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भारतीय सेना का वो सीक्रेट मिशन जिसने इतिहास बना दिया

सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना था. पर इस घोषणा से पहले भारत ने सिक्किम के लिए बहुत पापड़ बेले थे.

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अविनाश जानू
24 सितंबर 2018 (Updated: 24 सितंबर 2018, 07:51 IST)
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हैदराबाद का किस्सा आपने जरूर सुना होगा जब भारत की सेना ने हैदराबाद में घुसकर वहां अधिकार कर लिया था. पर आज आपको लल्लन सुना रहा है कहानी सिक्किम की. सिक्किम एक छोटा सा राज्य जिस पर आज भी चीन अपना दावा जताता है. क्या है चीन के उस दावे के पीछे की सच्चाई और सिक्किम में कौन सा ऐसा ऑपरेशन हुआ था. वो भी इतना सीक्रेट कि भारत ने सिक्किम को अपने अधिकार में ले लिया और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं हुई.

आजादी से पहले अलग देश था सिक्किम

आजादी से पहले सिक्किम को ब्रिटेन से स्वायत्ता मिली हुई थी. सिक्किम में राजतंत्र था और वहां के राजा को चोग्याल बोला जाता था. जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो उसे भी ये स्वायत्ता बनाए रखनी थी. उस समय के नेता चाहते थे कि सिक्किम भारत का पूरी तरह से हिस्सा बन जाये. पर ऐसा हो न सका.

नेहरू ने सिक्किम को संरक्षित राज्य बना लिया

नेहरू के सामने दो रास्ते थे. सिक्किम को भारत में मिला लेना या उसे संरक्षण दे देना. नेहरू ने दूसरा रास्ता चुना. सिक्किम के लिए भारत को सहायक का रोल मिला जिसका काम सिक्किम की रक्षा, कूटनीति और संचार जैसी जरूरतों को पूरा करना था. चोग्याल को शासन में मदद करने को एक स्टेट कौंसिल 1953 में बनाई गई, जो 1973 तक अपना काम करती रही. स्टेट काउंसिल जनता चुनती थी माने ये लोकतांत्रिक प्रक्रिया थी.

60 के दशक से शुरू हुई मुश्किलें

अभी तक सब सही चल रहा था कि 1962 में भारत और चीन का युद्ध हो गया. जबकि सिक्किम एक इंडिपेंडेंट देश था तब भी इंडियन बॉर्डर गार्ड्स और चीनी सैनिकों के बीच नाथुला दर्रे के पास एक झड़प हो गई. इसके बाद ये ऐतिहासिक दर्रा बंद कर दिया गया जिसे फिर सीधे 6 जुलाई 2006 को खोला गया. यह सब संकट चल ही रहा था कि बूढ़े चोग्याल ताशी नामग्याल 1963 में कैंसर से मर गए. जिसके बाद पाल्देन थोंदुप नामग्याल 1965 में चोग्याल बना. ये आखिरी चोग्याल था. नेहरू ने वहां पर चोग्याल बनने की पारिवारिक लड़ाई को संभाले रखा था पर 1964 में नेहरू की मौत के बाद से ये लड़ाई बहुत बढ़ गई. इंदिरा गांधी में सिक्किम की स्वतंत्र स्थिति बनाए रखने का पेशेंस नहीं था जिसके कारण पारिवारिक लड़ाई खुलकर सामने भी आ गई.

सिक्किम पर चीन के दावे के पीछे कारण

1967 में चीन ने अपने सैनिकों को सिक्किम पर दावा करने भेज दिया. जो कि उस वक्त तक भारत का संरक्षित राज्य था. भारत भी जमकर लड़ा और चीनियों को मात दी. इस लड़ाई को 'चोला कि घटना' कहा जाता है. इसके बाद चीन ने सिक्किम पर अपना दावा कुछ वक्त के लिए छोड़ दिया. 1970 में सिक्किम की 'राष्ट्रीय सिक्किम राजतंत्र विरोधी कांग्रेस पार्टी' ने राज्य में नए चुनावों और नेपालियों के अधिक रिप्रजेंटेशन की मांग की. 1973 में चोग्याल के महल के सामने ऐसे राजतंत्र विरोधी दंगे हुए जिसके बाद ये समझ आने लगा कि जल्द ही भारत सरकार को इसमें कूदना पड़ेगा. भारत भी समझता था जहां सिक्किम में अस्थिरता बढ़ी, तुरंत चीन अपनी टांग अड़ाएगा. चीन पहले से ही कहता रहा था कि सिक्किम तिब्बत का भाग था इसलिए अब वो चीन का भाग है.

सिक्किम को भारत में शामिल करने का यूं मन बना

भारत सरकार ने चीफ एडमिनिस्ट्रेटर बनाकर वहां एमएस दास को भेजा जिनका काम था चोग्याल से शासन अपने हाथ ले लेना. उधर चोग्याल और चुने हुए 'काजी' माने प्रधानमंत्री ल्हेंदुप दोरजी के संबंध वैसे भी अच्छे नहीं चल रहे थे जिसके कारण सारा सरकारी काम-काज ठप्प चल रहा था. काजी कौंसिल ऑफ मिनिस्टर द्वारा चुना गया था. और कौंसिल ऑफ मिनिस्टर्स के सारे के सारे सदस्य राजतंत्र के खात्मे को लेकर एकमत थे.

सीक्रेट मिशन के जरिए भारत का अंग बना सिक्किम

इसके बाद होना क्या था, सीधे भारत कि फौज को सिक्किम भेज दिया गया. जहां उसने चोग्याल का महल अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद इंडियन रिजर्व पुलिस फोर्स की टुकड़ी ने गंगटोक की गलियों पर नियंत्रण बना लिया. बॉर्डर बंद कर दिए गए. इतना सब कुछ होता रहा और किसी को तब तक कुछ खबर नहीं हुई जब तक एक अमेरिकी पर्वतारोही करील रिडले, जो वहां उस वक्त मौजूद था, ने कुछ तस्वीरें और कानूनी दस्तावेज तडीपार कर बाहर नहीं भेज दिए. पर अब क्या हो सकता था? इतिहास लिखा जा चुका था और प्रधानमंत्री दोरजी ने 1975 में सिक्किम की स्थिति को बदलकर उसे भारत में शामिल करने की सिफारिश कर दी थी.
scan0116 गवर्नर बी. बी. लाल और एल. डी. काजी पहली सिक्किम विधान सभा के सदस्यों के साथ

14 अप्रैल 1975 को एक जनमत संग्रह हुआ. 26 अप्रैल 1975 को आए जनमत के फैसले ने निश्चित कर दिया कि सिक्किम भारत का 22वां राज्य होगा. 16 मई 1975 को ऑफिशियली भारत का राज्य घोषित किया गया और ल्हेंदुप दोरजी वहां के मुख्यमंत्री बने. इसके साथ ही सिक्किम में राजतंत्र का भी अंत हो गया. बाद में पाल्देन थोंदुप की अमेरिका में कैंसर से मौत हो गई.


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