रकार का खतरा न हो. इसीलिए फूलों की सजावट के नीचे जमीन के हिस्से को पानी से गीला रखा जाता है. जमीन को थोड़ा कीचड़ युक्त रखा जाता है. ऐसा इसलिए ताकि बदनीयती से किसी ने कोई विस्फोटक वगैरह जमीन के नीचे दबा रखा हो तो उसे एक हद तक निष्प्रभावी किया जा सके.

राजघाट पर भी उस दिन ऐसा ही किया गया था. कुछ सुरक्षाकर्मियों को लगा कि शायद कोई हथियार जमीन में दबाया गया हो और वही फायर कर रहा हो. मौके पर मौजूद स्निफर डाॅग स्क्वायड को एक्टिव किया गया. कुछ लोगों को लगा कि राजघाट परिसर के आसपास की किसी बिल्डिंग से कोई फायर कर रहा है. बिल्डिंग्स की भी तलाशी शुरू हो गई. इस सबके बीच राजघाट पर प्रार्थना सभा भी चल रही थी.

प्रार्थना सभा के दौरान ही एक और फायर होता है. इस बार फायर की गई गोली प्रधानमंत्री के ठीक पीछे फूलों के बीच जाकर गीली जमीन में धंस जाती है. इस बार सुरक्षाकर्मी और चौकन्ने हो जाते हैं. तत्काल  प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के इर्द-गिर्द एक सुरक्षा घेरा बना दिया जाता है. सुरक्षा के लिए बनाई गई स्थाई और अस्थाई कैनोपीज़ (टीलेनुमा ऊंचा स्थान, जहां सुरक्षाकर्मी मुस्तैद दिखते हैं) की ओर पहुंचकर कमान संभाल लेते हैं. सुरक्षा अधिकारी और इंटेलिजेंस के लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें इसलिए भी चौड़ी होती जा रही थीं कि आखिर ये आवाज आ किधर से रही थी. दिल्ली पुलिस के डिप्टी कमिश्नर (सिक्योरिटी) गौतम कौल और SPG के डिप्टी डायरेक्टर एम आर रेड्डी के बीच इस बात पर मंथन शुरू हो जाता है कि प्रार्थना सभा के बाद आखिर VVIPs को कैसे और किस रूप से सुरक्षित लुटियंस दिल्ली तक पहुंचाया जाए. रेड्डी चाहते थे कि कोई दूसरा रूट तय किया जाए, जबकि गौतम कौल तर्क दे रहे थे कि नया रूट तय करने पर वहां इतने कम समय में सुरक्षा इंतजाम नही किए जा सकते. फिलहाल VVIPs को जल्द से जल्द यहां से बाहर निकालना ही प्राथमिकता है, इसलिए बेहतर यही होगा कि जिस रूट से ये लोग आए हैं, उसी रूट से इन्हें वापस सुरक्षित घर भेजा जाए. अंततः गौतम कौल की बात पर ही सहमति बनती है. तय होता है कि जिस रूट से ये VVIPs राजघाट तक आए, उसी रूट से वापस भी ले जाया जाए.


अहिंसा के पुजारी रहे महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर प्रधानमंत्री को निशाना बनाकर तीन फायर किए गए थे.
अहिंसा के पुजारी रहे महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर प्रधानमंत्री को निशाना बनाकर तीन फायर किए गए थे.

8 बजे से कुछ मिनट पहले प्रार्थना सभा खत्म हो जाती है. सभी VVIPs अपनी-अपनी गाड़ियों की तरफ बढ़ते हैं. प्रधानमंत्री राजीव और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह साथ-साथ चल रहे हैं. तभी जैल सिंह राजीव से पूछते हैं,

"ये हमला कौन कर रहा है?"
राजीव भी बहुत हल्के-फुल्के अंदाज में जवाब देते हैं,
"जब मैं आया, तब भी मेरा ऐसे ही स्वागत हुआ. मुझे लगता है, अब शायद विदाई दी जा रही है."
लेकिन तभी अचानक तीसरे फायर की आवाज सुनाई पड़ती है. इस बार राजीव गांधी चौंक जाते हैं. वह तत्काल एक्शन में आते हैं और ज्ञानी जैल सिंह को ले जाकर अपनी बुलेटप्रूफ मर्सडीज में बैठा देते हैं. सोनिया गांधी के साथ खुद एक एम्बेसेडर कार में छिप जाते हैं. पहले के दोनों फायर तो खाली गए थे, लेकिन इस बार दो लोगों को गोली लगी थी. ये लोग थे- कांग्रेस विधायक ब्रजेन्द्र सिंह मवाई और राजस्थान के बयाना के पूर्व अतिरिक्त जिला जज राम चरण लाल. ये राजीव गांधी से कुछ ही पीछे चल रहे थे.
हमले के वक्त सोनिया गांधी भी राजीव गांधी के साथ थीं.
हमले के वक्त सोनिया गांधी भी राजीव गांधी के साथ थीं.

सारी सुरक्षा एजेंसियां- क्या SPG, क्या दिल्ली पुलिस, क्या NSG, क्या इंटेलिजेंस के लोग- सब हैरान-परेशान थे. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि कहां से फायर हो रहा है, कौन फायर कर रहा है, क्यों फायर कर रहा है? उस वक्त तक गृह मंत्री बूटा सिंह भी महात्मा गांधी को श्रद्धासुमन अर्पित करने राजघाट पहुंच गए थे. लेकिन इसी दौरान कुछ सुरक्षाकर्मियों की नजर 10 फुट ऊंची एक कैनोपी के ऊपर से उठते धुएं पर पड़ी. वह कैनोपी समाधि स्थल से 25-30 फीट की दूरी पर थी.  कुछ लोग उधर दौड़ पड़े. वहां उन्हें देसी कट्टे के साथ 24-25 साल का एक क्लीन शेव्ड नौजवान नजर आया. सुरक्षाकर्मियों ने उस पर हथियार तान दिए. गृह मंत्री बूटा सिंह ने भी सुरक्षाकर्मियों से कहा,
"गोली मार दो उसे".
लेकिन तभी गौतम कौल चिल्लाए,
"गोली मत मारो उसे."
वह नौजवान भी दोनों हाथ ऊपर कर चिल्लाने लगा,
"मैं सरेंडर करता हूं."
उस युवक को पकड़ लिया गया. उसके पास देसी कट्टे के अलावा कुछ खाने-पीने का सामान मिला. उससे पूछताछ शुरू की गई. बातचीत के दरम्यान पता चला कि उसका नाम करमजीत सिंह है. 2 साल पहले इंदिरा गांधी की हत्या के समय वह इंजीनियरिंग स्टूडेंट था. यमुनापार के इलाके में उसके सिख दोस्त की हमलावरों ने हत्या कर दी थी. खुद उसकी जान बड़ी मुश्किल से बची थी. इसी के बाद वह गांधी परिवार से नफरत करने लगा था. लेकिन सुरक्षा एजेंसियों को उसकी बात पर भरोसा नहीं हो रहा था.
उधर, हैरान-परेशान राजीव गांधी किसी प्रकार सुरक्षित प्रधानमंत्री आवास 7 रेसकोर्स रोड तक पहुंचाए गए. वापस पहुंचते ही उन्होंने तीन घंटे तक सुरक्षा अधिकारियों के साथ मीटिंग की. दिल्ली पुलिस के डिप्टी कमिश्नर (सिक्योरिटी) गौतम कौल को तत्काल सस्पेंड कर दिया गया. मामले की जांच इंटेलिजेंस ब्यूरो को सौंप दी गई.
गौतम कौल की कथित लापरवाही -
इस घटना के कुछ दिन पहले राॅ के डायरेक्टर रंजन राय को लुधियाना से एक इंटेलिजेंस इनपुट मिला था. इससे उन्होंने 27 सितंबर 1986 को ही SPG समेत सभी सुरक्षा एजेंसियों को अवगत करा दिया था. इस इनपुट के अनुसार,

'2 अक्टूबर को गांधी जयंती के लिए राजघाट पर प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर जानलेवा हमला हो सकता है. हमला करने वाला एक क्लीन शेव्ड सिख नौजवान हो सकता है. वह माली (Gardener) के वेष में आ सकता है या बस वगैरह में छिप सकता है.'

 इसकी जानकारी IB के एडिशनल डायरेक्टर पी एन मल्लिक ने स्वयं गौतम कौल को दी थी.

लेकिन दिल्ली पुलिस की सिक्योरिटी विंग और अन्य सुरक्षा एजेंसियों ने इसे रूटीन वॉर्निंग के तौर पर लिया जिस कारण हमलावर कामयाब होने के लगभग करीब पहुंच गया था.
वैसे इस घटना में सुरक्षा चूक की बात को वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने भी स्वीकारा. उन्होंने यह बात सोनिया गांधी के हवाले से लिखी. अपनी किताब DURBAR में तवलीन सिंह लिखती हैं,
"When I heard that Sonia had been with Rajiv, I called her to find out what had happened. she said that what had upset her most was that when they heard the shots, the first people to duck were Rajiv's new and supposedly highly trained the Special Protection Group."
(जब मुझे पता चला कि हमले के वक्त सोनिया भी राजीव गांधी के साथ थीं तो मैंने उन्हें फोन किया. सोनिया गांधी ने मुझे बताया कि वे सबसे ज्यादा अपसेट इस बात से थीं कि राजीव की नई और काफी प्रशिक्षित मानी जाने वाली SPG ने गोलियों की आवाज सुनते ही सबसे पहले उनका साथ छोड़ दिया.)
अगले दिन जूलियो रिबेरो पर हमला :-

तारीख थी 3 अक्टूबर 1986. राजघाट की घटना को 24 घंटे बीत चुके थे. एक तरफ सुरक्षा एजेंसियां करमजीत सिंह से पूछताछ में लगीं थी, तभी जालंधर में एक और घटना घट गई. इस घटना में पंजाब के DGP जूलियो रिबेरो और उनकी पत्नी मेल्बा रिबेरो बाल-बाल बच गए. जालंधर के शेरशाह सूरी मार्ग पर स्थित पंजाब आर्म्ड पुलिस के हेडक्वार्टर में एक वैन में सवार कुछ चरमपंथी, जो पुलिस वर्दी में थे, दाखिल होते हैं और अचानक जूलियो रिबेरो पर फायरिंग शुरू कर देते हैं. रिबेरो के साथ के सुरक्षाकर्मी भी जवाबी फायर करते हैं. दोनों तरफ की फायरिंग में CRPF के एक जवान कुलदीप राज की जान चली गई. रिबेरो और उनकी पत्नी बाल-बाल बचे.

इस घटना के बाद राजघाट मामले की जांच कर रहे लोगों का शक और गहरा हो गया. सबको दोनों हमले में काॅमन लिंक होने का संदेह होने लगा. करमजीत सिंह से पूछताछ की प्रक्रिया और कड़ी कर दी गई. लेकिन फिर भी पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को दोनों घटनाओं में कोई काॅमन लिंक मिल नही पाया. 8 साल बाद 1994 में करमजीत सिंह को राजघाट फायरिंग मामले में न्यायालय से सजा हुई. लेकिन वर्ष 2000 में उसे अच्छे आचरण के कारण रिहा कर दिया गया.
हमले के वक्त सोनिया गांधी भी राजीव गांधी के साथ थीं.
करमजीत सिंह ने राजीव गांधी पर बेहद करीब से गोलियां चलाई थी.

कौन है करमजीत सिंह?
कमलजीत सिंह संगरूर का रहने वाला है. 80 के दशक के शुरूआती वर्षों में वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई के उद्देश्य से दिल्ली आया था. एक वेबसाइट Sify.com को 2009 में उसने एक इंटरव्यू दिया था. इसमें उसने बताया था,
मैं एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट था. दिल्ली के मानसरोवर पार्क में अपने दोस्त बलदेव सिंह के साथ रहता था. उसी दरम्यान इंदिरा गांधी की हत्या हो गई, और उसके बाद सिख विरोधी दंगे शुरू हो गए. 3 नवंबर 1984 को अचानक मेरे इलाके में प्रदर्शनकारियों की भीड़ इकट्ठी हो गई. सिखों को ढूंढ-ढूंढ कर मारा जाने लगा. इन सबसे मेरे मकान मालिक घबरा गए. जान बचाने के लिए तत्काल बाल और दाढ़ी मुंड़ाने को कहा. मैंने और बलदेव ने मकान मालिक की बात मानी, और बाल-दाढ़ी मुंड़ा ली. फिर दोनों लोग अलग-अलग फ्लोर के बाथरूम में घुस गए. उसके बाद हमलावर भीड़ हमारे घर में घुसी, और बाथरूम का दरवाजा पीटने लगी. उन लोगों को कटे हुए बाल नीचे दिख गए थे, इसलिए उनका शक पुख्ता हो गया गया कि इस घर में भी सिख हैं. जब उन्होंने मेरे बाथरूम का दरवाजा पीटा, तब मैंने अंदर से ही कहा,

 "यार, क्यों नहाने में डिस्टर्ब कर रहे हो."

फिर वे लोग मुतमईन हो गए कि ये सिख नही है. लेकिन दूसरे फ्लोर के बाथरूम में छिपे बलदेव ने दरवाजा खोल दिया. उसके गंजे सिर को देखकर उन्मादी भीड़ को लग गया कि यह सिख है. उसके बाद उसे छत से ही पहले नीचे फेंका, और फिर मार डाला. घंटों बाद पुलिस आई. मुझे श्यामलाल काॅलेज स्थित रिलीफ कैंप में ले गई. वहां भी कई-कई दिनों तक बिना भोजन के रहना पड़ा. कई बार तो सिर्फ 1 रोटी पर पूरे दिन गुजारा करना पड़ता था. इन सबके बीच राजीव गांधी ने यह बयान दे दिया- 'जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है . उनके इस बयान से मुझे बहुत निराशा हुई और मैं गांधी परिवार से नफरत करने लगा. इसके बाद मैं अपनी प्लानिंग में लग गया. राजस्थान के श्रीगंगानगर से 300 रूपये में एक देसी कट्टे का इंतजाम किया. हमले के लिए 2 अक्टूबर को गांधी जयंती की तारीख और राजघाट की जगह मुझे मुफ़ीद लगी. लेकिन  मुझे पता था कि वहां उस दिन सिक्योरिटी टाइट रहेगी, इसलिए वहां घुस पाना संभव नहीं होगा. लिहाजा मैंने जरूरी सामान और भोजन वगैरह का इंतजाम किया. 10 दिन पहले यानी 22 सितंबर को ही राजघाट परिसर में दाखिल हो गया. वहां 10 फीट ऊंची एक कैनोपी पर चढ़ गया. अगले दस दिन वहीं रहा. वहां मधुमक्खियों के परेशान करने का डर था, लेकिन बारिश की वजह से यह खतरा कम हो गया था. 2 अक्टूबर की सुबह मैं पूरी तैयारी के साथ वहां था. इतने में राजीव गांधी आते दिखे. मैंने फायर कर दिया. तीन फायर करने के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने मुझे पकड़ लिया. पूछताछ हुई. 56 दिन की पुलिस रिमांड हुई. उसमें बहुत टॉर्चर किया गया. दो बार राजीव गांधी भी मिलने आए. दोनों बार उन्होंने एक ही बात दोहराई कि माफ़ी मांग लो तो माफ़ कर दिए जाओगे. लेकिन मैंने मना कर दिया. कोर्ट से सजा भी हुई, लेकिन 2 मई 2000 को मेरे अच्छे व्यवहार के कारण मुझे रिहा कर दिया गया. जेल में रहने के दौरान मैंने ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन किया. लेकिन जेल अथॉरिटी ने लाॅ करने की इजाजत नहीं दी. लिहाजा मैंने जेल से छूटने के बाद शादी की, और उसके बाद LL.B. किया."
आजकल करमजीत सिंह पटियाला में वकालत कर रहा है. उसने 2009 में लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर. लेकिन कांग्रेस की कैंडिडेट और कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परणीत कौर के सामने उसकी जमानत जब्त हो गई. करमजीत सिंह को केवल 4591 वोट मिले.
तो ये थी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पर हमले की कहानी. इस किस्से की इबारत पर गौर कीजिए कि अगर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के इतना करीब पहुंच चुके हमलावर के पास अत्याधुनिक हथियार होते या अगर वह कामयाब हो जाता तो कितना बड़ा हादसा हो सकता था!'

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