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उकर-बुकर प्राइज तो ठीक है, पइसा कितना मिलता है जीतने वाले को?

मैन बुकर प्राइज हवाओं में है. पढ़ लो उसके बारे में सब कुछ.

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प्रतीक्षा पीपी
26 अक्तूबर 2016 (Updated: 26 अक्तूबर 2016, 13:54 IST)
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जबसे पॉल बीटी नाम के आदमी को ये मैन बुकर प्राइज मिला है, तब से हल्ला हो रखा है इनके नाम का. ट्विटर खोलो या फेसबुक, सब पढ़े-लिखे लोग इसी बारे में बात कर रहे हैं. हर साल 2-3 अवॉर्ड ऐसे आते हैं, जिनका खूब हल्ला होता है. जैसे नोबेल, ऑस्कर, बुकर और ग्रैमी. लेकिन भैयाजी ये मैन बुकर प्राइज है क्या? और अगर 'मैन' वाला प्राइज है, तो अरुंधती रॉय और किरण देसाई जैसी औरतों को कैसे मिल गया है?

आओ, बताते हैं

किताबों के लिए दिए जाने वाले सबसे बड़े पुरस्कारों में से एक है मैन बुकर प्राइज. ये किसी भी ऐसी किताब को दिया जाता है, जो अंग्रेजी भाषा में लिखी और छपी हो. प्राइज शुरू होने से लेकर कई सालों तक ये प्राइज केवल कॉमनवेल्थ देशों, यानी वो देश जो ब्रिटेन के अधीन रहे हैं, के साथ आयरलैंड और ज़िम्बाब्वे के राइटर लोगों को मिलता था. कॉमनवेल्थ देश 5-6 नहीं, कुल 52 हैं. और हां, पिछले दो सालों से इस प्राइज के लिए दुनिया में अंग्रेजी भाषा में छपने वाली हर किताब एलिजिबल हो गई है. यानी अब वो 52 देशों वाली सीमा नहीं रही है. इसलिए पॉल बीटी ये प्राइज जीतने वाले पहले अमेरिकी हैं. वरना अमेरिका ने अब 2-4 अवॉर्ड तो झटके ही होते. नहीं?

लेकिन 'मैन' क्यों?

अब क्या है कि तुम्हारा सरकारी इनाम तो है नहीं कि किसी नेता के नाम पर रख दो. प्राइज में मिलता है पैसा. और पैसा देती है कंपनी. जब प्राइज शुरू हुआ, यानी 1968 में तब इसको बुकर-मेककोनेल प्राइज कहते थे. क्योंकि इसका पैसा बुकर मेककोनेल कंपनी से आता था. 'बुकर' पढ़कर ये न समझ लेना कि कंपनी का लेना-देना किताबों से था. ये ब्रिटेन की सबसे बड़ी 'फ़ूड' कंपनियों में से एक है. यानी खाना सप्लाई करते हैं. इनके रेस्टोरेंट, दुकानें चलती हैं. खैर. तो इस तरह प्राइज को बुकर प्राइज कहने लगे. फिर कई सालों बाद इसकी फंडिंग भारी इन्वेस्टमेंट कंपनी 'मैन ग्रुप' के हाथ में चली गई. अब कायदे से तो इसको मैन प्राइज कहा जाना चाहिए था. लेकिन बुकर प्राइज का ब्रांड इतना बड़ा था, कि कंपनी ने तय किया कि 'बुकर' नाम नहीं बदलेंगे. तो फिर प्राइज 'मैन बुकर' कहलाने लगा.

कौन-कौन पाया है मैन बुकर?

बहुत लोग पाए हैं. नाम याद नहीं रख पाओगे. लेकिन कुछ इंडियन लोगों को मिला है. उनके नाम याद रखना. पढ़ पाओ तो उनकी किताबें भी पढ़ लेना.

कितना पइसा मिलता है?

50 हजार पाउंड. मतलब लगभग 40 लाख रुपये. एक घर खरीद लेओ इतने में नोएडा में. दुनिया के सबसे अमीर साहित्यिक पुरस्कारों में से एक है मैन बुकर.

तो इस बार कौन अमीर हुआ है?

अमेरिकी नॉवेलिस्ट हैं. सैटायर बढ़िया करते हैं. कुल चार किताबें लिख चुके हैं. और चौथी किताब द सेलआउट के लिए इन्हें बुकर मिला है.

किस बारे में है द सेलआउट?

एक आदमी है. लॉस एंजलीस में रहता है. अपने घर के आंगन में उगाता है तरबूज और भांग. इस कहानी के नायक को 'मी' के नाम से जाना जाता है. पूरी किताब में इसी नाम से पुकारा जाता है उसे. ये आदमी कोशिश करता है कि अपने मोहल्ले में गुलामी और नस्लभेद को वापस ले आए. मतलब कि व्यंग्य है ये. सेंटी न होओ. किताब मंगाओ. पढ़ डालो. ज्ञान बढ़ेगा. फिर हमें थैंक यू कहना.

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