ड्रम की आवाज सुनाई देती है और फिर शांत हो जाती है. फिर एक पुलिसवाला हाथ में माइकऔर पर्चा पकड़े कहता है- सुनो,सुनो,सुनो. श्रीमान जिला अधिकारी गाजीपुर महोदय केआदेश के क्रम में गैंगस्टर एक्ट की धारा 14 (1) के अंतर्गत जनपद गाजीपुर के शिक्षामाफिया महेंद्र सिंह कुशवाहा निवासी रघुनाथपुर छावनी लाइन कोतवाली गाजीपुर. उनकीफतेउल्लाहपुर स्थिति अचल संपत्ति को कुर्क किया जाता है. सुनो, सुनो सुनो.TET पेपर लीक, गाजीपुर शिक्षा माफिया महेन्द्र कुशवाहा की 5 करोड़ की सम्पत्तिकुर्क ।👇 pic.twitter.com/7FAztQpL1N— 🚩🇮🇳उमा शंकर राघव 🇮🇳🚩8k (@UmaShankar2054) November 29, 2021 एक बार फिर ड्रम बजता है. पुलिस सार्वजनिक सूचना का बोर्ड लगाती है और चली जाती है.ये वीडियो उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का है. हाल ही में पुलिस ने नकल माफियामहेंद्र कुशवाहा की संपत्ति कुर्क कर दी. इस खबर के बहाने हम ये समझने की कोशिशकरेंगे कि ये कुर्की यानी अटैचमेंट ऑफ़ प्रॉपर्टी है क्या? किस क़ानून के तहत किसी कीसंपत्ति (Property) कुर्क की जाती है? कैसे और कौन सी प्रॉपर्टीज़ कुर्क होती है?पूरी प्रक्रिया क्या है? सब पर बारी-बारी से बात करेंगे.#कुर्की होती क्या है? एक होता है वारंट यानी वो आदेश जो कोर्ट जारी करता है. इन्हीं में से एक है- कुर्कीवारंट यानी वारंट ऑफ़ अटैचमेंट (Warrant of attachment). इस क़ानून के तहत किसी कीसंपत्ति पर स्थायी या अस्थाई रूप से कोर्ट का कब्ज़ा हो जाता है. लेकिन सवाल है किकिसकी संपत्ति पर? कोर्ट मोटा-माटी दो स्थितियों में वॉरंट जारी करता है. एक तब, जबकोई आरोपी फरार चल रहा हो और दूसरा तब जब उस व्यक्ति को रकम या प्रॉपर्टी की अदायगीकरनी हो.इन दोनों स्थितियों में कोर्ट के पास CRPC यानी कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजरकी धारा 82 से 86 के तहत कुर्की का विकल्प होता है. कुर्की वारंट जारी करने के बादकोर्ट प्रशासन या नियुक्त किये गए रिसीवर को आरोपी से रकम की रिकवरी या प्रॉपर्टीकी कुर्की के लिए ऑर्डर देता है.पिछले कुछ सालों में अतीक अहमद और उनके रिश्तेदारों की कई प्रॉपर्टी गिराई गईं हैं(फोटो सोर्स -आज तक )सिविल और क्रिमिनल केस में इन वजहों से कुर्की-वारंट जारी हो सकता है-# जब किसी व्यक्ति के खिलाफ़ कोर्ट में सिविल रिकवरी का केस चल रहा हो और उसके खिलाफ़जजमेंट आ जाए, लेकिन वो जजमेंट का पालन न करे.# जब किसी क्रिमिनल केस में सरकारी या गैर-सरकारी पैसे, प्रॉपर्टी या सामान केनुकसान का दोषी पाया जाए और रिकवरी का ऑर्डर एक्जीक्यूट न हो पाए.# अगर किसी व्यक्ति ने कोर्ट में किसी अपराधी की ज़मानत कराई है और कोर्ट ने ज़मानतकी रकम अदा करने का आदेश दिया हो, लेकिन रकम अदा ना किया गया तो कोर्ट जमानत करानेवाले की संपत्ति की कुर्की के आदेश दे सकता है.# कोर्ट में किसी भी केस की प्रोसिडिंग के दौरान किसी आदेश को न मानने पर.इस लिस्ट के अलावा भी कुछ केस होते हैं, जो क्रिमिनल और सिविल तो नहीं कहे जाते,लेकिन इनकी कानूनी प्रक्रिया सिविल केस जैसी ही रहती है. इन मामलों में भी कोर्टद्वारा तय रकम अदा न करने पर या कोर्ट का ऑर्डर न मानने पर कुर्की का वारंट जारी होसकता है. जैसे MACT यानी मोटर व्हीकल एक्ट, धारा 138 N.I. एक्ट यानी चेक बाउंस होनेकी स्थिति में, धारा 125 CRPC यानी गुजारा भत्ता अधिनियम, और NCLT यानी नेशनल कंपनीलॉ ट्रिब्यूनल के नियमों के मुताबिक़ रकम या संपत्ति की देनदारी न करने पर कुर्कीवारंट जारी हो सकता है.मुज़फ्फरपुर शेल्टर होम केस में बिहार सरकार में मंत्री रहीं मंजू वर्मा जब 3 महीनेतक फरार रहीं तब उनके घर की कुर्की की गई थी (प्रतीकात्मक फोटो साभार - ANI)यहां तक हमने समझ लिया कि कुर्की वारंट क्या है और किन मामलों में कुर्की का ऑर्डरकोर्ट जारी कर सकता है. लेकिन क्या कोर्ट किसी मामले में दोषी के खिलाफ़ बिना नोटिसके कुर्की का वारंट जारी कर देता है? जवाब है- नहीं. समझने के लिए पहले समझिए किकोर्ट ‘फरार अभियुक्त’ किसे कहता है.CRPC की धारा 82 के मुताबिक, अगर कोर्ट को किसी केस में ये लगता है कि उसने जिसकेखिलाफ वारंट जारी किया है वो जान-बूझकर कोर्ट में पेश नहीं हो रहा या कोर्ट से छिपरहा है तो ऐसे व्यक्ति के नाम कोर्ट एक नोटिस जारी करता है, इस नोटिस को व्यक्ति केघर या ऑफिस के आस-पास चस्पा कर दिया जाता है. इस नोटिस में एक तारीख़ मेंशन होती है.कोर्ट उम्मीद करता है कि फरार व्यक्ति उस तारीख तक कोर्ट में हाजिर हो जाए. अब अगरदी गई तारीख़ तक भी आरोपी कोर्ट में हाज़िर न हो तो कोर्ट उसे फरार अपराधी घोषित करदेता है. इसके बाद कोर्ट कुर्की का वारंट जारी करता है. जो बाद में कुर्की के ऑर्डरमें तब्दील होता है.यहां तक हम मोटा-माटी दो बातें समझ चुके हैं – एक कि कुर्की ऑर्डर कब जारी कियाजाता है और दूसरा कि कुर्की का वारंट कुर्की के ऑर्डर में कब तब्दील होता है. लेकिनज़रा कुर्की के मामले में कोर्ट के अंदर की कानूनी प्रक्रिया भी समझ लें.#कुर्की की कानूनी प्रक्रिया-सामान या प्रॉपर्टी की कुर्की धारा 83 CRPC के तहत होती है. इसे ऐसे समझिए कि येखुद में तो एक केस है ही, क्रिमिनल और सिविल केसेज़ में भी ज़रूरत होने पर प्रोसिडिंगमें थोड़े बदलाव के साथ इसी धारा के तहत कार्रवाई होती है.क्रिमिनल केसेज़ की बात करें तो अगर कोई व्यक्ति किसी क्रिमिनल केस में कोर्ट केऑर्डर नहीं मानता तो उसी कोर्ट में धारा 82 और 83 के तहत एप्लीकेशन लगाई जाती है औरकोर्ट धारा 82 के तहत कुर्की का वारंट और 83 के तहत कुर्की का ऑर्डर जारी कर देताहै.सिविल केस की बात करें तो सिविल केस और जो हर्जाने, मुआवजे वाले केस आपको हम पहलेबता चुके हैं, सभी एक ही प्रक्रिया के तहत कुर्की के ऑर्डर तक पहुंचते हैं. इनमेंपहला काम तो है केस लड़ना, ये लंबा भी चल सकता है. इसके बाद मान लीजिए आप केस जीत गएऔर कोर्ट ने ऑर्डर दे दिया कि फलां कंपनी या शख्स आपको इतनी रकम अदा करेगा याप्रॉपर्टी का मामला है तो प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा देगा. लेकिन अगर फिर भी ऐसा नहीं होतातो उसी कोर्ट में Execution का केस अलग से डालना होता है. जिस पर कोर्ट दोषी केखिलाफ़ कुर्की का ऑर्डर जारी कर देता है.कई मामलों में कोर्ट के निर्णय अपने अपराध की जघन्यता का स्तर देखते हुए विवेक केआधार पर भी हुए हैं (प्रतीकात्मक फोटो- आज तक)#कुर्की का ऑर्डर जारी होने के बाद की प्रक्रिया-कुर्की का ऑर्डर जारी होने के बाद क्या होता है, आपको संक्षिप्त में बताते हैं# छोटे सामान की रिकवरी के लिए कोर्ट की तरफ से एक ऑफिसर भेजा जाता है, इसको जज कीही पावर्स मिली होती हैं, सामान की रिकवरी से लेकर सीज़ करने तक की कार्रवाई ये करसकता है.# किसी प्रॉपर्टी से रिकवरी के मामले में एक रिसीवर की नियुक्ति होती है, जो ज़मीनकी वैल्यू तय करके उसकी नीलामी की प्रक्रिया को सुपरवाइज़ करता है. रिसीवर को 1908के CRPC की धारा 5 के तहत प्रॉपर्टी की नीलामी और बिक्री के अधिकार होते हैं.# कुर्की होने वाली प्रॉपर्टी अगर नष्ट हो जाने वाली है, जैसे कोई पशुधन या अन्यकोई चल संपत्ति तो कोर्ट सीधे इसकी बिक्री कर सकता है. बिना नीलामी किए भी.# अगर प्रॉपर्टी की बिक्री से आई रकम रिकवरी अमाउंट से ज्यादा है तो पहले कोशिश कीजाती है कि उतने ही हिस्से की बिक्री की जाए जितने से रिकवरी की रकम और कोर्ट काखर्च अदा हो जाए, अगर ऐसा संभव नहीं है तो पूरी प्रॉपर्टी बेचकर रिकवरी अमाउंट औरकोर्ट के खर्च के बाद बची रकम दोषी को वापस कर दी जाती है. कुर्की की प्रक्रिया तो समझ ली, अब ज़रा ये भी जान लीजिए कि किन सामानों की कुर्कीहो सकती है, और किनकी नहीं.#कुर्क किए जा सकने वाले एसेट्स-CPC की धारा 60 के मुताबिक, अचल संपत्ति जैसे ज़मीन, मकान, दुकान या चल संपत्ति जैसेकोई सामान, करेंसी, चेक, लेन-देन के डॉक्यूमेंट्स, प्रॉमिस लेटर या कोई भी ऐसासामान जिसे बेचा जा सकता है उसकी कुर्की की जा सकती है. इसी धारा 60 के ही मुताबिक,बच्चों के कपड़े, बर्तन, महिलाओं के गहने, लकड़ी या सोने के कारीगरों के औजार वगैरहकुर्की के लिए एलिजिबल आर्टिकल्स की केटेगरी में नहीं आते. इसके अलावा कुछ अधिकारभी हैं जिन्हें कुर्क नहीं किया जा सकता जैसे – मुकदमा कायम करने का अधिकार, पेंशनका अधिकार, बीमा पॉलिसी की रकम वगैरह.अब ये जान लें कि कुर्की का ऑर्डर होने के बाद दोषी क्या कर सकता है?#CRPC की धारा 84 के तहत कुर्की के ऑर्डर के खिलाफ़ आपत्ति डाली जा सकती है . लेकिनशर्त है कि ये आपत्ति या दावा, कुर्की-ऑर्डर जारी होने के 6 महीने के अंदर करनाहोगा. और ये दावा वो व्यक्ति ख़ुद नहीं कर सकता जिसके खिलाफ़ कुर्की का आदेश जारीकिया गया है.#किसी क्रिमिनल केस में अगर आदमी फरार है और इसलिए उसके खिलाफ़ कुर्की का आदेश कियागया है तो उसके पास कुर्की की कार्रवाई से पहले अदालत में पेश होने का ऑप्शन रहताहै. ऐसे में अगर कोर्ट चाहे तो कुर्की रोककर बाकी कानूनी प्रक्रिया अपना सकता है.पटना में लालू यादव की बेनामी संपत्ति सीज़ की गई थीं (फोटो सोर्स -आज तक)#संपत्ति के कुर्क होने के बाद-CRPC की धारा 85 के तहत कुर्क की गई संपत्ति सरकार के अधीन रहती है. अगर कुर्की कीतारीख से 2 साल के अंदर फरार घोषित हो चुका दोषी कोर्ट में हाजिर हो जाए और कोर्टको समझा दे कि वो कोर्ट के वारंट के डर से या किसी और वजह से कोर्ट से छिपा हुआनहीं था. माने हाजिर न होने का कोई वैलिड रीज़न दे दे तो कोर्ट उसकी कुर्क हो चुकीप्रॉपर्टी को रिलीज़ कर सकता है. अगर दोषी को रिकवरी के बदले कुछ अमाउंट ही देना हैतो कोर्ट इसकी भरपाई किसी और तरीके से कराने को भी राजी हो सकता है.ये तो था कुर्की का वो तिया-पांचा जो क़ानून की धाराओं के हिसाब से चलता है. लेकिनहमारे देश में क़ानून की देवी का कहना ये है कि चाहे सौ मुजरिम छूट जाएं, लेकिननिर्दोष एक भी न फंसने पाए. इसी का फायदा लोग कुर्की वाले केसेज़ में भी उठाते हैं,ऐसी जुगत लगाते हैं कि मामला टलता रहता है. पहला तो ये कि कुर्की के आदेश के खिलाफ़,हायर कोर्ट में अपील कर देते हैं, मामला अगर ज़मीन का है तो ज़मीन के दूसरे हिस्सेदारसे केस फ़ाइल करवा देते हैं, ऐसे में मामला लंबा खिंच जाता है. इसी बीच मौक़ा मिला तोज़मीन ही बेच दी जाती है.