The Lallantop
Advertisement

शादी के वादे पर सेक्स कब कहलाएगा रेप?

लंबे समय तक रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी के वादे के टूटने पर कानूनी विवाद बढ़ते जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों ने मामले को स्पष्ट किया है.

Advertisement
When does sex on the promise to marry become rape
शादी के वादे पर सेक्स रेप है या नहीं? क्या कहता है कानून? (तस्वीर- आजतक)
pic
लल्लनटॉप
6 दिसंबर 2024 (Updated: 6 दिसंबर 2024, 18:30 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

साल 1988. 21 साल के उदय अपने दोस्त जगदीश के घर अक्सर आते-जाते थे. जगदीश की 19 साल की बहन से उदय को प्यार हुआ. जल्दी ही शादी के लिए प्रपोज़ भी कर दिया. लड़की ने भी हां कह दिया और दोनों के बीच रिलेशनशिप शुरू हो गई. हालांकि दोनों जानते थे कि शादी करना मुश्किल होगा, क्योंकि दोनों अलग-अलग जातियों से आते हैं. इसके बाद भी दोनों ने आगे बढ़ने का फैसला लिया. एक दिन पता चला कि लड़की प्रेग्नेंट है. इसके बाद लड़की ने कई बार उदय से शादी के लिए कहा, लेकिन उदय ने जाति का हवाला देकर शादी से इनकार कर दिया. 1989 में लड़की ने उदय पर बलात्कार (रेप) का आरोप लगाया.

1988 से 2024 के बीच में इस तरह के हज़ारों मामले सामने आए. इस तरह के मामलों में कहानी अक्सर ऐसी ही होती है, जैसा उदय के मामले में था. कपल्स पहले साथ में रहते हैं, फिर उनका ब्रेकअप हो जाता है. और फिर आरोप लगते हैं कि लड़के ने शादी का झांसा देकर लड़की का बलात्कार किया. लड़का कहता है कि वादा तो मैंने सच्चा ही किया था, लेकिन बाद में हालात बदल गए. अदालती फैसलों में कभी लड़कों को दोषी पाया जाता है तो कभी नहीं.

हाल फिलहाल में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के कुछ मामलों में फैसले सुनाए हैं. कोर्ट ने ऐसे मामलों की कानूनी स्थिति साफ करने की कोशिश की है. और इसके साथ ही फिर से डिबेट शुरू हो गई है. डिबेट यही कि शादी के वादे पर हुआ सेक्स कब रेप माना जाएगा और कब नहीं.

शादी के वादे पर सेक्स रेप कब हो जाता है?

आसान भाषा में कहें तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर एक लड़का किसी लड़की से शादी का ‘सच्चा’ वादा करता है, और इस वादे को निभाने का पूरा इरादा रखता है, लेकिन किसी वजह से बाद में वादा नहीं निभा पाता है, ऐसे में दोनों के बीच बने शारीरिक संबंधों को रेप नहीं कहा जाएगा.

दूसरी तरफ़, अगर लड़के का शादी करने का कोई इरादा नहीं है. फिर भी वो लड़की से शादी का झूठा वादा करता है. इस वादे की वजह से लड़की शारीरिक संबंध बनाने के लिए राज़ी होती है. और बाद में लड़का अपने वादे से पलट जाता है. ऐसे में ये माना जाएगा कि लड़के ने लड़की का बलात्कार किया है.

IPC और BNS के पेच क्या हैं?

भारत में 1 जुलाई 2024 से भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) लागू हो गई है. इसके पहले भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) लागू थी. इस तरह के मामलों को लेकर दोनों संहिताओं के प्रावधान काफी मिलते-जुलते हैं, लेकिन फिर भी इनमें कुछ अंतर है.

IPC की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा दी गई थी. इसके हिसाब से अगर कोई पुरुष किसी महिला की सहमति या इच्छा के बिना उसके साथ (जबरदस्ती) शारीरिक संबंध बनाता है, तो ये अपराध रेप कहलाएगा. इस संबंध में IPC की धारा 90 का जिक्र जरूरी है. ये कहती है कि सेक्स के लिए महिला की सहमति तभी मानी जाएगी, जब वो किसी डर या गलतफ़हमी में रहकर ना दी गई हो. 

यहां पर ‘गलतफ़हमी’ वाले प्रावधान पर ध्यान देने की जरूरत है. इस तरह के मामलों में महिलाएं यही आरोप लगाती हैं कि उन्हें गलतफ़हमी में रखा गया. मसलन, शादी का झूठा वादा किया. इस झूठे वादे के आधार पर ही उनसे शारीरिक संबंध बनाए गए.

लेकिन फिर सवाल यही आ गया कि ये कैसे तय हो कि लड़का जो है वो लड़की को गलतफ़हमी में डालना चाहता था? इसका जवाब तलाशने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 में प्रमोद पवार बनाम महाराष्ट्र केस में दिए गए अपने फैसले में दो टेस्ट निकाले-

पहला-  शादी का वादा झूठा हो और लड़के का वादा निभाने का कोई इरादा ना रहा हो. 

दूसरा- कपल के बीच सेक्शुअल रिलेशन केवल शादी के झूठे वादे की वजह से ही बनाए गए हों.

सुप्रीम कोर्ट ने फिर इन सवालों के और स्पष्ट जवाब तलाशने की कोशिश की. कोर्ट ने साल 2023 के नियाम अहमद बनाम स्टेट (NCT ऑफ दिल्ली) केस में कहा कि एक झूठे वादे और सच्चे वादे को पूरा ना कर पाना, दो अलग बाते हैं. सच्चे वादे को पूरा ना कर पाने पर रेप का आरोप नहीं बनता.

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2024 में इससे जुड़े दो और फैसले सुनाए. एक में तो काफी चिंता भी जताई. कहा कि लोग लंबे समय तक साथ रहते हैं. फ़िर ब्रेकअप के बाद रेप जैसे संगीन आरोप लगाने लगते हैं. महेश दामू खरे बनाम महाराष्ट्र के मामले में कोर्ट ने कहा,

“महिला जब किसी के साथ लंबे समय तक शारीरिक संबंधों में रहती है तो निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि वो शादी के झूठे वादे पर इतने लंबे समय तक पुरुष के साथ रह रही थी." 

इसी तरह से प्रशांत बनाम दिल्ली केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मात्र इसलिए कि एक रिलेशनशिप शादी तक नहीं जा सकी, उसे अपराध नहीं माना जा सकता.

BNS में स्थिति थोड़ी अलग

BNS में कहा गया है कि धोखाधड़ी से या शादी के झूठे वादे के ज़रिए शारीरिक संबंध बनाना रेप नहीं है, लेकिन ये एक अलग तरह का अपराध है. वहीं धारा 69 के तहत, अगर कोई पुरुष किसी महिला के साथ शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाता है और उसका वादा पूरा करने का कोई इरादा नहीं है, तो उसे 10 साल तक की सज़ा हो सकती है.

इस प्रावधान को उदाहरण से समझते हैं-

मानिए कि राज और अंजली एक ही कॉलेज में पढ़ते हैं. दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं और रिलेशनशिप में आ जाते हैं. दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनते हैं. कुछ महीनों बाद दोनों एक दूसरे से शादी का वादा करते हैं. कॉलेज खत्म होता है और राज को किसी दूसरे देश में नौकरी मिल जाती है. राज शादी से इनकार कर देता है. इस दौरान राज और अंजली के बीच बनाए गए शारीरिक संबंधों को रेप या BNS धारा 69 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा.

अब मान लीजिए कि इसी किस्से में राज ने अंजली से अपने प्यार का इज़हार किया और शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा ज़ाहिर की. अंजली ने कहा कि वो तब ही कोई संबंध बनाएगी, जब राज वादा करे कि वो उससे शादी करेगा. शारीरिक संबंध बनाने की मंशा से राज शादी का झूठा वादा देता है. बाद में राज अपने वादे से पलट जाता है. इस दौरान राज और अंजली के बीच बने शारीरिक संबंधों को रेप या BNS धारा 69 में अपराध माना जाएगा.

IPC और BNS, दोनों में एक बात पर जोर दिया जा रहा है. वो बात है- इरादा. मतलब, अगर पुरुष ये साबित कर देता है कि उसका इरादा महिला से शादी करने का था, तो शारीरिक संबंधों को रेप नहीं माना जाएगा. लेकिन इरादा था या नहीं, ये कैसे साबित किया जा सकता है? इस बारे में हमने कुछ वकीलों से बात की.

दिल्ली हाई कोर्ट में वकील अनुज चौहान कहते हैं,

“आरोपी का इरादा पीड़िता को धोखा देने का था या नहीं ये प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा. इसके अलावा, पीड़िता का बयान भी बहुत महत्वपूर्ण होता है. बयान से ये स्पष्ट होना ज़रूरी है कि सहमति गलतफ़हमी में ही दी गई थी.”

वहीं सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड श्रिया मैनी कहती हैं,

“किसी पुरुष के ऊपर शादी का झांसा देकर महिला से बलात्कार करने का आरोप सिद्ध करने के लिए कई चीज़ें देखी जाती हैं. जैसे कपल के बीच सहमति से यौन संबंध का इतिहास, क्या महिला एक शिक्षित कामकाजी वयस्क थी, जो ये अच्छी तरह से समझती थी कि उसके फैसलों का क्या असर हो सकता है. क्या महिला जानती थी कि अलग-अलग परिस्थितियों के चलते शादी नहीं भी हो सकती है. क्या दोनों के बीच रिलेशनशिप लगातार खराब होती जा रहा था?"

श्रिया मैनी आगे कहती हैं,

"ये देखा जाता है कि अगर लंबे समय से कपल साथ में रह रहा था, तो शादी ना होने पर भी कपल के बीच बने शारीरिक संबंधों को रेप नहीं कहा जा सकता है. सारी बातों को देखना होगा. ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं, जिनमें पता लगा है कि कानून का दुरुपयोग किया गया."

क्या हुआ उदय की कहानी में?

निचली अदालत ने उदय को दोषी पाते हुए 7 साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई थी. बाद में हाई कोर्ट ने सज़ा को कम कर के ढाई साल कर दिया. 14 साल केस लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में उदय को निर्दोष पाया. 

शादी के झूठे वादे के मामलों में महिलाओं की पीड़ा और उनके अधिकारों का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है. वहीं, ये भी ज़रूरी है कि कानून का दुरुपयोग न हो और निर्दोष व्यक्तियों को गलत आरोपों का सामना न करना पड़े. न्याय तभी सुनिश्चित होगा, जब महिलाओं को सशक्त बनाया जाए और साथ ही हर मामले को निष्पक्ष दृष्टिकोण से परखा जाए.

(ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे प्रखर ने लिखी है.)

वीडियो: लल्लनटॉप अड्डा: 'लिटिल लिटिल' महीने में कितनी बार ले सकते हैं, डॉक्टर सरीन ने बता दिया

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement